शून्य से शून्य तक - भाग 13 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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शून्य से शून्य तक - भाग 13

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लिखते-लिखते आशी के हाथ अचानक थम गए| माधो उससे बड़ा था, कितनी बार आशी को समझाया गया था कि उसे माधो भैया कहा करे लेकिन बड़ी कोशिशों के बावज़ूद भी उसे वह घर का सेवक ही लगता था| और सभी लोगों से उसका ज़्यादा मतलब नहीं पड़ता था| बस---महाराज जिन्हें सब महाराज ही कहकर पुकारते और अपनी सहायता के लिए वो जिसे लेकर आए थे वह छोटा था इसलिए सब उसे नाम से ही पुकारते| आशी ने लितनी बार माधो को अपने पिता को समझाते हुए सुना था कि कुछ भी कहें आशी बीबी का ध्यान रखें लेकिन आशी तो आशी थी उसे न जाने क्यों माधो से चिढ़ ही बनी रहती| याद आया तो उसने फिर से लिखना शुरू किया--

माधो कितनी बार कहता रहता था कि आशी बीबी को बुलाकर कुछ देर तो अपने पास बैठाया करें मालिक, पर दीनानाथ को लगता था कि आशी को अपने आप इसका ध्यान क्यों नहीं आता कि उसका पिता कितना अकेला है और हाँ, इस समय तो कितना नि:सहाय भी! डॉक्टर सहगल अपने दोस्त दीना को समझाते थे; “तुम जानते हो कि उसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है| जैसे तुम्हें सहारे की आवश्यकता है, वैसे ही उसे भी तुमसे अधिक सहारे की आवश्यकता है| तुम डरते क्यों हो उससे ? आखिर तुम्हारी ही तो बेटी है| ”

‘डॉक्टर सब कुछ जानते हुए भी क्यों अनजान बनता है! ’वे सोचते| बेटी के लिए अनेक प्रयत्न करने के बाद ही वह इतने अशक्त हो गए थे कि कुर्सी से चिपक गए थे| क्या वे जानते नहीं थे कि उस घर में एक खून के रिश्ते केवल वह और आशी, वे दोनों ही तो थे | दूसरे जो करते हैं, करते रहे हैं वह केवल उनके प्रति सम्मान, प्रेम व वफ़ादारी निभाने की बात थी वरना खून के रिश्तों में ऐसी कौनसी अड़चन आ सकती है जो एक-दूसरे के प्रति मानवीय संबंधों को निभाने में भी बाधा उत्पन्न कर दे ! 

क्रॉकरी टूटने की आवाज़ से उनके मन में चलता हुआ मंथन टूट गया| कोई विशेष बात तो थी नहीं| यह तो हर दूसरे दिन का काम रहा| सो, कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा उन पर| हाँ, आज जो प्रभाव पड़ा वह अन्य दूसरे दिनों के प्रभाव से अनपेक्षित था| माधो के अंदर आते ही उन्होंने उससे कहा –“जा, आशी को बुलाकर ला| ”

“जी----”वह बौखला गया| एकदम अनपेक्षित, अचंभित कर देने वाली बात---

“अरे जी क्या, बुलाकर ला आशी को---”

“जी---अभी वो बहुत गुस्से में हैं---”

“तो----? ”

“बाद में बुला लीजिएगा मालिक----अभी वो किसी की सुनेंगी क्या ? ”

“तू जा तो सही, यहीं बकबक करता रहेगा क्या ? ”

“चला तो जाता हूँ सरकार पर बाद में बुलाते तो ज़्यादा ठीक नहीं रहता? ”वह कुछ घबराए स्वर में बोला| 

“ठीक है–तू ऐसा कर जाकर कह तो दे उससे, साथ में मत लाना–बस---”

“जी---”कहकर माधो कमरे से बाहर निकल गया| 

माधो के निकलने के बाद दीनानाथ का मन भी काँपने लगा | बुला तो लिया आशी को पर यदि उसने कुछ भी बोलने, कहने या फिर उनकी बात सुनने से या फिर उनकी बात का उत्तर देने से इनकार कर दिया तो--? ” वे कुछ घबराने से लगे, पसीना मुँह पर चुहचुहा आया, हड़बड़ाहट शुरू हो गई और फिर पहले की तरह ही अपने आपको कमज़ोर सा महसूस करने लगे| कैसे आशी का सामना करेंगे वह? पिछली बार जब आमने-सामने बैठकर बात की थी उन्होंने तब कितना चीख-चीखकर आशी ने उत्तर दिया था कि पूरा घर सहम उठा था| 

“तुम –तुमने मेरी माँ का खून किया है पापा ---”

हड़बड़ाकर, कसमसाकर वे कुर्सी पर बैठे रह गए थे| आशी कब चीखकर कमरे से बाहर निकल गई थी, उन्हें कहाँ आभास हो सका था --! सिवाय इसके कि कोई तूफान का सा झौंका उनके दिल-जिगर में समाया है| वे उसे संभालने का बहुत प्रयत्न कर रहे हैं लेकिन वह झौंका है कि रुक ही नहीं पा रहा बल्कि तूफ़ान में तब्दील होता जा रहा है| 

उन्हें अचानक ही छोटी सी आशी याद हो आई थी जो चीख-चीखकर रोए जा रही थी---

“पापा—यू हैव किल्ड माई मदर –मेरी माँ को मार डाला तुमने---आई हेट--यू –आई हेट यू---”

पत्नी और नवजात पुत्र की मृत्यु से पीड़ित दीनानाथ तो स्वयं ही नहीं संभल पा रहे थे| उनका पूरा संसार लुट गया था और एक केंद्र-बिन्दु जो आशी के रूप में उनका सहारा दिखाई दे रहा था वह भी अपने स्थान से खिसककर मानो उनके ललाट पर ‘खूनी’होने का पोस्टर चिपका देने का प्रयास कर रहा था---“यू हैव किल्ड माई मदर‘ आई हेट यू—आई हेट यू—”

दीनानाथ अपने मन –मस्तिष्क को काबू में लाने का भरसक प्रयास कर रहे थे पर मन का पंछी लौट-लौटकर फिर से भूत के पेड़ों की डालों पर बसेरा करने के लिए बाध्य हो गया था | अर्थी में लिपटी सोनी और कपड़े में लिपटा उनका नवजात शिशु (वारिस)चीख-चीखकर उनसे मानो न्याय माँग रहे थे | वह शांत चीख ऐसी थी जो किसी को भी निर्जीव बना देने में समर्थ थी | सोनी की अनुपस्थिति की कल्पना मात्र से ही दीनानाथ सुन्न पड़ गए थे| मालूम नहीं कि किस शक्ति के बल से वह बच गए थे |