बैरी माँ Er.Vishal Dhusiya द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

बैरी माँ

बैरी माँ
भोजपुरी में एक कहावत है:-
"कहे के त सभे केहू आपन,आपन कहाये वाला के बा"।
यह कहानी है गाजीपुर जिले के कसौली गाँव के। वहाँ एक यमुना नाम के व्यक्ती थे, जो पेशे से सिंचाई विभाग के अमीन थे। तथा उनकी पत्नी दुर्गेशवरी थी, जो सरल स्वभाव की थी तथा गाँव में एक अच्छी प्रतिष्ठा थी। अमीन साहब के एक पुत्र अनुज ( 10 वर्षीय ) तथा एक पुत्री अनिता ( 13 वर्षीय) थी। घर द्वार हर चीज की सुख-समृद्धि थी। किसी भी चीज की कमी नहीं थी। पूरा परिवार खुशहाल था। लेकिन अमीन साहब की पत्नी दुर्गेशवरी को टीबी की बीमारी थी। जो सिर्फ अमीन साहब तथा उनकी पत्नी को ही मालूम था। दवा रोज लेती थी तो उनके बच्चे उनसे पूछते थे कि "माँ तुम किस चीज की दवा खाती हो"? तो उनकी माँ ने साधारण बीमारी बताकर टाल दिया करती थी। एक दिन लगभग सुबह के ग्यारह बजे की बात है। बच्चे स्कुल गए थे और अमीन साहब ड्यूटी। घर पर कोई नहीं था। अचानक अमीन साहब के पत्नी का हालत खराब हो गई। वो चीखने चिल्लाने लगीं। आसपास के लोग जुट गए और उन्हें गाँव के अस्पताल में भर्ती कराया गया। कुछ राहत हुआ फिर घर आ गए। उसी वक्त अमीन साहब भी आ गए। भीड़ देखकर हैरान हुए। सभी लोग उनकी पत्नी को घेरकर बैठे जो थे। उनकी पत्नी चौकी पर लेटी थी। कोई पानी दे रहा है तो कोई दवा। इतने में बच्चे भी स्कुल से आ गए। वो भी हैरान हुए तब उनके पिता उनसे झूठ बोलकर फुसलाये। दीवाली आई शाम को बच्चों ने गाँव के बच्चों के साथ पटाखे- छुरछुरी जलाकर आनंद ले रहे थे। अचानक उनकी पत्नी बेहोश होकर गिर गई और वो जीने की आशा छोड़ती जा रहीं थीं। उन्होंने अपने पति और बच्चों को पास बुलाकर भेंट की फिर वो दुनियाँ से अलविदा हो गई। उनका अंतिम संस्कार किया गया। अमीन साहब बच्चों को लेकर बहुत चिंतित थे। गाँव वाले उनको समझा बुझा रहे थे कि वो चिंता न करें। घर में बहुत परेशानी आ गई। जहां वो आराम से ड्यूटी पर जा रहे थे। वहीँ बच्चों को स्कुल भेजने के बाद ड्यूटी पर जाते। वहाँ उनका मन नहीं लगता था। पत्नी की याद आती थी तथा बच्चों की फिक्र होता था। एक रात अमीन साहब के बच्चे पढ़ रहे थे कि अचानक उन्हें उनकी माँ की याद आ गई और वो अपने पिता के पास जाकर रोने लगे। अमीन साहब के भी आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने उन्हें समझाया बुझाया। दूसरे दिन वो ड्यूटी पर गए। आफिस में बैठे बैठे सोच रहे थे कि अचानक उनके मन में एक विचार आया कि क्यों न वे दूसरी शादी कर लें। उनकी उम्र महज चालीस साल थी। उन्होंने ड्यूटी से छुट्टी लेकर तुरंत घर आ आए फिर गांव के लोगों को बुलाकर अपने शादी की बात रखी। कुछ लोग उनके इस फैसले से सहमत थे कुछ लोगों ने उनके इस फैसले का विरोध किया। अमीन साहब ने घर के हालात को देखते हुए शादी करने का फैसला लिए। इससे उनको नई पत्नी मिल जाएगी और बच्चों को देखभाल करने के लिए नई माँ। अमीन साहब खूब धूमधाम से शादी किए। उनकी नई पत्नी का नाम कौशल्या था। सुहागरात के रात दोनों पति पत्नी बाते कर रहे थे। अमीन साहब अपने पत्नि से वादा करवाया कि वो उनके बच्चों की देखभाल करेगी। उनकी पत्नी (कौशल्या) ने भी वादा किया और उसे बखूबी निभाया भी। अमीन साहब को ड्यूटी तथा बच्चों को स्कुल भेजने की व्यवस्था करना शुरू कर दी। मतलब कौशल्या एक अच्छी गृहणी बनने की कोशिश की और कुछ हद तक सफल भी हुई। एक शाम लगभग सात बजे के करीब घर में अमीन साहब व उनका पूरा परिवार मौजूद थे। उनकी पत्नी (कौशल्या) खाना बना रही थी कि अचानक उसके पेट में दर्द होने लगा। उसको तुरंत पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया। बहुत देर होने लगी। सभी लोग परेशान थे कि अचानक डाक्टर वार्ड से बाहर आया और अमीन साहब को बेटे होने की खुशखबरी दी। सभी लोग खुश थे। धूमधाम से घर में सोहर-गीत- मंगल हुआ। गाँव में बेटा होने पर एक भोजपुरी भाषा में गीत गाया जाता है,"जुग- जुग जिय सू ललनवा, भवनवा के भाग जागल हो, ललना लाल होइंहे, कुलवा के दीपक मनवा में आश लागल हो"। मिठाइयाँ बांटी गई। इसी तरह समय बीतता गया और कौशल्या का बेटा( राहुल) भी बड़ा हुआ। अपने बड़े भाई बहन के साथ खेलने तथा स्कुल आने-जाने लगा। एक रात जब अमीन साहब और उनकी पत्नी अपने बेडरूम में थे। अमीन साहब सो गए थे और उनकी पत्नी कौशल्या जगी थी और सोच रही थी कि "मेरे पति का इतना बड़ा जायदाद है, पैसे हैं, और इनके दो वारिस हैं, क्यों न एक ही वारिस हो और वो भी मेरा बेटा"।मतलब उसके मन में पाप समा गया। सुबह हुयी कौशल्या नाश्ता तैयार करने के बाद अपने पति के साथ सोफ़े पर बैठी और डरते डरते अपने मन की बात रखी कि "इतने बड़े जायदाद में से थोड़ा बहुत उनके पहले बेटे अनुज को दे दिया जाएगा और बाकी सब राहुल के नाम हो जाएगा"। अमीन साहब सोफ़े से उठ खड़े हुए, उनका चेहरा गुस्से से लाल था। उन्होंने अपने पत्नि को डाँटा और खरी खोटी सुनाई। क्योंकि अमीन साहब अपने पहले बच्चों से बहुत प्यार करते थे। इतने में बच्चे भी स्कुल से आ गए। अमीन साहब घर से बाहर चले गए। लेकिन उनकी पत्नी (कौशल्या ) के मन में पाप समा चुका था। अपने सौतेले बच्चों को देखकर जलने लगी। उनके साथ बुरा व्यवहार करने लगी। उनको समय से खाना नहीं देती। उनको स्कुल न भेजकर भेजकर घर का काम भी करवाती थी। उनको अपने पिताजी से यह बात कहने से मना की थी और धमकियां भी दी थी कि यदि वे उनसे कुछ कहेंगे तो मार खायेंगे। लेकिन यह नौटंकी पास की एक बुढ़ी औरत देखती थी और गाँव में औरतों से यह सारा कहानी बताती थी। एक दिन वहीं बुढ़ी औरत देख रही थी कि अनुज और अनिता की सौतेली माँ उनसे कपड़े धुला रही थी और डांट भी रही थी। बुढ़ी औरत को देखा नहीं गया और उसने टोक दिया। कौशल्या बुढ़ी औरत को साफ़ साफ़ मना कर दिया कि वो मेरे घर के मामलों में टांग ना अड़ाए। बुढ़ी औरत वहाँ से गुस्साए हुए चल दी। ठीक उसी समय अमीन साहब ड्यूटी से घर आ रहे थे। बुढ़ी औरत देख उनको रोकी। अमीन साहब अपना मोटर साइकिल रोका। बुढ़ी औरत ने उनसे सारी कहानी सुनाई। अमीन साहब गुस्से से लाल होकर घर पहुंचे। उनकी पत्नी पानी लेकर आई। अमीन साहब गुस्से से भरे, पानी नहीं पीए। उन्होंने अपने बच्चों को बुलवाया। उनकी पत्नी बहाने बनाई कि वो सो रहे हैं। तब अमीन साहब खुद उन्हें ढूंढने लगे। उस समय उनके बच्चे बाथरूम में अपने कपड़े धो थे। अमीन साहब ढूंढते ढूंढते बाथरूम के पास पहुँचे तो बच्चे उन्हें देखकर रोने लगे। उन्होंने रोते हुए अपने पिताजी से सारा करतूत बताये। इतने में अमीन साहब का गुस्सा और फूट पड़ा। उन्होंने अपने पत्नि को बहुत मारा पीटा। फिर उसे उसे उसके मायके भगा दिए। कौशल्या अपने बेटे राहुल को लेकर अपने मायके चली गई। वहाँ जाकर अपने घरवालों से अपने पीटने का हाल बताई लेकिन ये नहीं बताई कि उसे किस कारण से पीटा और खदेड़ा गया है। दूसरे दिन कौशल्या के पिताजी और भाई समझौते के लिए अमीन साहब के घर गए। समझौता हुआ, अमीन साहब अपने पत्नि का सारा करतूत बताये। कौशल्या के पिताजी और भाई घर आए और कौशल्या को समझाया बुझाया फिर उसे उसके ससुराल पहुंचा दिए। कौशल्या अपने पति से माफी मांगी। अमीन साहब अपने पत्नि को माफ़ कर दिए। फिर सलाह दिए कि जीवन में फिर ऐसी गलती नहीं करे। कौशल्या ने उपरी मन से कह दिया कि वह ऐसा नहीं करेगी। लेकिन कौशल्या के मन में जो था। उसने उसे मिटने नहीं दिया। एक शाम जब कौशल्या अपने कमरे में खिड़की के पास बैठी थी और उसके खिड़की के बाहर दो- तीन औरतें आपस में बाते कर रही थी। जिसमें बाबा दूधनाथ जी का जिक्र कर रही थी कि बाबा दूधनाथ झाड़ फूँक के साथ वशीकरण भी करते हैं। शायद उन तीनों औरतों का यही समस्या रहा होगा। बाबा दूधनाथ जी बड़वानी गाँव के निवासी थे। जो कसौली गाँव के एकदम नजदीक था। अब कौशल्या के समस्या का हल मिल गया। बस उचित समय का इंतजार कर रही थी कि एक दिन उसके पति किसी काम से बनारस चले गए और सभी बच्चे स्कुल। बस उसे मौका मिल ही गया। उसने तुरंत बड़वानी गाँव में बाबा दूधनाथ जी के पास पहुंची। उनका पैर छुए और अपनी बात रखी। मगर सरासर झूठ की उसे उसके पति नहीं जानते मानते हैं। बाबा दूध नाथ जी झाड़ फूँक करके कुछ गुड़ के पिण्ड दिए और बताये कि अपने पति को खिला देना। कौशल्या जल्दी अपने घर आ गई और अपना रणनीति तैयार करने में जुट गई उन बच्चों के ख़िलाफ़। इतने में उसके बच्चे भी स्कुल से आ गए। उनको खाना परोसी। फिर अपने पति का इंतजार करने लगी। शाम तक उसके पति भी घर आ गए। कौशल्या अपने पति को रोज की तरह पानी लाई लेकिन मीठे की जगह वह गुड़ लाई जो बाबा दूधनाथ जी के यहाँ से लाई थी। गुड़ पानी दी और बताई कि वह अपने मायके से लाई है। अमीन साहब बहुत खुश हुए और गुड़ खाकर पानी पीए। अगले दिन अमीन साहब के तीनों बच्चों के स्कुल में फीस वसूली हो रही थी। जिसमें सबका जमा था, और अमीन साहब के बच्चों का फीस बाकी था। अध्यापक जी बोले कि जल्दी जमा करा दें अन्यथा उन्हें स्कुल से भगा दिया जाएगा। बस क्या था कौशल्या को जाँच करने का मौका मिल गया कि बाब दूध नाथ जी का दवा असर किया है कि नहीं। रात को भोजन के समय बताई कि उनके तीनों बच्चों के स्कुल में फीस जमा करना है। फिर सोते समय अपने पति से बोली कि सिर्फ मेरे बच्चे का फीस जमा करें, अनुज अनिता का नहीं। सुबह हुयी अमीन साहब बच्चों के साथ स्कुल गए। बच्चों को कक्षा में भेजकर खुद प्रधानाचार्य दफ्तर गए और सिर्फ कौशल्या के बेटे का फीस जमा किए। अनुज अनिता का नहीं। दूसरे दिन जब अमीन साहब के बच्चे स्कुल गए, तो प्रधानाचार्य जी ने अनुज और अनिता को स्कुल से भगा दिया। दोनों बच्चे घर आकर अपने सौतेली माँ से कहकर रोने लगे। उनकी सौतेली माँ ने साफ साफ कह दिया कि वे अपने पिता से कहे हमसे नहीं। कौशल्या का पहला षड्यंत्र कामयाब हुआ। वह मन ही मन बहुत खुश हुयी। उसके बाद से कौशल्या अपने पति का कान भरना शुरू कर दी और अमीन साहब कौशल्या का हर बात मानते चले गए। मतलब अमीन साहब अपने पत्नि के गुलाम बन गए। एक दिन फिर से अनुज और अनिता को स्कुल से भगा दिया गया। दोनों घर आए उस दिन अमीन साहब भी घर ही पर थे। दोनों बच्चे अपने पिताजी से स्कुल का फीस भरने को कहा। अमीन साहब मना कर दिए और उन्हें पढ़ाई छोड़ देने की सलाह दी। अनुज तो छोटा था पर अनिता समझ गई और रोते हुए अपने कमरे में चली गई। एक रात जब सबलोग सबलोग सो रहे थे। अनिता अनुज अपने कमरें में थे तथा अमीन साहब उनकी पत्नी और बेटा राहुल एक ही कमरे में थे। राहुल सो रहा था और दोनों पति पत्नी जगे थे और बातें कर रहे थे कि क्यों न अनिता अनुज को काटकर फ़ेंक दिया जाए, "ना रहेगा बाँस और ना बजेगा बांसुरी"। उन्होंने तैयारियाँ भी कर लिये थे। लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। सौभाग्य से अनिता लघु शंका के लिए निकली थी लेकिन अपने माता-पिता की बातें सुनकर रुक गई और सारा बात अपने कानो से सुन ली और डर गई। उसके आंखों में आंसू आ गए। लेकिन उसने जल्दी ही आंसू पोछते हुए अपने भाई के पास दौड़ती हुयी गई और उसे जगाकर दोनों रात को ही घर से गायब हो गए। भाई बहन भागते-भागते रेल्वे स्टेशन पर पहुँचे। वहाँ एक रेलगाड़ी आई जिसमें वो बैठकर चल दिये। उनको यह नहीं मालूम था कि यह गाड़ी कहाँ तक जाएगी। बस अपना जान बचाकर भाग निकले। इधर अमीन साहब और उनकी पत्नी अनुज अनिता को काटने के लिए ढूंढ रहे थे। लेकिन वो दोनों कहीँ नहीं मिले। दोनों पति पत्नी मन ही मन खुश थे। उधर अनिता और अनुज की गाड़ी बनारस जाकर रुकी और वो दोनों वहीं उतर गए और वहाँ से पैदल चलने लगे और चलते चलते कुछ दूर शहर के फुटपाथ पर पहुंचे वहाँ कुछ लोग सो रहे थे। वहीं वो दोनों सो गए। सुबह हुयी दोनों भाई बहन उठे। अनुज डरकर रोने लगा उसे भूख भी लगी थी। अनिता अपने मनाई फिर लोगों से खाना माँगा। दुकान वालों ने भगा दिया। एक दुकान वाले को उनपर बहुत दया आई। उसने उन दोनों को पेटभर खाना खिलाया। वे दोनों खाना खाने के बाद वहां से चल दिये। अनिता अपने हालात के बारे में सोच रही थी और फैसला ली कि अब वह दोनों नहीं जिएंगे। चलते चलते दोनों एक नदी के पुल पर पहुँचे। अनिता फैसला कर चुकी थी कि अब उन्हें नहीं जीना है। वहाँ उसने बहुत देर तक पुल से नदी में कूदने की कोशिश करते रहे। पैर आगे बढ़ाते फिर डरकर पीछे हट जाते। अब पुल से उतरकर नदी के किनारे पहुँचे। वहाँ भी देर तक नदी में डूबने के लिए कोशिश करते रहे। लेकिन वहीं पर कुछ दूर एक साधु की कुटिया थी। उसमें एक साधु बाबा बैठे इनको देख रहे थे। वे वहां तुरंत पहुँचे और उन बच्चों को अपने साथ ले गए। उन्होंने कारण पूछे। अनिता रोती हुयी सारी कहानी सुनाई। साधु को दया आई। साधु जी उन्हें खाने को दिए और उनको अपने साथ रखने का फैसला किए। इधर समाज के डर से अमीन साहब थाने में रिपोर्ट दर्ज कराए। थाने वाले तुरंत कार्रवाई करना शुरू कर दिए। अमीन साहब के घर पुलिस आना जाना शुरू कर दिए। गाँव वाले हैरान थे कि क्या बात है कि रोज़ पुलिस वाले आ रहे हैं। एक बुढ़ी औरत ने अमीन साहब से पूछी। अमीन साहब रोते हुए बताये कि उनके अनुज और अनिता घर से गायब हैं। लेकिन वही बुढ़ी औरत सारी कहानी देखी थी। उसको कुछ शक हुआ। लेकिन वह बुढ़ी औरत वहाँ से चुपचाप चली गई। कौशल्या ऊपर के मन से रो रही थी लेकिन भीतर के मन से बहुत खुश थी। एक दिन सुबह लगभग ग्यारह बजे के करीब में एक पुलिस अधिकारी लाल राजदूत से आया, आकर बच्चों का फोटो माँगा। कौशल्या घर में गई और उनका फोटो ढूंढने लगी। फोटो तो मिला पर कौशल्या ने उसे गैस चूल्हे पर जला दी और बाहर आकर बोली कि "उनका फोटो है ही नहीं, फोटो था मगर स्कुल में किसी काम से लग गया है"। पुलिस अधिकारी ने कहा कि "बताईए बच्चों का फोटो नहीं रहेगा तो हम बच्चों को कैसे ढूंढ निकलेंगे, जल्दी कोई तस्वीर उपलब्ध कराएं"। पुलिस अधिकारी वहाँ से चला गया। उधर बनारस में साधु बाबा उन दोनों बच्चों को एक स्कुल में दाखिला कराए। उनके रहने खाने का प्रबंध अपने यहाँ ही रखें। बच्चे स्कुल आने-जाने लगे। ऐसे ही करते दस साल बीत गए। बच्चे अपना अतीत भूल गए, अब वो बड़े हो गये थे। अनिता नर्स की पढ़ाई कर बनारस में ही एक अस्पताल में काम करती थी और उसका छोटा भाई अनुज आर्मी जॉइन कर लिया था। एक बार संयोग से अमीन साहब उनकी पत्नी कौशल्या और उनका बेटा राहुल बनारस में जीप से कहीँ घूमने जा रहे थे कि अचानक आगे से एक ट्रक वाला आगे से जीप को टक्कर मार दिया। जीप में बैठे सभी यात्रियों के साथ अमीन साहब और उनका परिवार भी बुरी तरह से घायल हो गये। संयोग से उनको उसी अस्पताल में भर्ती कराया गया जिसमें उनकी बेटी अनिता नौकरी करती थी और संयोग से उनके बेटी को ही उनका सेवा करने का अवसर मिला। अनिता उन्हें देख आश्चर्यचकित हुयी कि यह चेहरा पहचाना सा लग रहा है। अनिता उन्हें पहचान ली। लेकिन उस समय उसके माता-पिता गंभीर रूप से घायल थे। जब उसके माता-पिता होश में आए तो अनिता रोते हुए अपने माता-पिता का पैर छुए। अमीन साहब और उनकी पत्नी कौशल्या पूछे "तुम कौन हो बेटी, क्यों रो रही हो हमारा पैर क्यों छुए, हम तो तुमको जानते तक नहीं "। तब अनिता अपनी सारी कहानी बताई। अमीन साहब को अपने आप पर बहुत शर्मिन्दगी महसूस हुयी। उन्होंने अपने बेटी से माफी मांगी। अनिता अपने माता-पिता को अस्पताल से छुट्टी दिलाकर अपने आवास पर ले गई। संयोग से उस दिन अनुज भी छुट्टी पर घर आया था। साधु जी और अनुज खाना खा रहे थे, तभी वहाँ अनिता अपने माता-पिता के साथ पहुंची। साधु जी और अनुज आश्चर्यचकित थे। अनिता अपने माता-पिता को साधु जी और अपने भाई से मिलवाई और परिचय करवाई । साधु जी मन ही मन बहुत क्रोध थे और अमीन साहब और उनकी पत्नी को भी भला बुरा बोल दिए। अमीन साहब शर्म से झुक गए। अनिता का भाई भी बहुत क्रोध में था। उसने भी खरी खोटी सुनाई। अनिता और साधु जी ने तो अमीन साहब को माफ़ कर दिए। लेकिन अनुज उनका चेहरा तक नहीं देखना चाहता था। अनिता और साधु जी अनुज को बहुत समझाये लेकिन अनुज अपने जिद पर अडा रहा। अंत में अमीन साहब और उनकी पत्नी कौशल्या अपने बेटे अनुज का पैर पकड लिए। अनुज को बहुत शर्मिन्दगी महसूस हुयी। फिर अंत में अनुज गुस्सा थककर माना और अपने माता-पिता को अपनाया। अब अमीन साहब और उनकी पत्नी कौशल्या अपने बच्चों से वापस घर चलने का आग्रह किए। लेकिन अनुज और अनिता का कहना था कि "साधु बाबा ने हमको पाल पोशकर बड़ा किया, हम इन्हीं के साथ रहेंगे, इन्हें छोड़कर हम कहीं नहीं जाएंगे"। साधु बाबा उनको समझाया पर वो दोनों नहीं मान रहे थे। अंत में साधु बाबा की बात मानना पड़ा और वे वहाँ से अपने गाँव वापस लौट गए। अमीन साहब अपने बेटी अनिता की शादी बहुत धूमधाम से की।

- Er.Vishal Kumar Dhusiya