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दौड़ता-भागता जब माधो कमरे में पहुँचा तो दीनानाथ बाथरूम के बाहर खड़े थे | वह हड़बड़ा गया|
“क्या हुआ मालिक ? ”
“अरे! कुछ नहीं भाई ज़रा बाथरूम गया था| ”
“पर—आपकी कुर्सी तो---”उसने दूर पलंग के पास पड़ी हुई कुर्सी की ओर इशारा करके आश्चर्य से पूछा|
“हाँ, वो मेरी ही कुर्सी है | आश्चर्य क्यों हो रहा है? आज सोचा चलकर देखूँ वहाँ तक –और देखो सहारा भी नहीं ले रहा हूँ---”
दीनानाथ बड़े सधे हुए कदमों से चलकर पलंग तक आ गए| माधो के चेहरे पर मानो खुशी की तरंगें उमड़ पड़ीं, आँखों में आँसु भर आए| वह दीनानाथ के पैरों से लिपट गया |
“अरे रे–रे—”कहते हुए दीनानाथ पलंग पर धम्म से बैठ गए–|
माधो ने सिर ऊपर उठाकर पूछा—“चोट तो नहीं लगी सरकार---? ”
“नहीं रे--–पर आज तो तूने मुझे धक्का दे दिया –”वह हँसे|
“क्या बात करते हैं मालिक---? ”वह रूआँसे स्वर में बोल उठा|
“अरे ! पागल हो गया है क्या ? मज़ाक कर रहा हूँ | ”
वह फिर से दीनानाथ के पैरों में झुक गया |
दरवाज़े पर नॉक हुई तो दोनों ने सिर उठाकर देखा| महाराज हाथों में नाश्ते की ट्रे पकड़े खड़े थे | उनकी आँखों से टप टप आँसु झर रहे थे|
“अरे ! महाराज –आओ—आओ---”
माधो स्वस्थ होकर महाराज से ट्रे लेने के लिए बढ़ने लगा, उसने ट्रे लेकर सामने वाली मेज पर रख दी |
“अरे भाई, तुम लोगों को क्या हो रहा है? देखो, अब तो मैं ठीक हो गया हूँ---”
“हाँ जी, मालिक आप ठीक कह रहे हैं, हमारा भाग है मालिक ! आपके बीमार होने से यह घर भूतिया हो गया था—| ”
“मैंने आपको बाथरूम से चलकर आते हुए देखा है मालिक | मेरे लिए तो यह दिन त्योहार से भी बढ़कर है| आज पाँच साल के बाद ----आप नीचे आएंगे सरकार ? ”
“महाराज! बहुत उतावले मत बनो | आज नहीं तो और दो-चार रोज़ में मालिक नीचे आएंगे ही | अभी तो सब प्रबंध ऊपर ही कर लेना| ”
“कैसा प्रबंध ? ”दीनानाथ ने पूछा |
“अरे मालिक ! आज का दिन ऐसे ही थोड़े ही जाएगा? आज तो घर में दावत होगी | मैं अभी डॉक्टर साहब के यहाँ फ़ोन लगाता हूँ | ”
“पागल हो गया है क्या ? दावत---! लेकिन हाँ, ---उसे सहगल को ज़रूर बता देना कि मैं अकेला चला| ”उनके मुँह पर एक हल्की से संतुष्टि पसरने लगी थी |
“उन्हें तो बताऊँगा ही, साथ ही मैनेजर साहब के यहाँ, पटेल साहब के यहाँ—और केलकर साहब के यहाँ भी फ़ोन करूँगा | ”माधो खूब उत्साहित था|
“अरे ! जब ऑफ़िस जाऊंगा तब सबको पता चल ही जाएगा न! ”
“वो जब होगा तब होगा, पर आज घर में दावत तो होगी ही | इतना तो हक है हमारा, क्यों महाराज ? ”
दीनानाथ माधो को देखकर मुस्कुरा रहे थे जो डायरी हाथ में लिए लगातार फ़ोन पर फ़ोन किए जा रहा था|
“मुझे जल्दी बता देना कितने लोगों का प्रबंध करना होगा ? ”महाराज ने माधो से कहा |
“हाँ, हाँ बिलकुल---पर मेरा एक काम करो न जरा महाराज, ज़रा मालिक की टेबल पर नाश्ता लगा दो। उन्हें देर हो जाएगी | दवाई भी वहीं रखी है –खा लेंगे न आप ? ”
दीनानाथ ने हाँ में सिर हिला दिया|
“आशी कहाँ है? ”अचानक उन्होंने पूछा|
“लॉंग ड्राइव पर गईं हैं, आ जाएंगी---अच्छा, मैं जाऊँ नीचे सरकार--? ”महाराज ने नाश्ता लगा दिया था|
“माधो ! तुम्हारा नाश्ता भी तो बाकी है, चलो हम सब नाश्ते के बाद शाम का मेनू सोचेंगे---”
“मालिक कर लें ज़रा, आता हूँ महाराज---”
फिर महाराज से बोला;
“आप लोग करो, मैं आता हूँ---”
माधो ने कहा तो महाराज नीचे चले गए|
“हाँ—अं—”दीनानाथ नाश्ता करने बैठ गए|
दरवाज़े पर नॉक हुई तो दोनों ने सिर उठाकर देखा | आशी खड़ी थी | अंदर आकर बोली;
“आपने मुझे बुलाया था? ”