सावन की तीज prabha pareek द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सावन की तीज

                                           सावन की तीज

सुहाना मौसम और बारिश की पड़ती रिमझिम फुहार के बीच जब कभी सौरभ का फोन अमरीका से आ जाता सुरभी का मन मयूर नाचने लगता। सुरभी का मन सौरभ के बिन ससुराल में बिल्कुल नहीं लगता था पर करे भी क्या? अमरीका जाने के लिये उसके पेपर्स अभी तैयार ही नहीं हो पाये थे। उसके परिवार वालों ने  मम्मी पापा ने कहा भी था कि पहले कोर्ट मेरिज करवा दते हैं| पेपर तैयार होने में आसानी होगी, पर सुरभी का रूठीवादी परिवार कोर्ट कचहरी के नाम से ही घबराता था। छोटी बहन के ससुराल के  पिछले अनुभव से परिवार पहले ही ड़र गया था। सौरभ को गये अभी छः महिने ही तो  हुय थे। ऐसे में सुरभी भी जानती थी कि उसका आना संभव नही है बस फौन ही तो ऐसा माध्यम है जिससे उसका मन कुछ हल्का हो जाता था ।

सुरभी को अपनी परीक्षा की तैयारी करनी थी। घर में केवल तीन ही तो लोग हैं सौरभ के पिता रिटार्यड होने के बाद भी किसी जगह पर काम करते हैं और सास अपने तरीके से व्यस्त है। किसी सामाजिक संस्था की सदस्य हैं। अथवा अपनी किटी-पार्टी में अकसर उनका बाहर आना जाना होता रहता है सुरभी अपनी सी ए फाइनल की परीक्षा दे रही है| इसलिये उसे भी पढने का पर्याप्त समय मिल ही जाता है।

    कल सावन की तीज है मम्मी जी तैयारी की सोच रहीं हैं | आज सुबह ही मम्मीजी पापाजी ने बात करने के बाद लैन्ड लाईन फोन उसे पकड़ाते हुये कहा था ’’सौरभ है फौन पर बात करो..’’ और सास उसे पर्याप्त एकान्त दे कर चली गयी थी। सुरभी को अकसर एक बात समझ नहीं आती थी कि जब सौरभ ने उसे मोबाईल दिला दिया है तो वह लैन्ड-लाईन पर उससे बात करना क्यों पसंन्द करता है? इस घर में माता पिता की आज्ञा जैसा भी कुछ नहीं है  खैर.. उसने बात करके फोन रख दिया मम्मीजी सावन की तीज का नई बहु के लिए देने का व्यवहार की तैयारी  सब कर चुकी थी। जिसकी सूचना सौरभ को मिल गई थी ।

 आज उसका सावन तो सौरभ के बिना कोरा ही था। शाम तक हाथों में मैहदी रंच गई। लहरिये की सुन्दर साड़ी पहन कर  मम्मीजी के साथ किटटी पार्टी में दौनों ने खूब आनन्द किये। बहुत लम्बे समय  के बाद सावन के झूलों का आनंद लिया।  आज की पढाई का कार्यक्रम तीज के त्यौहार की भेट चढ गया, यह सुरभी ने बचपन से ही सीख लिया है। कि  कभी-कभी मनोरंजन भी  तो जरूरी होता है जो हमें नयी उर्जा  देता है। आनन्द के क्षणों का उपयोग कर लेने से चूकना नहीं चाहिये

        तीज के त्योंहार से पहले सिंजारे का दिन इसी तरह आनन्द में बीता, एक बात जो उस दिन मन को बार बार कचोट रही थी कि वह सहगल आंटी को जब खाना परोस कर पकड़ाने गयी, तभी उन्होने मम्मीजी की और आँख का ईशारा करते हुये पूछा था। इसे पता है क्या और मम्मीजी ने दबी आँखों से नकारते हुये सिर हिला दिया था।  वो क्या बात होगी..... वापस आते समय गाड़ी में सुरभी ने पूछा भी था। मम्मीजी से कि सहगल आंटी किस बात के लिये कह रही थी पर मम्मीजी ने टाल दिया ,बात-बात में शंका करने की आदत नहीं थी सुरभी की। घर आकर दौनों ने पापाजी को भी खूब चिढाया कि हमने इतने मजे किये आप ने तो टी वी देखा आदि आदि।  परीक्षा नजदीक होने के कारण सौरभा से भी बातों का समय कम होता चला गया।

  देखते देखते साल बीत  गया |दूसरे सिंजारे का दिन था। उस दिन उसकी अन्तिम परीक्षा का दिन था।आज सुबह घर में दूर के चाचा चाची  व बच्चे सभी आये थे। मम्मीजी ने मुझे कमरे से बाहर न निकलने की सलाह दी और परीक्षा के बाद आकर मिल लेने के लिये कहा। मैं भी समय होने पर अपनी परीक्षा दने चली गयी। वापस निकलते समय मन थोडा भारी था| सभी साथ वाले अब न जाने कब मिलेंगे? कौन कहाँ होगा क्या पता .... साथ कि दो विवाहित सहेलियों के साथ जाकर किसी रेस्तरा में चाय पीने का कार्यक्रम बना पर मन में  डर था। घर में मैहमान हैं मुझे जल्दि जाना चाहिये, साथियों के साथ हम चाय पीकर बाहर आये और सब अपने-अपने घर को रवाना हो गये। गाड़ी पार्क करते ही घर में बच्चों  के शोर ने स्वागत किया भाभी आ गई .... चाची ने लाकर खाना परोसा और बच्चों के साथ मस्ती करते हुये खाना खाने लगी। घर का माहोल चाचा चाची के आने से और खुशनुमा हो गया था। रात को जब चाचा चाची जाने लगे तब  उनकी सात वर्षीय पोती खुशी,  मेरे पास ही रूक जाने का अपनी दादी आग्रह करने लगी। मम्मीजी ने मेरी तरफ देखा और मेरी स्वीकृति मिलते ही खुशी अपने  दादा दादी को बॉय कह कर मेरे कमरे में जाकर बैठ गई। रात को कहानी सुनाने का प्रामिस वह मुझ से करवा चुकी थी। सब सो गये, मैं और खुशी मस्ती करते रहे...।खुशी अकसर अपनी बुआ चाचा से कहानी सुनती थी| इसलिये अधिकाशं कहानियाँ उसकी सुनी हुयी थी। इसलिये मुझे भी सोच-सोच कर कहाँनी सुनानी पडी।

अब उसकी कहाँनी सुनाने की बारी थी। उसने जो कहाँनी सुनाई, वह थी अपने सौरभ भैया कि, कहानी क्या थी| मेरा पूरा जीवन बदलने वाली घटना बन गई थी। खुशी ने कहना आरंम्भ किया। एक थे हमारे सौरभ चाचा जो हमें खूब प्यार करते थे| अब भी जब भी आते हैं तो हमें खूब प्यार करते है। खूब खिलौने दिलाते थे मेरी बार्बीडाँल टैड़ी सभी तो उन्हीं के दिलाये हुये हैं। और  तो और पिछली बार आये थे तब मुझे सायकिल भी दिलाकर गये थे। खुशी की आँखें मटकाने की अदा मझे मजे दिला रही थी। आपको पता है? वह अमरीका में रहते हैं अरें आपको तो पता ही होगा ना आपकी उनसे जो शादी हुयी है। आप जब उनके पास जाओगे तब आप उनको जरूर बताना कि मैं उनको कितना प्यार करती हुं मेरे प्यारे चाचु को बोलना कि वह जल्दि आ जायें पर आप उनको चुपके से एक बात जरूर कह देना, वह अपने साथ चाची को लेकर न आयें, मुझे वह बिल्कुल अच्छी नहीं लगी, उसने सब को बहुत रूलाया था। तब उन्होंने ना हमें प्यार किया और ना ही कुछ दिलाया| बस सबको नाराज करके चले गये थे। पर ये अच्छी बात है अभी जब अपनी शादी के लिये आये थे| तब  उन्होंने  मुझे बहुत प्यार किया था उन्होंने ही तो मेरा नाम खुशी रखा था। सन्न रह गयी थी| मैं उसकी बात सुनकर और खुशी थी कि घारा प्रवाह बोल जा रही थी और मेरे दिमाग में जैसे घंटीया बजने लगी थी।

किससे पूछू -खुशी की इन बातों का अर्थ क्या है? स्वयं का संयत रखने का प्रयास करते हुये मैने उसको बोलते हुये रोका और पूछा कि खुशी अपनी कौनसी चाची की बात कर रही है| उसने भी भोले पन से जवाब दिया.. वही जो अमरीका में चाचा के साथ रहती है| मम्मी कहती है वह गोरी मेम है। मैने सहजता से पूछा था। आपको किसने कहा कि वह चाची है? |खुशी ने आँखे मटकाते हुये कहा चाचु ने और किस ने...। बस फिर क्या था रात के ग्यारह बज रहे थे| मम्मीजी के कमरे की लाईट बन्द हो चुकी थी पर मेरे मन में चल रही विचारों की आँधी का  मैं क्या करूं... कैसे संयत रखुं स्वयं को? खुशी अब सो चुकी थी , अब अकेली जाग रही थी। शायद आजीवन जागते रहने के लिये, मन में झंझावत चल रहे थे| अचरज उसे आज तक सौरभ कि किसी भी बात से अंदेशा नहीं हुआ कि एैसा भी कुछ है उसके जीवन में, अमरीका की किसी भी बात में कभी भूल से भी उसका जिक्र न आना सौरभ की शातिरता को दर्शा रहा था और मम्मीजी ने भी इस बात को उससे क्यों छुपाया| यदि सौरभ की किसी से मि़लता भी था तो भी उसे बताना मम्मीजी का नहीं सौरभ का कर्तव्य था। पर चाची मानने तक की हद तक संबघ था तो सुरभी के साथ सौरभ के विवाह का औचित्य क्या? अब समझ आय कि अमरीका जाने के लिये उसके कागजात में हो रही उसकी देरी का कारण।

 अब उसे याद आया मम्मीजी किसी से बात करते समय कह रही थी ऐसे ही थोडी छोड देगी वो अमेरीकन लडकी उसे तब उसके मन में कोई शंका भी नहीं हुयी। और विवाह के छः महिने चैन से निकल गये। क्या करूं क्या करूं मन हिलोर ले रहा था। उसने सौरभ को अमरीका फोन मिलाया पर सामने से सौरभ का मैसेज आया शाम को बात करता हूं| सुरभी का मन इतना बेचैन था कि उसने सौरभ के दोस्त सुशान्त को फोन लगाया। उससे बात करने की भूमिका बना ही रही थी कि फोन कट गया और फिर लगा ही नहीं। इस मानसिक तूफान झंझावत में सुबह के चार बज गये थे|

      सोच ही रही थी कि अपने पापा मम्मी को बीकानेर फोन कर दे या पहने सौरभ के पापा मम्मी से सब कुछ क्लीयर कर ले ,तभी बात को आगे बढाये इतनी देर में पापा को खांसी का जोर का दौरा पडा और मम्मीजी दवा लेने रसोई में जाती नजर आई| सुरभी भी पल भर की देरी किये बिना मम्मीजी के पास पहुँच  गई, मम्मी अपनी घबराहट में बोले जा रही थी अब तक क्यों जाग रही हो इनको को खांसी का ऐसा दौरा कभी-कभी आ जाता है चिन्ता मत करो गर्म पानी के साथ दवाई लेंगे तो अभी ठीक हो जायगा। सुरभी चुप चाप मम्मी जी के पास खडी रही और गर्म पानी ले जाते समय वह पीछे पीछे मम्मीजी के कमरे में चली गई| पापा पलंग पर तकिये का सहारा लिये बैठे थे।  सुरभी ने अपने आप को संयत रखा, थोडी देर बाद पापा को ठीक महसूस होने लगा था। उसने ईशारे से मम्मीजी को बाहर आने के लिये कहा. ड्रॉइंग  रूम में सुरभी मम्मी जी के गोद में सिर रखकर फूट-फूट कर रोने लगी और उसने कहना आरंम्भ किया ’’मैं पिछले चार घटों से परेशान हुँ जैसे शोलों पर बैठी हूँ  कृप्या मुझे सब सच-सच बता देना सौरभ किसी अमरीकन लडकी के साथ विवाह कर चुका है क्या?’’...आप मुझे बताईये और सुरभी ने खुशी की बातों-बातों में बताई वो  बात पूरी तरह से मम्मी जी को बताई |

 अब मम्मीजी भी समझ गई थी। कुछ भी छुपाना अब व्यर्थ होगा। उन्होंने बड़े प्यार से कहा “बेटी जानती तो थी कि एक दिन तु सब जान ही जायेगी पर इतनी जल्दि जान जायेगी यह नहीं सोचा था। हम दौनों तो यह मानकर चल रहे थे कि तेरे जाने तक सब ठीक हो जायगा और बाद में पति-पत्नि की आपसी समझ से माामला  हल हो जायगा। काश एैसा ही हो....सुरभी भैाच्चकी सी बस उनका चैहरा देखती भर रही....। पता नहीं क्यों मम्मीजी ने उसका हाथ पकड कर उसे अपने शयन कक्ष के सोफे पर बैठाते हुये घीरे से कहा तु बैठ में चाय बना कर लाती हूं। अपने कमरे में सोने मत चली जाना.... और मम्मीजी सचमुच उसे ऐसी हालत में छोडकर चाय बनाने चली गयी। कुछ समय तक सुरभी अपने सूने हुये दिमाग को संयत रखती बैठी रही । पता नहीं उसे क्या सूझा कि वह भी मम्मी जी के पास जाने के लिये उठ खडी हो गयी। उसे हल्कि-हल्की आवाज में बातें करने की आवाज आ रही थी| ममीजी बोल रही थी “अब क्या कहुं, इस सीधी सरल लडकी से इसके तो माता पिता भी इसी की तरह सीध-साधे हैं| यह हमसे कितनी बडी भूल हो गयी|  तेरे पापा को  फिर से खांसी का दौरा पडा है देखती हुं सुबह तक कैसा रहता है यदि ठीक नहीं रहा तो डाक्टर के पास लेकर जाऊँगी”। मुझे सामने पा कर उन्हाने झट  से फोन रख दिया।

   अचानक ससुरजी के कमरे से पुनः जोर से खांसी की आवाज आई| मम्मीजी चाय वहीं  छोड कर भागी और उन्होने जैसे मौका पा लिया था| मुझसे मुंह चुराने का, इस बार दौरा बहुत तेज था| ससुरजी बहुत ज्यादा तडप रहे थे| मैने गााडी की चाबी निकाली। पापा को किसी तरह से तैयार कर रही मम्मीजी मुझे कहती जा रही थीं | “थर्मस में गर्म पानी व चाय भरले , पानी की बोतल भी रखलेना ।देख मेरी अलमारी में पैसे रखें हैं  पर्स में रख ले, पापा की रिपोर्ट सामने  अलमारी  मे रखी है| पापा की चप्पल निकाल, तौलिया संभालकर रख लेना, सौरभ का लाया मैडिकल किट भी वहीं रखा है और जल्दि कर बेटा, पडौस वाली सुधा भाभी को जगा कर खुशी को उनके भरोसे छोड़ देना । अभी थोड़ी देर में वापस आ जायेगे”। न जाने क्या-क्या सुरभी के हाथ पाँव अब फूलने लगे थे। उसे भी पिताजी की हालत पर तरस आ रहा था| उसने मन ही मन निर्णय ले लिया था कि उसे अभी हर संभव मदद करनी है। छः महिने से जो प्यार पाया था उसका लिहाज तो रखना ही था।

    मानवता के नाते उसका यही कर्तव्य है। मैंहदी रचे हाथों से सुरभी अपनी सारी जिम्मेदारी निभाती जा रही थी। डाक्टर ने पिताजी को भर्ती करने की सलाह दी सारी प्रक्रिया करने में काफी समय लगा पर उसे तसल्ली थी कि पापा की हालत अब स्थिर थी। मम्मी जी कि घबराहट अब कम हो गयी थी। वह उनका हाथ कस कर पकडे बैठी थी| जब तक डाक्टर ने सब ठीक होने का संकेत नहीं दिया।

 अनेकों बार सुरभी के कंधे पर सिर रखकर मम्मी जी अपना गुबार निकाल चुकी थी..... सब कुछ भूल कर उसी आत्मियता से सुरभी ने उन्हें संभाला था। सुबह होते तक सौरभ को भी समाचार मिल गया था|  उसने भी अनेकों  बार फोन करके सुरभी से समाचार लिये थे ।

  आज तीज का दिन था| दोपहर तक मुझे और मम्मीजी को कुछ होश नहीं था। शाम पाँच बजे तक मम्मी पापा भी पहुँच गये थे। मम्मी के गले मिलकर सुरभी भी फूट फूट कर रोई पर इसको  उन्होंने पापा की बिमारी की घबराहट ही समझा। सुरभी अपने मन की उथल-पुथल को बता कर वातावरण को और बोझिल नहीं बनाना चाहती थी। पापा की बिमारी की अवस्था से ही उसे समय देख कर बात करना आ गया था।

 मम्मीजी ने सुरभि को  चाची के घर जा कर तीज का बायणा निकाल आने को कहा, साथ में  दूर की ननद भी थी वो सुरभि को  समझा रही थी कि इतना उदास न हो भाभी ताऊँजी जल्दि ठीक होकर घर आ जायेंगे।   सोचा भी नहीं था कि मेरी  सावन की तीज इस तरह बीतेगी, कुछ समझ नहीं आ रहा था। पापाजी करीब सप्ताह भर अस्पताल में रहे।

 कब कैसे ना जाने  मम्मीजी ने उन्हें सारी स्थिती बता दी थी | जिस दिन पापाजी ठीक होकर घर आये।  उसके अगले दिन सुबह मुझे उन्होने अपने कमरे में बुलाया और सारी बात विस्तार से बताई।  कैसे वह अपने मौत का सामना करते पिताजी को यह नहीं बता पाये कि उनका बेटा अमरीकन लडकी से विवाह कर चुका है। पापाजी के बेटे ने तो उनसे झूठ नहीं बोला था और पापाजी झूठ बोलने के बदले छुपाने में ही परिवार की भलाई मानकर चुप रह गये थे।

असल में सौरभ के जाने से पहले ही उसके दादाजी ने  कह दिया था कि “अपनी सारी सम्पत्ती जो गाँव में उन्होनें पापाजी के पुत्र के नाम कर रखी थी । वह उसके नाम तभी करेंगे जब वह भारतीय लडकी से विवाह करेगा”।  पिताजी ने कहना  जारी रखा था | तुम्हारे से विवाह के  पहले सौरभ आया भी था| उस लडकी को लेकर वह लड़की हम सभी को किसी भी तरह से वो विदेशी लड़की सौरभ के लायक नहीं लगी और ऐसा महसूस हो रहा था कि सौरभ भी उसके साथ अत्यिधिक प्रसन्न नहीं था। “मै भी जानता हूं बेटा की आज के युवा विदेश में जाकर उतना विवके और संयम नहीं रख पाते और समय के बहाव में बहकर कुछ गलत निर्णय कर बैठते हैं। ऐसा ही गलत निर्णय सौरभ का भी था यह उसने हम सबके सामने स्वीकार किया था”।

इसलिये हम  सब की अस्वीकृति के बाद, उसने हमें विश्वास दिलाया था कि “वह इसे छोड देगा और हमारी सुझाई  भारतीय लडकी से विवाह कर अपने जीवन की नई शुरूआत रकेगा”। इस लिये हम इस विवाह के लिये तैयार हुये । सब कुछ ठीक हो जायगा यह सोचकर हमने तुम्हारे माता पिता को भी सब कुछ बता दिया था। गर्व है कि सौरभ ने कभी भी हमसे कुछ नहीं छुपाया| अब वह उसके साथ नहीं रहता, बस कानुनी तौर पर तलाक बाकी है। जितनी रकम वो मांग रही है वह एकत्रित करने के लिये उसे अभी  मैहनत तो करनी ही पडेगी, क्यों कि मैंने उसे कह दिया है कि तुम्हारी इस भूल के लिय मैं कोई जिम्मेदारी नहीं लूंगा। मेरे पिताजी विवाह के बाद वो सारी सम्पत्ति मेरे पिताजी ने तुम्होरे नाम लिख देने को कहा है| वो अपने इकलौते बैटे के बेटे की बहु को यानि तुम्हें देने का वादा लेकर, इस दुनिया से विदा हो गये।

 मुझे भी नहीं पता मेरा क्या होना है| इसलिये अब निर्णय तुम्हे करना है अपने बेटे की भूल को मैने माफ़ कर दिया| अब मैं यह नहीं कहूंगा कि तुम भी उसे माफ कर दो ......निर्णय लेने में जल्दि मत करना बेटी, यह सब तुम्हारे पिताजी भी जानते हैं | हमने कहीं कुछ छुपाया नहीं था। मेरा और तुम्हारे पिताजी का मत था कि “छोटे शहरो से गये लडको से वहॉ की चकाचौध भरे जीवन की चमक दमक में बहकना स्वभाविक है। पर समय रहते समझ आ जाये इसे हम समझदारी ही कहेंगे”।

“बेटी सौरभ तुम्हे स्वयं बताना चाहता था पर तुम्हारे पिताजी ने उसे यह जिम्मेदारी  अपने ऊपर लेने का आग्रह किया था। बेटी अब तुम जो भी उचित समझों में तुम्हारे हर निर्णय में तुम्हारे साथ खडा नजर आऊँंगा। तुम्हारे पिताजी ने मुझे बता दिया था कि जो संबध उन्होने तुम्हारे लिये पहले खोजा था उसमें भी तुम्हे छलावा ही मिला, इस लिये संभव है कि तुम्हे पुरूष, विवाह,ससुराल जैसी बातों से नफरत हो जाये पर कोई भी संबध अपने आरंम्भिक समय में संपूर्ण नहीं होता| हम उसे संम्पूर्णता देते हैं”।

   हम दौनो की बातों के दौरान कब मम्मीजी ने गर्म गर्म खीर पूडी  गटटे की सब्जि घेवर और सांगरी की मसालेदार सब्जि तैयार करके हम दौनो को खाने के लिये आवाज लगाई।  मेरी रो-रो कर सूजी आँखों की और देख कर उन्होनेु मुझे गले लगाया और अपनी गले की मोतियों की माला मेरे गले में डालते हुये कहा’’ यह नहीं कहूँगी कि  यह सास का प्यार है  यह प्यार है एक मां  अपनी बेटी को’’ आज हमारी तीज है ’’खिडकी के बाहर भी जोरो का सावन बरस रहा था और मेरे नैनों मैं भी’’ मन कह रहा था निर्णय लेगे तब देख लेंगे, अभी तो गर्म-गर्म खीर पूडी सांगरी की सब्जि का आनन्द लेत हैं। मैं चटखारे ले कर खा रही थी और कब सौरभ मेरी बगल में खड़े मुझे निहार रहे थे। आज तक  उन्होने  अपने माता पिता से जो सदा सच बोला था यह जीत उसकी थी।

  सौरभ के साथ एकान्त में जाने से पहले मन को तैयार  करना जरूरी था। सोच रही थी हमारे भारतीय परिवारों में अकसर पति पत्नि के संबधों में मधुरता हो तो परिवार सास ससुर के साथ वह संबध नहीं बन पाते,मेरे साथ परिवार वालों के व्यवहार, विस्वास से मुझे इस संबध में संभावनायें नज़र आ रही थी। इस संबध को प्रवाह देन का दूसरा कारण मुझे ये नजर आ रहा था कि जो पुत्र माता-पिता के सामने इतना सच्चा है, मेरे साथ उसकी ईमानदारी में किसी संशय की संभावना नहीं है।

                         प्रभा पारीक भरूच गुजरात