हीर... - 5 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर... - 5

इश्क, मोहब्बत, प्यार, लव, प्रेम... नाम भले अलग अलग हैं लेकिन इन सबका अंजाम एक ही है.. तन्हाई, दर्द, टूटन और आंसू!! शायद इसी दर्द से होकर गुज़र रहा था राजीव.. शायद इसीलिये उसकी जिंदगी जीने की इच्छा ही खत्म हो गयी थी इसीलिये उसने खुद को आज उस हालत में पंहुचा दिया था जिसमें वो चाहकर भी अपने खुद के पैरों तक पर खड़ा नहीं हो पा रहा था और अंदर ही अंदर बस टूटता चला जा रहा था...

जहां एक तरफ़ अपने फ्लैट में नशे की हालत में जमीन पर पड़ा राजीव.. अंकिता को याद करते हुये खुद को जैसे खत्म करने की पूरी तैयारी कर चुका था वहीं दूसरी तरफ़ भुवनेश्वर के रियो रेस्टोरेंट में अजीत के साथ बैठी अंकिता उसके बार बार दबाव बनाकर उसके खुद के अतीत के बारे में पूछने पर ना नुकुर करते करते आखिरकार उसे सब कुछ बताने के लिये मान गयी थी...

राजीव के साथ के अपने अतीत के बारे में अजीत को बताते हुये अंकिता ने कहा- अजीत जब से हम दोनों मिले हैं तब से लेकर आजतक हमें ज़रूरत ही महसूस नहीं हुयी कि हम तुम्हे अपने पास्ट के बारे में कुछ बतायें लेकिन जब आज तुमने हमसे इतनी बड़ी बात करी है तो आज हम अपने पास्ट के बारे में तुम्हे सब कुछ सच सच बतायेंगे, उसके बाद तुम खुद डिसिजन ले लेना कि तुम्हें हमारे साथ सिर्फ दोस्ती रखनी है या इस नये रिश्ते में आगे बढ़ना है, अजीत.. आज से करीब सात साल पहले यानि 2010 में जब हम एमबीए करने के लिये दिल्ली गये थे तब कॉलेज में हमारी मुलाकात राजीव से हुयी थी, हुआ ये था कि - -

राजीव और अंकिता का अतीत.. अंकिता के शब्दों में--

कॉमर्स से ग्रैजुएशन करने के बाद हमारा बहुत मन था कि हम दिल्ली जाकर एमबीए भी करें, दिल्ली से इसलिये क्योंकि हम दो तीन बार जब किसी रिलेटिव की शादी में वहां गये तब वहां का कल्चर, वहां के लोगों का बात करने का तरीका, वहां का सब कुछ.. हमें बहुत अच्छा लगा था इसलिये हम दिल्ली से ही एमबीए करना चाहते थे लेकिन पापा नहीं चाहते थे कि हम घर से इतनी दूर जाकर रहें और वो भी पूरे दो साल के लिये इसलिये उन्होंने पहले तो हमें दिल्ली भेजने से मना कर दिया लेकिन जब हमने जिद करी तो वो मान गये और फिर उन्होंने हमारा एडमीशन दिल्ली के कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज़ में करवा दिया...
ये पहला ऐसा मौका था जब हम अपने मम्मी पापा और अपने शहर से इतनी दूर गये थे और वो भी पूरे दो साल के लिये इसलिये शुरू शुरू में हमें दिल्ली में बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था और तब हमें समझ आया कि एक दो दिन के लिये किसी जगह जाने में और रहने के लिये किसी जगह जाने में बहुत फ़र्क होता है...
कॉलेज शुरू हुये करीब तीन दिन हो चुके थे और वैसे तो रैगिंग बैन है और एक बहुत बड़ा ऑफेंस है फिर भी कुछ सीनियर लड़के लड़कियां खाली टाइम में क्लास में आकर हल्की फुल्की रैगिंग कर लिया करते थे, वो रैगिंग भले हल्की फुल्की करते थे लेकिन हमें वो सब बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि एक तो हमें घर की और मम्मी पापा कि बहुत याद आती थी और ऊपर से रोज रोज की रैगिंग..!! हमें लगने लगा था कि हमने दिल्ली से एमबीए करने का डिसिजन गलत ही ले लिया और कहीं ना कहीं हमारा मन ये होने लगा था कि हम वापस भुवनेश्वर लौट आयें और यहीं के किसी कॉलेज से एमबीए कर लें लेकिन इससे पहले कि हम वो बात पापा से या मम्मी से बताते एक दिन...
चूंकि गुज़रे हुये तीन चार दिनों में हमारी दोस्ती कुछ लड़कियों से हो गयी थी इसलिये एक दिन सुबह जब क्लास शुरू होने में थोड़ी देर थी तब हम अपनी उन नयी फ्रेंड्स के साथ कॉलेज की पार्किंग के ठीक बगल में बने एक छोटे से गार्डन पर रखी कुर्सियों पर बैठे बात कर ही रहे थे कि तभी काफ़ी तेज़ धड़ धड़ धड़ धड़ धड़ धड़ की तेज़ आवाज़ करते हुये एक बुलेट मोटरसाइकिल मेनगेट की तरफ़ से पार्किंग की तरफ़ आने लगी, उस मोटरसाइकिल की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि हम सारी फ्रेंड्स बात करते करते रुक गये और अंदर की तरफ़ आ रही उस बुलेट की तरफ़ देखने लगे....
हमने देखा कि उस तेज़ आवाज़ करती बुलेट मोटरसाइकिल पर एक हट्टा कट्टा मस्कुलर बंदा जिसके शोल्डर्स बहुत ब्रॉड थे और उसने स्काई ब्लू कलर का कुर्ता पहना हुआ था... अंदर पार्किंग में आया और बड़े स्टाइल से बाइक का स्टैंड लगाकर हेलमेट पहने पहने ही चारों तरफ़ ऐसे देखने लगा जैसे किसी को ढूंढ रहा हो!!
बाइक स्टैंड पर खड़ी करने के बाद वो बंदा बड़े स्टाइल से नीचे उतरा और उसके नीचे उतर कर खड़े होने के बाद हमने देखा कि उसकी हाइट करीब 6 फुट थी और पर्सनैलिटी बहुत डैशिंग जैसे किसी बॉडी बिल्डर की होती है बिल्कुल वैसी.. उसने अपने सीधे हाथ में बहुत मोटा कलावा बांधा हुआ था और उसे देख कर ही समझ में आ रहा था कि वो एटलीस्ट स्टूडेंट तो नहीं हो सकता.. उसकी अपीयरेंस से ही लग रहा था कि वो या तो कोई नेता है या फिर कोई दबंग!!
बाइक से उतरने के बाद वो बंदा उस तरफ़ से ही पार्किंग के बाहर की तरफ़ आने लगा जहां वो गार्डन था और जहां हम लोग बैठे थे... हमें लगा कि वो यहां से होते हुये निकल जायेगा लेकिन हुआ उसका उल्टा.. वो बंदा हेलमेट पहने हुये ही हम लोगों के पास आया और अपनी हेलमेट उतारते हुये हम लोगों से बोला- Excuse me.. Ammm.. may anyone of you can tell me that where is Block-C of this college actually this is my first day and i am the student of MBA first semester that is why i dont know that where is Block-C!!
उस बंदे के बात करने का तरीका और उसकी आवाज़ उसकी दबंग पर्सनैलिटी से बिल्कुल भी मैच नहीं खा रही थी, उसकी पर्सनैलिटी जितनी डायनैमिक थी उसके बात करने का तरीका और आवाज़ उतनी ही हंबल और सॉफ्ट थी लेकिन पता नहीं क्यों उस बंदे की बात को सुनकर हमें हंसी आ गयी और हमने उससे कहा- आप स्टूडेंट हो??

वो बंदा बोला- हां स्टूडेंट हूं... क्यों?

हमने कहा- नहीं बस ऐसे ही.. एक्चुअली ये कुर्ता.. अम्म् कॉलेज में!!

उस बंदे ने हंसते हुये कहा- क्यों.. कॉलेज में कुर्ता अलाउ नहीं है क्या?

इसके बाद उस बंदे से हमने कुछ नहीं कहा और ब्लॉक-सी की तरफ़ इशारा करके उसे बता दिया कि ब्लॉक-सी उस साइड है...

वो टॉल, हल्का सा सांवला और हैंडसम लड़का था... राजीव.. और ये हमारी उसके साथ पहली मुलाकात थी!!

क्रमशः