साथी - भाग 2 Pallavi Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथी - भाग 2

जब थोड़ा पैसा मिला तो दोनों ने पैसा जमाकर के एक बड़ी सी दरी खरीदी ताकि बिछा भी सकें और औढ़ भी सकें. ताकी रात को दोनों चैन से सौ सके. रोज़ रात को दोनों थक हारकर अपनी दरी और चादर में एक दूसरे से लिपटकर सो जाते. दोनों एक दूसरे का बिल्कुल वैसे ही ख़याल रखते, जैसे एक पुरुष अपनी स्त्री का रखता है और एक पत्नी अपने पति का रखती है. दोनों के काम और स्वभाव से प्रसन्न होकर उस चाय वाले ने उन्हें एक छोटे होटल वाले से मिलवा दिया. जहाँ उन्हें बर्तन माजना और साफ-सफाई का काम करना था. यहाँ पहले से अधिक पैसे भी मिलने थे इसलिये दोनों ने वहाँ भी काम के लिये हाँ कह दिया।

समय के साथ दोनों बालक अब बड़े हो रहे थे और दिन प्रतिदिन दोनों का रूप भी निखरता जा रहा था. मेहनती थे तो होटल के मालिक ने भी खुश होकर उनको एक कमरा किराये पर दे दिया. अब दोनों एक साथ एक छत के नीचे बड़ी खुशी से दाम्पत्य जीवन की तरह रहने लगे. धीरे-धीरे उनका वो एक कमरा गृहस्थी सा बनने लगा. जब भी वहाँ कोई आता तो ऐसा लगाता वह किसी दो लड़कों के कमरे में नहीं, बल्कि एक दंपति के कमरे में आया हो. हर कौना व्यवस्थित साफ सुथरा सजा हुआ. सब को आश्चर्य भी बहुत होता मगर किसी का भी दिमाग कभी उस और गया ही नहीं कि इनके बीच वो दोस्तों वाला रिश्ता नहीं बल्कि पति पत्नी वाला रिश्ता है.

      खैर अब समय के साथ दुनिया को देखते हुये अब ज़रूरतों ने भी अपने पैर फैलाना आरंभ कर दिया था. पर होटल के मालिक ने समझाया कि जरूरतें तो हमेशा बढ़ती ही रहेगी. लेकिन यदि जीवन में आगे बढ़‌ना चाहते हो तो थोड़ा पढ़ लिख लो. तब उन दोनों को उनकी बात समझ में आयी. कुछ शिक्षा तो उनकी अनाथ आश्रम में हो ही चुकी थी. रही सही कसर उन्होंने सरकारी स्कूल में 12 वीं तक प्राप्त कर ली. अब दोनों बालिग हो चुके है. एक दिन अपने सहपाठी के पास मोबाइल देख तब उन दोनों का भी मन हुआ कि काश उनके पास भी उसके जैसा ही एक मोबाइल  होता. फिर एक ने दूसरे को समझाया, ‘जाने दे यार ....! अपने को क्या करना है अपना तो कोई रिश्तेदार भी नहीं है, ना ही कोई दोस्त ऐसा है जिसके पास फोन हो, हम यह लेकर क्या करेंगे. हम तो ऐसे ही अच्छे है, नही...?’

      तब थोड़ी देर के लिए पहले वाले को दूसरे वाले की बात ठीक लगी और वह मान गया. दोनों खुशी-खुशी घर लोट गये. पहले वाला दूसरे वाले के कहने पर मान तो गया था मगर उसके मन ने कहीं ना कहीं यह तय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाये, मोबाइल तो वह लेकर ही दम लेगा. दुसरा वाला इधर पहले वाले की बांहों में सिमटकर बेफ्रिक होकर सो रहा है और पहले वाला मोबाइल के विषय में सोच सोचकर परेशान हो रहा. अगली सुबह जब दोनों काम पर पहुंचे तो हमेशा की तरह ग्राहक का आर्डर लेने के लिये पहले वाला गया और रोज कि तरह आर्डर लेने लगा. सामने से एक पुरुष ने उसको ऊपर से नीचे तक देखा और कहा तुम यहाँ कब से काम करते हो...? उसने कहा क्यों ? आप ऐसा क्यों पूछे रहे...? क्या मुझसे कोई गलती हुई है...? नहीं...नहीं, मैं तो बस यूँ ही पूछ रहा था. तुम्हारे जैसे हीरे के लिये यह जगह ठीक नहीं है, तुम्हें तो फिल्मों में होना चाहिए.

ओह! छोड़िए ना सर, यहाँ जो आता है वह यही कहता है पर काम कोई नहीं देता ना दिलवाता. आप अपना आर्डर दीजिये।

    अरे नहीं मैं सच कह रहा हूँ, मैं जानता हुँ कि ऐसा होता है मगर जिस तरह पाँचों उँगलियाँ एक बराबर नहीं होती ना, वैसे ही हर इंसान एक जैसा नहीं होता. चाहो तो चलो एक दिन मेरे साथ मैं  तुम्हें मिलवाता हूँ चंद लोगों से, अच्छा...! हाँ ओर क्या...!

तो कब चलना है, ‘परसों चलो’. पक्का...? ‘हाँ...हाँ एकदम पक्का’ अगर मैं तुम्हें हीरो नहीं बना पाया ना...! तो मॉडल तो मैं तुम्हें बना ही दूँगा. ‘ठीक है फिर परसो में आपका यही इंतजार करूँगा, ठीक” पहले ने जब दूसरे से इस विषय में बात की तो वह भी बहुत खुश हो गया और पहले वाले की शर्ट के बटन खोलते हुये बोला तुम हीरो बन जाने के बाद कहीं मुझे भूल तो नहीं जाओगे?

कैसी बात कर रहे हो, ‘तुम तो मेरी आत्मा हो प्रिय और शरीर से आत्मा जुदा हुये तो मर ही जायेंगे ना’ और फिर यह भी तो सोचो जीवन में अब जरूरतें बढ़ रही है, तुम को एक बेहतर जिन्दगी देना चाहता हूँ मैं और वह तभी सम्भव है जब हमारे पास पैसा भरपूर हो और सुना है इस क्षेत्र में बहुत पैसा है. ‘हाँ सुना तो मैंने भी है, इसलिये तो और ज्यादा शंका हो रही है कि कही किसी मोहनी सी सुरत वाली हीरोइन मेरा मतलब है अभिनेत्री पर तुम्हारा दिल आ गया तो मेरा क्या होगा...?’ इतना कहते ही पहले वाले ने दूसरे वाले के होंठों को चूम लिया और बोला तुम बहुत स्पेशल हो मेरी जान, तुम्हारी जगह कोई और कभी नहीं ले सकता’ कहते हुये परदा गिरा और बत्तियां गुल हो गयी.

     परसों का दिन आया वह आदमी अपने कहे अनुसार फिर उस होटल में आया और अपने वादे के अनुसार पहले वाले को अपने साथ ले गया. उसका मनमोहक सा आकर्षक चेहरा और स्वभाव दोनों ही निर्माता और निर्देशक को भा गया. लेकिन चूंकि वह गरीब था, इसलिये उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपना फोटो शूट करवा पाता. ना ही, उसके सर पर किसी ऐसे व्यक्ति का कोई हाथ जो उस क्षेत्र से पहले से जुड़ा हुआ हो वो कहते है ना (गॉड फादर) टाइप और फिर ना ही उसे किसी तरह का कोई अनुभव ही था कि जिसके आधार पर वो उसे एक ही झटके में काम दे पाते. कुल मिलाकर उसके हाथ उस दिन निराशा ही लगी. होटल के मालिक ने भी इतना पैसा एक साथ देने से माना कर दिया. फिर जिन्दगी पहले की तरह ही चलने लगी. वह उदास रहने लगा क्यूंकि वह अपने साथी को एक अच्छी और खुशहाल ज़िंदगी देना चाहता था, पर ऐसा हो ना सका. फिर से कुछ महीनों बाद वही आदमी फिर उस होटल में आया और बोला, ‘चलो मेरे साथ.’ कहाँ ?

अब वह आदमी (पहले वाले) के पास दुबार क्यूँ आया है और उसे कहाँ ले जाना चाहता ....? क्या वह उसे फिल्मों में काम दिलवा सकेगा या अपने कहे अनुसार उसे मॉडल बनवा सकेगा...? यह जानने के लिए जुड़े रहिए...साथी के साथ...

जारी है...!