सावन का फोड़ - 5 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सावन का फोड़ - 5

करोटि कोशिकीपुर गांव से चला तो गया लेकिन उसका अपना समाज था जो अपराधियों कि फौज थी करोटि कि खेती बारी एव जो भी उसके पास था गांव में ही गांव वालों ने जबरन छीन कर पंचायत के हवाले कर दिया था करोटि के पास खुद कि रोटी के लाले पड़े थे था भी वह मूल रूप से अपराधी प्रवृत्ति का साथ उसके उसका समाज भी खड़ा था अब क्या था करोटि ने अपराध कि दुनियां में दहशत बनकर रोज नए नए तौर तरीकों से अपराध को अंजाम देता कभी डकैती डालता कभी सीधे जबरन धन वसूलता न देने वालो को स्वयं मृत्यु दंड देता उसकी अपनी सेना थी अपना न्यायालय था जिसका वह सर्वोच्च शक्ति शाली न्यायधीश था उसकी दहसत का साम्राज्य दूर दूर तक फैलाने लगा किसी भी घर मे घुस कर छिप जाता घरवालों को उसके साथ उसकी पूरी अपराधी सेना कि आवभगत करनी पड़ती करोटि सिर्फ अपने गांव कोशिकीपुर जाने में भय खाता क्योकि पूरा गांव उसकी हर हरकत एव कमजोरी से बाखूबी परिचित था उसे यह भय सताता रहता कि गांव जाने पर गांव वाले या तो उसे मार डालेंगे या पुलिस के हवाले कर देंगे जिससे अंततः फांसी की सजा ही मिलेगी अतः उसने अपने गांव दस वर्षों तक रुख ना करने का फैसला कर लिया था और लूट पाट हत्या डकैती बलात्कार करता अपने अहं बोथ को संतुष्ट करने की कोशिश करता.करोटि के आतंक के किस्से कहानियां आम बात थी उसके दहसत का आलम यह था कि शाम ढलते घरों के दरवाजे बंद हो जाते और लोग घरों में दुबके करोटि के आतंक से बचने की ईश्वर से प्रार्थना करते रहते पुलिस अपना प्रयास करती मुखबिर कि तलाश करती जो भी व्यक्ति करोटि के विरुद्ध मुखबिरी करने या मुखबिर बनने की कोशिश करता करोटि उसे उसके परिजनों इष्ट मित्रों के साथ समाप्त कर देता पुलिस के सभी प्रयास व्यर्थ सावित होते बाढ़ एव प्राकृतिक आपदाओं से अधिक आतंक करोटि का हो चुका था बाढ़ बारिस तो बरसात के साथ वर्ष में सिर्फ चार महीनों ही भय खौफ का मंजर लाती करोटि के आतंक का साया पल प्रहर मंडराता रहता आम जनता परेशान बदहाल करोटि कि बढ़ती शक्ति के सामने बड़े बड़े व्यवसायी और नेता भी उससे सांठ गांठ बनाकर रखते की कही उसका आतंक उनके ऊपर कही से कहर बन कर ना टूटे सब कुछ भाग्य एव भगवान भरोसे छोड़ कर आम जनता घुटघुट कर जी रही थी करोटि को जानकारी मिली कि अद्याप्रसाद कि पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया है उसने अद्याप्रसाद को समाप्त करने के लिए अद्याप्रसाद की बेटी को ही मोहरा बनाने का निश्चय कर लिया
करोटि अक्सर कर्मा बाई जो अपने जमाने की मशहूर तवायफ थी को बुलाता कभी खुद कर्मा बाई आती तो कभी कर्मा बाई अपने यहॉ कि लड़कियों को भेजती कर्मा बाई के साथ बेहद खूबसूरत लड़की जोहरा रहती थी करोटि ने कर्मा बाई से जबरन छीन कर जोहरा को अपने रखैल के तौर पर रख लिया और उसे अद्याप्रसाद के घर भेजने के लिए प्रशिक्षित करने लगा करोटि ने जोहरा को जितनी भी उसे अद्याप्रसाद एव उनके परिजनों के रहन सहन के विषय मे थी जानकारी थी एव अन्य स्रोतों से जो अद्याप्रसाद के परिवार रहन सहन कि जानकारी रखते थे से प्राप्त करके जोहरा को उपलब्ध करा दिया और उसे पूरी तरह से अद्याप्रसाद के परिवार कि जरूरतों के अनुसार तैयार कर दिया उसके सामने समस्या यह थी कि वह अद्याप्रसाद के घर तक जोहरा को कैसे भेजे एव प्रतिस्थापित करे क्योकि जोहरा का बचपन कट्टर मुस्लिम परिवार में बीता था जिसके कारण उसके हाव भाव में मुस्लिम समाज एव संस्कार कि झलक देर सबेर परिलक्षित हो जाती थी और उसका युवा एव प्रौढ़ जीवन कर्मा बाई के संरक्षण में बीता था जिसके कारण उसमें तवायफों के लक्षण भी प्रतिबिंबित होते इन दोनों समस्या के निराकरण के लिए करोटि ने जोहरा को कर्मा के संरक्षण में ही पुनः प्रशिक्षित करने का निर्णय लिया और कर्मा को बुलाकर जोहरा को भारतीय गांवों विशेषकर सनातनी संस्कृति से परिपूर्ण बनाने की हिदायत देकर जोहरा को कर्मा को सौंप दिया और तीन महीने कि मोहलत दी कर्मा को करोटि का आदेश जैसे खुदा का फरमान था ना पूरा होने पर मौत मिलना तय था अतः कर्मा ने जोहरा को करोटि के निर्देश के अनुसार प्रशिक्षित करने कि जिम्मेदारी लेकर जोहरा के साथ लौट गई और जोहरा को नियमित गांव एव गांव की बहुसंख्यक संस्कृति संस्कार में प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया।