प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 11 Satish Thakur द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 11

सुभ्रत खामोश ही रहा। सरदार फिर बोला- "महीने की आखिरी रात को तेरी जिंदगी का साज खामोश हो जाएगा और फिर कस्तूरी को चौपाल में पहुंचा दिया जाएगा, क्योंकि जिन दासियों के मालिक मर जाते हैं, वो भी लावारिस ही कहलाती है।" तेम्बू ने जमीन पर पड़ी हुई कस्तूरी की तरफ देखते हुए कहा।

कस्तूरी जमीन पर रेत में मुंह औंधा किए रोये जा रही थी ।

अब आगे..........प्रेमी आत्मा मरीचिका - भाग ११

"नहीं।" सुभ्रत नै ठोस लहजे में कहा- "पांच महीने तो इंतजार करना ही होगा। कौन जाने तब तक कस्तूरी की कोख में मेरा वारिस पनपना शुरू हो जाए ।

"ठीक है।" कहकर तेम्बू वापस जाने के लिए मुड़ा उस दौरान धूर्त हरेन सुभ्रत को घूरता रहा था।

सरदार के मुड़ते ही वो लपककर सुभ्रत के करीब आया था और उसके कान में सरगोशी करते हुए बोला था, "हरेन से कोई बात छुपी नहीं रहती। मैं यहा मधुलिका की महक महसूस कर रहा हूं और सारा राज जान चुका हूं। वो बहुत देर यहां रही है।”

उसी वक्त उन्हें अपने पीछे बातें करते देखकर तेम्बू वापस लौटा था और हरेन को रहस्यपूर्ण ढंग से सुभ्रत के साथ बातें करते देखकर हैरान रह गया था।

"हरेन बाबा, तू इस छोकरे को क्या बता रहा है?" उसने पास आते हुए संदेह भरे लहजे में पूछा।

हरेन नकली और खोखली हंसी हंसकर रह गया था और सुभ्रत ने महसूस कर लिया था कि तेम्बू हरेन की तरफ से सदेहों का शिकार हो चुका है। यह तब्दीली सुभ्रत के लिए काफी उत्साहवर्धक और खुश करने वाली थी ।

"आओ कस्तूरी, यहां से चलें।" सुभ्रत ने जमीन पर पड़ी हुई सरदार की बेटी की तरफ बढ़ते हुए कहा।

"परे हट!" सरदार तेम्बू उछलकर सुभ्रत और कस्तूरी के बीच आ टपका था, "पांच तोला सोना दिए बगैर तू इस लडकी को हाथ भी नहीं लगा सकता।" 

लुटी-पिटी सी कस्तूरी उनके साथ बस्ती की तरफ चल पड़ी थी। उसके लड़खड़ाते कदम सुभ्रत के दिल में शक पैदा कर रहे थे कि कहीं वाकई वो रंगीन-मस्ती भरा समय उसने मधुलिका के बजाए कस्तूरी के पहलू में ही तो नहीं गुजारा था? यह गुत्थी इतनी जटिल और रहस्यमय थी कि सुभ्रत लगातार असमंजस का शिकार हो गया था और उसे मधुलिका से अगली मुलाकात से पहले यह पहेली हल होने की उम्मीद नजर नहीं आ रही थी ।

बस्ती में दाखिल होने से पहले सुभ्रत ने अग्नि-क्षेत्र के करीबी मदान में लोगों को जमा होकर अपनी मुँहबोली मां के अन्तिम संस्कार की तैयारियां करते देखा । सुभ्रत की हार्दिक इच्छा थी कि वो भी उस भीड़ के साथ जा खड़ा हो, लेकिन तेम्बू ने उसे सख्ती से मना कर दिया था।

कस्तूरी के साथ संदेहास्पद हालत में पाए जाने के बाद वो नागोनी में तीसरे दर्जे का वासी बनकर रह गया था। एकदम थर्ड क्लास। जिसे किसी रस्म या समारोह मे शामिल होने का हक नहीं था । अपने वीरान घर में पहुंचकर उसने शोक का प्रतीक लाल झण्डा नोंचकर फेंक दिया और संदूक में से वो सोना निकालकर तेम्बू के हवाले कर दिया था जो उसकी मुंहबोली मां ने लूट के माल के बंटवारे में उसके बाप को मिले हिस्से में से छुपा-छुपाकर सुभ्रत की शादी के लिए जमा कर रखा था।

सोने के वजन का अंदाजा लगाकर तेम्बू ने कस्तूरी का बाजू पकड़ा था और उसे बड़ी बेरहमी से सुभ्रत की तरफ धकेल दिया था। वो सुभ्रत के सीने से लगकर बेबसी से रो पड़ी थी। उसकी हालत इतनी दयनीय थी कि सुभ्रत का दिल भर आया था। कुछ क्षण के लिए उसने सोचा कि खुलकर असली बात बता दे, लोकन एक तरफ तो तेम्बू उसकी बात का बिस्वास न करता, दूसरी तरफ मधुलिका का नाम सामने आते ही उसकी खुद की जान के लाले पड़ जाते।

वर्तमान स्थिति में सुभ्रत को कम-से-कम इतनी उम्मीद तो थी कि मधुलिका उससे दूर रहते हुए भी उसकी रक्षा करेगी। धीरे-धीरे वो सरदार तेम्बू के घर से बाहर उसके विशाल खेमें पर पहुंचे। सरदार ने अपने लम्बे-चौड़े काले-कलूटे नौकर चिंचुक को बुलाकर इशारों-इशारों में उसे सुभ्रत के बारे में कुछ समझाया, वह सिर्फ तेम्बू के इशारों की भाषा समझता था। फिर वो हरेन के साथ अग्नि-क्षेत्र की तरफ लौट आया ताकि मरने वाली की आखिरी रस्में शुरू हो सकें।

तेम्बू का यह नौकर चिंचुक किसी गेंडे की तरह ताकतवर था, साथ ही वो गूंगा और बहरा भी था । सरदार के जाने के बाद सुभ्रत ने कई बार इशारों में उससे बात करनी चाही थी। लेकिन के पत्थर के बुत की तरह भाला सम्हाले बैठा रहता था। तेम्बू की बेटी कस्तूरी को सरदार की दासियों ने घेर लिया था। वो सब बदनसीब लड़कियां वो हालात जानने के लिए बेताब थीं जिन्होंने उनकी मालिकन को पल भर में उनकी कतार में लाकर खड़ा कर दिया था।

सूरज डूबने के बाद तेम्बू थका-हारा वापस आया था। उसके साथ आने वाले एक आदमी ने लकड़ी का एक संदूक सुभ्रत के सामने डाल दिया था और लौट गया था। तेम्बू ने कपड़ों की धूल झाड़ने के बाद शराब के कई जाम शराब एक-एक करके गले में उड़ेले थे, फिर सुराही लेकर सुभ्रत के सामने आ बैठा था।

उसके रंग-ढंग बता रहे थे कि वो सुभ्रत से कोई खास बात करने आया है। कुछ क्षण तक सुभ्रत के चेहरे को घूरते रहने के बाद तेम्बू ने इशारा करके चिंचुक को भी हटा दिया था। सुभ्रत एकाग्र होकर उसकी तरफ आकर्षित हो गया। तेम्बू बोला- 'तेरी जिंदगी के दिन तो चांद की आखिरी रात को पुरे हो रहे हैं सुभ्रत ।" 

तेम्बू के खौफनाक चेहरे पर गम्भीरता छाई हुई थी और लहजा कुछ हमदर्दी भरा था। सुभ्रत ने धीरे से सहमति में सिर हिला दिया " और तू यह भी जानता है कि तब तक तुझे कोई रियायत नहीं दी जाएगी।"

"ठीक है, मैं उसके लिए तैयार हूं।" सुभ्रत ने उसका सौदेबाजी वाला ढंग पहचानकर मजबूत रुख अपना लिया था।

"इस संदूक में तेरा सारा सामन हैं। घर को आग लगाने से पहले मैंने यह सब निकलवा लिए थे।" वो सुभ्रत के सामने पड़े लकड़ी के संदूक की तरफ इशारा करते हुए बोला था।

"क्या अब तुम्हारा इरादा चित्र बनाने का है?" सुभ्रत ने हैरत से पूछा ।

"बकवास मत कर!" तेम्बू झल्ला गया- "अगर तू मेरा साथ दें, तो यह सामान तुझे मिल सकता है और...।" उसने खामोश होकर आस-पास नजरें दौड़ाई और रहस्यभरे स्वर में बोला- तेरी मौत से पहले- तुम्हें कस्तूरी के साथ यहां से फरार होने में भी मदद दे सकता हूँ।"

क्रमशः ............प्रेमी आत्मा मरीचिका - भाग 12

लेखक - सतीश ठाकुर