हॉंटेल होन्टेड - भाग - 65 Prem Rathod द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

हॉंटेल होन्टेड - भाग - 65

"पापा के यहां आने के बाद मेरी अक्सर उनसे बातें होती रहती थी,उन्होंने कहा था कि वो यह किसी cottage में ठहरे है,पर आगे जाकर केस ज्यादा पेंचीदा होने की वजह से हमने अपने सारे contact बंध कर दिए थे ताकि हमे कोई खतरा ना हो पर मुझे पापा की चिंता नहीं थी क्योंकि निशा भी उनके कॉन्टैक्ट में रहती थी,हम जल्द से जल्द केस खत्म करके घर वापस आए तो देखा कि निशा किसी tension में है और पूछने पर पता चला कि पापा 2 हफ्तों से लापता है,हमारे न रहते निशा ने वह लोकल एरिया में पूछताछ की थी पर उसे वह से कुछ नहीं पता चला इसलिए मैने जायदा वक्त न गंवाते हुए सीधे यहां आ गया,जब यहां कॉटेज मैं आकर देखा तो यहां ताला लगा हुआ था,आसपास लोगों से पूछने पर पता चला कि यह कॉटेज तो सालो से बंद पड़ा हुआ है,ये मामला मेरे लिए कुछ ज्यादा ही पेंचीदा होता जा रहा था क्योंकि मेरी सारी तलाश यहां आकर खत्म हो जाती थी।

मैं ना चाहते हुए भी पुलिस स्टेशन पहुंच गया क्योंकि मैं इस मामले को खुद निपटा देना चाहता था मैं नहीं चाहता था कि मेरे या मेरे रिलेटिव के regarding कोई भी information पुलिस रिकॉर्ड में आए पर अब यही एक रास्ता बचा था इसलिए पुलिस स्टेशन के अंदर पहुंच गया,अंदर जाकर मैंने हवालदार से इंस्पेक्टर के केबिन के बारे में पूछा तो उसने सामने की ओर इशारा कर दिया,शाम हो चुकी थी अब सूरज भी अपनी छाप छोड़कर पहाड़ों के पीछे ढल चुका था,अंदर पहुंच कर देखा तो खिड़की के पास खड़े होकर 26-27 साल का एक आदमी फोन पर बात कर रहा था उसकी शरीर की मजबूती को देखकर उसके फिटनेस का अंदाज का लगाया जा सकता था मुझे वहां खड़ा देखकर उन्होंने मेरी और देखा और फोन रख कर मुझे सामने chair पर बैठने के लिए कहा मैने सामने desk पर देखा तो अंकित तिवारी के नाम का Name Tag रखा हुआ था, मेरे सामने की chair पर उन्होंने बैठते हुए पूछा,"Yess.....How can I help you?"

"सर में इस शहर में अपने पापा को ढूंढने के लिए आया हूं,जो दो हफ्तों से मिसिंग है।" मेरी बात सुनकर वो थोड़े गुस्से के साथ बोले,"2 हफ्ते हो गए हैं और आप आज आए हैं रिपोर्ट लिखाने के लिए इतने दिनों तक किसका इंतजार कर रहे थे?"

"सर मैं आपकी बात समझ सकता हूं पर मैं एक private detective agency में काम करता हूं किसी केस के regarding में out of town गया था और जब वापस आया तो पता चला कि पापा missing है।"

"ठीक है फिर मुझे पूरी बात डिटेल में बताइए।"

"मेरे पापा AASL मैं जॉब करते है और उस company की तरफ से उन्हें यहां के एक रिजॉर्ट 'Dark Haunted Night Resort' की Unique चीज़े collect करने के लिए भेजा गया था, यहां आने के बाद उनसे दो बार मेरी बात भी हुई थी पर उसके बाद पता नहीं क्या हुआ उनकी कोई खबर नहीं है।"

रिजॉर्ट का नाम सुनकर कुछ देर वह मेरी ओर देखने लगे और फिर उन्होंने कहा,"देखिए मिस्टर विवेक मेरी पोस्टिंग यहां 6 महीने पहले हुई है लेकिन इन बीते महीनों में मैंने जितनी लाशे देखी और जितना लोगों से सुना है कि उसे रिसोर्ट में जो भी गया कभी वापस नहीं आया,उनका कहना है कोई बुरी शक्ति है जिसे उस जगह पर लोगों की मौजूदगी पसंद नहीं है, वहां जाने वाले पता नही कितने लोग मौत के घाट उतर चुके है।"इतना कहते हुए उनके पास पड़ा हुआ गरम चाय का कप उन्होंने होठों से लगा लिया। उनकी बात सुनकर एक पल के लिए मैं हैरान होकर उनकी ओर देखने लगा,उन्होंने मुझे अपनी ओर घूरते हुए देखकर कहा,"आपको लग रहा होगा कि मैं एक इंस्पेक्टर होकर कैसी बातें कर रहा हूं पर उसे रिजॉर्ट के Haunted होने पर गवर्नमेंट भी यकीन करती है इसलिए तो उन्होंने वहां बोर्ड भी लग रखा है।"उनकी बातें सुनकर मैं कुछ पल खामोश बैठा रहा क्योंकि दिल में एक अजीब सा डर सता रहा था,आखिरकार लंबी सांस छोड़ते हुए मैंने कहा," मुझे उन सब के बारे में तो ज्यादा नहीं पता पर अगर आपके पापा के बारे में कोई information मिले तो मुझे जरूर contact कीजिएगा।"

"ठीक है आप उनकी detail लिखवा कर जाइए कुछ पता चलेगा तो मैं आपको call करूंगा, वैसे आपके पापा का नाम और उम्र क्या होगी?"

"उनका नाम देवदत्त शर्मा है और उनकी उम्र 55 साल है" मेरी बात सुनकर उनको जैसे झटका सा लगा हो उन्होंने तुरंत चाय का टेबल पर पटकते हुए कहा,'कमलेश कहा गए?' उनकी बात सुनकर एक Constable दौड़ते हुए अंदर आया,'जी सर बोलिए क्या काम था?'

"जल्दी से जाकर वह रिजॉर्ट वाली file लेकर आओ" उनको ऐसे परेशान देखकर विवेक ने पूछा "क्या आपको पापा के बारे में कुछ पता चला है?" इसके जवाब में उन्होंने बस इतना कहा,"हां भी और नहीं भी, मैं अभी इस बात के बारे में sure नहीं हूं इसलिए confirm कर रहा हूं।" हम बात कर रहे थे पर कमलेश अभी भी फाइल लेकर नहीं आया इसलिए उन्होंने गुस्से के साथ कहा,"अबे चू*ए कहां मर गया जरा कम खाया कर एक काम करने में इतनी देर लग रहा है।"तभी उतनी देर मैं कमलेश file लेकर अंदर आ गया फाइल हाथ में आते ही अंकित ने जल्दी से पन्ने पलटे हुए बोलने लगा,"अभी हमें कुछ दिनो पहले रिजॉर्ट के बाहर एक लाश मिली थी और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के according उस लाश की उम्र भी जितनी आपने बताई उसके आसपास ही होगी।"

अंकित की बात सुन विवेक की सांसें तेज़ हो गई, उसे यही लगने लगा जिस बात का उसे डर था कहीं वो सच ना हो गया हो।दूर से ही विवेक की नज़र उन लाशों पर गई जो लाशें कम और हिस्से लग रहे थे क्योंकि सभी का शरीर टुकड़ों मैं बटा हुआ था,आखिर अंकित एक पेज पर आकर रुक गया और उसने file घुमाकर विवेक की तरफ कर दी, विवेक ने file को अपनी तरफ खींचा और उस पेज पर लगी तस्वीर को ध्यान से देखने लगा।

उस लाश का चेहरा इतना बिगड़ा हुआ था कि उस तस्वीर को देखकर ये कहना मुश्किल लग रहा था की यह कोई इंसान ही है या कुछ और......

वो फोटो मैं उस इंसान के चेहरे की हालत इतनी बिगड़ी हुई थी कि उसकी फोटो को देखकर आदमी है या औरत नही कह सकते।उसके पूरे सर के साथ हाथ भी जले हुए थे, शरीर के हिस्सो को इतनी बुरी तरह से काटा गया था कि फोटो में देखकर ये पता लगाना impossible था की शरीर किसी अपने का है।

"पोस्टमार्टम की report से तो मुझे यह बात पता चली कि कोई इंसान के हाथ से यह सब करना नामुमकिन है, ये फोटो में जो खाल के छिल जाने या उसके उखड़ जाने के जो निशान है वो खुद इन्हीं ही उंगलियों के निशान से बने है और इतना ही नहीं इनके शरीर के मांस के टुकड़े इनके पेट में भी पाए गए है,इसके अलावा इनके शरीर पर जो अजीब से घाव बने हुए है वो किस चीज या हथियार से किए हुए है यह कहना मुश्किल है" इतना देखने के बाद विवेक ने बस इतना ही कहा,"सर मेरी आपसे request है क्या मैं वो बॉडी देख सकता हूं?" उस फोटो को देखकर विवेक का मन अंदर ही अंदर उससे यह कह रहा था की यहीं तेरे पापा है पर वो इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था।

विवेक की बात सुनकर अंकित एक पल के लिए उसकी ओर देखता रहा फिर उसने विवेक की हालत समझकर storage रूम मैं ले गया।अंदर जाकर उसने एक chamber के सामने जाकर उसे खोल दिया,chamber के खुलते ही ठंडी धुएं के साथ वो बॉडी विवेक के सामने आ गई।

"हम 15 दिन से ज़्यादा लाश को यह नही रखते, विवेक क्या आपको यकीन है कि यही है आपके फादर है क्योंकि मुझे इनके पास से कोई identity नहीं मिली थी।"

विवेक तो एक मूर्ति की तरह सन हो गया था उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे, उसकी आंखें भरी हुई थीं लेकिन वह बार-बार अपने आप से यही बोल रहा था कि इंस्पेक्टर ने कहा की इनको कोई identity नहीं मिली है,ये जरूर कोई और हो सकता है ये मेरे पापा नहीं हैं,नहीं हैं.....

"इतनी बुरी...ई....बुरी हालत...." विवेक ने अपने आप को संभालते हुए कहा।

"ये तो बहुत बड़ी बात है मिस्टर विवेक जो लाश मिल गई वरना वहाँ तो कोई किसी खोए को भी ढूंढने नहीं जाता, वहाँ की जितनी भी मिसिंग रिपोर्ट आती है वो बस फाइल में दब के रह जाती है, हम पुलिस भी वहाँ जाने से डरते हैं,वो तो एक आदमी के कहने पर हम वहा लाश को लेने के लिए पहुंचे वरना हम वहा कोई investigation के लिए भी नही जाते।"

"उस दिन मैंने ये मानने से इंकार कर दिया कि मेरे पिताजी अब इस दुनिया में नहीं रहे और यकीन करता भी तो कैसे, कैसे मान लेता कि मेरे पापा अब नहीं रहे,कैसे वो एक दर्दनाक मौत....." इतना कह के विवेक रुक गया और गहरी सांसें लेने लगा। "इतना पता चलने के बाद भी हमने अंकल को ढूंढना बंद नहीं किया, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ फिर तभी एक केस के सिलसिले में निशा बैंगलोर आई और उसकी मुलाकात जेनी मैडम से हुई" इतना कहने के बाद आर्यन ने निशा की ओर देखा।

"मेरी जेनी मैडम से मुलाकात बिल्कुल एक इतेफाक थी, केस कुछ लम्बा था और मुझे कुछ दिन ओर बैंगलोर मैं गुजारने थे इसलिए मैंने मैडम के घर पे एक रूम रेंट पे ले लिया पर एक दिन मैंने उन्हें फोन पे बात करते हुए सुना लिया जिसे सुनकर मेरा दिमाग़ ही चकरा गया,वो फोन मैं अंकल से बात कर रही थी और उनकी बातो में दो important चीज थी एक तो अंकल का जिक्र और दूसरा इस जगह का नाम......उनकी बातें सुनकर यह तो समझ आ गया था की वो इसी जगह पर आने के लिए preparation कर रही है।" निशा ने अपनी कहानी बताई।

"निशा ने जब मुझे ये बात बताई तो मेरी खुशी से झूम उठा,दिल मैं फिर एक उम्मीद बंध गई और फिर मैने भी ma'am से contact बढ़ाकर उनके साथ अच्छे relation बांध दिए,मेरे मन मैं पापा के लिए कई सवाल थे जो मैं उनसे पूछना चाहता था लेकिन जब यहाँ आने पर पापा नहीं मिले, मेरी उम्मीद फिर से टूट गई लेकिन अगर पापा इस दुनिया मैं नही रहे तो फिर ma'am हर रोज किससे बातें करती थी मैं उस इंसान को ढूंढना चाहता था शायद उसे पापा के बारे मैं कुछ पता हो।" विवेक ने अपनी बात कही और शांत हो गया।

"और इसलिए शुरुआत मैं तुम यहाँ से जाना नहीं चाहते थे क्योंकि तुम्हें लगा कि मिस्टर शर्मा अभी तक जिंदा है, दोस्त तुम्हारा सोचना बिल्कुल ठीक था लेकिन तरीका नहीं,अगर अंकित की बातों को seriously लेकर हमे इस जगह के बारे में बता देते तो आज आंशिका की ये हालत ना होती और प्राची हमारे साथ होती" मैंने इतना कहा और कुछ पल के लिए शांत हो गया, विवेक नजरे झुकाए बैठा था। 

"हम जितनी भी कोशिश कर लें लेकिन सच्चाई को नहीं बदल सकते, चाहे वो सच कितना ही कड़वा क्यों ना हो एक दिन हमे उसका सामना करना ही पड़ता है,मिस्टर शर्मा उसी आत्मा की वजह से इस दुनिया मैं नही है पर विवेक और उनसे दोस्तो की वजह से हम यहां पर आए है इसलिए हम अभी तक जिंदा है पर इस आंशिका को कैद करने मैं हमने उसे भड़का दिया है,अगर वो आजद हो गई तो हमे मारने की कोशिश जरूर करेगी इसलिए हमे जल्दी से यहां से निकलना होगा।" तभी अविनाश ने पूछा,"मुझे अभी तक एक बात समझ नहीं आई कि तुझे कैसे पता चला कि मिस्टर शर्मा विवेक के पिता हैं?"

"खुद इन तीनों से......" मेरे इस कम शब्दों का जवाब पा कर सब चौंक उठे, "मतलब!!?" विवेक ने मुझसे सीधा सवाल किया।"जब पहली रात को तुम तीनों कमरे में आपस में बहस कर रहे थे तब ट्रिश ने सब कुछ सुन लिया था,उसने आकर ये सब बातें मुझे बताई इसलिए मुझे तभी तुम पर शक हो गया था और जब उस दिन तुम सभी का कमरा बिखरा हुआ था तब मैने तुम्हारा Id Card देख लिया जिसमे तुम्हारा पूरा नाम 'विवेक देवदत शर्मा' लिखा हुआ था,सभी पहलू को जोड़ने को बाद मुझे यकीन हो गया की मिस्टर शर्मा ही तुम्हारे पापा है और जरूर तुम इस जगह के बारे मैं भी जानते हो।"

"अगर हम सब इसलिए जिंदा है क्योंकि हमे कुछ पता नहीं था तो फिर प्राची के साथ यह सब क्यों.....!??" अविनाश ने अपनी उलझन फिर सामने रखी।

"क्योंकि तुम सब अपनी मर्ज़ी से रिजॉर्ट वापस आए थे और पहले ही मैने कहा उसे कैद करने के लिए उन पवित्र चीजों को यहां रखके हमने पहले भी उसे भड़का दिया था और उस घेरे में खड़े होकर तुम सब भी इसका एक तरह से हिस्सा बन चुके थे, मैंने घेरे से बाहर निकलने से मना करा था फिर भी प्राची निकल गई तो वो आत्मा उसे कैसे जिंदा छोड़ देती।" 

"अब हमे यहाँ से जाना होगा, इन तीनों ने जो भी किया उसके बाद मुझे खुद पर ही गुस्सा आ रहा है कि मैंने इन तीनों पर विश्वास किया और तीनों ने हमें इतना बड़ा धोखा दिया कि हम सबकी जिंदगी खतरे में पहुंच डाल दी पर अब और नही इन तीनों के लिए मैं किसी और की जिंदगी खतरें मैं नही डाल सकती, अब जब हमें सब कुछ पता चल गया है तो यहाँ रहने का कोई मतलब नहीं है।" जेनी ने थोड़ा सा गुस्से भरे लहजे में अपनी बात कही।

"अभी नहीं......अभी हमें सब कुछ नहीं पता है मिस,अभी कुछ है जो श्रेयस तुने हमें नहीं बताया" भाई की बात सुनकर सब उसे देखने लगे,"आखिर वो कोनसी बात है जिससे तू और मैं हम दोनो इस जगह से जुड़े हुए है।" भाई की बात सुनकर मैं उसे देखने लगा क्योंकि मैं जानता था की भाई यही सवाल करेगा,जिसका जवाब अभी मेरे पास नहीं था।

"चुप क्यों है श्रेयस.....बोलता क्यों नहीं?" भाई ने मुझे शांत खड़ा देखा तो अपना सवाल फिर से दोहराया, मैं खुद अपने अतीत से अंजान था तो क्या जवाब देता?

"तू कुछ......" भाई ने इतना दोबारा कहा था कि ऊपर से आवाज़ आई मानो कोई कांच की चीज टूटी हो, आवाज़ सुनते ही मैं फौरन ऊपर की तरफ दौड़ा,दिल में बस एक ही डर लगा हुआ था और वो था आंशिका का......


To be Continued.......