सर्च ऑपरेशन Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सर्च ऑपरेशन

कहानी:सर्च ऑपरेशन

(1)

हमारी कहानी के नायक कैप्टन अजय हैं ।जैसा हर आर्मी वाले के परिवार में होता है। जब भी आर्मी की यूनिट की ओर से कोई व्यक्ति अनायास मिलने आता है ,तो मन में अनेक तरह की आशंकाएं घर कर जाती हैं। ऐसा ही इस शाम कैप्टन अजय के साथ भी हुआ। संदेशवाहक के हाथ से लिफ़ाफ़ा लेने के बाद जब कैप्टन अजय ने उसे पढ़ा तो वे चौंक उठे। अभी उनकी लंबी छुट्टी का एक तिहाई समय भी नहीं बीता था कि फिर से ड्यूटी पर लौटने का हुक़्म मिला है।कैप्टन अजय ही क्या, हर फौजी इसके लिए तैयार होता है क्योंकि वह जानता है कि उसकी ड्यूटी है ही ऐसी।

जब अजय लिफाफा लेकर अपनी पत्नी पूजा को यह बताने के लिए रसोई घर में गए तो वह बड़ी तन्मयता से भोजन बना रही थी।

"पूजा ओ पूजा….." सामान्य होने की कोशिश करते हुए कैप्टन ने आवाज दी,लेकिन उनकी आवाज बुझी-बुझी सी थी और इसे पूजा ने तुरंत महसूस कर लिया था।

"जी कहिए" पूजा का जवाब आया लेकिन जब वह पलट कर देखी तो कैप्टन के हाथ में लिफ़ाफ़ा देख कर ही समझ गई। अब इसके आगे के लगभग 20 मिनट तक वे दोनों मौन ही रहे। पूजा अपना काम करती रही और कैप्टन अजय उसे पूरे मनोयोग से रसोई में काम करता हुआ देखते रहे। कभी उसका रोटियां बेलना और किसी मशीन की तरह तवे पर रोटियों को रखना और फिर फुर्ती से तवे को एक तरफ रख कर आग में रोटियां सेंकना।फिर गरमा-गरम रोटियों को प्लेट में रखना। बीच में उसने इशारे से ही पूछा- आप तो रोटियां बनते-बनते ही बीच तवे से उठा लिया करते हैं, क्या अभी खाएंगे?

मुस्कुराते हुए अजय कहते हैं- अभी नहीं।

बगल के बर्नर पर रखी कड़ाही में कैप्टन अजय की पसंदीदा करेले की सब्जी बन रही है।हाथ में करछुल लेकर कैप्टन अजय सब्जी को अच्छी तरह से सेंकने लगे।

इस बार पूजा ने उन्हें काम करने से मना नहीं किया।प्रायः वह कैप्टन को कोई काम करने से रोक दिया करती है पर कैप्टन साहब हैं कि मानते ही नहीं है और कहीं न कहीं पूजा के कामों में हाथ बंटाने की कोशिश करते हैं।

पूजा 22 वर्षीया युवती।कैप्टन अजय 24 वर्ष के सेना के होनहार और बहादुर ऑफिसर।अभी उनके विवाह को एक वर्ष भी नहीं हुए हैं। उच्च शिक्षित पूजा के साथ जब अजय के रिश्ते की बात चली तो अजय के घर वालों ने कहा था-पूजा जो जॉब कर रही है,उसे वह आगे जारी रख सकती है। हमें कोई आपत्ति नहीं है।

जब पूजा से उसकी इच्छा पूछी गई तो उसने कहा कि मैं जॉब के बदले अजय जी की घर गृहस्थी को संभालने को प्राथमिकता दूंगी। कारण केवल यह है कि उनका जॉब अलग तरह का है। अब उन्हीं का घर आना जाना अनिश्चित सा रहेगा और ऐसे में मैं भी अगर घर से बाहर रहूंगी तो फिर घर को कौन संभालेगा? इस प्रश्न के आगे सब निरुत्तर हो गए थे लेकिन पूजा ने ही आगे कहा था कि अगर परिवार को जरूरत पड़ेगी तो मैं घर की ज़िम्मेदारी उठाने में अजय जी की मदद करूंगी। अजय जी एक तरफ जॉब में रहेंगे, दूसरी तरफ मैं भी घर और नौकरी दोनों में संतुलन साध लूंगी।

जब शादी के बाद पहली बार पूजा ने घर गृहस्थी संभाली तो अजय के माता-पिता को उम्मीद नहीं थी कि वह इतनी जल्दी नए परिवेश में ढल जाएगी। एक ओर वह जॉब व सिविल सर्विस की तैयारी में व्यस्त थी और विवाह होते ही उसने एक झटके में सब कुछ छोड़ दिया।हाँ, हमारी कहानी की नायिका का शौक पढ़ने लिखने में था ही इसलिए उसने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी। जब पूजा अपने पिता का घर हमेशा के लिए छोड़ कर अजय के घर पहुंची,तो उसके सामान में तीन सूटकेस तो पुस्तकों के ही थे। घर का सारा कामकाज निबटाने के बाद वह रात को एक से दो घंटे अपनी पढ़ाई में लगाती थी।पढ़ने का उसे जुनून था। पूजा के संभावित सुनहरे कैरियर को एकाएक विराम देने के लिए अजय स्वयं को कहीं न कहीं दोषी मानता था। उधर पूजा थी कि गृहस्थी में पूरी तरह रम गई थी।एक महीने के भीतर ही उसने अपने सास-ससुर का हृदय जीत लिया था।

जब कैप्टन अजय का उधमपुर तबादला हुआ,तो घर के लोग चौंक गए थे। कैप्टन अजय ने अपने मम्मी और पापा से साथ चलने की ज़िद की लेकिन उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि बेटा अब तुम्हारी नौकरी में तुम्हारे साथ-साथ कहां-कहां घूमेंगे।छत्तीसगढ़ मेरी जन्मभूमि है।सारी जिंदगी मैंने भिलाई स्टील प्लांट में नौकरी करते हुए गुजारी है और अब भले ही मैंने वी.आर. ले लिया है लेकिन मैं अब यहीं रम गया हूं।तुम बहू को ले जाओ। हम लोग बीच-बीच में तुम लोगों के पास आते रहेंगे।

पिता के ऐसा निर्णय सुना देने के बाद मम्मी के उनके साथ जाने का प्रश्न ही नहीं था।

हमारी कहानी की नायिका पूजा अपनी नई शुरु हुई कच्ची गृहस्थी के प्रशिक्षण के अनुभव को साथ लेकर दो दिनों बाद की फ्लाइट से पति के साथ रायपुर से दिल्ली पहुंची और फिर दिल्ली से जम्मू की फ्लाइट के बाद कार से होती हुई उधमपुर। पति ने तो पहले ही कह रखा था कि मेरा एक कदम एक शहर में होगा तो दूसरा कदम न जाने किस यूनिट में होगा, इसलिए तुम हमेशा लगेज रेडी रखना । तो इस तरह पूजा अपने पति के साथ उधमपुर आ गई और अजय की पिछली होमटाउन पोस्टिंग के विपरीत यह आर्मी की ऐसी यूनिट थी,जो न सिर्फ बड़ी थी बल्कि बॉर्डर के संवेदनशील एरिया में थी।पूजा थोड़े ही दिनों में यहां कैप्टन साहब के खतरनाक मिशनों पर जाने के दौरान कई-कई दिनों तक अकेली रहने की भी अभ्यस्त हो गई थी।

"चलिए कैप्टन साहब, खाना बन गया है।चलें डाइनिंग टेबल पर…."

पूजा की आवाज से कैप्टन अजय की तंद्रा टूटी।

आज भोजन में भी कैप्टन की रवानगी के संदेश का बोझिल प्रभाव दृष्टिगोचर था। दोनों ने अनमने ढंग से खाना खाया और अब सामान की पैकिंग होने लगी क्योंकि आर्मी वाले सुबह 5:00 बजे आकर कैप्टन को पिकअप करने वाले थे।

(2)

"आप जा रहे हैं ।मुझे अजीब सा लग रहा है।आखिर जीवन में ऐसे मोड़ क्यों आते हैं कैप्टन साहब?" अपने पति कैप्टन अजय का सामान पैक करती हुई पूजा ने पूछा।

अपने हाथ में मिले आर्मी के मूवमेंट आर्डर को निहारते हुए जैसे अपना कलेजा मुंह पर लाते हुए कैप्टन अजय ने कहा-"हां पूजा। यह वास्तविकता है और मैं तुम्हारी पीड़ा समझ सकता हूं ।यह कागज का टुकड़ा न सिर्फ मुझे मिला आर्डर है बल्कि यह मेरा नैतिक कर्तव्य भी है। इसलिए मुझे जाना ही होगा।"

-मैं भी आपकी मजबूरी समझ सकती हूं कि जब आपकी छुट्टियों को कैंसल कर आप को वापस बुलाया जा रहा है, तो जरूर कोई बहुत बड़ी बात होगी। देश के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए आप जा रहे हैं। यह तो मेरे लिए गर्व की बात है।

- मुझे माफ कर दो पूजा। मैं छुट्टियों में भी तुमको समय नहीं दे पाया।

-कोई बात नहीं।आर्मी की ड्यूटी में यह सब चलता है और फिर आप जा भी रहे हैं तो एक महत्वपूर्ण मिशन पर। अजय के सूटकेस को बंद कर एक ओर रखते हुए पूजा ने कहा।

अब पूजा ने पीतल की बनी हुई हनुमान जी की छोटी मूर्ति अजय के हाथ में थमाई।मूर्ति को दोनों हाथों से अपने मस्तक पर स्पर्श कराते हुए अजय ने उसे जेब में रख लिया।

पूजा के उदास चेहरे की ओर देखते हुए अजय ने कहा:-

-अरे यार! अब इसी तरह से मुझे रोनी सूरत में विदा करोगी तो मैं वहां कैसे खुश रह पाऊंगा ?.....और मुझे तो वहां जाकर देश के दुश्मनों से जूझना है।

चेहरे पर मुस्कुराहट लाने का प्रयास करती हुई पूजा ने कहा:- नहीं कैप्टन जी मैं आपको हँसकर ही विदा करूंगी। अभी तो आपकी विदाई में कई घंटे शेष हैं और यह पूरी रात बाकी है। यह कहती हुई पूजा ने कैप्टन अजय के कंधे पर अपना सिर रख दिया।

(3)

सुख और दुख का सिद्धांत भी अजीब है।दोनों ही स्थितियों में यह भ्रम होता है कि समय जल्दी बीत रहा है।जब अपना कोई प्रिय व्यक्ति दूर जा रहा होता है तो ऐसा लगता है कि समय बहुत जल्दी बीत रहा है।काश समय बिताने को कुछ पल और मिल जाते।जब अपना कोई पास आ रहा होता है,तो लगता है समय जल्दी बीत रहा है,फिर भी आगंतुक अभी तक पहुंचा क्यों नहीं। वास्तव में समय तो अपनी गति से दौड़ता है। यह मनुष्य ही है कि वह अपनी सुविधानुसार उसे मोड़ने की कोशिश करता है और असफल रहता है ।अजय और पूजा के जीवन की यह एक उनींदी रात थी। दोनों की आंखों से नींद कोसों दूर थी।दोनों एक दूसरे का हाथ थामे बैठे रहे।

कैप्टन अजय पूजा को ढाढ़स बंधाते रहे:-

अरे यार तुम इतनी सीरियस क्यों हो गई हो?तुम तो मुझे इस तरह से विदा कर रही हो जैसे मैं इस दुनिया से विदा हो रहा हूं।

अजय के मुंह पर हाथ रखते हुए पूजा ने कहा- अरे शुभ,शुभ बोलिए कैप्टन साहब।ये कैसी बातें मुंह से निकाल रहे हैं।

मुस्कुराते हुए अजय ने कहा-तो प्रिये, अभी जब तक हम लोग साथ हैं, तब तक तो मुस्कुराते रहें, हंसते रहें और क्या आज की रात तुम मेरा गाना नहीं सुनोगी?

पूजा की बड़ी-बड़ी आंखों से आंसू की दो बूंदे झलक उठने को थीं।उन्हें अपने दुपट्टे से पोंछते हुए पूजा ने कहा- क्यों नहीं?मैं अभी लाई आपका ब्लूटूथ माइक।

कैप्टन अजय ने फोन से ब्लूटूथ माइक कनेक्ट किया। कैप्टन अजय यूट्यूब पर मशहूर, किसी शायर की एक पसंदीदा ग़ज़ल स्क्रीन रीडिंग से गाने लगे और पूजा मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनती रही:-

तू मेरी ज़िन्दगी है, तू मेरी हर खुशी है...

तू ही प्यार, तू ही चाहत तू ही बंदगी है...

जब तक न देखूं तुझे सूरज न निकले...

जुल्फों के साये-साये महताब उभरे ...

तू ही दिल का होश साथी तू ही बेखुदी है...

छोड़ के दुनिया तुझको अपना बना लूँ...

सब से छुपा के तुझको दिल में बसा लूँ...

तू ही मेरी पहली ख़्वाहिश तू ही आखरी है…..

(3)

सेना का सर्च ऑपरेशन शुरू हुए 36 घंटे हो गए थे और आतंकवादियों का पता नहीं लग रहा था। कैप्टन अजय इसी दस्ते के साथ थे।सेना ने पूरे इलाके को खाली करा लिया था।स्थानीय लोगों ने अपने-अपने घर खाली कर दिए थे।केवल मुट्ठी भर विघ्न संतोषी तत्वों ने सेना के ऑपरेशन को बाधित करने की कोशिश की और उन पर पथराव किया।सेना के इस अभियान का नेतृत्व मेजर जावेद कर रहे थे और स्टेट पुलिस के आला अफसर भी उनके संपर्क में थे। खुफिया एजेंसियों से मिले सटीक इनपुट पर पुलिस और सेना ने संयुक्त रूप से घेराबंदी की थी ताकि उस आतंकवादी राका को या तो जिंदा पकड़ लिया जाए या मार गिराया जाए।

स्टेट में पिछले तीन सालों में हुए सभी बड़े आतंकवादी हमलों का मास्टरमाइंड राका ही था।उसे सीमा पार से अपने आकाओं से पर्याप्त प्रशिक्षण और दिशा निर्देश मिलते रहता था।उसका भाग्य प्रबल था, इसलिए सेना की घेराबंदी से वह हर बार बच निकलता था, लेकिन इस बार उस पर शिकंजा कस दिया गया था।हालांकि सर्च ऑपरेशन अभी तक सफल नहीं हो पाया था। उसके चार साथी इसी सर्च अभियान के एनकाउंटर में मारे गए थे लेकिन वह स्वयं अभी तक गिरफ्त से बाहर था।

मेजर जावेद ने स्टेट पुलिस के आईजी एंटी टेररिस्ट ऑपरेशन को फोन लगाया:-

क्या आप लोगों की सूचना पक्की है? हमने इस घनी बस्ती के हर घर की तलाशी ली है।

- हां हां सूचना एकदम पक्की है।

- लगता तो हमें भी यही है।चार आतंकवादियों को मार गिराने के बाद हम राका के भी यहीं छिपे होने की उम्मीद कर रहे थे लेकिन हमने हर एंगल से देखा। वह यहां नहीं दिख रहा है।

- क्या आप लोगों ने घर में बने हुए तहखानों की भी तलाशी ली?

-हाँ बिल्कुल, यहां तक कि एक दो जगह भूमिगत सुरंगें भी मिलीं लेकिन राका वहाँ भी नहीं मिला। न जाने वह चूहे की तरह किस बिल में गायब हो गया है?

आईजी पुलिस के जोर देने पर सेना ने अपना अभियान कुछ घंटे तक और चलाया लेकिन जब कुछ हाथ नहीं लगा तो अंत में अभियान को रोक देने के बारे में गंभीरता से विचार होने लगा।

मेजर जावेद हाथ आए इस मौके को जाने नहीं देना चाहते थे लेकिन अभी अभियान शुरू हुए 44 घंटे हो चुके थे।अब उन्होंने एक अंतिम प्रयास करने का निर्णय लिया।

सेना के बख्तरबंद वाहन के पास आनन-फानन में जवान इकट्ठा हुए। मेजर जावेद ने कहा:- इंटेलिजेंस इनपुट कभी गलत नहीं होता इसलिए मुझे अभी भी यकीन है कि राका यहीं कहीं छिपा हुआ है मुझे सेना में ऊपर से आदेश मिल रहे हैं कि अब यह अभियान रोक देना चाहिए लेकिन मैं एक और अंतिम प्रयास करना चाहता हूं।क्या आप लोग तैयार हैं?

वहां विशेष कमांडो दस्ते के अलग से चुने गए सभी जवानों ने चिल्लाकर कहा-

-यस सर, हम तैयार हैं।

वैसे इस अभियान को सपोर्ट करने के लिए आर्मी का एक बड़ा दल भी वहां मौजूद था और स्टेट पुलिस के भी जवान थे। फिर भी कमांडो कार्रवाई विशेष प्रशिक्षित दस्ते को ही करनी थी।मेजर जावेद और कैप्टन अजय दोनों के भीतर उस मकान में फिर से जाने का निर्णय हुआ,जहां चारों आतंकवादी एनकाउंटर में मारे गए थे। दोनों ने अपने हथियारों के साथ-साथ पर्याप्त मात्रा में विस्फोटक भी रखे,ताकि आवश्यकता पड़ने पर किसी दीवार को उड़ाया जा सके।बड़ी सावधानी से सेना के दोनों बहादुर ऑफिसर उस मकान के भीतर चौकन्ने होकर घुसे।

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मेजर जावेद का का शक सही था।वे और कैप्टन अजय उस मकान में लगभग रेंगते हुए भीतर दाखिल हुए। वे कमरे के एक कोने में बने हुए तहखाने के पास पहुंचे और वहां उन्हें अंदर से थोड़ी हलचल दिखाई दी। दोनों ने अपनी पोजीशन ले ली।अभी वे राइफल नीची कर अंधाधुंध फायरिंग शुरू करने ही वाले थे कि अचानक कैप्टन अजय का ध्यान कमरे के एक कोने में नजर आने वाली एक धुंधली आकृति की ओर गया। अजय जोर से चिल्लाए- सर,वहां टेरेरिस्ट...।

इससे पहले कि अपनी राइफल का मुंह उस आतंकवादी की ओर घुमा कर अजय फायर कर पाते ,पहले से ही पोजिशन ले चुके उस आतंकी ने इन दोनों पर गोली चला दी। कैप्टन अजय,मेजर जावेद के सामने आ गए और गोली उनके हेलमेट और बुलेट प्रूफ जैकेट के बीच में गर्दन में जाकर लगी। वे जमीन पर गिर पड़े। मेजर जावेद ने उछलकर कमरे से बाहर छलांग लगाई और दो सेकंड में दोबारा पोज़िशन लेकर एक हथगोला आतंकवादी की दिशा में फेंका। लेकिन तब तक कमरे में गाढ़ा धुआं फैल गया था।संभवतः उस आतंकवादी ने अमोनियम नाइट्रेट से बने किसी बम का विस्फोट आर्मी की आंख में धूल झोंकने के लिए किया हो।मेजर जावेद के फेंके बम से कमरे में ज़ोरदार धमाका हुआ। इन दोनों पर हमला करने वाला आतंकवादी मारा जा चुका था। कैप्टन अजय जमीन पर पड़े तड़प रहे थे। वहां उन्होंने दीवार के पास एक रहस्यमय गतिविधि देखी और उन्हें एक दूसरे आतंकवादी की भी छवि दिखाई दी। उन्होंने अंतिम सांसें लेने के पहले बड़ी मुश्किल से अपनी पॉकेट डायरी में पेन से लिखा-

राका फिर बच निकला है…. वे इसके बाद भी आगे कुछ और लिखना चाहते थे लेकिन पूरा नहीं कर सके। बस उन्होंने एक छोटा सा डायग्राम बनाने की कोशिश की,जिसमें दो-तीन दीवार जैसी आकृति और एक स्टार बना हुआ दिखाई दे रहा था।मेजर जावेद को कमरे में गहरा धुंआ भरने के बाद मन मारकर पीछे लौटना पड़ा था और वे बहादुर कैप्टन अजय को बचा नहीं सके। पहले तो आर्मी ने यही समझा कि मारा गया आतंकवादी राका है लेकिन कैप्टन अजय की पॉकेट डायरी से यह रहस्य खुला कि राका फिर बच निकला है।

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जब तिरंगे में लिपटे हुए कैप्टन अजय के पार्थिव शरीर को घर में लाया गया तो माहौल एकदम गमगीन हो उठा।आर्मी का मानो पूरा रेजिडेंशियल एरिया सुबक रहा था। पूजा की तो मानो दुनिया ही उजड़ गई थी।कैप्टन अजय उसे छोड़कर बहुत दूर जा चुके थे। बटालियन के मुख्य ग्राउंड में उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया था। "कैप्टन अजय अमर रहे" और "जब तक सूरज चांद रहेगा, अजय तेरा नाम रहेगा" के गगनभेदी नारे गूंज रहे थे। कैप्टन के साथी फूट-फूट कर रो रहे थे। आश्चर्यजनक ढंग से पूजा ने अपने को थोड़ी देर में संयत कर लिया था। जब ताबूत में से काष्ठ आवरण हटाया गया और कैप्टन अजय का चेहरा दिखाई दिया तो पूजा ने एक जोरदार सलामी दी। उसने चिल्लाकर कहा-

-आई लव यू अजय,मुझे तुम पर गर्व है। मैं रोऊंगी नहीं। अजय,मैं रोकर तुम्हारी शहादत का अपमान...तुम्हारे जज़्बे का अपमान नहीं होने दूंगी।........आप सब भी मत रोइए। मैं भी अजय जी की तरह आर्मी में आऊंगी। देश की सेवा करूंगी और राका जैसे आतंकवादी को मार गिराऊँगी।

(6)

दो साल बाद लोगों ने टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज़ और उसके बाद समाचार की डिटेल देखी ….

" सुप्रीम कोर्ट द्वारा आर्मी की महिलाओं को एनकाउंटर और सर्च अभियान में शामिल होने की छूट देने के बाद एक बड़ी कामयाबी…... लेफ्टिनेंट पूजा ने बड़ी बहादुरी से कुख्यात आतंकवादी राका को दो दीवारों के बीच बमुश्किल कुछ इंच चौड़ाई के बने हुए छिपने के स्थान में ढूंढ कर मार गिराया…. और इसमें उन्हें कामयाबी मिली…. अपने ही शहीद पति की पॉकेट डायरी में खींचे हुए उस डायग्राम से….जिसमें दो दीवारों के अबूझ से चित्र को केवल लेफ्टिनेंट पूजा ने ही समझा था और आर्मी को इस सर्च ऑपरेशन के लिए फिर से तैयार किया था……"

( यह एक काल्पनिक कथा है। इसमें वर्णित स्थान, नाम,पद, घटना, धर्म, संस्था, नीति, निर्णय आदि सभी विवरण काल्पनिक हैं और अगर किसी से कोई समानता हो तो वह केवल संयोग मात्र है।)

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योगेंद्र ©