अब जब दोनों साथ रहने लगे हैं, तब दोनों ही बहुत खुश हैं. लेकिन कहीं ना कहीं दूसरे वाले के चेहरे पर वो पहले वाली खुशी नहीं एक संकोच सा दिखायी देता है जिसे वह बहुत छिपाने की कोशिश भी करता है. लेकिन फिर भी उसके मन के अंदर का यह भाव रह रहकर उसके चेहरे पर आही जाता है. पहले वाले ने कई बार दूसरे वाले से कहा क्या बात है तू कुछ खोया सा रहता है सब ठीक है ना...? हाँ.. हाँ, सब ठीक है. ऐसी तो कोई बात नहीं है. पहले वाला उसका चेहरा देखकर ही समझ चुका था कि कोई तो बात है जो उसके साथी को अंदर ही अंदर खाये जा रही है.
लेकिन फिर भी उसने कभी अपने साथी के उपर दबाव नहीं डाला. सोचा जब भी उसे सही लगेगा वह एक ना एक दिन अपने आप ही बता देगा. ऐसा सोचते हुए वह हमेशा बस मुसकुरा के चुप हो जाया करता. एक दिन शाम के वक्त दोनों एक साथ एक बागीचे में टहल रहे थे. सामने बहुत से युवा समूह में बैठे आपस में हँसी ठिठोली कर रहे थे. जिन्हें देखकर इन दोनों को भी अपने पुराने दिनों की याद आ गयी और यह दोनों उन युवकों को देखकर मुस्कराने लगे. थोड़ी देर तक सब सामान्य ही रहा. फिर थोड़ी देर बाद जब वह युवा वहाँ से चले गए तब पहले ने दूसरे से कहा वह दिन भी क्या दिन थे ना यार... काश वो दिन फिर से लौटकर आ पाते और ज़िन्दगी हमें एक और मौका देती.
हाँ यार...! कहते हुए दूसरा वाला थोड़ा उदास सा हो गया. उसकी आवाज में उसके मन का वो सूनापन कहीं ना कहीं उभर आया था. तभी पहले वाले ने कहा चल यार उसी चाय वाले के पास चलते हैं, जहाँ से हमने अपनी जिंदगी शुरु की थी. कहते हुए दोनों उसी दुकान पर जा पहुंचे. अब वो दुकान पहले से बहुत बड़ी हो चुकी थी. दोनों वहाँ एक कौने में बैठ गए और चाय मंगवायी. चाय का स्वाद अब भी वैसा ही था. तभी वहाँ के बैरे ने आकर पूछा और कुछ लेंगे सर...! पहले वाले ने दूसरे का मूड ठीक करने के लिए पूछा साथ में कुछ लेगा. दूसरे वाले ने चाय पीते-पीते गर्दन उठा के पहले वाले की ओर देखा और उसकी आँखों में देखते ही पहले वाले ने मुसकुरा के कहा, हाँ दो पाओ लाना भईया...और फिर दोनों खिलखिला कर हँसने लगे.
हँसते -हँसते एक बार फिर दूसरा वाला उदास सा हो गया. इस बार पहले वाले ने बिना किसी संकोच के कहा चल अब बहुत हुआ बता क्या बात है... दूसरा वाला यह सुनकर एकदम से सकपका गया. बात.... कौन सी बात...? क्या बात है... कोई बात नहीं है भाई...! अच्छा और कितना झूठ बोलेगा यार, अब बता भी दे. पहले तो यह सुनकर दूसरा वाला बहुत देर तक खामोश रहा. फिर धीरे से बोला यार तुझे कभी ऐसा महसूस नहीं होता कि अपने भी बच्चे होने चाहिए थे. अपनी ज़िन्दगी भी आम लोगों जैसी होनी चाहिए थी. नहीं यार, मुझे तो कभी ऐसा कुछ नहीं लगा.
तुझे लगा क्या...? इसका मतलब मेरे ही प्यार में कोई कमी रही होगी शायद, 'नहीं यार वो बात नहीं है'. पर नव युवकों को देखकर लगता है ना कभी-कभी कि यदि हमारे भी बच्चे होते तो हम भी उन में अपना बचपन और अपनी जवानी फिर से देख पाते और शायद उनके ही माध्यम से जी भी पाते. हाँ सो तो है इसलिए शायद लोग बच्चे पैदा करते होंगे नहीं...! हाँ कई कारणों में से एक यह कारण भी हो सकता है. वही तो....! पर यह मत भूल कुछ मेरे और तेरे माँ बाप जैसे लोग भी होते हैं इस दुनिया में जो सिर्फ मजे के लिए सम्भोग करते हैं और नातिजों में यदि कहीं से बच्चा बीच में आ जाये तो उसे अनाथालय में फेंक जाते हैं कहते हुए पहले वाला का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा.
फिर किसी तरह उसने खुद पर नियंत्रण किया और कहा पर तू यह सब अब क्यों सोच रहा. अब तो इस सब के लिए समय कब का निकल चुका मेरे दोस्त. अब तो जो कुछ भी है तेरा मेरा साथ ही है. इसलिए अब ज्यादा मत सोच. तब दूसरे वाले ने कहा और यदि मैं यह कहूँ कि मेरा एक बेटा भी है तो...?? यह सुनते ही मानो पहले वाले के पैरों तले ज़मीन निकल गयी. दोनों के बीच एक लम्बी चुप्पी ने ले ली. दुकान में बहुत शोर था किन्तु इन दोनों को केवल सन्नाटा ही महसूस हो रहा था.
पहले वाला किसी तरह खुद को संभालता हुआ उठा और अपनी कार की ओर बढ़ गया. उसे एकदम से इतना शांत देख दूसरा वाला डर गया ओर उसके पीछे जाते हुए बोला मेरी बात तो सुन यार...! रुक तो सही, ऐसे बिना कुछ कहे मत जा ना यार...! कुछ तो बोल. तुझे जो कहना है कह ले गालियां देनी है जूते मरना है जो करना है कर ले लेकिन मेरी बात तो सुन ऐसी आधी बात सुनकर तू मुझे सजा नहीं दे सकता. पहले वाले ने तब भी कुछ नहीं कहा दोनों साथ-साथ ही घर आये. लेकिन इस बीच दोनों ने एक दूसरे से ज़रा भी बात नहीं करी.
दूसरा वाला बहुत देर तक यहीं कहता रहा की मेरी बात तो सुन... मेरी बात तो सुन, पर पहले वाले ने एक शब्द नहीं कहा ओर सीधा अपने कमरे में चला गया ओर दरवाजा बंद कर लिया. दूसरे वाले की आँखों में अब भी आँसू थे. फिर भी वह उस रात बाहर ही सोफे पर सो गया. बीच रात में जब पहले का दरवाजा खुला ओर उसने देखा दूसरा वाला बाहर ही सो गया है. तो उसने अपने कमरे से एक कंबल लाकर उसे उढ़ा दिया ओर वापस अपने कमरे में चला गया ओर दरवाजा बंद कर लिया. दरवाजा बंद होने की आवाज से दूसरे वाली की नींद खुल गयी. यूँ भी बुढ़ापे में नींद कम ही आती है. जब उसने नींद खुलते ही अपने उपर कंबल देखा तो वह समझ गया कि पहले. वाला उसके पास आया था.
अगली सुबह दूसरे वाले ने पहले वाले के लिए खुद नाश्ता अपने हाथों से बनाया ओर उसके जागने का इंतज़ार करने लगा. जब दरवाजा खुला तो दूसरे ने मुसकुराते हुए पहले का अभिवादन किया लेकिन पहले वाले ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. दूसरा वाला फिर भी मुसकुराता हुआ आया ओर कहने लगा आज का नाश्ता मैंने बनाया है. कांदा पोहा बिलकुल वैसा ही जैसा तुम्हें पसंद है... पहले वाले ने सिर्फ इतना ही कहा कि मैंने पोहा खाना छोड़ दिया है ओर वह एक सेब लेकर खाने लगा... उसके मुंह से यह बात सुनकर दूसरे वाले को बुरा तो बहुत लगा. लेकिन उसने उस वक्त कहा कुछ नहीं. वह भी सीधा कमरे में गया ओर अपना सामान बाँधकर बाहर आया ओर बोला ठीक है, फिर यदि हमें मौन रहकर ही एक साथ रहना है तो उससे अच्छा है हम दोनों एक दूसरे से दूर ही रहें. इसलिए मैंने फैसला किया है कि मैं जा रहा हूँ....!
क्या अब दूसरा वाला पहले वाले को छोड़कर एक बार फिर चला जाएगा...और यह जन्मों के साथी एक बार फिर जुदा हो जाएँगे...? जानने के लिए जुड़े रहे.
जारी है...