दीपोत्सव Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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दीपोत्सव

प्रभु श्री राम,सीता जी और लक्ष्मण जी अपने वनवास में आजकल दंडकारण्य के एक पहाड़ी क्षेत्र(वर्तमान छत्तीसगढ़ सीता बेंगरा गुफा,रामगढ़ पहाड़ियां) में हैं। पास की एक पहाड़ी कंदरा में उनका निवास है। लक्ष्मण जी दोपहर से फल और कंदमूल एकत्र करने के लिए पास के वन में गए हैं। श्री राम और सीता जी निकट के एक सरोवर के तट पर बैठे हुए हैं। सांझ ढलने लगी है। सरोवर का जल स्वच्छ पारदर्शी है। सीता जी ने अपने दोनों हाथ सरोवर के पानी में डुबोया और अंजलि में आए पानी को श्री राम को दिखाते हुए कहने लगीं, “देख रहे हैं नरोत्तम! कितना स्वच्छ जल है। इस स्वच्छ जल की तरह मनुष्य का जीवन भी निर्मल होना चाहिए। जैसे आपका जीवन…और जैसे आपकी अनुगामिनी के रूप में मेरा प्रयास होता है कि मेरा जीवन भी ऐसे ही स्वच्छ,सुंदर,निर्मल हो…..।”    श्री राम ने सीता जी की अंजलि से जल की कुछ बूंदों को अपने हाथ में लेते हुए कहा, “हां सीते! जल का मूल गुणधर्म होता है निर्मल, पावन,स्वच्छ और पवित्र होना….। अगर परिस्थितियों के कारण इसमें अशुद्धि आ गई तो भी अगर जल शांत हो तो इसका परिहार हो जाता है और मिट्टी के कण की भांति ही जीवन की विषमताएं भी नीचे तल पर बैठ जाती हैं।”   सरोवर में कमल के फूल मुस्कुरा रहे हैं। लाल और श्वेत कमल। सरोवर में राजहंस और सारस जैसे पक्षी हैं तो मत्स्य क्रीड़ा करते हुए दिखाई दे रहे हैं। “और जलाशय में फैले इन जलकदंबों के बारे में क्या कहेंगे आर्य पुत्र जिन्होंने घास के रूप में इसके एक हिस्से को ढंक लिया है?”सीता जी ने मुस्कुराते हुए पूछा।   “ये इस बात का प्रतीक हैं कि जीवन में कठिनाई और विषमताएं आती रहती हैं, ये हमारे जीवन को आच्छादित भी कर लेती हैं, लेकिन इनसे हमारा निर्मल हृदय प्रदूषित नहीं होता और वह इस सरोवर के जल की तरह ही स्वच्छ रहता है।” श्री राम ने उत्तर दिया।सीता जी ने श्री राम से कहा, “क्या आपको विदित है कि आज एक विशेष दिवस है स्वामी?”“मुस्कुराते हुए श्री राम ने कहा, “हां जानकी! आज कार्तिक अमावस्या है। समुद्र मंथन के अवसर पर आज के दिन ही लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं।”“हे नरश्रेष्ठ!तब तो आज उत्सव और प्रकाश होना चाहिए।आज कार्तिक मास की अमावस्या है और क्षेत्र में गहरा अंधकार फैला हुआ है। क्यों न आज हम विशेष रूप से दीपक जलाएं और अंधेरे के इस साम्राज्य को चुनौती दें?”     “ठीक कहती हो सीते!आओ अपने आवास की ओर चलें।”श्री राम ने कहा और जानकी जी का हाथ पकड़कर वे पहाड़ की कंदरा की ओर लौट चले। धीरे-धीरे रात गहराने लगी।     दूर कंदरा की ओर से लक्ष्मण जी दीपशिखा लेकर आते हुए दिखाई दिए।“अरे आप दोनों कहां रह गए थे भैया- भाभी? मैं कंदरा में आप लोगों की प्रतीक्षा कर रहा था।”     श्री राम ने लक्ष्मण जी से कहा, “बस,पास के सरोवर तट पर ही थे अनुज!आओ! आज अमावस के इस अंधकार को दूर करने के लिए दीप जलाएं। प्रकाश फैलाएं। इस जग से असत्य, अन्याय और हिंसा को जड़ मूल से नष्ट करें।”      थोड़ी ही देर में वह पहाड़ी कंदरा दीप की ज्योति से जगमग हो उठी। सीता जी ने कंदरा के हर हिस्से में दीप रखा।लक्ष्मण जी ने कंदरा के आसपास की पूरी पहाड़ी को दीपों से जगमगा दिया।सीता जी ने कंदरा के एक कोने में देवस्थान बना रखा है।श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण जी देवस्थान के समक्ष करबद्ध खड़े हो गए। सीता जी ने देवस्थान में एक दीप रख दिया और मन ही मन हाथ जोड़कर श्री हरि विष्णु से प्रवास के भावी दिनों को सुखद और सुगम बनाने की प्रार्थना करने लगीं।अंधेरे के विरुद्ध संघर्ष के सबसे बड़े महानायक श्री राम,उनकी धर्मपत्नी सीता जी तथा अनुज लक्ष्मण जी द्वारा जलाए गए दीपों से संपूर्ण रामगढ़ क्षेत्र आलोकित हो उठा।

(श्री राम के दीपोत्सव पर कल्पना और भक्ति के भावों से लिखी गई एक कहानी)

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय