शून्य से शून्य तक - भाग 15 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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शून्य से शून्य तक - भाग 15

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आशी को जैसे आज भी वही सब दिखाई दे रहा था| अपने बीते समय के बारे में याद करना यानि पीछे के पृष्ठों को पलटकर एक बार फिर से उसी दृश्य का पात्र बन जाना| इस समय लिखते हुए फिर से समय जैसे सहमते पैरों से उसके साथ खिंच आया था—

उसने लोगों से अपना हाथ छुड़ाकर भागने का प्रयत्न किया तो मिसेज़ सहगल ने झपटकर उसे पकड़ लिया पर वह उन्हें एक धक्का देकर आगे भाग गई| लोगों ने उसे रोकने का बहुत प्रयास किया पर वह किसी के भी बस में नहीं आ सकी| हारकर उसे उसकी माँ की अंतिम यात्रा में ले ही जाना पड़ा| वहाँ भी वह भाग-भागकर जलती चिता की ओर ‘मम्मी’कहती हुई आगे जाती और फिर किसी न किसी के हाथों में कैद होकर, कुछ दूरी पर गार्डन में बनी हुई बैंच पर पकड़ाकर बैठा दी जाती | लोग सब कुछ अपने आप ही संभाल रहे थे और दीना मानो यंत्र-चालित से जो कोई कुछ करवा देता, वो करके, धप्प से ज़मीन पर बैठ जाते| उन्हें न तो अपना होश था, न ही आशी का ! उन्हें लगता था कि अभी कुछ होगा और वह एकदम निर्जीव होकर मिट्टी का हिस्सा बन जाएंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ| जीवन-मरण का खेल भी न्यारा ! 

गत स्मृतियों का पोटला कभी भी किसी के भी सामने खुलने लगता और जैसे टीसों का एक संसार बन जाता| कितना कठिन पीडयुक्त समय था ! उससे भी अधिक पीडयुक्त समय अब उन्हें जीना था, अपनी एकलौती बेटी की चिंता में, उसके साथ, उसको लेकर---सब भली प्रकार जानते थे आशी को लेकिन वह पिता थे, बेटी उलझनों के साथ बड़ी हो रही थी और उनकी उलझनें उसके साथ और भी कड़ी हो रहीं थीं| 

सोचने से कभी कुछ होता है क्या? आज दीना जी की हिम्मत देखकर माधो भी ज़ीने से उतरता हुआ सोच रहा था कि आज तो आशी बीबी का हाथ पकड़कर ले ही आएगा| पर नीचे उतरने के साथ ही उसकी हवा फि—स्स से निकल गई| डाइनिंग हॉल में महाराज और घर का एक और सेवक मुँह लटकाए खड़े थे| आशी का मचाया गया उपद्रव टूटी-बिखरी प्लेटों की किरचों और टुकड़ों के रूप में जहाँ-तहाँ सबका मुँह चिढ़ा रहा था और आशी कुर्सी से खड़ी होकर मेज़ पर रखा हुआ बैग कंधे पर लटका रही थी | माधो ने नीचे कदम रखा और आशी ने अपने कदम दरवाज़े की ओर बढ़ाए| माधो झपटकर उसके पास पहुँच गया –“बी---बी---”उसने धीरे से आशी को पुकारा| 

“अब तुझे क्या है ? ” वह बिफरी | 

“कुछ नहीं दीदी जी ---वो—”

“क्या वो वो ----बोलता क्यों नहीं कुछ --? ”

“आपको मालिक बुला रहे हैं ---”

“क्यों---? ”

“अब मैं क्या बताऊँ सा---ब---वो –”

“बाद में---अभी मैं लॉंग ड्राइव पर जा रही हूँ ---”कहकर वह उस भव्य ड्रॉइंग-रूम की ओर चली गई जिसके दरवाज़े से उसे बाहर निकलना था|