में और मेरे अहसास - 109 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

में और मेरे अहसास - 109

सुहाना नशीला मौसम दिल को बहका रहा हैं l

रंगबेरंगी फ़ूलोंका गुलदस्ता मन बहला रहा हैं ll

 

लाखों आरजूएँ पल रहीं हैं सदियों से आज l

जिगर में तमन्नाओं का चमन महका रहा हैं ll

 

मुख्तसर सी बात है हमदर्द के प्यारे हाथों से l

जरा सा छूने लेने से अंग अंग दहका रहा हैं ll

 

संवर कर रहते हैं बेपन्हा बेइंतिहा प्यार में l

जुदाई की बातों से आज क्यूँ तड़पा रहा हैं?

 

कुछ ज्यादा ही एहमियत दे दी है इश्क़ को l

एक नज़र देखने को ज़ालिम तरसा रहा हैं ll

१६-८-२०२४ 

 

पावस में छाता साथ लेकर निकला करो l

तर-बतर बिना भीगे हुए तन मन में भरो ll

 

कहीं साथ अपने बहा ना ले जाए खुशियाँ l

अंधी धुंआधार बरसात की बौछार से डरो ll 

 

जिस दिशा में जा रहा सैलाब उसी दिशा में l

ग़र मंज़िल तक पहुचना है बहाव में सरो ll

 

सोचे समझे बिना आगे बढ़ाना जानलेवा होता है l

अनजाने पानी में तैरना आता है तो ही तरो ll

 

खुद की हिम्मत ही काम आएँगी हर बार तो l

सुनो मुकम्मल हौसलों से मुश्किलों को हरो ll

१७-८-२०२४ 

 

छोटी सी बात पर यूँ हाथ नहीं छुटा करते l

जल्दबाजी में लहू के रिश्ते नहीं टुटा करते ll

 

खामोशी से चुपचाप रहने में ही अक्लमंदी है l

रो कर दुसरों की खुशियो नहीं लुटा करते ll

 

हर बात पर ढिंढोरा नहीं पीटा जाता और l

बेवफ़ूक के सामने सर नहीं कुटा करते ll

 

यार दोस्तों में हसीं मजाक होते रहते हैं कि l

सरे आम शब्दों के गुब्बारे नहीं फूटा करते ll

 

कभी कुआं प्यासे के पास नहीं जाता है l

बीते हुए लम्हों की साँसे नहीं जुटा करते ll

१८-८-२०२४ 

 

ज़ख्म औरों दिखाने के लिए नहीं होते हैं l

ख़ुद ही सहने के लिए होते हैं ll

 

नासूर दर्द को नुमाइश नहीं किये जाते हैं l

ख़ुद ही सहने के लिए होते हैं ll

 

बारिस के मौसम ने जान ले ली है l

मुकम्मल भिगोके पहचान ले ली है ll

 

ग़ैर के साथ मेलमिलाप बढ़ाकर आज l

खूबसूरत खिलौनों ने याद ले ली है ll

 

बारीश की सुरीली सरगम बज रहीं l

धुएँधार बरसात ने रात ले ली है ll

 

बातेँ करने के शोखने ख़ामोशी सिखाई l

फिझाओ से मिलके शान ले ली है ll

 

मौसम के रसीले नशीले उफान ने सखी l

प्यार में भीगने की उन्माद ले ली है ll  

२०-८-२०२४ 

 

सूखी धरती पर फूल उगाना चाहते हैं l

कायनात को गुलों से सजाना चाहते हैं ll

 

बहुत ही परेशान कर दिया है धरा को l

अब धरती को स्वर्ग बनाना चाहते हैं ll

 

भूल गया है अपनी जिम्मेदारीयों को l

सोये हुए इन्सान को जगाना चाहते हैं ll

 

आवारा बादलों को इकठ्ठा करके अब l

रूठ हुईं बरसात को मनाना चाहते हैं ll

 

एक अरमान ज़ोरों से हौसला दे रहा l

नया सा खूबसूरत ज़माना चाहते हैं ll

२१-८-२०२४ 

 

तमन्नाओं के उमड़ते बादल प्यार लेकर आये हैं l

साथ साथ अपने सब कुछ बहा लेकर जाये हैं ll

 

मंज़िल के जनून वाले मशवरा नहीं लिया करते l

मुट्ठी में क़ायनात भर की खुशियों को पाये हैं ll

 

ख़ामोश लब्जों को जुबान मिल गई है तो वह l

आज महफिल में बधाईयाँ की गज़ले गाये हैं ll

 

दरबारों के मालिक की जबरजस्ती नहीं चलेगी l

किसीका खौफ़ नहीं रहा है कि खुदा के साये हैं ll

 

बाकी की उम्र को काटना आसान हो जाएगा l

चार दिन में हज़ारों सालों की ख़ुशी लाये हैं ll

२२-८-२०२४ 

 

कोख में ही मारी जाती हैं हमारी बेटियाँ l

सब से आखिर खाती हैं हमारी बेटियाँ ll

 

भीतर से पूरी तरह टूटने के बाद भी l

होठों पर हसी लाती हैं हमारी बेटियाँ ll

 

पूनम के चाँद की तरह चमकते हुए l

पिता के घर आती हैं हमारी बेटियाँ ll

 

बेटी खैर मुखालिफ है बा वजूद की l

मोमबत्ती की बाती हैं हमारी बेटियाँ ll

 

सुबह आँगन को ताजगी देने के लिए l

मंगल कामना गाती हैं हमारी बेटियाँ ll

 

जिसको बेटो के अरमान होते हैं उनको l

एक आंख नहीं भाती हैं हमारी बेटियाँ ll

 

छोटे बड़े सब को जीवन देने वाली ही l

जिन्दगी नहीं पाती हैं हमारी बेटियाँ ll

 

पढ़ाई लिखाई की महत्ता न समझे l

बिना पढ़ी रहती हैं हमारी बेटियाँ ll

२३-८-२०२४ 

 

पढ़े लिखे होकर भी अनपढ़ हैं हमारे बेटे l

समझूँ होकर भी नासमझ हैं हमारे बेटे ll

 

एक बार नहीं सोचते कृत्य करने से पहले l

बाद के परिणय से अनजान हैं हमारे बेटे ll

 

हेवनियत सिर चढ़ गई जो बुरे बने हुए हैं l

वो भूले गये हैं बहेनो के भाई हैं हमारे बेटे ll

२४-८-२०२४ 

 

दुनिया को दर्दे दिल बता नहीं सकता ll

नासूर ज़ख्मों को दिखा नहीं सकता ll

 

लाख कसमें दे दो, ये हो नहीं सकता l

बुलाने पर भी कूचे पे आ नहीं सकता ll

 

सुनो मोहब्बत के अलावा कई ग़म है l

मुलाकात का वादा निभा नहीं सकता ll

 

बहुत शर्मिन्दा है रश्में निभा न सके l

नजरों से नज़रें मिला नहीं सकता ll

 

अग्नि शमक की नोकरी छोड़ दी है l

दिल में लगी हुई बुझा नहीं सकता ll

 

नज़रों में समाकर दिल में उतरना है l

आँखों से तस्वीरें हिला नहीं सकता ll

२४-८-२०२४ 

 

पुरानी बातेँ भूल जानी चाहिए l

नशीली रातें भूल जानी चाहिए ll

 

बाहिर निकल आओ पिंजरे से l

चुभती यादें भूल जानी चाहिए ll 

 

महफिलों को ताज़ा कर जाए वो l

मोहक ताने भूल जानी चाहिए ll

 

हम सुख़न औ हम जुबान की l

रंगीली भातें भूल जानी चाहिए ll

 

बिछती है फूलों की चादर उस l

हसीन राहें भूल जानी चाहिए ll

२५-८-२०२४ 

 

ख्वाब मुकम्मल करने की सालों पुरानी हसरत हैं l

सच कहता हूँ ये ख्वाब ही बची कूची दौलत हैं ll

 

तिरे लिए तिरे दम से तो जिन्दा हूं आज तक तो l

और क्या सोचूँ तिरे ख्यालों से कहां फुर्सत हैं ll

 

जो समझना है समझो पर दिल की बात कहते हैं l

सुनो तिरे बिना जिंदगी तो लगती बे-मुरव्वत हैं ll

 

मिरे प्यार की इकलौती वारिस है जान ले तू l

तिरा बेपन्हा प्यार ही मिरी बन चुकी आदत हैं ll

 

अब छुपते छुपाते मिलने की ज़रूरत नहीं हैं l

आज खुलकर कहदे जग से बेइंतिहा मोहब्बत हैं ll

 

बड़ी फुर्सत से बनाया है उनको रबने तो l

क्यूँ न प्यार करे यार बेहद ही खूबसूरत हैं ll

 

झोली फैलाकर माँगा था बार बार ख़ुदा से l

बड़ी देर के बाद मिलन हुआ यहीं शिकायत हैं ll

२६-८-२०२४ 

 

कान्हा की बांसुरी के सुरों ने वृंदावन को दिवाना बनाया हुआ हैं l

दिन का हर पल हर लम्हा उत्साह से उत्सव जैसे मनाया हुआ हैं ll

 

शीतल लहरों में मस्त, आधी मगन, लजाती, शर्माती, पलकें झुकाए l

राधा औ गोपियों का दिवानापन कृष्ण ने 

प्यार से संभाला हुआ हैं ll

 

घर के सारे काम काज बच्चों बूढ़ों को पतियों को छोड़ आई है आज l

उस सभी पगलीयों को ममता भरे साथ दुलार से संवारा हुआ हैं ll

 

दिव्यगान-सुधा में पूरी तन्मयता के साथ धुन मैं लीन हुई है l

नटखट कृष्ण की खुशी के लिए घर आँगन को सजाया हुआ हैं ll

 

वृंदावन की पावन धरती अमृत स्वरों से पुलकित हो उठी l

जमना तट पर संग राधा के मनमोहन ने रास रचाया हुआ हैं ll

२७-८-२०२४ 

 

चित्तचोर चित्त चुरा के छुप गया हैं l

चैन के साथ सुकून भी लुट गया हैं ll

 

जब से दिल्लगी दिल की लगी बनी है l

तब से दुनिया से राबता छुट गया हैं ll

 

गली के चक्कर काटने शुरू हुए है तो l

लाज शर्म से नाता तुरन्त टुट गया हैं ll

 

बाह पकड़कर गले जो लगा लेना है कि l

माखनचोर नटखट से सब्र खुट गया हैं ll

 

गोपियों को हेरा परेशान करने के लिए l

गिली से मक्खन का मटका फुट गया हैं ll  

२८-८-२०२४ 

 

ज़िंदगी मुकम्मल कशमकश में ही गुज़र गई l

असलियत सामने आई तो सब समझ गई ll

 

पता न था सर का साया जाते बिखर जाएंगें l

अब तक शजर से जुड़ी रहीं तो संभल गई ll

 

चारों ओर से बिजलियाँ गरज़ रहीं थीं तो l

थोड़ा सा सहारा मिलते ही आँखें बरस गई ll

 

जरा सी आहट से परेशान हो जाते थे अब l

उस प्यार से छलकती नजरों को तरस गई ll

 

बाग बिना माली के तहस नहस हो गया कि l

याद की एक हल्की सी लहर से तड़प गई ll 

२९-८-२०२४ 

 

दरियादिली सागर की देखो नदी को ख़ुद में समा लेता हैं ll

जो भी मिला जिस तरह भी मिला भीतर ही बसा लेता हैं ll

 

साथ समय के अपनी मस्ती में ख़ामोश रहकर बढ़ता रहता है l

अकेला बहता खुद को खुद की तन्हाईयों से जगा लेता हैं ll

 

न फैलने का डर न छलकने का खौफ़ मुस्कराते हुए बस वो l

शिद्दत से जुस्तजू और जुनून के साथ बाहों से लगा लेता हैं ll

 

मिलने की ख़ुशी में ख़ुद को तरबतर करके पागलपन में l

ताउम्र का याराना वो प्यार और मोहब्बत से निभा लेता हैं ll

 

अगड़ाई ले लेकर साहिल की और बहता रहता है नादाँ और l

बाकी की उम्र हसी खुशी से अपनी ही धुन में बिता लेता हैं ll

३०-८-२०२४ 

 

निगाहें चार होते ही चाँद का टुकड़ा शर्मा गया l

सतत इशारों से और किनायों से घबरा गया ll

 

अल्फाजों से ग़ज़लें रात भर संवरती रहीं और l

महफ़िलोंमें हसीन सुराहियों को छलका गया ll

 

एक आवाज़ सुनने के लिए कबसे तरस रहे हैं l

औ उसका देर तक ख़ामोश रहना तड़पा गया ll

 

रास्ते पर नज़र टिकी हुई कि कहीं दिख जाए l

पल दो पल की झलक दिखाकर तरसा गया ll

 

जो भी हो वो वादे के पक्के हैं कहाँ था आएंगे तो l

बात रहने दिल को घड़ी दो घड़ी बहला गया ll

 

आज उनकी शरारत की इन्तहा ही हो गई कि l

बहुत नजदीक से गुज़र कर साँसों को बहका गया ll

 

कहीं जाएंगे पर लौटकर तो वापिस यहि आएंगे l

तड़पते तरसते बरसते दिल को समझा गया ll

 

प्रिय कब से बरसने को उमड़ कर छाएं हुए थे l

भीगने भिगोने के लिए प्यार को बरसा गया ll

किनायों - संकेतों 

३१-८-२०२४