मन में आशा के दीप जलाए रखना Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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मन में आशा के दीप जलाए रखना


दीपावली यानी दीपों का त्यौहार। घरों में साफ-सफाई और रंगाई- पोताई के बाद चमकते घर आंगन, तोरण और बंदनवार से सजे द्वार, विविध रंगों से बनाई जाती रंगोलियां,धन की देवी लक्ष्मी जी के स्वागत और उनकी अगवानी को तैयार हैं।बाजारों में भीड़भाड़ और चहल-पहल है। दुकानें सजी हैं और बिजली के रंगीन बल्ब,झालरों की लड़ी,आकाशदीप और मिट्टी के दीए तथा अन्य वस्तुओं से बाजार में चकाचौंध है। पटाखे की दुकानों में भीड़ है। मिठाई खाने-पीने की चीजें और कई तरह के फल बिक रहे हैं। घरों में स्वादिष्ट पकवान बन रहे हैं।ऐसे हंसी - खुशी, उल्लास और उमंग के वातावरण में पूरे देश में दीवाली है। नासा के सेटेलाइट चित्र में देश के हर कोने में दिखाई दे रही चमक यही बताती है कि दीवाली का जोरदार उत्सव शुरू हो गया है। रात अंधेरी है,लंबी है, लेकिन इसका एक न एक दिन अंत होता ही है,फिर आज अंधेरे की परवाह किसे है?हर तरफ रोशनी और उल्लास बिखरा है।अमावस के गहन अंधकार वाली रात्रि में जलते असंख्य दीपक उसे चुनौती दे रहे हैं कि अगर इस जग में अस्तित्व है तो वह है केवल प्रकाश का,उत्साह का, उमंग का। जब एक साथ असंख्य दीप जल उठते हैं तो सारे जग का अंधेरा क्षण भर में परास्त हो जाता है। प्रकाश का अर्थ ही है- अंधेरे का अभाव। जब लंका विजय के बाद प्रभु राम अयोध्या लौटे थे,तो अयोध्या का हर घर दीपों से जगमग हो उठा था। विजय के वे दीप हमें आज भी अन्याय और बुराई से संघर्ष में जीत की प्रेरणा देते हैं। आज दीवाली है और चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश है।कभी जीवन के घोर अंधेरे में भी अगर हम मन में आशा और उत्साह का एक दीप जलाए रखेंगे तो हम पाएंगे कि यही एक दीप हजारों मील तक पसरे अंधेरे के साम्राज्य पर भारी है। दीपावली पर कुछ मौलिक पंक्तियां प्रस्तुत हैं:- जब रात अंधेरी व गहरी हो, पग-पग पे पसरा सन्नाटा हो। मन में निराशा की छाया हो, दुख और पीड़ा में काया हो।। अंधेरे को तुम बढ़ने ना देना, आशा के दीप जलाए रखना।।दीप मालिकाओं की है पांतें जगमग रंगीन हो गई हैं रातें।इक गीत खुशहाली का गाते

लक्ष्मी जी की सौगात लाते।।अंधेरे को तुम बढ़ने ना देना, आशा के दीप जलाए रखना। अंधकार का चले न जोर पटाखों का बढ़ता है शोर। उजियारा फैला चहुं ओर बांधे सबको प्रेम की डोर।। अंधेरे को तुम बढ़ने ना देना, आशा के दीप जलाए रखना।के साथ-साथ हम यह भी देखें कि हमारे आसपास के सभी लोग दीपावली मना रहे हैं कि नहीं। समाज में रहते हुए यह देखना अति महत्वपूर्ण है कि जरूरतमंदों को अगर दो वक्त की रोटी नहीं मिल रही है और उन्हीं के बगल में दीपावली का बड़ा उत्सव हो रहा है, तो नैतिकता की दृष्टि से यह उचित नहीं है। भारतीय संस्कृति की खुशियां मिल बांटने में है। भारतीय संस्कृति




वसुधैव कुटुंबकम का संदेश देती है। प्रत्येक दीपक की रोशनी भी यही संदेश देती है कि मनुष्य का जीवन इस जग को प्रकाशित करने के लिए है।

सभी पाठकों को दीपावली,गोवर्धन पूजा और भाई दूज की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं।डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय