डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 28 Saloni Agarwal द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 28

अब आगे,

रूही रोते हुए अपने कमरे मे चली जाती हैं और वहा अपना मुंह धोकर अपने कपड़ो को ठीक कर के बाहर आ जाती है उस की सौतेली मां कुसुम उस को कुछ रुपए देते हुए कहती है, " ये ले 500 रुपए और इस मे से तुम्हे 5 किलो आटा और 5 किलो चावल लाने है और बाकी बचे रुपए से आते हुए सब्जी और फल बगेरा भी लेती आना और शाम होने से पहले पहले घर आ जाना नही तो तेरी टांगे ही तोड़ के रख दूंगी, समझ में आया तुझे...!"

अपनी सौतेली मां कुसुम की बात सुन, रूही अपना सिर हां मे हिला देती हैं और घर में रखा हुआ थैला लेकर घर से बाहर निकल जाती है। और जैसे ही रूही ने शर्मा निवास से बाहर कदम निकला होता है उस को देख उस के मोहल्ले वाले देखते ही रह जाते है क्योंकि आज वो किसी पर भी अपने खूबसूरती से बिजली गिराने के लिए तैयार थी।

वैसे तो रूही ने अपने लंबे घने बालो को बांध कर चोटी बना ली होती हैं पर फिर भी वो उस की कमर तक आ रहे होते है। आज उस ने अपने कानो मे उसकी मां के दिए हुए कुंडल और एक लोकेट भी पहना हुआ था जो वो तब से है जब वो पांच साल की थी।

हाथो में चूड़ियां पहनी हुई होती है माथे पर एक छोटी सी बिंदी लगाई हुई होती हैं आंखो मे काजल और होठों पर हल्का सा लिप बाम लगाया हुआ होता है और पैरो में पायल के साथ आज उस ने जूती पहनी हुई होती हैं बस इतने से सिंगार से ही हमारी रूही अब लोगो पर अपना कहर बरसाने को तैयार होती हैं।

रूही को आज हर कोई मुड़ मुड़ कर देख रहा होता है जिस से रूही को अनकंफरटेबल फील हो रहा होता है पर आज मंगलवार होने की वजह से सारी दुकानें बंद होती हैं और सड़क पर भी कुछ लोग ही नजर आ रहे होते हैं क्योंकि अभी दुपहर का ही समय है फिर जो लोग वहा मौजूद होते है उनकी नजर सिर्फ और सिर्फ आज रूही पर ही टिकी हुई होती है।

राशन वाले की दुकान तक पहुंच ने मे ही करीब बीस मिनट लग जाते है क्योंकि वो बहुत दूर थी और उस को पैदल ही जाना था फिर वहा पहुंच के देखती हैं कि आज तो उन अंकल की दुकान ही बंद है तो रूही वहा पर खड़े एक दादा जी की उम्र के आदमी से पूछती हैं, " दादा जी ये दुकान बंद क्यू है...?"

रूही की बात सुन, वो दादा जी उस से कहते है, " बेटा इस की बेटी की आज सगाई हो रही है इसलिए बनारस से बाहर गया हुआ है..!"

दादा जी की बात सुन, रूही उन से पूछती है, " तो अब तक आकर दुकान खोल लेंगे ये अंकल...!"

रूही की बात सुन, दादा जी हंसते हुए उस से कहते है, " बेटा, मैने कहा है कि वो बनारस से बाहर गया है और आज उस की बेटी की सगाई है तो अब ये कल रात तक तो खुद ही आएगा फिर परसो दुपहर तक ही दुकान खोल पाएगा...!"

दादा जी की बात सुन, रूही के आंखो से अंशु निकल जाते है क्योंकि अगर वो बिना राशन के घर गई तो उस की सौतेली मां कुसुम उस के साथ कुछ भी कर सकती हैं।

रूही के आंखो में आंसुओ को देख, दादा जी उस से पूछते है, "क्या हुआ बेटा तुम ऐसे रो क्यू रही हो...?"

दादा जी की बात सुन, रूही उन से कहती है, " मुझे राशन आज के आज ही चाहिए नही तो हम क्या खायेंगे...!"

रूही की बात सुन, दादा जी को उस पर तरस आ रहा होता है वो उस का मन बहलाते हुए उस से कहते है, " रोने की क्या बात है बच्चा, ये इकलौता राशन वाला थोड़ी है...!"

दादा जी की बात सुन, रूही उन से कहती हैं, " पर दादा जी अब मै कहा पर राशन लेने जाऊं...!"

रूही की बात सुन, वो दादा जी उस से कहते हैं, " बेटा एक दुकान है तो पर वो बहुत दूर हाइवे की तरफ है पर मैं यकीन के साथ के सकता हु वो जरूर से खुली हुई होगी क्योंकि वो बाहरो महीने खुली रहती हैं एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब उस से अपनी किराने की दुकान न खोली हो...!"

दादा जी की बात सुन, रूही अपने अंशु पोशते हुए उन से कहती हैं, " क्या सच में और ये हाइवे का रास्ता कौन सा है, आप बता सकते हैं...!"

रूही की बात सुन, दादा जी उस से कहते है, " अरे बताना क्या, मै तुझे लेकर ही चलता हूं और मुझे वहा कुछ काम है तो तुझे छोड़ के वहा से आगे निकल जाऊंगा...!"

दादा जी की बात सुन, रूही खुशी खुशी उन के साथ जाने को तैयार हो जाती हैं और वो दोनो हाइवे वाली किराने की दुकान के लिए पैदल ही निकल जाते है।

To be Continued......❤️✍️

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