साथी - भाग 4 Pallavi Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथी - भाग 4

भाग -4

        ‘अरे तू ना एकदम बुद्धू है यार, सब इस दारू की गलती है. सुन ध्यान से औ थोड़ा समझने की कोशिश कर ना यार ...मैं ना उनकी वो वाली जरूरत को पूरा कर देता हूँ कहते हुए हँसने लगता है. ‘वो वाली जरूरत मतलब ? कौन सी जरूरत ? ‘अरे यार....! तू अब भी नहीं समझा ? नहीं...! अरे वो, वो वाली जरूरत जो तू मेरी पूरी करता है ना...! जब मुझे या तुझे जरूरत होती है।

       ओह अच्छा....! वो वाली, पर उनके लिये तो उनका पति होगा ना उनके पास ? वो अब भी नशे में झूम रहा है. अरे बुद्धू जब उनका पति उनके पास नही होता है तब..., वह मुझे बुलाती है, पैसा देती है और मैं उनके पति की जगह उनकी वो वाली इच्छाओं को पूरा कर देता हूँ। यह सुनते ही मानो पहले वाले व्यक्ति का सारा नशा उतर जाता है. वह अचानक से इतना सामान्य हो जाता है मानो उसने पी ही नहीं थी. और कहता है तुम्हारा यही सच जानने के लिए मैंने यह नाटक किया था. मैं जनता था कि तुम्हारे मन में चोर है. पर यार तुमने एसा क्यों किया ? क्यों किया मतलब ? मैंने तुम से कहा था ना तुम्हारी सारी जरूरतें में पूरी करूँगा. फिर ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी कि तुम को यह कदम उठाना पड़ा. मैंने कोई मजबूरी में यह कदम नहीं उठाया है. यह तो बस एक मौका था, ज्यादा पैसे कमाने का. तुम ना जाने क्यों इतना हिचकिचा रहे थे. अच्छी जिन्दगी जीने के लिए तो ज्यादा पैसो की ही जरूरत होती है ना...! मेरी जाना. मुझे आज भी याद है वह दिन जो हमने साथ मिलकर सड़क पर बिताये थे. दर-दर की ठोकरें खायी थी. क्या कुछ नहीं किया था तुमने मेरे लिए और हमने भी आज तक कोई कम कोशिशें तो नही करी सीधी सच्ची जिन्दगी जीने के लिए पर हमें क्या मिला, वही एक कमरा जिसमें कोई आ-जाये तो जीवन में कोई (निजता) ही नहीं बचती. यह क्या बात हुई भला और वैसे भी अपने यहाँ आता ही कौन था.दूसरे ने पहले कहा. 

     हाँ जो भी है…! पर मुझे और लोगों की तरह एक अच्छी जिन्दगी चाहिए, हम दोनों के लिए. मैंने खुद देखा है अपनी आँखों से तुम्हें मेहनत करते हुए. लेकिन इतनी मेहनत के बाद भी जब तुम्हें खाली हाथ देखा तो मुझसे रहा नहीं गया. एक दिन मैंने तुम्हारी और उस आदमी की बातें सुनली थी, जो तुम्हें फिल्मों में काम देने की बात कर रहा था. बस मैंने उससे मिलकर सारी बातें जान ली. यूँ भी यार, हम दुनिया के लिए तो मर्द ही है ना...? तो क्या फर्क पड़ता है कौन सा हमें बच्चा पैदा करना है. एक रात की तो बात होती है, रात खत्म, काम खत्म, और काम के साथ साथ बात भी खत्म...! 

क्या बोल रहे हो ....? तुम्हें कुछ होश भी है...?  मैं कभी सोच भी नही सकता था कि तुम पैसों के लिए इस हद तक गिर सकते हो, तुम्हें मेरा ख्याल नहीं आया ?

‘आया था ना, एक बार नहीं काई बार आया था, तभी तो मैंने जो कुछ भी किया हम दोनों के लिए किया’,

      देखो मैं मानता हूँ पैसा बहुत जरूरी होता है जीने के लिए मगर पैसा ही सब कुछ नहीं होता. मैं थोड़े में भी बहुत खुश था क्योंकि तुम मेरे साथ थे, मेरे पास थे, एक जीवनसाथी की तरह और तुमने मेरे प्यार, मेरी वफा का यह सिला दिया...?  तुमने मुझे धोखा दिया... मुझे. .....? मैंने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया. यदि मुझे तुम्हें धोखा देना ही होता तो इतना पैसा कमाने के बाद में तुम्हें कब का छोड़ चुका होता. पर नहीं, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया. बल्कि मैंने तो तुम्हें भी एक अच्छी जिन्दगी जीने का अवसर दिया. आज तक तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया, बहुत समझौते किये, अपने छोटे-छोटे अरमानों तक का गला घोट दिया, ताकि मेरी जरूरत को पूरा कर सको. मैं कोई अंधा नहीं हुँ, मेरी जाना...मुझे भी तुम्हारी उतनी ही परवाह है, जितनी तुम्हें मेरी और तुम इसे धोखे का नाम दे रहे हो ? "मुझे तो आज तक यह ही समझ नहीं आया कि लोग प्यार, वफा, भरोसे जैसे शब्दों का सिर्फ और सिर्फ शरीर से जोड़ कर ही क्यों देखते है....?"  यह तो भावनायें है, जो दिल से निकलती है, दिमाग में पलती है, इनका इस शरीर से क्या सम्बन्ध ? दिल और दिमाग भी शरीर में ही रहते है. इसलिये इनका शरीर से भी वही संबंध है. अरे हमारे पास तो शुरू से ही कुछ नही था सिवाय एक दूसरे के प्रेम के, साथ के, दोस्ती के, यही तो मेरे और तुम्हारे बीच एक प्रकार का धन था ना, तुम एक तरह से मेरे लिए मेरी जायदाद की तरह थे और शायद में भी तुम्हारे लिए ऐसा ही कुछ था नहीं ? फिर तुम मेरी जायदाद मुझ से पूछे बिना, किसी और के साथ कैसे बाट सकते हो....? इसलिए तो मैंने कास्टिंग काउच के लिए मना कर दिया था ना और तुमने वही रास्ता चुन लिया.

‘अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊं’, ‘तुम्हें मुझे कुछ समझाने की जरूरत नहीं है…! मैं सब समझ गया. फिलहाल मैं अब तुम्हारे साथ एक छत के नीचे नहीं रह सकता. इसलिए मैं जा रहा हूँ. पर क्यूँ ? क्योंकि अब जब-जब भी मैं तुम्हें देखूंगा मुझे तुम्हारी बेवफाई ही याद आयेगी. जिसके चलते ना तुम खुश रह सकोगे और ना मैं, इससे अच्छा यही होगा कि मैं यह घर छोड़‌कर चला जाऊं. दूसरा वाला पहले वाले की यह कड़वी बाते सुनकर रो दिया. उसने बहुत कोशिश कि पहले वाले को मना ले, पर वह नहीं मना सका. फिर उसने हाथ जोडकर यह तक कहा कि यदि तुम्हें मुझ से इतनी ही समस्या है तो, मैं यह घर छोड़कर चला जाता हूँ. पर तुम मत जाओ, क्योंकि मैंने जो कुछ भी किया तुम को खुशी देने के लिए ही किया था। ‘गलती मैंने की है सजा भी मुझे ही मिलनी चाहिए ना....? 'नहीं -! जाऊंगा तो मैं ही, तुम रहो अपने इस महल में, जहाँ प्यार की नहीं सिर्फ पैसो की जरूरत होती है. जहाँ किसी के साथ होने के एहसास भर से काम नही चलता. मैं बना लुँगा अपनी एक अलग दुनिया, तुम अपनी बनायी इस दुनिया में खुश रहो'. कहते हुए वह वहाँ से चला गया. दुसरा वाला पहले वाले को अपनी आँखों से बहते हुए आसूंओं के साथ बस उसे जाते हुए देखता रहा, कब एक जान दो जिस्मों में विभाजित हो गयी दोनों को पता ही नहीं चला.

पहले वाले के यू घर छोड़कर चलने जाने के बाद अब दूसरा वाला क्या करेगा, क्या वह जी पाएगा पहले के बिना क्या फिर कोई गलत कदम उठा लेगा जनाने के लिए जुड़े रहे...!

जारी है ....