मनु भाकर की सफलता के पीछे Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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मनु भाकर की सफलता के पीछे

ओलंपिक में मनु भाकर की सफलता के विशेष हैं मायने

        आज कवि मौजीराम बहुत प्रसन्न हैं। भारत की बेटी मनु भाकर ने पेरिस ओलंपिक में 10 मीटर एयर पिस्टल इवेंट में कांस्य पदक जीता है।

   सवाली राम ने पूछा,”इतनी प्रसन्नता का कारण क्या है गुरुदेव?”

“भारत की बेटी मनु भाकर ने ओलंपिक में मेडल जीतकर देश को गौरवान्वित किया है।” कवि महोदय ने कहा।

“तो इसमें विशेष क्या है गुरुजी! यह तो अब तक के ओलंपिक में निशानीबाजी के इवेंट्स में भारत को मिला पांचवां मेडल है,पहला नहीं।” सवाली ने सवाल दागा।

“पर यह किसी नारी को शूटिंग इवेंट में मिला पहला पदक है। नारी की समाज में दोहरी भूमिका है। एक घर के भीतर और दूसरी घर की चहारदीवारी से बाहर….. समाज में अपना योगदान करने की भूमिका, …..कई तरह की वर्जनाओं और मनाही के बाद भी…. ऐसे में यह सफलता अत्यंत महत्वपूर्ण है….।” कवि ने समझाया और एक कविता लिखने लगे: - 

श्री राम,अर्जुन और एकलव्य के देश में

सर्वश्रेष्ठ लक्ष्यभेदक धनुर्धरों की

 लंबी परंपरा रही है।

अपने एयर पिस्टल से

10 मी शूटिंग इवेंट में

ओलंपिक कांस्य जीतकर

रच दिया है इतिहास

 भारत की पहली शूटर बेटी मनु भाकर ने,

और हजारों वर्ष के इतिहास में

एक और नारी ने

यह सिद्ध कर दिया है

कि नारियों में भी

क्षमता है पुरुषों के लिए ही निर्धारित

क्षेत्रों में

सफलता की इबारत लिखकर

दस्तक देने की,

पर थोड़ा फर्क है।

“तुम यह नहीं कर सकती” 

“तुम कैसे करोगी?”

“तुम लड़की हो”

“यह तुम्हारे बस का नहीं है”

जैसे अभी भी कहीं - कहीं गूंजने वाले

ऐसे जुमलों के देश में,

एक स्त्री को

सफलता का लक्ष्य भेदन करने के लिए

हवा की असामान्य गति,

प्रकाश से परिवर्तित होती दृश्यता

जैसी बाधाओं से बढ़कर

अनेक बंदिशें, वर्जनाओं और

पग - पग पर

नारी देह को स्कैन करती

अनेक बेशर्म निगाहें जैसी

बाधाओं को पार कर 

अपनी पिस्तौल लेकर

कड़े संघर्षों के बाद

पहुंचना होता है 

किसी ओलंपिक इवेंट में,

अपने देश का तिरंगा लहराने।

(पूर्व संबद्ध मौलिक आलेख)

शाबाश निखत

शाबाश निखत!

           वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में भारत की युवा बॉक्सर निखत जरीन 52 किलोग्राम प्राइवेट कैटेगरी में थाईलैंड की जुटेमास जितपोंग को 5-0 से हराकर वर्ल्ड चैंपियन बन गई हैं। विश्व चैंपियन बनने वाली देश की पांचवीं महिला बॉक्सर।शाबाश निखत।

       ऐसे समाचार ने फिर अरबों भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊंचा कर दिया। एक ऐसे देश में जहां तमाम प्रगति की कोशिशों के बाद भी और अनेक उल्लेखनीय सफलताओं के बाद भी महिलाएं सार्वजनिक जीवन में अपना प्रभावी स्थान बनाने के लिए अभी भी संघर्षरत हैं।जहां उन्हें अभी भी सार्वजनिक जीवन में सहभागिता के लिए पुरुष प्रधान समाज की अनुमति की आवश्यकता होती है।ऐसे में इस तरह की बड़ी सफलता एक नया मानक स्थापित करती है।एक-दो अपवादों को छोड़ दिया जाए तो महिलाओं को अभी भी अपने मनमाफिक विषय की पढ़ाई से लेकर नौकरी या व्यापार के क्षेत्र में जाने और आगे अपनी इच्छा अनुसार जीवन बिताने को लेकर निर्बाध एवं स्वतंत्र वातावरण नहीं मिल पाता है।ऐसे में निखत की सफलता एक नई उम्मीद जगाती है।

           समाज बदल रहा है।महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ रही है लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई है कि अभी भी समाज का वातावरण पूर्णत: अनुकूल नहीं हुआ है कि महिलाओं की समय-असमय यात्रा,दूसरे शहरों में अकेले रहकर पढ़ाई या जॉब करने और …..     इतनी दूर क्यों जाएं….… अपने ही गांव या शहर में देर रात्रि को घर लौटती लड़कियों और महिलाओं को अनेक असुविधाओं व प्रश्न चिन्हों का सामना न करना पड़ता हो।

      महिलाओं में अपार प्रतिभा है।वे स्वयं शक्तिरूपा हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में सफलता अर्जित करने वाली नारी शक्ति के कुछ नामों पर अगर हम गौर करें तो पाएंगे कि उपलब्धियों का ऐसा कोई भी कोना नहीं है जहां नारियों ने विशेष स्थान हासिल न किया हो। उदाहरण के लिए सम्मानीया इंदिरा गांधी,प्रतिभा पाटिल,सुषमा स्वराज, महादेवी वर्मा,कल्पना चावला,किरण बेदी,कृष्णा सोबती,लता मंगेशकर,एमएस सुब्बलक्ष्मी,जयललिता,मायावती,ममता बैनर्जी,गुंजन सक्सेना,जोया अग्रवाल,अवनि चतुर्वेदी, पीटी उषा,मिताली राज,कर्णम मल्लेश्वरी से लेकर 

बॉक्सर निखत जरीन तक……और यह यात्रा अभी भी जारी है। छत्तीसगढ़ की महिला आईपीएस अधिकारी सुश्री अंकिता शर्मा नवगठित खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले की विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी के रूप में कार्य कर रही हैं और वे संभवत: जिले की पहली पुलिस अधीक्षक भी होंगी।

     कुल मिलाकर ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है जहां महिलाएं अपना योगदान देने में सक्षम न हों। एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचने वाली बचेंद्री पाल हों यह तारिणी नौका से विश्व भ्रमण करने वाली संपूर्ण महिला नाविक दल की सदस्याएं हों, या फिर दुनिया के सबसे लंबे हवाई मार्गों में से एक उत्तरी ध्रुव के ऊपर से सैन फ्रांसिस्को से बेंगलुरु उड़ान भरने वाली महिला पायलट जोया अग्रवाल हों….. हर कहीं महिलाओं ने अपनी कर्तव्यनिष्ठा,परिश्रम,धैर्य और लगन से बार-बार इस मिथक को तोड़ा है कि महिलाएं आखिर क्या कर सकती हैं? महिला सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ते हुए एक ऐसा भी दिन आएगा जब इस तरह के प्रश्न पूछा जाना भी निरर्थक होकर रहेगा।सैल्यूट निखत!

(चित्र गूगल इंटरनेट से साभार) 

डॉ.योगेंद्र