सावन का फोड़ - 13 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सावन का फोड़ - 13

अद्याप्रसाद रजवंत मुन्नका एव सुभाषिनी लाडली बेटी जो मात्र चार वर्ष कि ही थी एव बीमार मृत्यु कि प्रतीक्षा कर रही शामली को साथ लेकर कलकत्ता रवाना हुए ।
कलकत्ता पहुँचने के बाद शामली कि चिकित्सा कर रहे चिकित्सको द्वारा बताए गए मशहूर चिकित्सक डॉ शेखर मित्रा के हॉस्पिटल पहुंचे वहाँ डॉ शेखर मित्रा ने बिना बिलंब किए शामली को अपनी ही देख रेख में भर्ती कर लिया और चिकित्सा शुरू की सुभाषिनी माँ के पास या मुन्नका चाची के पास ही रहती ।
कटियार के सरकारी अस्पताल से डिस्चार्ज किए जाने के बाद कर्मा कटियार में रुक कर इलाज कराना नही चाहती थी कर्मा ने नवी बरकत से कहा कही और ले चलो मैं मरना पसंद करूंगी लेकिन कटियार में इलाज कराना नही चाहूंगी हम बीमारी से तो मरे ना मरे लेकिन करोटि हमें जिंदा नही छोड़ने वाला उसकी ताकत हिम्मत का असली जड़ जंगेज पुलिस की पकड़ में है करोटि जंगेज को तो मारेगा ही ताकि उसका राज न खुले हमे भी नही छोड़ने वाला नवी और बरकत को कर्मा बाई कि बात सौ फीसदी समझ आ गयी बरकत उस्ताद ने नवी और जोहरा से कहा आप लोग कर्मा दीदी को लेकर एक दो दिन के लिए किसी मुनासिब जगह रुक जाओ हम जाकर नसीर को सारी हकीकत बता कर हालात कि नज़ाकत समझाकर और व्यवस्था सारी व्यवस्था करके आते है पता नही कितने दिन लग जाए कर्मा के इलाज में. बरकत जोहरा के कोठे चला गया कोठा क्या कहा जाय तो गांव के जमींदारों एव दबंगो के मनोरंजन का स्थान ही था कर्मा बाई का घर कर्मा के आस पास भी ऐसे ही दो चार घर थे बरकत पहुंचते ही नसीर को जंगेज के पुलिस के हत्थे चढ़ने एव सारे हालात से बताते हुए हिदायत दी कि वह करोटि कि तरफ से होशियार रहे क्योंकि करोटि जैसे इंसानों का कोई जमीर दीन ईमान नही होता ऐसे लोग जहाँ जब तक मकशद पूरी होती है उतने ही देर के लिए वहां के होते है उसके बाद सब कुछ खाक कर नए आशियाने कि तलाश करते रहते है करोटि उन्ही में एक है अतः नसीर करोटि को कभी भी यह एहसास न हो कि कर्मा बाई से उसका मकसद पूरे हो चुके है नही तो वह कहर बन कर ऐसा टूटेगा जिसके बाद कुछ भी बच पाना नामुमकिन है बरकत ने नसीर को जो भी एहतियात बरतने थे करोटि को लेकर उसके लिए हिदाययत देकर वापस कटियार लौट आया और अगले दिन कर्मा जोहरा बरकत एव नवी कलकता के लिए रवाना हो गए पुलिस भी कर्मा की हर गतिविधि पर नज़र बनाए हुए थी बिहार पुलिस को इस बात कि जानकारी मिल चुकी थी की कर्मा कटियार इलाज नही करना चाहती है वह कलकत्ता जाना चाहती है पुलिस ने जान बूझ कर अपनी योजना के तहत कर्मा को रोकना उचित नही चाहा और उसने कर्मा के विषय मे सभी जसनकारी पश्चिम बंगाल पुलिस को उपलब्ध करा दिया बिहार सरकार ने कर्मा के आस पास जोगेश शमरपाल गौरांग और जिमनेश को नियुक्त कर दिया जिन्होंने जंगेज को पकड़ा था ।
कर्मा जोहरा नवी बरकत कलकत्ता पहुँचकर आयशा के घर पहुंचे आयशा को कर्मा ने ही पाल पोष कर बड़ा किया था आयशा जब जवान हुई तो कर्मा ने उसका सौदा करना चाहा जो आयशा को रास नही आया आयशा पढ़ी लिखी तो नही थी लेकिन बहुत तेज तर्रार थी जब कर्मा उसे अपने रास्ते पर नही चला पाई तब उसी ने आयशा को कलकत्ता जाकर नए तौर तरीकों के अनुसार अपने धंधे को चलाने कि सलाह दी आयशा ने कलकत्ता आकर कॉलगर्ल का नए जमाने के अनुसार अपना व्यवसाय कहे या धंधा शुरू किया जो बहुत तेजी से बढ़ा आयशा के पास बिहार बंगाल उड़ीसा राज्यों में मध्यम निम्न मध्यम गरीब परिवारों उन खूबसूरत लड़कियों की पूरी शृंखला थी जिनकी आकांक्षाओं का आसमान तो बहुत ऊंचा था लेकिन संसाधन शून्य ऐसी लड़कियां आसानी से भौतिकता कि चकाचौध धन दौलत गाड़ी बंगला उच्च सामाजिक स्तर हैसियत कि चाह में आयशा कि टीम का हिस्सा बनती आयशा के पास ग्राहक थे उद्यगपतियो कि बिगड़ैल औलादे नौजवान व्यवसायी सफेदपोश राज नेता जिनसे आइसा मोटी रकम वसूलती ऐसे लोग करते मनमानी है लेकिन इज़्ज़त का ढकोसला बहुत करते है जो उनकी कमजोरी होती है जिसका फायदा आयशा जैसी औरतें उठती है आयशा उसी कड़ी कि एक शसक्त किरदार थी।