सावन का फोड़ - 4 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सावन का फोड़ - 4

कोशिकीपुर पुर गांव एवं आस पास के गांवों के लोंगो कि दशा यह थी कि आए दिन लगभग पूरा गांव सरकार द्वारा बाढ़ कि विभीषिका में हुए हानि के लिए राहत कि जो घोषणाएं कि गयी थी उसके लिए प्रखंड एव जिले के हाकिम हुक्कामो के चक्कर काटता रहता. सरकार द्वारा घोषित राहत के नियम कानून इतने जटिल उलझाऊ एव घुमावदार थे कि लोग उसमें उलझ कर रह गए थे .गांवो में जन धन मकान आदि गवांने वालो की जो सूची शासन सरकार के पास थी उनमें वास्तविक नुकासान उठाने वाले या तो नदारत थे या तो एक्का दुक्का लोग भूल बस सरकारी कर्मचारियों की मेहरबानीयो से शामिल हो गए थे वरना पूरी बाढ़ प्रभावित सूची में उन्हीं लोंगो का नाम था जो होशियार एव समय के साथ चलने वाले ग्रमीण बैरिस्टर किस्म के लोग थे(गांव में रहने वाले वो लोग जो कुछ पढ़े लिखे होशियार होते है और सरकारी मोहकमो से सांठ गांठ बना कर रखते है अक्सर गांव वाले अपने गांव के ऐसे व्यक्ति के दरबारी होते है जो सदैव इसी अवसर की तलाश में रहते है की सरकार कि किस योजना का लाभ कैसे लिया जाय )आए दिन कोशिकीपुर एव आस पास कि भोली भाली निरीह जनता कभी प्रखंड पर कभी ब्लाक पर कभी जनपद पर हाल बेहाल परेशान दिखती गांव वाले एक दूसरे से जानने का प्रयास करते कि बाढ़ में ध्वस्त मकान बनाने के लिए सरकार द्वारा घोषित सहायता कैसे मिलेगी तो कोई नुकसान फसल कि फरपाई कि राहत प्राप्त करने के तरीके कि बात करता हर जगह जुगाड़ व्यवस्था थी फर्क सिर्फ इतना था कि सरकार द्वारा घोषित बाढ़ राहतो कि राशिओ का कम से कम पच्चीस से पचास प्रतिशत जुगाड़ व्यवस्था को भेंट करना था कुछ अग्रिम दे सकने में जो समर्थ था उसके लिए व्यवस्था यह थी की राहत का पूरा भुगतान होने से पूर्व उसे जुगाड़ कि पूरी धनराशि भुगतान कर देनी थी जिसके पास अग्रिम व्यवस्था नही थी उससे पहले ही जुगाड़ धनराशि हेतु सभी औपचारिकताए पूर्ण करा ली जाती और तब उनका नाम बाढ़ प्रभावित लोंगो कि सूची में सम्मिलित होता जुगाड़ में कोशिकीपुर एव आस पास के गांवों के रूरल बैरिस्टरों का महत्वपूर्ण योगदान था ।
जुगाड़ कि एक तीसरी व्यवस्था बहुत गोपनीय किंतु बहुत प्रभवी थी रूरल बैरिस्टर अपने गांव के ऐसे लोंगो के बारे में जानकारी मुहैया अधिकारियों कर्मचारियों को कराते जिनके पास कुछ भी नही होता सिवा परिवार के जिसमे बेटियाँ बहुएं बेटे आदि एव झोपड़ी आधे ढके बदन वस्त्र भी पूरे नही .अधिकारियों कर्मचारियों का दावत आयोजन करते जिसने मुर्गा मीट और दारू का खर्च खुद वहन करते और गांव के गरीब बेहसहारा कमजोर परिवार वालो को सेवा में समर्पित करते जिससे अधिकारी खुश होकर उन गरीब मजलुमो का काम करते और उनके हिस्से से दारू मुर्गा आदि व्यवस्था कि रकम के नाम पर अधिक हिस्सा रूरल बैरिस्टर के पास जाता यही तीनो जुगाड़ बाढ़ राहत के नाम पर चल रहे थे जिसमे स्थानीय छुटभैया नेताओ कि महिमा का महत्वपूर्ण योगदान था अधिकारी कर्मचारी यही कहते जब गांव वाले स्वंय एक दूसरे के लिए जिम्मेदार नही है ना ही एक दूसरे से किसी का कोई भावनात्मक रिश्ता एवं लगाव है तो हम लोग तो सरकारी नौकर है आज यहां कल जाने कांहा जब तक कुर्सी है पूछ है उसके बाद कौन पूछता जब तक कुर्सी कि ताकत है कुर्सी बना लो अर्थात सरकारी कुर्सी पर रहते इतना कमालो की कुर्सी के बाद के बाद धन कि शक्ति कुर्सी का राज इलाके में कायम रहे यही भारतीय जुगाड़ संस्कृति का मूल स्रोत सिद्धांत है जिसे हर नेता अधिकारी कर्मचारी हाज़िर नाजिर मानकर आत्मभाव के अन्तर्मन से शपथयुक्त होकर प्रति सूर्योदय उठता है और प्रत्येक संध्या अपने सूर्योदय के शपथ कि सार्थकता सच्चाई को अपने परिवार पीढ़ी एव भविष्य के तराजू कि आर्थिक शक्ति कि कुर्सी पर तौलता है और अगले सुबह के लिए नियोजन करता है यही सत्यार्थ है जुगाड़ संस्कृति कि जिसे आत्मसाथ कर भारतीय जनता अपने भाग्य भविष्य पर कभी कोसती है तो कभी इतराती है .यही हाल कोशिकीपुर गांव एव आस पास कि जनता का था कोशिकीपुर गांव में सबसे धुर्त कुटिल एव दुष्ट प्रवृत्ति का व्यक्ति करोटि था करोटि अद्याप्रसाद को फूटी आंख नही देखना चाहता था क्योकि अद्याप्रसाद गांव में सम्मानित विनम्र सच्चे धर्म भीरू एव सबके सुख दुख में सम्मिलित रहने वाले गांव के बहुत विशिष्ट एव गणमान्य व्यक्ति थे जबकी करोटि ऐसे पिता झगड़ू का पुत्र था जो अपराधी किस्म का व्यक्ति था गांव में सदैव कोई न कोई समस्या खड़ी करता रहता था कभी उसकी वजह से गांव वालों को पुलिस परेशान करती तो कभी वह गांव वालों को. झगड़ू ने अपनी करनी से इतने शत्रु पाल रखे थे जिसका उसे अंदाज़ तक नही था एका एक एक दिन झगड़ू कि लाश अद्याप्रसाद प्रसाद के ससुराल सेमारी में एक तालाब में तैरती पाई गई पुलिस ने बहुत कोशिश किया झगड़ू कि हत्या का सुराग पता करने की लेकिन कहीं कोई पता नही चल सका जब कोई सुराग झगड़ू कि हत्या के संदर्भ में नही मिला तब पुलिस ने केस को बंद कर दिया करोटि को यह आशंका थी की अद्याप्रसाद ने ही अपने किसी आदमी से कहकर उसके पिता झगड़ू कि हत्या कराई है उसने इस बाबत पुलिस को मौखिक लिखित बताया भी पुलिस द्वारा करोटि के द्वारा उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर जांच की गई लेकिन कोई सबूत नही मिले ।करोटि अपने पिता कि हत्या एव उनके जीवित रहते उनके विरुद्ध अद्याप्रसाद के अच्छे कार्यों को अपने लिए गलत मानते हुए उनसे बैर भाव रखता ।
कहते है कि गंदी नस्ल कभी नेकी या नेक कार्य कर ही नही सकती कमोवेश यही स्थिति करोटि कि थी बाप तो था ही दस नम्बरी बेटा सारे रिकॉर्ड ध्वस्त करता जा रहा था हर दिन गांव में उसकी नाजायज हरकतों से गांव वाले परेशान थे हद तो तब हो गई जब वह दारू के नशे में आधी रात को गांव के ही खेसारी कि बेटी महुआ से घरवालों को डरा धमकाकर बलत्कार कर बैठा पूरे गांव में करोटि के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया पंचायत द्वारा यह फैसला सुनाया गया कि दस वर्ष के लिए करोटि को गांव से निकाला किया जाता है इन दस वर्षों में करोटि कि जमीन जयदाद से होने वाली आय पंचायत के पास रहेगी जो दस वर्ष कि अवधि समाप्त होने पर करोटि को लौटा दी जाएगी थाना पुलिस कोर्ट कचहरी के चक्कर मे गांव की लड़की महुआ कि बदनामी होगी जिससे उसकी शादी व्याह में मुश्किलें आ सकती है इस सूझ बूझ के पंचायत के निर्णय में अद्याप्रसाद कि भूमिका महत्वपूर्ण थी उनका मानना था की दस वर्ष हालात से जूझते अपमानित जिंदगी से कुछ सिख कर करोटि सम्भव है अच्छा इंसान बन जाए गांव वाले अद्याप्रसाद की बहुत इज़्ज़त करते थे अतः सभी गांव वालों ने एव पंचायत ने अद्याप्रसाद कि बात को मान कर करोटि को दस वर्ष के लिए गांव से निकाल दिया गया करोटि अद्याप्रसाद से बदले कि भावना लेकर गांव वालों को देख लेने की धमकी देते हुए चला तो गया लेकिन गांव वालों को सदैव के लिए सशंकित रहने के लिए विवश करता .गांव वाले दिन रात उसी चिंता में जीते कि करोटि कब कौनसा घटिया हरकत कर गांव वालों की नाक में दम कर दे।