सावन का फोड़ - 6 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सावन का फोड़ - 6

बोर्नस्थान बागमती कोशी संगम के पास से कुछ सन्त प्रवृति के लोग गुजर रहे थे उन्होंने जो दृश्य देखा न भूतों न भविष्यति एक भैंस कि पीठ पर बालक पेट के बल लेटा है और उसके दोनों पैर भैस के दोनों सींगों में फंसे हुए है और भैंस किनारे निकलने की कोशिश करती कुछ बाहर निकलती पुनः वह दलदल में फंस कर गिरती उठती बार बार प्रयास करती . सन्त समाज को लगा जैसे परमात्मा ने उन्हें बालक औऱ भैंस के भाग्य से ही भेजा है सन्त समाज के पास कोई ऐसी व्यवस्था नही थी जिसके सहारे भैस एव बच्चे को बचाया जाए सन्त समाज ने आते जाते राहगीरों से अनुरोध किया देखते देखते आठ दस लोग एकत्र हो गए और सभी मिलकर भैस एव बच्चे को बचाने की कोशिश करने लगे किसी ने अपना अगौछा दिया किसी ने धोती बड़ी मुश्किल से भैस को घण्टो मेहनत मसक्कत के बाद निकाला जा सका भैस के निकलने के बाद उसे पेड़ से हरे पत्ते तोड़ कर खाने के लिए दिया गया भैस देखने में बहुत अच्छे नस्ल कि थी बाढ़ में जीवन के लिए जाने कितने दिनों से अपने पीठ पर बैठाए बच्चे को लिए अंजान जीवन के लिए संघर्ष करती लड़ रही थी अन्तःह ईश्वर कि कृपा से संतों के प्रयास से पीठ पर लेटे बच्चे के भाग्य से किसी तरह भैस एव बच्चे दोनों को बचाया जा सका. सन्त के अनुरोध पर जिन राहगीरों ने भैस एव बच्चे को बचाया उन्ही में एक था मल्हार उसने बाकी लोंगो से अनुरोध निवेदन करके भैस को अपने पास रखने के लिए राजी कर लिया समस्या बच्चे कि थी बच्चे को ले जाने के लिए कोई भी तैयार नही था अंततः सन्त समाज ही बच्चे कि जिम्मेदारी लेने को तैयार हुआ बच्चा बेसुध था सिर्फ सांस चल रही थी जब मल्हार भैस को लेकर चला गया तब सन्तो ने बोर्नस्थान पर ही धुयी रमा कर बच्चे कि अपनी जानकारी के अनुसार चिकित्सा शुरू कि बच्चे द्वारा बाढ़ में बहाव का पिया गया पानी पेट से निकालने का प्रयास किया जब बच्चे के पेट से पानी निकल गया तब उसकी और चिकित्सा शुरू हुई इस प्रक्रिया में तीन चार दिन का समय लग गया जब बच्चे को होश आया तब वह अपने माँ बाप को याद करके रोने चिल्लाने लगा उसे मनाने समझाने के सारे प्रयास व्यर्थ हो रहे थे कहते है बच्चों की जिद के सामने भगवान भी हार मान लेते है सन्तो ने बच्चे से कहा कि हम लोग तुम्हारे माँ बाप के पास ही ले चल रहे है बच्चा रोता विलखता थकता सो जाता जब भूख बहुत सताती तो सन्तो के पास जो कुछ भी उपलब्ध रहता उंसे खिलाते सन्त समाज ने उसका नाम स्वर रख दिया कारण वह तेज तेज आवाज में हमेशा रोता सन्त समाज घूमते फिरते काठमांडू पशुपति नाथ के दर्शन पूजन के लिए पहुंचा महाशिवरात्रि का पर्व भी दो दिन बाद था ।
महाशिवरात्रि के पर्व के दिन सन्त समाज बच्चे को लेकर पशुपतिनाथ जी के दर्शन पूजन के लिए जा ही रहा था बच्चा रोये ही जा रहा था एक तो वह अपने माँ बाप को खोज रहा था और महाशिवरात्रि कि भीड़ उसको और भी बेचैन कर रही थी और वह जोर जोर से रोता बिलखता ही जा रहा था भीड़ में बच्चे कि आवाज कौन सुनता सन्त समाज ज्यों ही पशुपतिनाथ जी के मंदिर में प्रवेश ही करने जा रहा था कि बच्चा जाने किधर भीड़ में सन्त समाज की जरा सी लापरवाही अनदेखी से विलग हो गया सन्त समाज बच्चे को खोजने पर ध्यान देने से बेहतर पशुपतिनाथ जी के दर्शन पूजन पर स्वंय को केंद्रित रखा .बच्चा रोता विलखता भीड़ में इधर उधर घूम ही रहा था कि सिद्धार्थ मुखर्जी एव माधवी कि उस पर नजर पड़ी बच्चे को भीड़ में रोता विलखता देख कर पत्नी माधवी ने पति सिद्धार्थ से कहा सिद्धार्थ देखो कितना सुंदर बच्चा है लगता है अपने माँ बाप परिवार से विछड़ गया है तुम कहो तो इसे तब तक अपने पास रखते है जब तक इसके परिजन माँ बाप नही मिल जाते सिद्धार्थ मुखर्जी को पत्नी माधवी के प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नही हुई पति कि सहमति मिलते ही माधवी बच्चे के पास गई और उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ लेकर चलने लगी साथ साथ पति सिद्धार्थ
माधवी बच्चे को तरह तरह के खिलौने चॉकलेट बिस्कुट आदि खरीद कर देती रोते विलखते बच्चे को जैसे नई जिंदगी मिल गयी हो ।
इधर सन्त समाज पशुपतिनाथ का पूजन आदि करके बाहर निकला और आपस मे बच्चे के खोजने के विषय मे विचार विमर्श किया अंत मे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पशुपतिनाथ नाथ के भरोसे बच्चे को छोड़ दिया जाय क्योकि वैसे ही बोर्नस्थान से पशुपतिनाथ तक बच्चे ने बहुत उधम मचा रखा था जिसके कारण हम लोगो के लिए परेशानी खड़ी हो गयी थी कभी कोई कंधे पर लेकर चलता कभी कोई सबके सब ऊब चुके थे. हम सन्त लोग कहाँ तक बच्चे को पाल सकेंगे हम लोगो के समक्ष स्वंय के भरण पोषण कि समस्या है जो लोगो के द्वारा दिए गए दान एव सहयोग से चलती है बच्चे को ना हम लोग उचित शिक्षा दे पाएंगे ना ही परिवरिश सिवा इसके कि उसे भक्त बना दे इसलिए भगवान पशुपतिनाथ पर भरोसा करते हुए बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए बच्चे को भूल जाना ही उचित होगा सन्त समाज ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया और अपने अगले पढाव कि तरफ ज्यो ही प्रस्थान करने लगा तभी एनाउंस होते शब्द सन्त समाज ने सुने एक बच्चा अपने परिवार से विछड़ गया है जिसने हाफ पैंट पहन रखी है बच्चा माँ बाप का नाम पता नही बता पा रहा कृपया बच्चे के मां बाप यदि हमारी आवाज सुन रहे है तो अवश्य सम्पर्क करें सन्त समाज ने तो पहले ही बच्चे के विषय मे निर्णय कर लिया था वह बच्चे को अपने साथ नही रखेगा अतः हो रहे अनाउंसमेंट को अनदेखा करते हुयेआगे बढ़ गए ।