शून्य से शून्य तक - भाग 26 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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शून्य से शून्य तक - भाग 26

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जैसे-जैसे वह बड़ी होती गई, उसकी बुद्धि कुछ अधिक ही चलने लगी| 

उसकी माँ ने कंसीव करते समय सोचा एक भी बार एक कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो उनकी छोटी सी बेटी का क्या होगा? एक भी बार अस्पताल जाते समय लगाया अपनी बेटी को अपने गले से ? लाड़ से पुचकारा उसे? एक भी बार बताया उसे कि अगर उसे अकेला रहना पड़े तो कैसे रहेगी? कैसे निकलेगी उस अंधे कूँए से जिसमें वे उसे सदा के लिए कैद कर गईं हैं! 

“नहीं—नहीं, सब स्वार्थी हैं---स--ब---”वह चिल्लाई और अपने हाथ में पकड़े हुए काँच के ग्लास को दीवार घड़ी पर दे मारा| 

“आई कांट स्टैंड---नो आई कांट---फॉरगिव यू बोथ ---आई कांट---कहकर वह फूट-फूटकर रोने लगी| 

उसके भीतर जैसे लावा बह रहा था और वह फूट-फूटकर रोए जा रही थी| 

माधो खिड़की से झाँककर उसे फूट-फूटकर रोते हुए देख रहा था लेकिन उसका साहस अंदर जाने का नहीं हुआ| पता नहीं क्या परेशानी, कष्ट में हैं उसकी आशी बीबी ! सोचते हुए वह काँपने लगा था और उसकी आँखों से आँसू झर-झर बहे जा रहे थे| 

माधो ने खिड़की से सिर हटाकर अपनी आँखों से झरते आँसुओं को कमीज़ की बाहों में समेट लिया और जैसे ही फिर से खिड़की में नज़र गडाई, देखा कि आशी ने रोते-रोते अपनी आँखें बंद कर लीं थीं, आँसुओं ने उसके गोरे गालों पर निशान बना दिए थे | वह खिड़की से हटकर दीना जी के कमरे की ओर चल दिया| 

दीना हर रोज़ की तरह अपने कमरे में लगी अपनी पत्नी की बड़ी पोट्रेट पर ताज़ा फूलों की माला चढ़ा रहे थे कि उनके हाथ अचानक ही काँपे और वे मानो वहीं जमकर रह गए| उनके हाथ मोगरे और गुलाब के फूलों की माला को लेकर इस प्रकार आगे बढ़ रहे थे मानो वे किसी तस्वीर पर नहीं वरन् अपनी प्रिय पत्नी सोनी के बालों में वेणी लगाने जा रहे हों| उनकी सोनी को मोगरे के फूल कितने पसंद थे, सोचकर उनकी आँखें आसुओं से भरभरा आईं| 

करवाचौथ का दिन था, सोनी खूब सजी-धजी बैठी थी| दीनानाथ ने नौकर को भेजकर कार में रखा हुआ पैकेट मँगवाया| उसमें से एक सुंदर सी साड़ी निकालकर सोनी के कंधों पर फैला दी और एक छोटे से पैकेट से निकालकर हर दिन लाने वाला मोगरे का गजरा पत्नी के जूड़े में सजाने लगे| 

“सुनिए, मैं न भी रहूँ न, तब भी मेरी तस्वीर पर मोगरे की माला ही चढ़ाना| ”सोनी ने हँसते हुए पति से कहा था| 

दीना के सोनी के बालों की ओर बढ़ते हुए हाथों ने जैसे गजरा लगाने से इंकार कर दिया| 

“तुम औरतों को यह सब बोलने से क्या कुछ ज़्यादा संतुष्टि मिलती है ? ”उन्होंने धीरे से, उदास स्वर में पूछा| 

सोनी खिलखिलाते हुए बोली;

“अरे भई, खाली दिमाग शैतान का घर होता है| आप हर दिन मेरे लिए मोगरे की वेणी लाते हैं---लाते हैं न? तो कभी ऐसा कुछ कहा क्या मैंने? पता नहीं आज क्यों इस खाली दिमाग में यह सब आ गया। मुँह से निकल गया| सॉरी--सॉरी--प्लीज़ डोंट टेक इट अदरवाइज़---”

“अच्छा, भूख नहीं लगी? खाना लगवाऊँ? ”सोनी ने विषय बदलने के लिहाज़ से पूछा | 

वह जानती थी कि उसके बिना कहाँ खाना खाते थे दीना! पता नहीं, वह क्यों बिना बात के अनर्गल प्रश्न पूछती जा रही थी ? दीना उसकी बातों से उद्विग्न हो रहे थे| वह वहाँ से उठकर जाने ही लगे थे कि सोनी ने हाथ पकड़कर उन्हें रोक लिया और अपने पास बैठा लिया| 

“सच ही कहती थीं आपकी मम्मी, आप उनकी बेटी बनते-बनते बेटा बन गए---”सोनी ज़ोर से हँसने लगी तो वे भी पत्नी की हँसी में शामिल हो गए और पूरा वातावरण खुशी और ठहाकों से भर उठा | 

बस, फिर उसके बाद करवाचौथ का दिन कहाँ आ पाया था? और ---अब तो बरसों बीत चुके थे| न जाने इतने बरसों के बाद अचानक कभी भी क्यों वे सब बातें याद आने लगती थीं| 

आशी कितनी छोटी थी उस समय, उसने अपने पिता को हर दिन अपनी मम्मी के लिए गजरा लाते देखा था और कभी-कभी बिदक भी जाती थी कि वे उसके लिए गजरा लाकर उसके बालों में क्यों नहीं सजाते? वे उसकी मम्मी को प्यार करते हैं, उसको नहीं| वे उसके लिए भी गजरा लाने लगे, अब आशी की यह ज़िद हुई कि जैसे उसकी मम्मा के सिर में लगाते हैं, ऐसे उसके सिर में क्यों नहीं लगाते? उसके जूड़ा क्यों नहीं है? 

“देखो, तुम्हारे बाल कितने सुंदर हैं, मेरे तो इतने सुंदर नहीं हैं और जूड़ा तो शादी के बाद बनाते हैं| ”

“तो मेरी भी शादी करवा दो न---”वह फर्श पर फैल गई थी और माता-पिता का हँसते हँसते बुरा हाल हो गया था| 

उसे आज भी याद है अपना फर्श पर लोटपोट होना और अपने मम्मी-पापा का हँसना! लिखते-लिखते उसके चेहरे पर मुस्कान का झौंका आ ही गया|