शून्य से शून्य तक - भाग 8 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

शून्य से शून्य तक - भाग 8

8====

माता-पिता के कहने पर कि दीना अंकल के यहाँ चलें, बहनें घर पर ही रहकर एंजॉय करने की बात करतीं और कहतीं –“हम क्या करेंगे, आप लोग जाइए, वहाँ जाकर बोर ही होना–हाँ, मनु भैया को ज़रूर ले जाइएगा| हो सकता है आशी जी का मूड ठीक हो जाए--”वे हँसतीं| ”सब जानते थे कि दोनों माँओं ने आशी का विवाह मनु के साथ करने का स्वप्न बुन रखा था| 

“बेटा! तुम लोग जानते हो वो एक‘साइकिक पेशेंट’हो गई है| कारण भी तुम जानते ही हो| दीनानाथ अंकल तो तुम सबके ही प्यारे हैं न? उनकी हैल्थ भी तो आशी के कारण ही इतनी खराब हुई है| कितना भला इंसान है, यदि हम कुछ कर सकें---और कुछ नहीं तो कुछ देर के लिए उनका अकेलापन ही बाँट सकें तो कुछ गलत है क्या? ” डॉ.सहगल बेटियों से कहते| 

“ठीक है पापा, आप जाइए| हम अपना छुट्टी का दिन बर्बाद करना नहीं चाहते| ”

“वैसे आपको पता है हम लोग कॉलेज से लौटते हुए कभी-कभी उनके पास खुद ही चले जाते हैं| बड़ी बिटिया बोली| 

“हाँ, मुझे मालूम है | दीनानाथ बता देते हैं सब कुछ | बड़े खुश हो जाते हैं वे तुम्हें देखकर | अक्सर बड़ी हसरत से कहते हैं काश! आशी भी कुछ देर मेरे पास आकर बैठ पाती ! ”

अब तो मनु ने भी मम्मी-पापा के साथ दीना अंकल के यहाँ जाने से मना कर दिया था और अब से दोनों बहनों और भाई ने कहीं बाहर जाकर मौज-मस्ती करने की सोच ली थी | डॉक्टर सहगल और उनकी पत्नी अब अकेले ही दोस्त के पास जाने लगे थे | 

सोनी मिसेज़ सहगल की कितनी प्यारी सहेली थीं वह कैसे उनके स्नेह, दुलार को भुला सकती हैं? जब वे शादी के शुरू-शुरू में बंबई आए थे और ठिकाने के लिए परेशान थे तब इसी परिवार ने उन्हें सहारा दिया था| दीनानाथ बहुत बड़े घर के इकलौते बेटे, खूब ठाठ में पले, शाही लालन-पालन लेकिन समय की बलिहारी! कौन सोच सकता था कि दिल्ली में ‘हिटलर’ के नाम से जाना जाने वाला इंसान एक पटक में ही मुँह के बल आ जाएगा? होता यही है अक्सर, इंसान की सोच और कुछ होती है और प्रारब्ध कुछ और होता है| 

अँग्रेज़ों के विरुद्ध विरोध शुरू हो चुका था, कॉंग्रेस की स्थापना हो चुकी थी और जिन अमरनाथ जी के नाम को रायबहादुर के लिए चयनित किया गया था, अचानक उनके मन में देश-प्रेम का स्रोत फूट गया और वे कॉंग्रेस में शामिल हो गए थे| इस कारण उनको रायबहादुर की उपाधि नहीं मिली, ऊपर से उनके सारे व्यवसाय धीरे-धीरे खतम हो गए| केवल अमरनाथ जी का एक नया हीरे का व्यवसाय जो उन्होंने अपने एक पारसी मित्र के साथ किया था लेकिन वह बंबई में था, वह शेष रहा| 

दीनानाथ के माता-पिता ने अपने अंतिम दिनों में बहुत परेशानी देखी और दोनों की मृत्यु कठिन परिस्थितियों में हुई| वे दीनानाथ का विवाह कर चुके थे और दिल्ली में अब उनके लिए कुछ नहीं रह गया था केवल उस व्यवसाय के जो बंबई में था| अत:दीनानाथ के पास अपनी पत्नी सोनी को लेकर बंबई आने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था| उस समय डॉ.की सहायता से दीनानाथ वहाँ ठीक प्रकार सैटिल हो सके| दोनों मित्र से भी अधिक भाई के समान हो गए थे| 

अब बच्चे लोग क्या इस बात की, इस भावना की अहमियत समझ सकेंगे? उनकी अपनी दुनिया है, अपने सपने हैं, और हैं इंद्रधनुषी रंगों से सजे उनके दिवास्वप्न जिनकी तलाश में उनकी आँखें, निरंतर इधर-उधर दायरे तलाशती रहती हैं|