शून्य से शून्य तक - भाग 43 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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शून्य से शून्य तक - भाग 43

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दीना जी उस समय किसी ईवेंट मैनेजर से बात कर रहे थे| बच्चों के आते ही उन्होंने उनसे कहा कि वे बाद में बात करेंगे और उन तीनों को प्यार से अपने पास बैठाया| इस प्रकार कभी वे तीनों उनके पास नहीं आए थे, उन्हें लगा कि ज़रूर कुछ ऐसी बात होगी जो तीनों बहन-भाई साथ में आए हैं| 

“अंकल! आप अभी इतनी शॉपिंग मत करिए| आशिमा बता रही है कि मम्मी ने सब तैयारियाँ कर रखी हैं| आप हर रोज़ इतनी शॉपिंग कर रहे हैं| देख तो लेते हैं कि किस चीज़ की ज़रूरत है, किसकी नहीं---”मनु ने झिझकते हुए उनसे विनती की लेकिन दीना उसकी बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं थे | 

जब दोनों बेटियों ने सारी बातें दीना अंकल को बताईं और कहा कि देख लेते हैँ, कुछ कमी होगी तब और शॉपिंग कर ली जाएगी| तब कहीं बड़ी मुश्किल से उन्होंने बच्चों की इस बात को स्वीकार किया| 

अगले दिन आशिमा, रेशमा के साथ मनु बैंक गया और सारा ज़ेवर लाकर उनके सामने रख दिया| डॉ.सहगल के नाम कई लॉकर्स थे जिनके सभी पेपर्स और चाबियाँ उस लॉकर में थीं जिसमें आशी का नाम भी सम्मिलित था| कमाल ही था!दोनों माँओं के बीच बातें होती रहती थीं, जानते सब थे कि मनु और आशी का संबंध जुड़ जाएगा लेकिन आशी के बड़े होने पर उसकी मानसिक स्थिति से सहगल परिवार वकिफ़ तो था ही, उसके बावज़ूद भी सहगल के बच्चों के साथ उनकी बेटी आशी का नाम लॉकर में सम्मिलित था और किसी को इसकी खबर भी नहीं लगने दी थी| यह सब बैंक जाने पर मनु को पता चला था और उसने दीना अंकल को सारी बातें बताईं थीं| कमाल के थे दोनों पति-पत्नी ! सोनी के बाद अपने बच्चों से ज़्यादा ही ख्याल रखा होगा उन लोगों ने आशी का लेकिन आशी----

दीनानाथ सोच ही रहे थे कि सहगल की कोठी, हॉस्पिटल व अन्य महत्वपूर्ण कागज़ात के बारे में किससे पता चलेगा? आज उन्हें पता चल गया था और वे आश्वस्त हुए थे| शादी का काम हो जाए तो यह सब भी तो मनु को समझाना होगा| न जाने उसके माता-पिता ने उसके लिए क्या क्या सोचकर रखा होगा? 

इतने सारे जेवरों के डिब्बे देखकर दीना आश्चर्य में पड़ गए| उनके मुँह से निकल ही गया;

“इतने सारे ज़ेवर ? ”

“मम्मी ने हम सबके लिए बहुत तैयारी की हुई थी अंकल, आप इन्हें देख लीजिए फिर कुछ शॉपिंग करनी ठीक रहेगी| ”मनु ने दीना अंकल से कहा| 

“अरे लेकिन ---”उनको संकोच हो रहा था| अब उनका कर्तव्य था, सब कुछ करना फिर--? वे सोच में पड़ गए थे| 

“प्लीज़ अंकल, आप एक बार देख तो लीजिए| भाई को तो कुछ पता ही नहीं था, मैंने ही बताया| मम्मी मुझसे सब कुछ शेयर करती थीं बल्कि अधिकतर मेरे साथ ही शॉपिंग करती थीं इसलिए मुझे मालूम था| आप एक बार देख तो लीजिए, अगर आपको कुछ कम लगे तो खरीद लीजिएगा| ”आशिमा ने अंकल से कहा| 

आशिमा, रेशमा ने सब डिब्बे खोलकर उनके सामने रख दिए| कैसे तरतीब से लगाया हुआ था सारा सामान !हरेक डिब्बे में सब बच्चों के नाम की चिटें रखी थीं| तीन बच्चों के नाम के पाँच-पाँच सैट थे जिनमें सोने से लेकर कुंदन, हीरा-मोती, कटककाम, प्लेटीनम---तीनों एक से! डिब्बों में आशिमा, रेशमा, आशी के नाम की पर्चियाँ अंदर बाहर दोनों जगह चिपकाई हुई थीं| लाल, नीले सुंदर शनील के डिब्बों में ये ज़ेवरात चमक रहे थे और किसी का भी ध्यान आकर्षित करने में सक्षम थे| 

“भाभी---”कहकर दीना फूट पड़े| उन डिब्बों को देखकर वे इतनी हिचकियाँ भरकर रोने लगे;इतना तो उन दोनों की मृत्यु पर भी नहीं रोए होंगे| 

“यही है जीवन !”रोते-रोते उनके मुँह से निकला| 

तीनों भाई-बहन पशोपेश में पड़ गए, उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि अंकल को किस प्रकार चुप कराया जाए? उन्होंने बच्चों के सिर पर प्यार से हाथ फिराया और अपने सीने से लगा लिया| वो पहले भी काफ़ी जेवर खरीद चुके थे| सब कुछ बहुत था लेकिन नहीं थे तो बच्चों के माता-पिता ही नहीं थे जिनका फ़र्ज़ उन्हें निबाहना था| उन्होंने माधो को आवाज़ दी, वह तो साए की तरह उनके पास ही रहता था| पल भर में वह सामने था| 

“मैं कमरे में चलता हूँ माधो, तुम ज़रा सारा सामान मेरे कमरे में पहुँचा दो| अपने लॉकर में ही रख लेता हूँ| ”

आशिमा, रेशमा भी उनके आँसु देखकर सहम गईं थीं और रोने लगीं थीं| कमरे से निकलते हुए दीना ने उन सबके सिर पर एक बार फिर हाथ फेरा और कमरे से बाहर निकल आए| मनु भी उनके साथ ही आ गया| इसी पल आशी भी कमरे में पहुँच गई जब वे दीना अंकल के कमरे में से निकल रहे थे| 

“देखिए आशी दीदी, मम्मी ने आपके लिए भी यह सब बनवाकर रखा है| ”रेशमा अभी छोटी थी| उसे इतने सुंदर जेवर देखकर बहुत अच्छा लग रहा था जबकि वह पहले भी देख चुकी थी| 

“बहुत ही सुंदर और क्लासी हैं पर मैं ये सब कहाँ पहनती हूँ? आंटी की पसंद तो लाजवाब थी ही, शी वाज़ ऑलवेज़ सोबर एंड क्लासी !”

“आप पहनकर तो देखिए---”रेशमा ने आशी के सैट को उठाकर उसके गले में नेकलेस पहनाने की कोशिश की | 

“मैं साड़ी तक तो पहनती नहीं फिर---? ”

“आशिमा दीदी की शादी में तो पहनेंगी न ! देखिए तो ज़रा ---”

“तुम पहनना---हम्म---”आशी ने उसके हाथ से नेकलेस लेकर डिब्बे में रख दिया और उसके गाल प्यार से थपथपा दिए| 

“जाओ माधो, सब ठीक से रखवा दो---”वह बाहर निकल गई| पाँचेक मिनट बाद आशी की गाड़ी की आवाज़ सुनाई दी| शायद वह कहीं जा रही थी| सबको मालूम था कि जब भी उसके दिमाग का संतुलन गड़बड़ होता, वह गाड़ी उठाकर बाहर निकल जाती थी| फिर अपने आप शांत होने पर वापिस भी आ जाती| 

दीनानाथ सोच रहे थे कि मिसेज़ सहगल को काफ़ी पहले से यह आभास हो गया था कि आशी का मनु से शादी करने के लिए तैयार होना मुश्किल ही लग रहा था फिर भी उन्होंने अपनी बेटियों की तरह आशी के लिए भी सब कुछ एकसा तैयार करके रखा था!!उनका मन उदास हो रहा था लेकिन बच्चों के सामने उदासी ओढ़ने का मतलब था कि बच्चों को अधिक उदास कर देना| 

माधो के साथ आशिमा, रेशमा ने भी कुछ डिब्बे उठा लिए और दीना अंकल के कमरे की ओर चले आए| दीना अब भी रोए जा रहे थे, उनके आँसु बंद ही नहीं हो रहे थे| बच्चों के आते ही उन्होंने अपने को संभाला| कैसा होता है इंसान का मनोमस्तिष्क ! बीते हुए पल उससे छूटते ही नहीं, उन्होंने एक लंबी साँस भरकर बच्चों के सामने सहज होने की कोशिश की लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथ में कुछ चीज़ें, कुछ संवेदनाएं नहीं रहतीं| 

“अंकल! अगर आप इतने कमज़ोर पड़ेंगे तो हम लोगों का क्या होगा? ”मनु उन्हें समझा रहा था| 

“मनु! तुम्हें कैसे समझाऊँ बेटा, तुम्हारे मम्मी-पापा के जो अहसान मेरे ऊपर हैं उन्हें इस जन्म में तो क्या मैं कभी भी नहीं उतार सकता| आज जो मैं चलने लायक हो सका हूँ वो या तो तुम्हारे पापा के कारण और या इस माधो के कारण और भाभी ने तुम्हारी आँटी के बाद इतनी मुश्किल परिस्थिति में भी कैसे घर को संभाला है, इन सबसे तो मैं कभी उऋण नहीं हो सकता| ”उनकी आँखों से जो आँसु निकलने बंद हो गए थे, वे फिर से झरने से झर झर बहने लगे|