समाज सुधारक राजा राममोहन राॅय जी की तरह अगर पूरा देश सोच तो….
“बस बस अपना भाषण बंद करो आपका भाषण गांव के कुत्ते भी नहीं सुन रहे हैं, वह भी एक हड्डी के लिए आपस में युद्ध कर रहे हैं, कुर्सियां दरी (फर्श) सब खाली हो गए हैं, गांव के बुजुर्ग जवान महिलाएं बच्चे सब कीचक द्रोपती की नौटंकी देखने भाग गए हैं, आप आंखों से तो अंधे हो अब मुझे लग रहा है, आप अक्ल से भी अंधे हो गए हो जो पूर्वजों की धन दौलत समाज सुधार के कार्यों में खर्च किए जा रहे हो आज शाम ही आप ने टेंट हाउस हलवाई पर कम से कम दस हजार रुपए बर्बाद कर दिए हैं।” क्रोध में अपने पति धर्मराज को ताना देकर सीता घर चली जाती है।
लेकिन धर्मराज को पूरा यकीन था कि मैं एक बार जब अपने गांव से सारी कुप्रथाओं का अंत कर दूंगा, तो आसपास के गांव को भी हमारे गांव से शिक्षा मिलेगी कुप्रथाओं का अंत करने की वहां भी मेरे जैसा कोई समाज सुधारक जरूर जन्म ले लेगा और समाज सुधार की अग्नि जंगल की अग्नि की तरह धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल जाएगी।
लेकिन धर्मराज के सामने यह समस्या थी कि मैं आंखों से अंधा अकेला यह काम करूं तो कैसे करूं, इसलिए वह एक योजना बनाता हैं अपनी इस योजना को पूरा करने के लिए उसे ऐसे स्त्रियों पुरुषों की जरूरत थी, जो कुप्रथा का दुख कष्ट बर्दाश्त कर रहे हो या किया हो।
और उसे ऐसे स्त्री पुरुष अपने गांव में ही आसानी से मिल जाते हैं, पहला अंग्रेजी सरकार में सरकारी नौकरी करने वाला छुआ छूत का कष्ट झेल रहा शंकर दूसरी बाल विधवा सावित्री तीसरी ऐसी मां जो अपनी बेटी के बाल विवाह के खिलाफ थी चौथी गांव की विधवा जिसको पति की चिता के साथ सती करने की कोशिश पूरा गांव मिलकर कर चुका था, लेकिन अंग्रेज दरोगा के डर से वह इस कुकर्म में सफल नहीं हो पाए थे।
इन सब के साथ मिलकर धर्मराज अपने गांव और आसपास के गांवों में कुप्रथाओं के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन छेड़ देता है।
वह सबसे पहले छुआछूत का कष्ट झेल रहे अंग्रेजी सरकार में सरकारी कर्मचारी कुंवारे शंकर की शादी बाल विधवा सावित्री के साथ करवा देता है। दूसरा उस मां की बेटी को अंग्रेज अफसर की मदद से शहर के अंग्रेजी विद्यालय में पढ़ने और वही हॉस्टल में रहने भेज देता है जो अपनी बेटी के बाल विवाह के खिलाफ थी और गांव की विधवा के नाम उसके पति की सारी संपत्ति करवा कर उसका जीवन सुधार देता है।
धर्मराज के इन कार्यों से पूरा गांव ही नहीं पूरा जिला उससे नाराज हो जाता है, इसलिए समाज के ठेकेदार उसकी हत्या की योजना बनाना शुरू कर देते हैं।
जब अपने पति की हत्या की बात सीता को पता चलती है तो वह बहुत खुश हो जाती है कि पति की मृत्यु के बाद उसकी सारी संपत्ति उसे मिल जाएगी अगर उसका पति कुछ दिन और जिंदा रहा तो सारी धन दौलत जमीन जायदाद समाज सुधार के कार्य में लूट देगा, इसलिए वह अपने पति के चचेरे भाई के साथ मिलकर अपने पति के दूध में जहर मिला कर उसकी हत्या कर देती है।
पति की मृत्यु के बाद वह जब खुद कुप्रथा का शिकार हो जाती है तो उसे उस समय एहसास होता है कि समाज की कुप्रथाएं मनुष्य के लिए कितनी घातक और मनुष्य की कितनी बड़ी दुश्मन होती है, क्योंकि धर्मराज का चचेरा भाई धर्मराज की संपत्ति हड़पने के लालच में गांव वालों के साथ मिलकर अपनी भाभी यानी कि धर्मराज की पत्नी सीता को धर्मराज की चिता के साथ सती करवा देता है।