डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 42 Saloni Agarwal द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 42

अब आगे,

रूही नहा कर बाथरूम से बाहर आ जाती हैं आज उस ने रोज से लाख गुना अच्छे कपड़े पहने होते है क्योंकि उस के पिता अमर घर पर ही मौजूद है...! 

आज उस ने लाल रंग की कुर्ती और ब्लैक कलर पटियाला सलवार पहनी होती हैं जिस की चुनरी भी ब्लैक कलर की ही होती हैं साथ में अपने बालो को अच्छे से गूंद के चोटी बना ली होती है साथ में अपने चेहरे पर आंखो में काजल और होठों पर लिप बाम लगा लिया होता है..! 

पैरो में पटियाला जूती और कानो में झुमके और साथ में अपने गोरे गोरे हाथो में चूड़ियां पहन ली होती हैं और एक की कमी रह जाती हैं वो है उस के पिता अमर ने दी हुई उस के लिए पायल वो भी पहन लेती हैं, जिस के बाद हमारी रूही, पूरी दुनिया पर अपना कहर बरसाने के लिए तैयार हो चुकी है..!

वो अपना कॉलेज बैग लेती है उस मे अपनी जरूरी चीजें जैसे कॉलेज का आईडी कार्ड और साथ में अपने कुछ डॉक्यूमेंट जो उस के एग्जामिनेशन फॉर्म भरने में काम मे आयेंगे वो सब अपने कॉलेज बैग में अच्छे से रख लेती हैं..! 

रूही को पूरे घर की साफ सफाई और पोछा करने में ही एक घंटा लग गया था फिर नहा धोकर अपने जो कपड़े और थोड़े बहुत और कपड़े धोकर सुखा दिए थे जिस मे आधा घंटा और लग गया फिर तैयार होने और सारा सामान अच्छे से रखने में 15 मिनट लग गए..!

अब रूही अपना कॉलेज बैग लेकर अपने कमरे से बाहर आ जाती हैं और वही टेबल पर अपना बैग रख देती है क्योंकि साइड में ही उस के पिता अमर चाय पी रहे होते है और रूही को देख, वो उस से कहते है,

" आ गई मेरी बच्ची रूही, अब जल्दी से नाश्ता कर ले, फिर तेरे साथ कॉलेज जाकर फिर मुझे अपने काम पर भी जाना है...! " 

अपने पिता अमर की बात सुन, रूही अपना सिर हां मे हिला देती हैं और अपना नाश्ता करने लगती हैं...! 

वही जब रूही के पिता रूही को देखते हैं तो रूही की सौतेली मां कुसुम से कहते है जो उनके लिए नाश्ता लेकर आई होती हैं, 

" सही मे लड़किया कितने जल्दी बड़ी हो जाती हैं ना, पता ही नही चलता है, अब कल की ही बात ले लो इस की मां सरस्वती इस को जन्माष्टमी के दिन घर लेकर आई थी और आज पूरे 22 साल की हो चुकी हैं, मेरी बच्ची रूही..! " 

रूही के पिता अमर की बात सुन कर, रूही की सौतेली मां कुसुम को बहुत गुस्सा आ रहा होता है मगर अपने आप को शांत कर के अपने चेहरे पर एक मुस्कान के साथ रूही के पिता अमर की हां में हां मिला कर कहती हैं,

" जी आप ने बिलकुल सही कहा आप ने...! " 

अब रूही की सौतेली मां कुसुम, रूही के पास आ जाती हैं जिस से रूही डर के अपना खाना प्लेट में ही रख देती है वही रूही की सौतेली मां कुसुम, उस को काला टीका लगाते हुए उस से कहती हैं,

" अरे रूही बेटा, इतनी खूबसूरत बनाया है तुझे तेरे बाके बिहारी ने तुझे तो अब तुझे भी तो अपनी खूबसूरती का ध्यान रखना पड़ेगा इसलिए कही भी बाहर जाए तो हमेशा काला टीका लगा कर ही जाना...!" 

जब रूही की सौतेली मां कुसुम, अपने आंखो में से काजल निकल कर रूही के गले पर लगा रही होती हैं तो वो, रूही के गले को इतनी जोर से दबा रही होती हैं जैसे वो उस का गला घोंटा चाह रही हो...!

रूही को बहुत दर्द हो रहा होता है उस की आंखो से अंशु निकलने लगते हैं मगर वो अपने मुंह से एक शब्द नही निकलती हैं क्योंकि उस के पिता अमर तो अपने काम से दिल्ली चले जायेंगे मगर उस के सौतेली मां कुसुम उस का जीना हराम कर देगी..! 

फिर रूही की सौतेली मां कुसुम, उस को छोड़ देती हैं जिस से रूही अपने सीने पर हाथ रख कर गहरी सांस लेती है वही रूही के पिता अमर जब उस को ऐसा करते देखते हैं तो उस से पूछते हैं, 

" क्या हुआ रूही बेटा, ऐसे अपने सीने पर हाथ रख कर क्यू बैठी हुई है..? " 

अपने पिता अमर की बात सुन कर, रूही अपने आप को शांत कर उन से कहती है, 

" वो कुछ भी तो नहीं, बस ऐसे ही..! "


To be Continued......❤️✍️

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