में और मेरे अहसास - 107 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 107

जिंदा लाश को लम्बी उम्र की दुआ मत देना l

मुकम्मल सजा मिली है फ़िर सजा मत देना ll

 

टूटे धागे, समझौते के टाके यही तो है जिंदगी l

विपदा की घड़ियों में कभी भी दगा मत देना ll

 

मोहब्बतें टूटने के बाद बेवफा आशिक प्यारी l

मुलाकातों वाली राज की बातेँ बता मत देना ll

 

प्यार की आदत हो गई है जीना मुहाल हुआ l

जाते हैं दूर पीठ पीछे से अब सदा मत देना ll

 

सुनो जाना चाहते हो तो चुपचाप चले जाना l

अब आशिकी को रुस्वा सरे आम बना मत देना ll

१६-६-२०२४ 

 

जलाके जिगर को अँधेरा मिटा के लौट आया l

एक आखिरी बार गले से लगा के लौट आया ll

 

कुछ मुकद्दर साज़िश थी कुछ तिरी ख्वाहिश l

रसीले होठों का जाम पिला के लौट आया ll

 

 

प्यार भरे नशीले ख़त जला के लौट आया ll

 

  

हवा दयार खटखटाए तो लगता है के तुम हो ll

भीगा मौसम लहराए तो लगता है के तुम हो ll

 

माँ की वेदना कोई भी ना समझ पाया जहाँ में l

गली में क़ासिद आए तो लगता है के तुम हो ll

 

तलब एक नज़र देखने की इस तरह बढ़ गई कि l

पत्ता पत्ता आहट लाए तो लगता है के तुम हो ll

 

आशियाने की तलाश में इधर उधर घूमते हुए l

पंखी खिड़की से टकराए तो लगता है के तुम हो ll

 

बैचेनी औ बेकरारी मिलने की हो रहीं हैं कोई l

बच्चों जैसे मुस्कुराए तो लगता है के तुम हो ll

१७-७-२०२४ 

 

रास्ते भी खुलेंगे लड़ तो सही l

मिलेगी मंज़िल अड़ तो सही ll

 

जिंदगी नशीली बन जाएगी l

मोहब्बत में पड़ तो सही ll

 

इश्क़ किया है सब्र तो कर l

दिल में याद जड़ तो सही ll

 

चांद के साथ मिलकर तू l

सितारों को नड़ तो सही ll

 

हाथों की लकीरों में न था l

दो घड़ी को रड़ तो सही ll

१८-७-२०२४ 

 

ज़िंदगी औ मौत की दौर उपरवाले के हाथ में होती हैं ll

मुट्ठीभर दिल की लयबद्ध धड़कन जीवन बोती हैं ll

 

मान कहना जिंदगी जीने के लिए अपनों की जरूरत l

अनमोल रिश्तों के अह्सास के साथ रात भर सोती हैं ll

 

सुनो अपनी मर्जी से कहां जिंदा है क़ायनात में लोग l

अपने अंदर की मसरूफ दुनियाका ताउम्र बोझ ढ़ोती हैं ll

 

शायद लम्हा दो लम्हा प्यार की पूँजी ही काफ़ी है तो l

जीने की तमन्ना, आरजू औ अरमान मुहब्बत बोती हैं ll

 

बाहर की भीड़भाड़ औ शोर से अब कोई फर्क़ नहीं है l

भीतर का शोर बढ़ जाता है तब खामोश साँसे रोती हैं ll

१९-७-२०२४ 

 

हाथों की लकीरों से गिला नहीं l

चाहने वाला कभी मिला नहीं ll

 

महफ़िल में पर्दे के पीछे से l

निगाहों से जाम पिला नहीं ll

 

दुनिया की बुरी नज़र से बचने l

ये मुलाकात सीलसिला नहीं ll

 

नीली आँखों से मिलता जुलता l

आज दुपट्टे का रंग निला नहीं ll

 

बेपन्हा वफा का करिश्मा देखो तो l

आज जुदा होने पर भी हिला नहीं ll

२०-७-२०२४ 

 

रोज एक नया दर्द सहकर हँसती हूँ ये करिश्मा ही तो हैं ll

इसी तरह नया इतिहास रचती हूँ ये करिश्मा ही तो हैं ll

 

आशिकी से दूर दूर तक कोई नाता नहीं रहा है उम्रभर l

मोहब्बत की कविताएँ लिखती हूँ ये करिश्मा 

ही तो हैं ll

 

दूसरों को दिखाने के लिए साज श्रृंगार कभी नहीं किया l

खुद के लिए सजती संवरती हूँ ये करिश्मा 

ही तो हैं ll

 

निगाहों से पिलाते रहते हैं इश्क़ का जाम लगातर तो l

महफिल में बिना पिए छलकती हूँ ये करिश्मा ही तो हैं ll

 

यार दोस्तों की भीड़भाड़ में ग़लती से भी अनजाने में l

जरा सा छूने से भी बहकती हूँ ये करिश्मा 

ही तो हैं ll

२१-७-२०२४ 

 

सावन के महीने में यादों के बादल छाए हुए हैं l

मयूर कोयल ने सुरीले मधुर गीत गाए हुए हैं ll

 

बूँदों पर ख़ुमार आया, तन को बहका गया l

हर तरफ़ हरि हरियाली मन को भाए हुए हैं ll

 

भीगने भिगोने के मौसम में करले ठंडी ठंडक l

अब तपस औ तरस के दिन रात जाए हुए हैं ll

 

रिमझिम रिमझिम कुछ कहते बूँदों के स्वर l

विरहन की आंखों में आशाएं घेर लाए हुए हैं ll

 

डालियों औ पत्तियों पर उमंगके झूले पड गये l

प्यारी बारिश की बौछार से राहत पाए हुए हैं ll

२२-७-२०२४ 

 

जाम आंखों से पिलाते हैं तो पीते हैं हम l

खूबसूरत निगाहों को देखकर जीते हैं हम ll 

 

अजीब लोग बस्ते हैं दो पल में आग लगाते l

जग में माशुका की बदनामी से बीते हैं हम ll

 

बात को घुमा फ़िर के करने की आदत नहीं l

ऊपर से मज़ाकि पर अंदर से संजीदे हैं हम ll

 

आजकल सुनते हमारा खूब जिक्र यहां वहां l

भले लाख नादां ही समजो पर रसीले हैं हम ll

 

किस किस को बताएंगे दिवानगी का सबब l

मुकम्मल प्यार करना हुस्न से सीखें हैं हम ll

२३-७-२०२४ 

 

इतनी सी बात का फ़साना बना दिया l

ये भी ना सोचा किस तरह से जिया ll

 

चैन औ सुकून बनाये रखने के लिए l

हर बार हर लम्हा ग़म का घूंट पिया ll

 

बेहिसाब कोशिश की उसे समझाने की l

ख्वाइशों को मार जिगर पे वार लिया ll

 

नासमझ के इशारे ने उलझन बढ़ाई l

फ़िर एक नया दर्द मिलने से बिया ll

 

अनकहे अल्फाज़ को अनकहा रखा l

बहस से बचने को होठों को सिया ll

२४-७-२०२४ 

 

सुख दुख में जीना सिखाती है ज़िन्दगी l 

रोज नया आयाम दिखाती है ज़िन्दगी ll

 

सुनो ख्वाइशे औ अरमान की चाहत में l

दर्द से भरा शहद पिलाती है जिन्दगी ll

 

खुद को ही चाहो चाहनेवालो की तरह l

ज़िन्दगी से रूबरू मिलाती है ज़िन्दगी ll 

 

मुक़द्दर से मिले हुए रिश्तों को बखूबी से l

साथ मिलझुल कर बिताती है ज़िन्दगी ll

 

भीड़ छोड़कर अकेले में मेला लगता है l

साँसों से रिश्ता निभाती है ज़िन्दगी ll

२५-७-२०२४ 

 

प्रकृति की लीला कोई नहीं समझ पाया हैं l

राधे कृष्णा ने रचाई हुईं मायावी माया हैं ll

 

रंगबिरंगी कुदरत का खूबसूरती नज़ारा l

जहाँ देखो अलौकिक शक्ति का साया हैं ll

 

रिमझिम बहकाती बारिश के मौसम में l

फिझाओंमें ये हसीन आलम आया हैं ll

 

हरे खेतों की हरियाली औ लचीलापन l

देख खुदा के रूप का अनोखा छाया हैं ll

 

हर एक के मन में उमंग उत्साह भरने l

सौरभ मधु मनभावन वसंत लाया हैं ll

२६-७-२०२४ 

 

रोज रवि की किरण नई ऊर्जा प्रदान करती हैं l

और ज़िन्दगी में नई आशा नई उमंग भरती हैं ll

 

साथ अपने प्रकाश से भरे एक बड़े गोले से l

अँधेरों को चिरकर वो आसपास सरती हैं ll

 

उगने से लेकर डूबने तक कर्म किये जाती l

समय चक्र की मर्यादा के लिए मरती हैं ll

 

भोर में उजली किरनें जीवन में ज्योति भरे l

नवजीवन की साँसें देकर आलस हरती हैं ll

 

चारो ओर धीरेधीरे प्रकाशित करके जगमें l

अनंतमय पवित्रता के वास्ते फिरती हैं ll

२७-७-२०२४ 

 

बेशुमार यादों का बवंडर मन में तबाही मचा गया l

आवरा पागल परवाने को मुकम्मल दिवाना बना गया ll

 

बिना बात के बीच सफ़र में बेवक्त बिछड़ने वाले l

बिन बुलाएं बैठे बिठाए वो दिल का रोग लगा गया ll

 

एक शाम वो लौटकर आएगा बस यही वादा देकर l

सोये हुए अरमान, ख्वाइशे, अरमानो को जगा गया ll

 

बाकी की उम्र चैन और सुकून के साथ बिताने के लिए l

जिगर में तस्वीरों के गुलदस्ते को गुलों से सजा गया ll

 

हुस्न खुद हेरान अपनी तसवीर देखकर आईने में l

पहली ही नज़र में निगाहों से उतर दिल में समा गया ll

२८-७-२०२४ 

 

धीरे से मुस्कुराना ग़ज़ब हो गया ll

नज़रों को यूँ झुकाना ग़ज़ब हो गया ll

 

 

हरी चूड़ियों ने दिल को चुरा लिया l

ज़माने के रंजो ग़म को भुला दिया ll

 

शायद मिले पता सुकूं का उस गली से l

जो था वो चारो हाथों से लुटा दिया ll

 

फूल के बगैर बहुत उदास था चमन l

सर्द रूत औ सर्द हवाने सुला दिया ll

 

दुनिया चाहती है फ़ासले बने रहे उस l

छोटी सी बात ने सखी रुला दिया ll

 

जिंन्दगी कल आज औ कल में बीती l

दिल बहलाने थोड़ी देर झुला दिया ll

२९-७-२०२४ 

 

मन गंगा जैसा पवित्र होना चाहिये l

उच्च संस्कारो को बोना चाहिये ll

 

पल पल विश्वास का अर्थ मिले l

सदा नेक चरित्र संजोना चाहिये ll

 

पावन माँ गंगा के निर्मल जल से l

पापी तन मन को भिगोना चाहिये ll

३०-७-२०२४ 

 

महफिलों में मय से पूजन की शुरुआत करो l

प्रेम में नशीली छलकती छलकाती रात करो ll

 

पर्दानशी आए हों तो छोटीसी गुफ्तगू हो जाए l

दिल बहलाने के लिए कोई रसीली बात करो ll

 

देखे तो सही निगाहों से कितना पिलाते है l

आज पीने की प्रतियोगिता में मात करो ll

 

 

सुबह की पूजन अर्चना से मन को शांति है मिलती l

तन मन में स्फूर्ति प्रदान करके ताजगी खिलती हैं ll

 

घरआँगन में चारो ओर उत्सव की छाया बनी रहती l

आशीर्वाद से दिन भर चहरे पर रोनक दिखती हैं ll

 

इश्क़ ए हबीबी की लौ लगती है दिलों दिमाग़ में l 

तब इश्क़की बेल लिपट जाती और नसें हिलती हैं ll

 

सद्गुण, श्रद्धा, सुमन, सहनशीलता के बीज रोप कर,  

ममता,स्नेह, सरलता,प्रेम औ समता से सिलती हैं ll

 

हाथ जोड़कर बिनती करते हैं सदा रखना ध्यान l

नित नियम प्रार्थना से नसीब की रेखाएं फिरती हैं ll

३१-७-२०२४