सावन का फोड़ - 2 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सावन का फोड़ - 2

बाढ़ कि बिगड़ती स्थिति से बेबस लाचार प्रशासन अपनी पूरी क्षमता एव संसाधनों से आम जन को राहत पहुंचाने कि पूरी ईमानदारी से कोशिश कर रहा था लेकिन निरंतर हो रहीं बारिस से कोइ भी प्रयास कारगर नहीं हो रहा था बल्की हालत और बिगाड़ते जा रहे थे. आद्य प्रसाद एव रजवंत किसी भी चमत्कार की आश मे सब कुछ लूट जाने के बाद भी प्रति दिन अपने संतानो कि कुशलता के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते रहते।

कहते है मनुष्य अक़्सर सब कुछ जानते हुए भी अत्यधिक आशावादी होता हैं लेकिन ईश्वर एव काल समय का न्याय सर्वोपरि होता है जिसे स्वीकार करना ही मनुष्य कि विवशता एव नियति होती हैं निरंतर हो रहीं बारिस से बिगड़ते हालात एव प्रशासन के व्यर्थ होते सभी प्रयास ने
कोशिकीपुर गांव एव आस पास के क्षेत्रों मे भयंकर रौद्र रूप धारण कर लिया था जिसके कारण हालत बद से बदतर हो चुके थे ।
दस दिन बाद इन्द्रदेव का प्रकोप कुछ कुछ कम हुआ और हालात सुधरने का विश्वास जगा प्रशासन तो अपने प्रयास कर ही रहा था बारिस कम होते ही प्रशासन ने तेजी से राहत बचाव कार्य शुरू कर दिया लेकिन अभी भी रुक रुक कर हो रहीं बारिस से हालत जस से तस हो जाते लगभग पंद्रह दिनों बाद इन्द्रदेव का प्रकोप शांत हुआ बारिस बंद हो गयी और पन्द्रह दिनों से विलुप्त भगवान सूरज भी आसमान मे दृष्टिगोचर होने लगे और बाढ़ का जल स्तर स्थिर होकर घटने लगा प्रशासन ने भी और तेजी से राहत कार्य शुरू किया लेकिन ऐसे हालत मे कभी भी आम जनता को प्रशासन संतुष्ट नहीं कर सकता हैं जिसका कारण नियम कानूनो कि बाध्यता एव सीमित संसाधन साथ ही साथ भारतीयों कि अपनी सोच मानसिकता जिसके कारण सारा दोष शासन प्रशासन पर मढ़ कर किसी भी घटना प्रकोप संक्रमण आदि का ठीकरा प्रशासन के माथे फोड़ना भारत के किसी भी राज्य का भारतीय प्रशासन अपने भारतीय परिवेश का आदि बन चुका है ना प्रशासन खुद को बदलने के लिए तैयार है ना ही भारतीय आम जनता खुद को बदलने के लिए तैयार है इसी वातावरण मे आम भारतीयों एव भारतीय प्रशासन के बीच जुगाड़ तकनीकी , प्रबंधन एवं प्रशासन चलाता हैं जिसमें पिसती हैं निरीह वह जनता जो निर्दोष एव अबोध होती है और भारतीय जुगाड़ व्यवस्था मे ना तो सक्षम होती हैं ना ही उनकी सोच समझ आर्थिक सामाजिक व्यवस्था आम भाषा मे कहा जाय तो अशिक्षित गरीब एवं सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े लोग इस श्रेणी मे आते हैं जिनको किसी जाती मे बांटकर परिभाषित करना सर्वथा भारतीय राजनीति एवं राजनीतिज्ञों की दुर्भावना एवं भारत कि गुलाम मानसिकता कि राजनीतिक सोच समझ है।
भारत कि गुलामी से पूर्व बटे एवं झूठे अहंकार स्वाभिमान मे लड़ते झगड़ते सामंत जमींदार एवं छोटे छोटे राज्य राजाओ ने एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए एक दूसरे के विरुद्ध बाहरी शक्तियों को आमंत्रित किया जिसका परिणाम य़ह हुआ की बाहरी शक्तियों को जिसने भी बुलाया उसके शत्रु का विनाश करने के बाद उसका भी विनाश कर भारत मे अराजकता फैलाई लूट पाट किया यही हालत वर्तमान भारत कि क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ एवं घृणित राजनीतिक सोच के कारण बनती जा रहीं है।
गुलामी से पूर्व छोटे छोटे राजा रियासतों का आपसी कलह था और भारतीय जनता पिसती थी वर्तमान मे जातियों के छोटे छोटे समुदायों मे भरतीय सामाज को बांट कर राजनीतिक एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर रहे जो गुलामी पूर्व परंपरा का आधुनिक परिष्कृत संस्करण ही है और समग्र भारतीय को खंड खंड बांट कर पुनः गुलामी के इतिहास को दोहराने का ही दौर हैं जो निहित घटिया क्षुद्र राजनीतिक सोच का कल्याण एवं विकास वाद हैं
इन्हीं राजनीतिक सामाजिक प्रशासनिक हालत मे कौशिकीपुर गांव के लोग बाढ़ कि विभीषिका से जुझ रहे थे पंद्रह दिनों के नारकीय स्थिति मे कुछ सुधार जल स्तर घटने एव बारिस रुकने से नजर आने लगी धीरे धीरे फिर तेजी से कौशिकीपुर गांव के हालात सुधरने लगे बाढ़ का पानी लगभग निकल चुका था गांव के लोग अपनी नियमित जीवन शैली मे बाढ़ के कहर एव विभीषिका के दंश दर्द एव नुकसान को भुला कर लौटने कि कोशिश कर रहें थे लेकिन कहावत हैं समय खराब हो और प्राकृति एंव परमेश्वर कुपित हो तो कोइ कुछ नहीं कर सकता हैं बाढ़ वर्षा तो समाप्त हो चुकी थी लेकिन उसकी बर्बादी के निशान मौजूद थे बाढ़ कि तबाही के बाद कौशिकीपुर गांव के लोंगो पर सूरज का भयंकर प्रकोप भयंकर गर्मी उमस जिसके कारण बीमारियों का प्रकोप साथ ही साथ बाढ़ के बाद मच्छरों का प्रकोप कौशिकीपुर एव आस पास के गांव मे भयंकर गर्मी उमस मच्छरों एव बाढ़ कि विभीषिका मे मेरे जानवरो के सड़ने से चारो तरफ दुर्गंध के साथ तरह तरह के बीमारियों का प्रकोप दवाओं एव चिकित्सको का आभाव बाढ़ में सब कुछ गंवाने के बाद दो जून की रोटी के लाले आदि समस्याओं से कोशिकीपुर एव आस पास कि आम जनता पीस रही थी।