अधिकार
बत्तीस वर्षीय संदीप को दूसरा विवाह करते समय इस बात की पूरी जानकारी थी कि परिवार को बांधे रखने के लिये उन्हें कुछ अलग तरह के प्रयत्न करने होंगे। सारे प्रयास करके भी संदीप कभी अपने पुत्र को नहीं समझा पाये कि वह उनके लिये कितना अहम है। रीमा संग विवाह का निर्णय करते समय उन्होंने स्वयं को एक किशोर पुत्र का पिता बनने के लिये तैयार कर ही तो लिया था। जब से उन्होंने रीमा से विवाह किया था पुत्र विनय को अपनाने, समझने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पहले कुछ महिनों तक विनय अनमना सा रहता... समझते थे कि नये वातावरण में रहने व तैयार होने के लिये समय लगता है। अकसर देखते वह जब मां रीमा के साथ होता खुलकर हंसता खिलखिलाता पर उसको देख कर मौन हो जाता। कभी बहुत आग्रह करने पर साथ खाने बैठता तो जल्दी जल्दी अपना खाना खतम करके हाथ धोने चला जाता और अपने कमरे में जाकर किताबों में सर घुसाकर बैठ जाता। बाहर आने के लिये अनेक आग्रह करने पर भी पढाई का बहाना बनाता।
शुरू में संदीप अधिक प्रयास नहीं करते , वह जोर जबरदस्ती में विश्वास भी नहीं करते थे । जानते थे कि ष्सख्त हाथों से भी फिसल जाती हैं कभी नाजुक अंगूलियाँए रिश्तो को जोर से नहीं प्यार से मोहब्बत से पकडना ही उचित रहता हैष्। वह प्रेम की इस डाली को इतना भी नहीं खींचना चाहते थे कि वह टूट जाये। संदीप ने विनय को समय देने का निर्णय कर रखा था। विनय पढने में कुशाग्र थाद्य कक्षा दस के बाद संदीप ने ही विनय को आगे की पढाई के लिये बडे शहर पढने भेजा था। रीमा की समहती से एक निश्चित धनराशी बचत करते हुये उसे अच्छी शिक्षा के लिये कालेज भेजने की मानसिक तैयारी भी कर ही रखी थी। अच्छे नम्बर आने के कारण उसे आसानी से एडमिशन मिलने की संभावना थी। संदीप विनय से अच्छे कालेज व र्कोस इत्यादी की जानकारी लेते रहते थे ।
नई पीढी की क्षमताओं पर उन्हे कोई संदेह नहीं था। एक दिन अच्छे अंक प्राप्त कर विनय धर आयाद्य घर में वापस खुशियों भरा वातावरण हो गया। विनय अधिक खुलने के बदले अधिक चुप रहता। पर इतना परिवर्तन था कि उसके लिये बनाये विशेष भोजन को खूब आन्नद लेकर खाताद्य कभी संदीप बाहर ले जाने के लिये कहते तो तैयार हो जाता। अकसर संदीप तैयार होकर पूछते विनय मेरे कपडे अच्छे लग रहें हैं नाघ् तब विनय उठता और दूसरे मैंचिंग के कपडे निकाल कर पलंग पर रख आताए पर मुंह से कुछ नहीं कहता। देखते संदीप की उसकी पसंद के कपडों में विनय उसे निहार रहा था। हास्टल में रहने के आदि हो चुके विनय को अपना सामान अस्त-व्यस्त रखने की आदत हो चुकी थी। संदीप को बिखरा व अस्त-व्यस्त धर अच्छा नहीं लगता एैसे में जब विनय इधर उधर होता संदीप उसका कमरा सामान ठीक करके रख देते पर विनय को कुछ नहीं कहते। संदीप को इतजार था उस दिन का जब विनय अपने मुंह से उसे कुछ कहेगा। विनय अपनी छोटी बहन को बहुत प्यार करता उसके साथ खुल कर खेलता, कभी कभी अपनी बहन को अपने कमरे में कहानी सुनाता सो जाने पर वहीं सोये रहने का आग्रह भी करता पर मां से ही पिता से नहीं।
अकसर सुनता संदीप, कि विनय अपनी 12 साल छोटी बहन को समझाता कि जब मैं बाहर पढने जाउंगा तब तुम मां को तंग मत करना मैं तुम्हारे लिये खिलैाने लाऊँंगा आदि। संदीप को अंदर तक खुशी मिलतीए बहन का सारे दिन भैया के साथ रहने का प्रयास उसे अंदर तक संकून देता। न जाने क्या था विनय के मन में संदीप के प्रति कि वह खुल ही नहीं पा रहा था।
यों देखा जाये तो जब संदीप की मां यहाँ रहने आती तो सबसे ज्यादा विनय का अच्छा लगता। वह पूरे दिन उनके साथ ही रहताए खूब बातें करता मन की सारी बातें खोल कर उनके साथ करता। पर उसके व विनय के बीच एक पर्दा बाकी था। समय निकल रहा था विनय को दिल्ली के अच्छे कालेज में एडमिशन मिल गया। वह वहाँ पढने चला गया। संदीप बेटे का बहुत मिस करता ,कभी फोन करता तो संदीप सक्षिप्त बात करता पर सारे समाचार मां को जरूर बताता। उसके जाने के कुछ महिनों के बाद रीमा का स्वास्थ्य कमजारे होने लगा था। संदीप सोच रहे थे बेटे को याद करती है इसलिये एैसा है... कभी बाहर घूमने ले जाते, मन लगाने का प्रयास करते, रीमा दिन पर दिन अधिक कमजोरी महसूस करती जा रही थी। संदीप पूरा धयान रखने का प्रयास कर रहे थे जानते थे कि ’आप कितनी ही चिंता क्यो न कर लें चिंता से एक छोटीसी समस्या भी हल नहीं होती’ अच्छा स्वास्थ्य यदि डब्बे में मिलता तो सभी का शरीर हष्ट पुष्ट होता। समय की गंभीरता को देखते हुये,संदीप ने कुछ दिनों की छुटटी ली और अच्छे डाक्टर से रीमा का इलाज आरम्भ किया। एक दिन विनय को दादी से बात करते समय पता चला की मां की तबीयत ठीक नहीं है। शाम की ट्रेन से संदीप घर आ गया। संदीप आश्चर्य से उसे देख रहे थे पर उसकी उपस्थिति से एक संबल भी मिला। विनय ने देखा खाना आजकल पापा बना रहें हैं। उसने उन्हें अपनी क्षमता अनुसार मदद करी।
आज डाक्टर ने रीमा की कीड़नी खराब होेे चुकी है यह सूचना दी। विनय को कुछ समझ नहीं आ रहा था। दोपहर के समय जब वह भेाजन कर चुका तब संदीप ने उसे तैयार होने के लिये कहा। वह दौनो डाक्टर के पास गये संदीप अपनी एक किडनी मां को देने की बात कर रहे थे। विनय ने डाक्टर से कहा उसके भी टैस्ट कर लें वह अपनी किडनी मां को देना चाहता है। संदीप ने डाक्टर को इशारा किया की वह विनय की बात मान लेद्य दोनो अपने अपने टैस्ट करवाकर घर आये। दोपहर में संदीप कुछ देर के लिये बाहर गये थेद्य विनय को समझ आ रही थी संदीप की परेशानी। शाम को उसने पहली बार पिता के कंधें पर पुत्र के अधिकार से हाथ रखते हुये कहा थाद्य चिन्ता न करें मां को कुछ नहीं होने देगा। वो अपनी किडनी दे कर मां की जान बचा लेगा। संदीप को सुनकर अच्छा लगा पर वह पुत्र को कैसे विश्वास दिलाये कि उसका पिता उसको इतने बडे खतरे में डालने से कितना घबरा रहा है। बस संदीप डाक्टर के पास यही जानने के लिये गया था कि क्या उसकी कीडनी रीमा से मैच हो जायगी या नहीं । पिता पुत्र अपनी अपनी उलझनों में लगे थे। आज रीमा को अस्पताल भर्ती करवाना था। आपरेशन से पहले के कुछ टेस्ट बाकी थेद्य ंविनय मां के साथ था साथ में छोटी बहन को भी संभालता जा रहा था। डाक्टर से कह कर उस दिन संदीप ने विनय और अपनी बेटी के लिये एक कमरे की व्यवस्था कर दी थी। पिता पुत्र दौनो की किडनी रीमा को मैच हो रही थी। संदीप ने डाक्टर को समझा कर अपना निर्णय सुना दिया था। कुछ देर बाद संदीप ने आकर विनय को बता दिया कि वह आपरेशन थियेटर में जा रहा है उसकी कीडनी मैच हो रही है। विनय हक्काबक्का रह गया उसे तो यही विश्वास था कि उसकी ही किडनी मैचे हो सकेगी। संदीप में ज्यादा बात नहीं करी और दोनो को छोड कर आगे बढ गये। जाते जाते विनय के सिर पर हाथ रख कर कह गये थे अपनी छोटी बहन का ध्यान रखना। करीब चार घंटे बाद विनय संदीप के पास जा रहा थाद्य बेहेाश पिता को देख कर विनय का मन बहुत व्याकुल हो रहा था। होश आने तक वह पिता का हाथ थामें बैठा रहा। मां के पास दादी बैठी थी। विनय सोच रहा था काश वह मां के लिये ये सब कर पाता। कुछ दिनों की देखभाल और सब कुछ ठीक तरह से पटरी पर आने के बाद डाक्टर ने अनेको हिदायतें दे कर दोनो को अस्पताल से छुटटी दे दी थी। देखभाल के लिये एक नर्स मां का ध्यान रखती। पापा के पास वह हमेशा बना रहता। संदीप ने महसूस किया कि विनय मां से ज्यादा परवाह मेरी कर रहा है। उसने एक दिन विनय को इसके लिये टोका थाद्य तब विनय ने कहा था मां के पास तो उनका बेटा सदा से ही था पर आपको तो अपना बेटा अभी मिला है ,इसलिये मैं आपके पास ही ठीक महसूस कर रहा हुं। विनय जैसा प्यारा बेटा पा कर संदीप खुश थे। रीमा ने अपनी तबीयत ठीक होने के बाद विनय को अपनी पढाई के लिये जाने के लिये कहा। विनय एक दिन अपने पिता के कमरे में गया और उनके पांव पकड कर बैठ गया आँखों से बह रहे आँसू बहुत कुछ कहना चाह रहे थे। संदीप को समझ आ गया था कि विनय असलियत जान गया है। कि उसने जान बुझकर उसे अपनी मां के लिये किडनी देने से रोका है। संदीप ने उसे उठाया और सर पर हाथ रखते हुये कहा था तुम्हे पता है बेटा माता पिता को भगवान समान क्यों माना जाता है क्योंकि वे भी भगवान समान संतान पर आने वाली परेशानियों को अपने उपर ले लेते हैं। बेटा तुम्हारे सामने तुम्हारा पूरा जीवन पडा है। मुझे पूरा विश्वास है कि यदि मुझे कुछ हो भी जायेगा तो मेरा होनहार मेटा परिवार की देखभाल करने के लिये है। इस विश्वास के कारण ही मैने यह कदम उठाया हैद्य तुम ही तो मेरा विश्वास हो। विनय को पिता ने कस कर सीने से लगा लिया क्योंकि अब वह सौतेले नहीं रहे थे।इसी लिये कहते हैं कि
’ रिश्तो का स्वाद हर रोज बदलता रहता है, मीठा नमकीन व खारा। बस ये इस पर निर्भर करता है कि हम रोज इसमें क्या मिलाते है।संदीप जानता था कि मंजिल इसान के हौसले आजमाती है सपनो के परदे ऑखो से हटाती है । उसे रिश्तो में बहुत कुछ मिला था।
प्रभा पारीक