हीर... - 21 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर... - 21

"तू तो मेरा साथ नहीं छोड़ेगी ना चारू?" राजीव की सुबकते हुये कही गयी ये बात सुनकर  चारू ने उसकी हिम्मत बढ़ाते हुये कहा- बचपन से लेकर आजतक मैंने कभी तेरा साथ छोड़ा है क्या जो अब ऐसे समय में जब मेरे सबसे प्यारे दोस्त को मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है... मैं उसका साथ छोड़ दूंगी!!

अपनी बात कहते कहते चारू ने राजीव के आंसू पोंछते हुये कहा- मुझे तेरा साथ छोड़ना ही होता तो मैं सिर्फ तेरी वजह से यहां क्यों आती और तुझे ऐसी हालत में देखने के बाद यहां क्यों रुकती.. हम्म्!!

"मेरी वजह से क्यों? तुझे कैसे पता कि मैं इस हाल में हूं?" राजीव ने कहा....

चारू हल्का सा मुस्कुराते हुये बोली- अच्छा जी... सुबह से मैं, मॉम और पापा जी तुझे कितनी कॉल कर रहे थे और तू फोन नहीं उठा रहा था.... मुझे तेरी पहले से ही चिंता हो रही थी लेकिन जब मॉम ने मुझे कॉल करके पूछा कि.....

इसके बाद चारू ने राजीव को जब डिटेल में ये बताया कि वो अचानक से दिल्ली क्यों चली आयी तब राजीव को एहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी गलती करदी है...

राजीव को अचानक से दिल्ली आने का रीज़न बताने के बाद चारू ने बहुत प्यार से उससे कहा- राजीव.. मॉम और पापा जी सुबह से बहुत परेशान हैं और मैंने उनसे वादा किया था कि शाम तक तू उनसे बात जरूर करेगा इसलिये प्लीज तू अपने फोन से उन्हें फोन करके बता दे कि  तू ठीक है और तेरा फोन चोरी हो गया था, नंबर अभी इशू करवाया तब आप लोगों को कॉल कर रहा हूं!! 

राजीव की आंखों में आंसू थे और कहीं ना कहीं अपनी आज की इस हरकत का उसके मन में गिल्ट भी था क्योंकि राजीव ऐसा नहीं था जैसा अंकिता की वजह से वो अब हो गया था!! 

चारू की बातों में अपनी मम्मी मधु और पापा अवध की चिंता का जिक्र सुनकर पहले से ही भावुक राजीव का चेहरा उतर गया इसके बाद वो अपनी जगह से उठा और अपने बिस्तर पर पड़ा अपना फोन उठाने के बाद जब उसने स्क्रीन लॉक खोला तो जो कुछ भी उसने नोटिफिकेशन में देखा... उसे देखकर एकदम से उसकी आंखों के सामने मधु और अवध का रोता हुआ, अपनी चिंता में परेशान होता हुआ चेहरा जैसे घूम सा गया... 

राजीव ने देखा कि उसके मोबाइल में उसकी चिंता में परेशान होकर किये गये मधु के तमाम सारे वॉट्सएप मैसेज पड़े हुये थे और करीब करीब चार सौ मिसकॉल्स के नोटिफिकेशन थे.. ये सारे नोटिफिकेशन्स देखने के बाद राजीव को और भी जादा गिल्ट फील होने लगा और अपनी जीभ बाहर निकालकर अपने माथे पर हाथ मारते हुये वो खुद से बोला- मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी, मम्मा पापा आई एम रियली वैरी सॉरी!! 

ये बात खुद से कहते हुये राजीव का गला भर आया लेकिन खुद को संभालते हुये उसने फौरन मधु को कॉल कर दिया.... 

इधर कानपुर में--

दिन में चारू से बात करने के बाद मधु और अवध दोनों को उस टाइम तो ये सोचकर तसल्ली मिल गयी थी कि रात तक राजीव अपना नंबर चालू करवाकर हमें कॉल कर देगा लेकिन रात के भी ग्यारह बज चुके थे और अब वो दोनों फिर से राजीव को लेकर बहुत चिंता करने लगे थे...

अवध तो जैसे तैसे खुद को संभाले ले रहे थे लेकिन मधु.. मधु का मन किसी अनहोनी की आशंका के चलते बार बार जैसे बैठा जा रहा था, आंसुओं की वजह से उनकी आंखे सूखने का नाम ही नहीं ले रही थीं...

बहुत देर से परेशान होकर इधर उधर टहल रहे अवध ने मधु से कहा- मधु... मैं एक काम करता हूं लाली को बुला लेता हूं, हम उसकी कार से अभी दिल्ली चलेंगे... मुझसे अब और इंतजार नहीं हो रहा, मुझे किसी भी तरह से राजीव के पास पंहुचना है बस...

लाली... राजीव के मामा का घर का नाम था और अवध अब उनको फोन करके बुलाने वाले थे ताकि वो दिल्ली जा सकें..

अपनी बात रोती हुयी मधु से कहकर अवध ने जैसे ही अपना फोन हाथ में लिया वैसे ही अपना फोन हाथ में पकड़कर लगातार रोये जा रहीं मधु के फोन की रिंग बजने लगी, रिंग की आवाज़ सुनते ही मधु चौंक गयीं और अवध से हड़बड़ाते हुये ये कहकर कि "र.. राजीव, सुनिये राजीव का कॉल!!".. उन्होंने झट से फोन रिसीव कर लिया...

"राजीव का कॉल!!" ये बात सुनकर अवध अपने साले लाली को कॉल करते करते रुक गये और हड़बड़ाते हुये मधु के बगल में जाकर बैठने के बाद उनसे बोले- स्पीकर ऑन करो मधु...

इधर मधु ने राजीव का कॉल रिसीव करके स्पीकर ऑन करने के बाद जब खिसियाते हुये कहा "राजीव...".. तब उधर से बस गले को ठसका देने की आवाज़ आयी... इसके अलावा कोई आवाज़ नहीं!! 

उधर से भले सिर्फ गले को ठसका देने की आवाज़ आयी थी लेकिन इधर एक मां थी जो ये आवाज़ सुन रही थी और एक मां के लिये तो उसके बेटे की महज़ एक हल्की सी आहट ही काफ़ी होती है उसे ये महसूस कराने के लिये.. कि बेटा खुश है या तकलीफ़ में है तो मधु कैसे ना समझतीं की जो आवाज़ उनके कानों में अभी गूंजी है वो किसी और की नहीं बल्कि उनके जिगर के टुकड़े.. उनके बेटे की ही है और बेटा... तकलीफ़ में है!!

क्रमशः