हीर... - 22 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर... - 22

कभी कभी किसी किसी इंसान की जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आ जाते हैं जिनके चक्रव्यूह में उलझकर वो इंसान सही और गलत का डिसिजन नहीं ले पाता है, यहां तक कि अगर वो इस बात को महसूस भी करले कि परिस्थितियों के भंवर में फंसकर वो कुछ गलत कर रहा है और उसे ऐसा नहीं करना चाहिये तब भी... उसे वो रास्ता नज़र नहीं आता जिसपर चलकर वो खुद को संभाल सके या उन परिस्थितियों से खुद को बाहर निकाल सके और इन्हीं बातों के फेर में वो उस चक्रव्यूह में और जादा उलझता चला जाता है ठीक वैसे ही जैसे राजीव.. अंकिता की वजह से अपने दिल के दर्द में उलझकर आज ऐसी हालत में पंहुच चुका था कि उसे इतनी जादा शराब पीने से पहले ये तक होश नहीं रहा कि उसके पीछे उसके मां बाप भी हैं जिनका वो इकलौता और आखरी सहारा है!! 

वो बड़े बड़े साधू संत और महात्मा कहते हैं ना कि इंसान का मन भले सही और गलत का फैसला ना ले पाये लेकिन उसके अंदर बैठा भगवान यानि उसकी अंतरात्मा उसे इस बात का एहसास जरूर करा देती है कि वो जो कर रहा है वो बिल्कुल गलत है शायद इस वक्त राजीव की अंतरात्मा उसे अंदर ही अंदर इसी बात के लिये कचोट रही थी कि आज उसने जो किया वो बिल्कुल गलत था इसीलिये अपनी गलती को महसूस करते हुये मानसिक वेदना के इस भारी समय में मधु की आवाज़ सुनने के बाद राजीव का गला इतना जादा भर चुका था कि उससे कुछ बोला ही नहीं जा रहा था और बोलने की नाकाम कोशिश करते करते वो बार बार बस ठसका लिये जा रहा था और बिना आवाज़ किये बस.. रोये जा रहा था.... 

पहले से ही राजीव की चिंता में भावुक मधु को जब महसूस हुआ कि राजीव दुखी है, परेशान है और किसी बात को लेकर तकलीफ़ में है तब उन्होंने भी अपने भरे गले से दोबारा कहा- राजीव... तू ठीक तो है ना बेटा? 

मधु की आवाज़ सुनकर राजीव गिल्ट महसूस करते हुये जैसे टूट सा गया हो बिल्कुल वैसे ही... ना चाहते हुये भी सुबकियां लेने लगा, उसकी सुबकियों की आवाज़ सुनकर अवध ने कहा- राजीव बेटा क्या बात है तू ऐसे परेशान क्यों हो रहा है, तू चिंता मत कर मैं.... 

इससे पहले कि अवध आगे कुछ बोल पाते राजीव ने गला भरा होने की वजह से बड़ी मुश्किल से  कहा- मम्... मम्मा!! 

राजीव की ऐसी आवाज़ सुनकर मधु ने तपाक से कहा- हां बेटा.. बता ना क्या हो गया मेरे बच्चे? तू क्यों ऐसे परेशान हो रहा है... क्या बात है बता बेटा? 

राजीव रोते हुये बोला- मम्मा... मम्मा म.. मैं आपका अच्छा बेटा हूं ना मम्मा, म.. मैं गंदा बेटा नहीं हूं ना मम्मा!! 

राजीव की इस बात में उसकी तकलीफ़ को साफ़ महसूस करके जहां एक तरफ़ मधु भी सुबकने लगी थीं वहीं दूसरी तरफ़ अवध की आंखों में भी आंसू आ गये थे.. उनका भी दिल जैसे रोने लगा था!! 

राजीव की बात का जवाब देते हुये मधु ने सुबकियां लेते हुये कहा- हां बेटा.. तू सबसे अच्छा बेटा है!! 

"ले.. लेकिन मम्मा मैं अच्छा बेटा बन नहीं  पाया... मैं आपके और पापा के लिये कुछ नहीं कर पाया मम्मा, मैं अच्छा बेटा नहीं बन पाया!!" राजीव ने रोते हुये कहा... 

राजीव की बात सुनकर अवध भी भावुक होने की वजह से भारी हो चुके अपने गले से बोले- ये किसने कहा कि मेरा बेटा अच्छा बेटा नहीं बन पाया, राजीव... मेरे बेटे तुम इस दुनिया के बेस्ट बेटे हो लेकिन बात क्या हुयी है.. बता तो सही!! 

राजीव ने खुद को संभालकर सुबकते हुये कहा- पापा... पापा... मेरी जॉब चली गयी पापा!! मैं आप दोनों का कोई सपना पूरा नहीं कर पाया पापा, आज मैं खुद को इस दुनिया का सबसे बदनसीब बेटा महसूस कर रहा हूं, मैं आप दोनों के लिये कुछ नहीं कर पाया.... 

चारू की ही तरह मधु और अवध जानते थे कि राजीव अपनी जॉब और उन दोनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को लेकर कितना सेंसिटिव है इसलिये जब उन दोनों ने ये बात सुनी कि राजीव की जॉब चली गयी है तब वो दोनों अवाक् से होकर एक दूसरे का मुंह ताकने लगे... इसके बाद मधु ने कहा- अरे तो क्या हो गया बेटा, जॉब्स तो आती जाती रहती हैं ना उसमें इतना परेशान होने की क्या बात है.... 

अवध बोले- हां... मधु सही कह रही है और अभी तेरा बाप इतना लाचार नहीं हुआ है कि अपने बेटे का सहारा ना बन सके और ना ही एक जॉब जाने से सपने टूटते हैं, हमारा सबसे बड़ा सपना तो तू है बेटा.. हमारी आंखो के सामने हमेशा की तरह हंसता खेलता, मस्त रहता तू, हमारे आधे से जादा सपने तो तुझे खुश देखकर ही पूरे हो जाते हैं बेटा !! तू एक काम कर तू अभी के अभी कानपुर के लिये निकल और यहां आकर कुछ दिन रिलैक्स कर... फिर देखते हैं क्या करना है, वहां दिल्ली में अकेले रहकर ऐसे परेशान होने का कोई मतलब नहीं है!! 

मधु ने भी जोर देकर कहा- हां राजीव... बेटा तू कानपुर आ, ये तेरी जिल्ले इलाही का हुकुम है कि कल सुबह तक वो तुझे अपनी आंखों के सामने देखना चाहती हैं और ऐसे रोते हुये नहीं बल्कि हमेशा की तरह हंसते हुये!!

अपनी बात कहते हुये जहां एक तरफ़ मधु बिना आवाज़ किये रोने लगीं थीं वहीं दूसरी तरफ़ दिल्ली में राजीव ने जब उनकी ये बात सुनी तब वो रोते रोते एकदम से मुस्कुराने लगा और गहरी सांस छोड़ते हुये अपने रुंधे हुये गले से वो बोला- जो हुकुम सरकार... वो असल में...!!

राजीव ने जैसे ही ये बात बोली वैसे ही उसके पास खड़ी होकर भावुक हो रही चारू ने उसे इशारा करके कहा- मॉम को मत बताना कि मैं यहां हूं और तू मेरे साथ कानपुर आ रहा है!!

चारू की बात मानते हुये राजीव ने कहा- मम्मा वो असल में मेरा एक दोस्त है वो कोई फंक्शन अटैंड करने के लिये कानपुर आ रहा है अपनी कार से.. मैं उसी के साथ आ रहा हूं, सुबह तक पंहुच जाउंगा!!

अपनी बात कहकर राजीव ने तो फोन काट दिया लेकिन जिस तरीके से टूटकर रोते हुये उसने आज बात करी उसे सुनकर कानपुर में अपने घर में बैठे मधु और अवध का दिल बहुत भारी हो गया था...

राजीव से बात करने के बाद मधु खीजते हुये बोलीं - ये सब उसी अंकिता का किया धरा है, मैं पहली बार ही उससे मिलकर समझ गयी थी कि ये लड़की बहुत चालाक है.. उसकी आंखों में ही चालाकी थी, जिस लड़की की वजह से आज मेरा बेटा रोया है ना देखना उसे तो...

"नहीं मधु.. वो भी किसी की बेटी है और सबसे बड़ी बात वो एक लड़की है, कल को उसकी भी शादी होगी उसका परिवार होगा.. पति होगा, बच्चे होंगे और अगर तुम उसे बद्दुआ दोगी तो उसका एफेक्ट कहीं ना कहीं उसके परिवार पर भी पड़ेगा, उसने जो किया उसका हिसाब भगवान अपने तरीके से कर लेंगे... हम क्यों अपना मुंह खराब करें, हैना!! इसलिये भावनाओं में बहकर हमें खुद पर से नियंत्रण नहीं खोना चाहिये...!! ".. अवध ने मधु को बीच में टोकते हुये कहा...

जिस लड़के के माता पिता की सोच इतनी उजली हो क्या वो ऐसी बात कर सकते हैं जैसी अंकिता ने अजीत को बतायी थी?

क्रमशः