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पागल - भाग 9

भाग–९

राजीव ने मुझे एक साड़ी गिफ्ट की थी। मेरे लिए ये अजीब था और दिल ये मानने लगा था कि उसे भी मुझसे प्यार है । मैने उसे टैक्स्ट मेसेज किया ।
"रावण तू राम बनने की कोशिश मत कर, रावण ही रहने वाला है तू ।"
"क्यों? मैने राम वाला कौनसा काम कर दिया है रे?" उसने मेसेज का रिप्लाई किया ।

"मुझे साड़ी क्यों गिफ्ट की?" मैने भेजा ।
"क्योंकि जिसदिन मीशा की शादी है उसी दिन तेरा जन्मदिन, सोचा अभी ऐसा कुछ दे दूं जो शादी में भी काम आ जाए । वैसे भी शायद ये मेरा पहला और आखिरी गिफ्ट है तुझे । " उसका जवाब आया ।
"क्यों ? कंगाल हो गया एक ही साड़ी देकर?" मैने मेसेज भेजा ।
"भग कमिनी," उसका जवाब आया ।
"साड़ी बहुत सुंदर है" मैने फिर टेस्ट किया ।
"हां तू अभी से सुंदर होने की कोशिश कर वरना साड़ी खराब दिखेगी तुझे पहन कर । " उसने मेसेज का जवाब दिया ।
"कुत्ते,,, तू अब मिल साले, बताती हूं तुझे मैं " मैने मेसेज किया ।
"अबे फोन में घुस के मत आ जाना मारने, चल ताऊजी बुला रहे है बाद में बात करता हूं" उसका जवाब आया ।
"बाय " मैने कहा लेकिन वो तब तक ऑफलाइन हो चुका था । मैं मुस्कुराते हुए उस साड़ी को देखे जा रही थी ।

"ये साड़ी और लहंगा ?"मां ने अंदर आकर सभी देख कर पूछा ।
"मां , मीशा की शादी के लिए मैं अपने लिए ये लहंगा और आपके लिए ये साड़ी लाई हूं " मैने वो दोनों दिखा कर उनसे कहा जो मैने लिए थे ।
"और ये?" मां ने वो लाल साड़ी को हाथों में लेकर पूछा ।
"मां ये राजीव ने मुझे दी । "
"साड़ी? कोई चक्कर चल रहा है क्या तुम्हारा?"
"छी,,, मम्मी, क्या बोल रही हो आप?"
"हो तो बता देना , मैं पापा से बात कर लूंगी , "
"मम्मी आप जाओ मेरे कमरे से बाहर जाओ । " मैने उन्हे अपने कमरे से धक्के देकर भगा दिया और दरवाजा बंद कर दिया । दिल खुशी से झूम रहा था । मेरे घर ने शादी के लिए सब मान जायेंगे सोच कर ।
शादी के दिन नजदीक आ चुके थे । मेहमान आने लगे थे । मिशा की मोसी का लड़का मिहिर भी बचपन में अक्सर आता था और मेरा दोस्त था । और वो भी बहुत फ्रैंक था । लेकिन मैं उससे ज्यादा बात नही करती थी । मेहमानो के आने से में राजीव को समय नही दे पा रही थी जिससे वो नाराज़ होने लगा था ।

वो चाहता था मैं बस उसी के साथ रहूं लेकिन ये संभव तो नही था । दिल तो मेरा भी करता हर पल उसके साथ रहूं लेकिन कुछ मजबूरियां थी ।
हल्दी , मेंहदी, गणेश पूजा सभी फंक्शन अच्छे से हो गए ।

आज बारात आने वाली थी । मैं सुबह ही तैयार होकर मीशा के घर आ चुकी थी । बारातियों का स्वागत करने जो जाना था । मैने एक गहरे हरे रंग का अनारकली सूट पहना था । हल्का मेकअप किया था बाल मैं रात को धोने वाली थी , इसलिए अभी एक बन बना लिया था ।

मैं खुद में ही खुद को बहुत खूबसूरत महसूस कर रही थी । बारातियों में हम चाय नाश्ता बांट रहे थे । मैं जीजाजी की बहनों और उनकी सहेलियों के साथ बातें कर रही थी ।
जब हम लौटे तो सम्राट अंकल ने मुझे उनकी डायरी लेने ऊपर के कमरे में भेजा । मैं जब वहां गई तो अंधेरा था । कमरे की लाइट चालू की और अंकल की बताई जगह से डायरी लेकर जब लाइट बंद करके जाने लगी । तो किसी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच कर दीवार के सहारे खड़ा कर दिया । मैं डर के चिल्लाऊं न उसके लिए मेरा मुंह भी हाथों से बंद कर दिया । उसका चेहरा मेरे चेहरे के बहुत करीब था ।
मेरी आंखें उसकी आंखों से मिली । और एक बार फिर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा । वो राजीव की आंखें थी । उसने अब भी मेरे मुंह पर हाथ रखा हुआ था । मैने मसमसाकर उसे हाथ हटाने को कहा ।
उसने चुप रहने को कहते हुए हाथ हटाया ।
"ये क्या बदतमीजी है राजीव?"
" तुझे फुरसत कहां मेरे लिए इसलिए ऐसे रोका"
"रास्ता छोड़ मेरा मुझे जाना है"
"मेरा एक काम करेगी तो?"
"क्या?"
"वो ,,"
"अरे बोल ना?"
"वो,,,,,,"
"कीर्ति बेटा , डायरी मिली ?"
"हां अंकल मिल गई बस लेकर आ रही हूं ।"मैने चिल्ला कर कहा ।
"बोल यार क्या काम है,, जल्दी बोल"
"नहीं तू जा" उसने कहा । मैं उसे देखकर नीचे चली गई । वह कुछ बेचैन था ।

मैं अंकल को वो डायरी देकर , वापिस ऊपर आई पर राजीव वहां नही था ।

"क्या हुआ था राजीव को ? कहां चला गया था वो? क्या कहना था उसे मुझसे? यही सब सवाल मेरे दिल में थे।


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