शून्य से शून्य तक - भाग 21 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

शून्य से शून्य तक - भाग 21

21===

आशी ने कितनी ही बातें अपने माता-पिता के मुँह से सुनीं थीं लेकिन वह उस समय छोटी थी| दादा जी के ज़माने की बातें सुनना उसे अच्छा लगता, कई बातों से वह चकित भी हो जाती | उन दिनों ‘पिक्चर-हॉल’को थियेटर कहा जाता था| आशी के दादा सेठ अमरनाथ के अपने खुद के कई थिएटर्स थे| अँग्रेज़ मित्र अँग्रेज़ी फ़िल्म देखने की फ़रमाइश करते तो किसी भी थियेटर में अँग्रेज़ी फ़िल्म लगवा दी जाती| दो/चार बार तो अमरनाथ जी के साथ उनके ज़ोर देने पर सुमित्रा देवी उनके मित्रों के साथ फ़िल्म देखने चली भी गईं | पर अँग्रेज़ी सिनेमा में उन्हें बड़ी बेचैनी महसूस होती थी| 

“देखो जी, सुन लो ---“एक दिन उन्होंने पति से कहा

“हमें बड़ी उलझन होती है ये सिनेमा-इनेमा देखने में---| ”उन्होंने शिकायत की| 

“पता नहीं –तुम भी –अब ज़माना बदल रहा है | देखती नहीं हो मेरे मित्रों की पत्नियाँ कैसे अपने पतियों के हाथ में हाथ डालकर चलती हैं| ”दीनानाथ पत्नी को समझाने का प्रयास करते| 

“अब मैं कोई अँग्रेज़ तो हूँ नहीं---”वह बड़बड़ करतीं | सीदी-साधी गिरस्थिन हूँ| मेरे बसका नहीं है ये सब---”

“अरे ! लोग तरसते हैं कि उन्हें इतना कुछ नहीं मिल पाता और तुम हो कि अच्छा—देखेंगे---फिर सोचेंगे| चलो, अभी तो तैयार हो जाओ | आज मि.क्वींस और उनकी पत्नी के साथ फ़िल्म का प्रोग्राम है---वो लोग आते ही होंगे | ”

“देखिए, आप चले जाइए, मैं आपको मना नहीं करती| मेरे बसकी नहीं हैं देखनी मरी नंगी तस्वीरें---| ”वे रुआँसी हो उठी थीं| 

“ठीक है, फिर मत जाना, अब प्रोग्राम नहीं बनाऊँगा पर आज तो नाक मत कटवाओ मेरी भाग्यवान ! ”

“मैं कह रही हूँ न आप चले जाइए | वैसे भी मुझे मरा वो क्वींस पसंद नहीं है | कैसे घूरता रहता है ---”

“अच्छा ! ”अमरनाथ हँसे| 

“अपनी इतनी सुंदर, गोरी चिटटी वाइफ़ को छोड़कर वो तुम्हें घूरेगा ? चलो—चलो –तैयार हो जाओ –”

“आप जाइए न –आप चले जाइए | मेरा बिलकुल भी मन नहीं है --| ”

“तबियत तो ठीक है न तुम्हारी ? ” अमरनाथ ने चिंतित स्वर में पूछा| 

“हाँ—हाँ—आप जाइए न ! बिलकुल ठीक है मेरी तबीयत –”

“तो ठीक है, मैं हमेशा के लिए ही चला जाता हूँ | न रहेगा बाँस, न रहेगी बाँसुरी ---! ”कहकर अमरनाथ तेज़ी से अपने कमरे की ओर बढ़ गए और वहाँ से अपनी अलमारी की ड्राअर से एक खुरकी निकालकर ले आए और जीने में जाकर वहाँ के खुरदुरे पत्थर पर उसे तेज़ करने के लिए उस पर सान चढ़ाने लगे| 

“ये—हाय---ये क्या कर रहे हैं ---? ” सुमित्रा देवी घबराकर पति की ओर भागीं| 

“अब तुम्हें इससे क्या ? मैं ही अपने आपको खतम कर लेता हूँ तो तुम सुखी हो जाओगी | ”कहकर अमरनाथ ने सुमित्रा को धक्का दे दिया | अजीब सा अप्रत्याशित व्यवहार ! 

अब सुमित्रा देवी को पसीना छूटने लगा | उनके रोने की आवाज़ से दीनानाथ और घर के सारे नौकर-चाकर वहाँ इक्कठे हो गए थे| बच्चा दीना बहुत देर से अपने कमरे में से सब सुन तो रहा था लेकिन अभी तक बाहर नहीं आया था| अब वह घबरा गया था और भागकर कमरे के बाहर आ गया था| 

अपने को चारों ओर से घर के सेवकों और बेटे का पीला पड़ा हुआ चेहरा देखकर अमरनाथ जी वहाँ से उठकर अपने कमरे की ओर बढ़ गए | पीछे-पीछे सुमित्रा देवी भी कमरे में आ गईं और उन्होंने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया| 

थोड़ी देर बाद नौकर ने आकर कमरे का दरवाज़ा खटखटाया और बताया कि मि.क्वींस और उनकी पत्नी आए हैं | अमरनाथ जी ने भीतर से हुक्म दिया कि उन्हें हॉल मैं बैठाकर चाय-नाश्ता कराया जाए, वे लोग अभी तैयार होकर आ रहे हैं| 

दरवाज़ा खुलने पर अमरनाथ और सुमित्रा देवी बाहर आकर अपने अतिथियों के पास हॉल में जा रहे थे| बच्चा दीना अपने कमरे में आ गया था और खिड़की में से अपने माता-पिता को देख रहा था, उसका मुँह पीला पड़ा हुआ था लेकिन उन्हें ठीक देखकर उसे कुछ नॉर्मल महसूस हुआ| 

“बेटा दीना! मैं पिता जी के साथ जा रही हूँ तुम खाना खा लेना | हो सकता है, हमें देर हो जाए| ”सुमित्रा ने बेटे के कमरे में आकर बेटे को सीने से लगा लिया | आखिर पत्नी को ही झुकना पड़ा था| 

दीनानाथ ने संतोषपूर्वक ‘हाँ’में सिर हिला दिया| कुछ देर बाद ही मोटर के चलने की घुरर सुनाई दी और दीनानाथ भागकर अपने कमरे की खिड़की पर पहुँचकर ‘बाय—टा—टा में हाथ हिलाने लगा |