सावन का फोड़ - 1 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सावन का फोड़ - 1

तपती गर्मी लोग परेशान चारो तरफ हाहाकार जेठ कि भयंकर गर्मी भुवन भास्कर का कहर जैसे आग उगल रहे हो पृथ्वी के जल स्रोत सूखते जा रहे थे नगरों एव गांवों की विद्युत आपूर्ति व्यवस्था चरमरा चुकी थी लू से आए दिन सैकड़ो लोग कालकलवित होते रहे थे शासन प्रशासन के सारे प्रयास व्यर्थ साबित हो रहे थे लोगो का रोष शासन के विरुद्ध बढ़ता ही जा रहा था और प्रशासन विद्युत आपूर्ति नियमित करती तो लू से मरने वालों के कारण स्वस्थ व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह जनता द्वारा खड़ा कर अपने आक्रोश का प्रदर्शन किया जाता।
कुल मिलाजुलाकर आम जनता प्रकृति कि मार प्रहार से त्रस्त परेशान थी और अपना सयम संतुलन खोते हुऐ आए दिन स्वास्थ सेवावों एव विद्युत आपूर्ति एव अन्य व्यवस्थाओं के लिए सड़कों पर धरना प्रदर्शन शासन का विरोध कर रही थी।
शासन द्वारा किए जा रहे सभी प्रयास नाकाफी साबित हो रहे थे आम जन के विरोध पर शासन द्वारा लाठीचार्ज आँसू गैस एव पानी कि तेज बौछारों का प्रयोग किया जाता जब भी ऐसा होता आम जन के आक्रोश कि आग में घी का काम करता।
शासन का विरोध करने वाली विपक्षी पार्टियों को अपनी राजनीतिक रोटी गोटी सेकने का मौका मिल जाता और आम जन कि भवनाओ को उकेरते कहते जल स्रोत सुख गए पीने को साफ पानी नसीब नही सरकार पानी कि बौछार मारती है घरों में चूल्हा जलता नही सरकार धुंए से आम जन को रुलाती है खाने को रोटी नही तो लाठी ही खिलाती है वैगरह वैगरह कुल मिलाकर हालात बद से बदतर हो चुके थे जेठ किसी तरह से बीता आषाढ़ में आम जन को उम्मीद थी कि बरसात होने पर आसमान से बरस रही आग से निजात मिलेगी लेकिन ऐसा नही हुआ आषाढ़ में दिन भर आसमान साफ और जेठ जैसी आग उगलती धूप बरसात का नामो निशान नही किसानों की चिंताए बढ़ती जा रही थी विद्युत आपूर्ति समुचित न होने के कारण सिंचाई कि सुविधा पर्याप्त नही थी और डीजल के दाम आसमान कि ऊंचाई छू रहे थे जिसके कारण डीजल पम्प सेटों से सिंचाई करके खेती करना बहुत महंगा हो गया था आमजन पहले ही भयंकर लू गर्मी के प्रकोप से टूट कर विखर चुका था उस पर आलम सूखे का गांवों में बरसात कि कामना से अनेको अनुष्ठान इंद्र देवता को खुश करने के लिए किए जा रहे थे पूजा पाठ एव नौजवानों द्वारा कीचड़ में लोट लोट कर इंद्र देवता को खुश करने का प्रयास किया जा रहा था लेकिन सूखे कि स्थिति और भयंकर होती जा रही थी।
प्रकृति का प्रकोप और आग उगलते भगवान सूर्य कि भयंकर ज्वाला के कहर लू से स्थिति इतनी भयावह थी कि शमशानों पर मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए दो दो दिन की लंबी कतार लगती शवों से दुर्गंध आने लगती चाहे मरनकर्णिका हरिश्चंद्र जैसे बड़े शमशान हो या किसी छोटी नदी के किनारे के शमशान सर्वत्र एक ही स्थिति थी जिसने भी 1995 की लू देखी होगी उसे कोरोना का संक्रमण कुछ भी घातक नही प्रतीत हुआ होगा। इसी वातावरण में कमोवेश पूरा उत्तर प्रदेश एव बिहार की जनता परेशान थी।
नेपाल का कोशी प्रदेश जिसमे सोलह जिले है उत्तर में तिब्बत क्षेत्र पूर्व में भारतीय राज्य सिक्किम पश्चिम बंगाल दक्षिण मे बिहार पश्चिम में नेपाल के बागमती मधेश प्रान्तों से घिरा हुआ है कोशी प्रदेश का नाम कोशी नदी के नाम पर ही रखा गया है कोशी नदी बिहार एव नेपाल के लोंगो के लिए जीवन रेखा एव जीवन भक्षक कॉल दोनों ही रुपों में जानी जाती है ।
कोशी क्षेत्र में बिहार के सुपौल पूर्णिमा एव कटियार प्रमुख है कोशी का उद्गम हिमालय है और यह गंगा कि सहायक नदियों में एक है जिसकी लंबाई सात सौ बीस किलोमीटर है और जो राजमहल कटियार में गंगा में मिलती है ।
कोशी नदी में लगभग नेपाल कि पहाडी नदियों के जल छोड़े जाने से अक्सर बाढ़ का खतरा बना रहता है
कटियार जनपद में महानंदा गंगा कोशी आदि नदियों से घिरा है जिसमे सबसे अधिक खतरनाक नदियों में है कोशी जिसके कारण लगभग प्रतिवर्ष कितनी जाने मनुष्य एव पशुओं कि बलि चढ़ जाती है तो किसानों की बर्बादी गांवों की तबाही होती है कोशी नदी को बिहार के शोक नदी के रूप में जाना जाता है प्रतिवर्ष कोशी के बाढ़ का कहर कोई न कोई नई कहानी लिख जाती है जिसकी वेदना कि कराह कि गूंज पीढ़ियों के कानों में गूंजती भयाक्रांत करती रहती है ।बिहार के कोशी क्षेत्र की यही सत्यता है कभी अत्यधिक वर्षा के कारण तो कभी नेपाल द्वारा पानी छोड़े जाने के कारण कारण कोई भी हो विनाश के प्रहार को झेलती है कोशी के तट पर बसे गांव के किसान जनता ।
प्रस्तुत कहानी भी कोशी कहर कि त्रदसि कि कोख की उपज वर्तमान में एव इतिहास है जो भयावह तो है ही प्रेरणा भी है।
कटियार जनपद के कुरसेला प्रखंड में गांव है कोशिकीपुर जो लगभग हर वर्ष कोशी के रौद्र रूप से दो चार होता है भयंकर लू तपन सूखे कि मार से त्रस्त ग्रामीण वर्षा के लिए इंद्र देवता को प्रसन्न करने हेतु तरह तरह के धार्मिक अनुष्ठान कर रहे लेकिन वर्षा के कोई आसार नही नजर आ रहे थे दिन बीतते जा रहे थे उधर नेपाल में भयंकर बरसात का दौर जारी था जिसके कारण वहां के हालात नियंत्रण से बाहर होते जा रहे थे ।कोशीपुर गांव के लोग पड़ोसी देश नेपाल कि स्थिति से अनजान लगभग प्रतिदिन वर्षा के लिए इंद्र देव कि पूजा अर्जना करते इसी प्रकार दिन बीत रहे थे ।
एक दिन शाम को कोशिकीपुर गांव के लोग रात को वर्षा हेतु अपने नियमित अनुष्ठान को करने के बाद वर्षा कि आश में निद्रा में थे कि मध्य रात्रि को आचनक चारो तरफ अफरा तफरी मच गई गांव के हर घर मे पानी ही पानी जब तक कोई कुछ समझ पाता तब तक तेज बारिश भी शुरू हो गयी निद्रा में लोग विस्तर समेत पानी कि तेज धारा में बहने लगे तेज हो रही वर्षा ने स्थिति को और भी भयावह बना दिया हर तरफ चीख पुकार अपनो को खोजते अपने अंधेरे का साम्राज्य कोई अपने बूढ़े माँ बाप को खोज रहा था तो कोई पत्नी बच्चों को तो कोई अपने मवेशियों को विस्तर ऐसे बह रहे थे जैसे कागज कि नाव किसी को कुछ समझ नही आ रहा था अंधेरा एव भयावह बर्षात डरावना वातावरण जैसे वर्षो से कुपित इंद्र अतिप्रसन्न हो गए हो या प्रसन्न इंद्र कुपित या प्रकृति प्रकोप कुछ भी किसी के समझ मे नही आ रहा था पूरी रात वर्षा एव बाढ़ का कहर मौत बनकर कोशिकीपुर गांव के लोंगो पर बज्रपात बनकर टूटता रहा ।
सुबह वर्षा कुछ कम हुई उजाला हुआ तो गांव वालों का बहुत कुछ लूट चुका था गांव उझड चुका था गांव का प्रत्येक व्यक्ति अपने परिजनों को इधर उधर खोज रहा था।
कोशिकीपुर गांव में पड़ोसी थे आद्या प्रसाद जिनकी एक मात्र पुत्री थी सुभाषिनी जिसकी आयु लगभग पांच वर्ष थी और उनके पड़ोसी थे रजवंत जिनका बेटा रितेश कि उम्र भी पांच वर्ष ही थी ।रितेश एव सुभाषिनी अक्सर साथ साथ ही रहते खेलते जैसे उनके परिवार आपस मे एक दूसरे के साथ रहते।
रितेश और सुभाषिनी शाम को साथ साथ बहुत रात तक खेलते रहे एव साथ खाना खाने के बाद दोनों अपने अपने घर सोने चले गए एकाएक गांव में आई बाढ़ में गांव के न जाने कितने लोगों के घर उजाड़े कितने मवेशी बह गए पूरा गांव जल मग्न हो गया जैसे समंदर के बीच कोई अवशेष अद्याप्रसाद अपनी एकलौती पुत्री को खोज रहे थे तो रजवंत अपने बेटे रितेश को धीरे धीरे दिन का मध्यान हो चुका था ना तो आद्या प्रसाद कि पुत्री सुभाषिनी का कही पता था तो ना ही रजवंत के पुत्र रितेश का दोनों पड़ोसियों के लिए बाढ़ और बारिश का प्रकोप अत्यंत दुखदाई और सब कुछ लूट जाने जैसा था ।
प्रशासन ने आनन फानन राहत एव बचाव कार्य शुरू किया लेकिन निरंतर हो रही वर्षात एव बढ़ते जल स्तर से प्रशासन के भी हाथ बंधे हुए थे सब ईश्वर एव समय के हवाले था दो दिन चार दिन सप्ताह बीत गए लेकिन बाढ़ की भयंकर स्थिति में सुधार के आसार नही दिख रहे थे।