मुँहनोचवा - एक खौफनाक अफवाह का साया Abhijeet Yadav द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मुँहनोचवा - एक खौफनाक अफवाह का साया

गाँव गुडरू, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के लोगों ने पहले तो 'मुँहनोचवा' के बारे में सुनी कहानियों को हंसी में उड़ा दिया। लेकिन जल्दी ही यह हंसी एक गहरे डर में बदल गई। यह 2000 के शुरुआती सालों की बात है, जब पूरे इलाके में मुँहनोचवा के आतंक की कहानियाँ फैलने लगीं।

पहली बार मुँहनोचवा का जिक्र तब हुआ जब लोगों ने सुना कि पास के किसी गाँव में किसी व्यक्ति को यह अजीबोगरीब प्राणी उठा ले गया। यह खबर जंगल की आग की तरह फैली और हर गाँव में चर्चा का विषय बन गई। कहा जाता था कि मुँहनोचवा आधा इंसान और आधा बंदर जैसा दिखता है, जिसके माथे पर एक चमकती हुई रोशनी जलती रहती थी। यह रोशनी दूर से दिखाई देती थी और लोग समझ जाते थे कि मुँहनोचवा पास ही है। उसकी सबसे खतरनाक बात यह थी कि उसके पैरों में स्प्रिंग लगी थी, जिससे वह एक ही छलांग में छत पर चढ़ जाता था और लोगों को उठा ले जाता था।

जैसे-जैसे इस प्राणी के किस्से बढ़ते गए, वैसे-वैसे लोगों के मन में डर गहराता गया। अफवाहें फैलने लगीं कि मुँहनोचवा ने फलाँ गाँव में किसी को उठा लिया, और फिर कभी उसकी कोई खबर नहीं मिली। कुछ लोग कहते थे कि उन्होंने मुँहनोचवा को अपनी आँखों से देखा है, जबकि कुछ लोग इसे महज एक भ्रम मानते थे। पर सच्चाई चाहे जो भी हो, मुँहनोचवा का डर हर किसी के दिल में बस चुका था।

गाँव के लोग शाम होते ही अपने दरवाजे और खिड़कियाँ बंद कर लेते थे। कोई भी रात को बाहर निकलने की हिम्मत नहीं करता था। यहाँ तक कि एक गाँव से दूसरे गाँव जाने की हिम्मत भी लोग नहीं जुटा पाते थे। बच्चे तो इस खौफ के साये में बड़े हो रहे थे। हम भी उस समय बच्चे ही थे और मुँहनोचवा की कहानियों ने हमारे दिलों में इतना डर भर दिया था कि रात को कहीं भी अकेले जाने की सोचते ही पसीने छूट जाते थे।

मुँहनोचवा के डर का फायदा सबसे ज्यादा चोरों और डकैतों ने उठाया। वे इस अफवाह का फायदा उठाकर रात में गाँवों में चोरी और डकैती करने लगे। जब भी कोई चोरी होती, लोग इसे मुँहनोचवा का काम समझकर और भी ज्यादा डर जाते। कुछ शरारती तत्व तो जानबूझकर मुँहनोचवा की अफवाहों को और हवा देने लगे, ताकि लोग डर के मारे घरों में बंद रहें और चोर आसानी से अपना काम कर सकें।

उत्तर प्रदेश के कई गाँवों में यह दहशत महीनों तक बनी रही। मुँहनोचवा का नाम सुनते ही लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते थे। पुलिस और प्रशासन भी इस अफवाह से परेशान हो गए थे, लेकिन वे भी इसे रोकने में असफल रहे। हर रात एक नया किस्सा, एक नई कहानी सुनाई देती थी, और हर बार मुँहनोचवा का खौफ और भी बढ़ जाता था।

समय बीतता गया और धीरे-धीरे लोगों को समझ में आने लगा कि मुँहनोचवा का यह आतंक सिर्फ एक अफवाह थी। असल में, कुछ चालाक लोगों ने इस डर का फायदा उठाकर अपने आपराधिक मंसूबों को अंजाम दिया था। पुलिस ने भी गाँवों में गश्त बढ़ा दी, जिससे चोरियां कम हो गईं और लोगों के मन से मुँहनोचवा का खौफ धीरे-धीरे मिटने लगा।

आज मुँहनोचवा की कहानी सिर्फ बीते समय की बात है, जिसे गाँव के बुजुर्ग कभी-कभी बच्चों को सुनाते हैं। लेकिन उस दौर में, जब मुँहनोचवा का खौफ हर दिल में बसा हुआ था, वह समय कभी भुलाया नहीं जा सकता। वह डर, वह सिहरन, और वह दहशत अब भी यादें बनकर ज़हन में ताजा हैं। हम बच्चे उस समय के खौफ में जीते थे, और रात को अकेले कहीं भी जाने की सोच से ही हमारी रूह काँप जाती थी।

मुँहनोचवा की यह कहानी अब सिर्फ एक किस्सा बनकर रह गई है, लेकिन यह याद दिलाती है कि कैसे अफवाहें और डर इंसानों को अंधविश्वास की गिरफ्त में ले सकते हैं। शायद मुँहनोचवा एक सच था, शायद एक अफवाह, पर उस समय का खौफ और डर, जिसने पूरे गाँव को अपनी चपेट में ले लिया था, वह वाकई में असली था।