साथी - भाग 11 Pallavi Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथी - भाग 11

भाग -11


यह पत्र पढ़कर पहले वाले की आँखों में क्रोध के साथ साथ आँसू भी उमड़ आये और उसने वह पत्र मरोड़कर वही फेंक दिया. इधर कुछ दिनों से पहले वाले के ऑफिस में एक नये ज्वाइन किए लड़के ने सारे स्टॉफ का दिल जीत रखा है. जितना मीठा व्यवहार है उसका, उतना ही अच्छा काम भी करता है. बड़ो से प्यार, हमउम्र से अपनापन जैसे सभी अच्छे गुणों से परिपूर्ण है वो, पहले वाले के दिल में भी अब उसके प्रति लगाव पनपने लगा है. उसे देखकर ना जाने क्यों पहले वाले को अपने जवानी के दिन याद आते हैं. ऐसा शायद इसलिए भी है क्यूंकि उसने भी कड़ी मेहनत के बाद ही यह मुकाम हासिल किया है और वैसी ही मेहनत उसे उस लड़के में दिखाई देती है.


किन्तु अन्य कुछ लड़कों को उससे बहुत अधिक समस्या है क्यूंकि वह बंदा दिखने में बहुत खूबसूरत और आकर्षक होने के साथ व्यवहार कुशल भी है और मेहनती भी, साथ ही अपनी इन्हीं खूबियों के कारण वह सदैव लड़कियों से घिरा रहता है. किसी के समझ में नहीं आता कि आखिर उसमें ऐसा क्या है जो उनमें नहीं है. कई बार लोग उसे बेहद गंदे मज़ाक करते. उसे तृतीया वर्ग का हिस्सा कहते, कोई कहता मीठा है, तो कहता गुड़ है और लड़कियाँ भी यह बात भली भांति जानती है इसलिए उन्हें उससे कोई डर नहीं है और भी ना जाने कितने तरह कि बातें घूमती है उसके खिलाफ. हर कोई उसे बॉस अर्थात पहले वाले की नज़रों में गिरा देना चाहता है.

कुछ लोग हमेशा उसके खिलाफ कोई ना कोई साजिश और षड़ीयंत्र बुनते रहते हैं. लेकिन वह अपनी काबिलीयत के बल पर हमेशा सब से जीत जाता है. बॉस को भी यह सब षड्यन्त्र समझ में आते हैं, लेकिन इसी बहाने वह भी गाहे बगाहे उसकी परीक्षा लेते रहते है. उसकी जीत में कहीं ना कहीं पहले वाले को खुद अपनी जीत का अनुभव होता है. उसके रहने से मानो अब पहले वाले को खुद के लिए जीने का एक लक्ष सा मिल गया है. बोझिल सी ज़िन्दगी में मानो एक जोश सा भर गया है. समय अच्छा गुज़र रहा है. धीरे-धीरे पहले वाला अब उस लड़के के और भी करीब हो गया है. बिलकुल एक पिता पुत्र की जोड़ी जैसा.अब दोनों ऑफिस के बाहर भी मिलने लगे हैं, साथ घूमने फिर ने लगे हैं...


एक दिन पहले वाले के सामने ही उस लड़के के फोन पर एक कॉल आया... नाम से लगा कोई लड़की का कॉल था. उसने अधिक बात ना करते हुए बाद में कॉल करने का कहते हुए कॉल काट दिया. तब उस लड़के के हाव भाव देखकर पहले वाले ने उससे पूछा '

'भईया, यह कौन थी...?

'यह तो मेरी दोस्त का फोन था.'

'अच्छा सिर्फ दोस्त या...! उससे भी कुछ अधिक'..

‘नहीं नहीं, सिर्फ दोस्त’

फिर वह एकदम चुप हो गया.

तो पहले वाले ने उससे पूछा 'अच्छा एक बात बताओ यार, तुम्हारे विषय में ऑफिस में इतनी अफवाह फैली रहती है कि ‘तुम यह हो, तुम वो हो’ तुम किसी से कुछ कहते क्यों नहीं...?

‘किस से क्या कहें सर, जितने मुंह उतनी बातें’...! वो फिर चुप हो गया.

फिर कुछ देर चुप रहने के बाद बोला

'वैसे सर आप से क्या छिपाना. ‘मुझे लड़कियां पसंद है’.

हाँ तो यह तो अच्छी बात है ना...? तुम एक लड़के हो, तुमको लड़की पसंद है, बढ़िया है. कौन है वो.?

सर वैसे नहीं, ‘मुझे लड़कियाँ पसंद है.

'मतलब एक से ज्यादा पसंद है...?' तो कोई बात नहीं, इस उम्र में होता है यार चिल...!'

‘अरे यार आप समझ ही नहीं रहे हो’..!

क्या...? मैं नहीं समझा यार... !

'मुझे लड़कियों में रुचि है अर्थात मैं खुद एक लड़की बनना चाहता हूँ.'

ओह..!! अच्छा. फिर कुछ सैकेंड बाद... क्या....!'

‘हाँ, अब सही समझें आप’.

अब पहले वाले की समझ में कुछ नहीं आरहा है कि वह उससे क्या कहे... क्या ना कहे.

'कुछ तो कहिये..., आप तो पापा के जैसे एक दम चुप ही हो गए’.

तुम्हारे पापा को पता है यह बात...?

हाँ, ‘उनको तो पता ही होगा ना, वैसे भी उनके अलावा और है ही कौन मेरा इस दुनिया में’

फिर उन्होंने क्या कहा.?

‘उनका तो कहना है, अगर मुझे लड़की पसंद होती तो समझ में भी आता, वो मेरी शादी करा देते. इतना ही नहीं वो तो यहाँ तक कहते हैं कि अगर मुझे कोई लड़का भी पसंद होता तो भी उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं होती. लेकिन मेरा खुद लड़की बन जाना उन्हें भी यह बात, यह भावना समझ में ही नहीं आती. अब मैं कैसे समझाऊं आप सभी को कि मैं इस शरीर में इस दिमाग में इस दिल में क्या महसूस करता हूँ ’. ‘मुझे बहुत उलझन महसूस होती है, ‘मेरा दम घुटता है, मेरा बाल कटवाने का मन नहीं होता, मेरी दाढ़ी बनाने की इच्छा नहीं होती. लेकिन ना करो तो भी बहुत परेशानी होती है. मुझे लड़कियों के कपड़े आकर्षित करते हैं. मुझे उनके जैसा बनना है.’

कहते -कहते वह रोने लगा. तब पहले वाले ने कहा

‘अरे-अरे, रौ मत. मैं हूँ ना, मैं कुछ करता हूँ.’

अब दिन रात पहले वाले के दिमाग़ में यही बात घूमने लगी कि वह ऐसा क्या करे कि उस लड़के की कुछ मदद कर सके. फिर उसने एक मनोचिकित्सक से इस विषय में बात की और उसे अपने साथ वहाँ ले गया.

वहाँ पहुँच कर जब उस लड़के ने देखा तो

'कहा यह क्या सर आप से मुझे यह उम्मीद नहीं थी. आप मुझे पागल समझते है...?'

पहले वाले ने कहा अब तक तो नहीं समझता था. लेकिन अभी अभी जो तुमने कहा उसके बाद समझ गया हूँ.'

'क्या मतलब...?'

मतलब यह कि तुम जैसे पढ़े लिखे नौजवान व्यक्ति से मुझे यह कतई उम्मीद नहीं थी कि मनोचिकत्सक के पास जाने को वह पागलपन की निशानी समझेगा.'

यह सुनकर लड़का चुप हो गया.

अब भी तुम्हें कुछ कहना है या चलें अंदर....?

'जी नहीं चलिए'.

मनोचिकित्सक से मिलने पर लड़के ने उन्हें खुल कर सब बता दिया कि वह क्या महसूस करता है, क्या नहीं. जब डॉ और मरीज की सारी बातें हो गयी तब

'पहले वाले ने उस लड़के सा कहा. तुम चलो मैं आता हूँ.' लड़का बाहर चला गया.

'पहले वाले ने डॉ से पूछा तो क्या लगता है आपको क्या यह कोई मनोरोग है...? या कुछ और है.'

डॉ ने कहा अभी से कुछ कहा नहीं जा सकता, ऐसे केस में समय लगता है. हो सकता है कॉउंसलिंग की भी जरूरत पड़े. अब धीरज रखिये. अभी तो सिर्फ बात ही हुई है.'

क्या आप मुझे बता सकते हैं कि उसने आपसे क्या क्या बताया...?'

जी नहीं, यह हमारे नियमों के विरुद्ध है. मरीज की कहीं गयी बातें केवल डॉ और मरीज के बीच ही गुप्त रूप से रखी जाती है. यह मरीज की निजता का सवाल है.

ओह... अच्छा...! मैं तो सिर्फ इसलिए पूछ रहा था कि हो सकता है कुछ ऐसा हो जो उसने आपको शर्म के मारे ना बताया हो और मैं जनता हूँ.'

'अगर आपको ऐसा लगता है तो आप को जो कुछ भी पता है आप मुझे बता सकते हैं. लेकिन मैं आपको वो नहीं बता सकता जो उसने मुझे बताया है'.

अच्छा फिर रहने दीजिये. बाद में देखेंगे अभी मैं चलता हूँ'

कहते हुए पहले वाला वहां से बाहर की और निकल गया.

फिर दोनों साथ में लौट रहे थे तब उस लड़के ने कहा मैं मानसिक रूप से भी बिलकुल ठीक हूँ सर, मुझे नहीं लगता मुझे ऐसी कोई समस्या है जिसके लिए मुझे किसी मनोचिकित्सक की आवश्यकता हो किन्तु मैं आपको बहुत मानता हूँ और केवल आपने मुझसे ऐसा करने को कहा था इसलिए मैं वहां गया. मेरी समस्या कुछ और ही है जिसे शायद शब्दों में बयां करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है.'

तो क्या उस लड़के को कोई मनोवैज्ञानिक समस्या है या बात कुछ और ही है जानने के लिए जुड़े रहिए 

जारी है....!