पागल - भाग 44 Kamini Trivedi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

पागल - भाग 44

भाग –४४
मिहिर और जीजू ने खाना खाया । मैं अतीत में खोई उन दोनो को देख रही थी तभी अभिषेक का फोन आया ।
आप सोच रहे होंगे ये अभिषेक कौन है।
ये वो ही आदमी है जो दिल्ली में राजीव से मिला था , जिन्हे मेरा बेटा राजीव ,पापा कहता है।

"हेलो अभि"
"हेलो कीर्ति, क्या कर रही हो?"
"मैं होटल में हूं बस अब घर के लिए निकलने वाली थी।"
"क्या हुआ तुम्हारी आवाज कुछ बुझी बुझी सी है , कुछ हुआ है क्या?"
"वो अभि, यहां होटल में मेरे सामने मिहिर और जीजू बैठे है और वो लोग , सबको मेरी फोटो दिखा कर पूछताछ कर रहे है।क्या राजीव ने उन्हे भेजा होगा?"
"तुम उनके सामने गई?"
"नही मैं अपने केबिन में से उन्हे देख पा रही हूं "
"तुम घर आ जाओ , हम घर पर इसके बारे में बात करते है।"
"ओके" इतना कहकर अभिषेक ने कॉल काट दिया ।
फिर अपना बैग उठाकर मैं होटल से बाहर चली गई।

"वेटर , बिल" जीजू बोले।
बिल देखने के बाद मिहिर को आश्चर्य हुआ ,
"इतना कम?"
"सर , आप हमारे वीकली लकी कस्टमर्स में से एक है,इसलिए आपको मिलता है स्पेशल गेस्ट डिस्काउंट"
"अच्छा इस होटल में ऐसा भी कुछ होता है?"
"हां"
जीजू ने बिल पे किया और वो लोग होटल से निकले । रास्ते भर उन्होंने पैदल चलना तय किया उनका होटल पास ही था ।पैदल चलते हुए भी रास्ते में जो मिलता उससे तस्वीर दिखा कर पूछते वो लोग।

आखिर थक कर वो होटल पहुंचे तभी मिहिर के मोबाइल पर कॉल आया
"हेलो"
"मिहिर तुझे डिटेल्स मेल की है , देख लेना "
ये जगदीप का फोन था ।
"ओके थैंक यू यार "
"होप की तुझे ये काम आए"
इतना कहकर उसने फोन काट दिया।

मिहिर ने मेल चेक किया और एड्रेस और नाम देखा । और सुबह उठकर वहां जाने का तय किया , जैसे ही वो जीजू से ये कहने पलटा वो थक कर चूर हो कर सो चुके थे।

मिहिर भी अपने बिस्तर पर धड़ाम से गिरा और सो गया।

यहां मैं घर पहुंच चुकी थी ।
"राजीव ने खाना खाया मां?"
"हां बेटा , उसे खाना खिला दिया था , तुम और अभि भी खा लो"
"हां मां हम दोनों भी खा लेते है आपने खाना खाया ? "
"हां बेटा , मैने राजीव के साथ ही खा लिया , "
"दवाई ली?"
"नही"
"मां आप ऐसा क्यों करती है? चलिए दवाई लीजिए जल्दी से "
"हां बेटा बस अब सोने जा रही हूं ले लूंगी दवाई ।"
"मां अपना खयाल रखा करो ,प्लीज"
"हां मेरा बच्चा " इतना कहकर उन्होंने मुझे सर से पकड़ कर मेरे माथे को चूम लिया ।
और शुभरात्रि कहकर सोने चली गई।
"थैंक यू कीर्ति" अभिषेक ने कहा ।
"किसलिए?" मैंने अपना पर्स रखते हुए पूछा ।
"मेरी मां का इतना खयाल रखने के लिए "
"कैसी बाते करते हो तुम अभि, वो मेरी भी तो मां है ना?"
अभिषेक ने मुस्कुराते हुए हां में सिर हिला दिया ।
"जाओ अब जल्दी से फ्रेश होकर आओ बहुत भूख लगी है यार"
मैं अपने कमरे में जाकर कपड़े बदल कर और हाथ मुंह धोकर आई ।

हम दोनों डिनर के लिए बैठे ।
"अभि मैं सोच रही थी मां का रूटीन चेक अप करवा लेते है। वो कुछ कहती नही है पर इस उम्र में जरूरी है कुछ थकी थकी सी लगती है।"

"हां मैं कल ही डॉक्टर विभा से अपॉइंटमेंट ले लेता हूं । तुम्हारे पास कल टाइम है ना"
"हम्मम" मैने हां में अपना सिर हिलाया ।
"अब बताओ क्या हुआ होटल में"
"होटल में जीजू और मिहिर खाना खाने आए और आते ही उन्होंने वेटर से मेरी तस्वीर दिखा कर मेरे बारे में पूछताछ की। वेटर को डाउट हुआ तो उसने अंजली (रिसेप्शनिस्ट) से कहा और अंजलि ने मुझे कॉल किया और इन लोगों की पिक भेजी। मैने अंजली से कुछ ना बताने को कहा । लेकिन ये लोग मुझे इस तरह क्यों ढूंढ रहे है?"
"देखो कीर्ति राजीव यहां तुम्हे देख चुका है । और वो जरूर तुम तक पहुंचने की कोशिश करेगा । उसका रिएक्शन ऐसा ही आयेगा ये मुझे पहले से पता था। "
"लेकिन मैं अब उसकी यादों से भी दूर हो जाना चाहती हूं"
"तो इस तरह परेशान क्यों हो?"
"बस यूंही"
"फैसला तो तुम्हारा ही होगा । तुम जैसा चाहो कर सकती हो। लेकिन बस खुद को टूटने मत देना और कभी परेशान मत होना , एक बात याद रखना मैं तो हमेशा तुम्हारे हर फैसले में तुम्हारे साथ हूं"

फिर दोनों के बीच एक खामोशी छा गई। दोनों ने खाना खाया। और थोड़ा टहलने के लिए बाहर चले गए। कुछ देर घूम कर आए और फिर सो गए ।

क्या होने वाला था अगली सुबह ? क्या मिलेंगे मिहिर और जीजू मुझसे? और क्या फैसला लूंगी मैं ?