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अनिकेत के माता-पिता को आशिमा बहुत पसंद आई | वह एक समझदार, विवेकशील, शिक्षित लड़की थी जो अपने माता-पिता की अनुपस्थिति में उदास दिखाई दे रही थी| अनिकेत और आशिमा ने भी एक कमरे में बैठकर चर्चा की व एक-दूसरे के विचारों से अवगत हुए| दोनों ने एक-दूसरे को सुलझा हुआ पाया और वह लड़की जो अपने माता-पिता के सामने शादी की बात से बिलकुल भी इत्तिफ़ाक नहीं रखती थी।दीनानाथ अंकल व भाई के चुनाव के सामने कुछ भी न बोली और उनकी इच्छानुसार उसने हाँ कर दी| अनिकेत अच्छा लड़का तो था ही|
दोनों बच्चों की ‘हाँ’ जानकार अनिकेत की मम्मी ने अपने गले से हार निकालकर आशिमा को पहना दिया जो शायद वे इसीलिए अपने गले में डाल लाईं थीं| दीना जी ने आशी से चेन लाने के लिए कहा और एक बड़ी बहन की तरह आशी ने उस कार्यक्रम में भाग लिया| आशी को वहाँ उपस्थित देखकर दीना बहुत प्रसन्न हो गए थे| वह बहुत सहज लग रही थी, कोई नहीं भाँप सका था कि वह क्रोधी और अनर्गल व्यवहार करने वाली लड़की है| बस, कभी-कभी उसका स्वर सपाट सा हो जाता, भावना विहीन जैसे शब्द किसी मानव के मुख से नहीं, मशीन से निकल रहे हों|
अनिकेत और आशिमा का रिश्ता तय होने पर घर भर में रौनक सी बिखर गई जैसे डॉ.सहगल की नहीं, सेठ दीनानाथ जी की बेटी का रिश्ता तय हो गया हो| वे सहगल के तीनों बच्चों को अपने घर ही ले आए थे और उनसे कहा था कि आशिमा की शादी के बाद ही वे अब अपने घर लौट सकेंगे| मन में तो उनकी इच्छा थी कि बच्चों का ऐसा मन लग जाए कि वे सभी यहीं रुक जाएं, वापिस जाने का नाम ही न लें| आखिर वहाँ उनके लिए बैठा ही कौन था? वे एक पिता की तरह बेटी की शादी की तैयारियों में लग चुके थे| रिश्ता तय होने के दो माह बाद शादी का सुंदर मुहूर्त निकला था|
‘केवल दो महीने!’वे सोचते कि बेटी की शादी की तैयारियों के लिए दो महीने तो बहुत कम होते हैँ| उन्हें यह भी तो ख्याल नहीं आ रहा था कि विवाह की तैयारियों में वे क्या-क्या शामिल करें? वे दबादब कपड़े और ज़ेवर खरीदते जा रहे थे|
“भैया! रोकिए अंकल को और घर जाकर सारा सामान उठवा लाइए जो मम्मी ने हम लोगों के लिए तैयार करके रखा है और ज्वेलरी तो सब लॉकर में, उसकी सारी फॉर्मेलिटीज़ पूरी हो चुकी हैं, वहाँ जाकर देख तो लीजिए, मम्मी ने हम सबके लिए सब तैयारी करके रखी तो है| मेरी तो बात सुनते ही नहीं अंकल, हर दिन कभी आशी दीदी के साथ हमें खरीदारी करने भेज देते हैं, कभी खुद लेकर जाते हैं और मैं उनके सामने कुछ बोल नहीं पाती| ”रेशमा ने भाई से कहा|
“क्या मम्मी ने कुछ सामान तैयार करके रखा है? ”मनु को कहाँ मालूम था इन सब चीज़ों का? वैसे भी लड़कों को इन सब चीज़ों में कोई अधिक रुचि तो होती नहीं है |
“हाँ भैया, मम्मी ने मेरे, रेशमा के और आशी दीदी के लिए कितने जेवर बनवाकर रखे हैं| ”
“आशी के लिए? ”मनु चौंककर बोल उठा|
“हाँ, भैया, सब ही तो चाहते थे कि आपकी शादी आशी दीदी से हो जाए| आप भी तो जानते हैं यह---”आशिमा ने कहा|
“ठीक है, इस टॉपिक को बंद करो अभी, चलो अंकल से बात करते हैं| घर में कहाँ रखी है ज्वेलरी? तुमने बताया भी नहीं, गार्ड के अलावा वहाँ कोई नहीं है अगर---”मनु चिंता से घिर गया, आशी को प्रेम करने के बावज़ूद भी उसके साथ ज़िंदगी बिताना कितना मुश्किल था !|
“भैया!घर में थोड़े ही है ज्वेलरी, वो तो लॉकर में है| ”आशिमा ने मनु को समझाते हुए कहा|
“पर अब खुलेगा कैसे लॉकर? मम्मी-पापा—”मनु की आँखें भर आईं|
“भैया!मेरा नाम है लॉकर में, आपकी बैंक की तो सारी फॉर्मेलिटीज़ पूरी हो चुकी हैं। उसी बैंक में है लॉकर| मैं खोल सकती हूँ | आपका और रेशमा का नाम भी एड करवाने की, बल्कि दीना अंकल का नाम भी अगर एड हो सकता हो तो---”बात तो ठीक थी आशिमा की, सब कुछ दीनानाथ जी ही तो कर रहे थे|
“चलो, उन्हें बता तो दें---” मनु ने कहा और तीनों बच्चे अपने दीना अंकल के पास पहुँच गए|