भाग–५२
कॉलेज की फाइनल एग्जाम करीब थे । मेरा दिल डर से बैठ गया था । मैने अपनी मां से उनके घर बात करने को कहा । मेरी मां वहां गई और उसके पिता जी ने मेरे बारे में लोगों और रिश्तेदारों से पूछताछ की। मेरे बारे में सभी से उन्हे अच्छी बातें जानने को मिली । क्योंकि मेरा कोई बुरा बैकग्राउंड नही था ।
उसके पिताजी को ये बात पता चली की मैं पढ़ाई के साथ नौकरी कर रहा हूं । वे मुझसे प्रभावित हुए । उन्होंने मुझे मिलने बुलाया । और कुछ बातें पूछी । और मेरे जवाब से संतुष्ट होकर वो इस रिश्ते से राजी हो गए । मेरा और मेरी जान वंदना की खुशी का ठिकाना ना रहा ।
हमारी सगाई कर दी गई।
लेकिन उसके परिवार में शादी से पहले बहुत मिलने जुलने नही दिया जाता था ।
एक बार मैने बहुत जिद करके वंदना से कहा कि एग्जाम के बाद वो घर से निकल नही पाएगी। तो क्यों ना किसी बहाने एग्जाम के पहले हम लोग साथ में समय बिता सके । मैं उसके साथ घूमना फिरना , सिनेमा देखना और खाना पीना चाहता था । उसके ना कहने पर मैं नाराज हो गया और उससे एक सप्ताह बात भी नही की। वो परेशान हो गई। उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था। उसने एक दिन अपने घर ना जाने कैसे सबको मनाया और पूरा दिन मेरे लिए निकाल लाई । उसका इतना प्यार देख मेरा दिल भर आया । मैं उसे जीवन की हर खुशी देना चाहता था।
हम पूरा दिन साथ घूमे । शाम को कुछ शराबी लडको ने उसे छेड़ा और उसे छूने की कोशिश की । मैं उन्हे मारने दौड़ा मगर वो लोग मुझसे ताकतवर थे । मुझे खुद पर गुस्सा आने लगा कि मैं अगर उसकी रक्षा ना कर सकू तो फिर मैं उसका पति बनने लायक भी नहीं । मैं फिर गुस्से में उनकी और दौड़ा और जिस लड़के ने उसका हाथ मोड़ कर रखा था उसे जोर से घूंसा दे मारा । ना जाने वो ताकत मुझमें कैसे आई। मैने एक दूसरे आदमी को जो उसके पास जा रहा था उसके सीने पर लात मारी। अब वो लोग काफी गुस्से में आ चुके थे उनमें से एक ने चाकू निकाला और मुझ पर वार किया मेरी बाजु में उसका चाकू घुस गया । मेरे हाथ से खून बहने लगा । वंदना तो ये सब देख कर बेहोश हो गई थी। किस्मत से उसके पिताजी ने हमे साथ देख लिया था । ये उनकी नौकरी से घर वापिस आने का समय था । वे बहुत गुस्सा हुए उन्होंने अपनी बाइक में लगे डंडे से उन सबकी पिटाई की। मुझे पास ही के अस्पताल में पट्टी करवाई । और फिर वंदना और मुझे घर ले गए ।
जहां उन्होंने जमकर मेरी क्लास ली।
"तुम लोगो को बड़ा जुनून होता है? कुछ हो जाता तो? पहले खुद की रक्षा करना सीखो फिर मेरी बेटी को रात को लेकर घूमना। और वंदु तू घर में झूठ बोलकर जमाई साहब के साथ घूम रही थी। तुझे पता है ना ये सब गलत है? वो तो मैं जानता हूं कि जमाई साहब अच्छे इंसान है मगर कोई और होता और कुछ गलत कर सगाई तोड़ देता तो?सच सच बताना तुम दोनों के बीच कुछ हुआ तो नही न?" वंदना को तो जैसे काटो तो खून नहीं ।ये उसके पापा ना जाने क्या क्या बक रहे थे ।
मैं शर्म से सर झुकाए खड़ा रहा।
"नही पिताजी हमने ऐसा कुछ नही किया । बस सिनेमा देखने गए थे और साथ खाया पिया ।"
"मुझे समधन जी से बात करनी होगी। "
"किस बारे में?" मैने पूछा।
"वो सब आपको बता दिया जायेगा अब आप घर जाइए"
मैं अपने ससुराल में अच्छे से अपनी बेइज्जती करा के आ चुका था ।
मैं घर आया और डर रहा था कि कही उसके पिताजी रिश्ता ना तोड़ दे। ये हमारी पहली भूल थी ।
क्या वंदना के पिताजी ये रिश्ता तोड़ने वाले थे ? या उनका कुछ और फैसला था । देखते है आगे क्या होता है कहानी में।