सेठ जी गाड़ी का एसी खराब होने की जरा सी बात पर आपने अपने पिता के जमाने के ड्राईवर की पीठ पीठ कर हत्या कर दी।” पुलिस इंस्पेक्टर सिद्धार्थ कहता है
सेठ होरीलाल अपने वकील के समझाएं हुए अनुसार कहता है “मैंने यशवंत ड्राईवर की हत्या नहीं की है, वह तो मेरे नौकर धर्म सिंह और उसमें किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया था, तो धर्म सिंह ने उसके सर पर किसी भारी चीज से वार कर दिया था, उसके घायल होने के बाद जसवंत ड्राईवर ही घायल धर्म सिंह को अस्पताल लेकर भागा था, मैं तो उस समय घर पर ही नहीं था।”
सेठ होरीलाल ने पहले ही अपने नौकर धर्म सिंह को इतने रुपए देने का लालच दे दिया था कि वह सेठ होरीलाल का जुर्म अपने सर पर लेने के लिए खुशी से तैयार था।
और जब ईमानदार पुलिस इंस्पेक्टर सिद्धार्थ कहता है “अभी तो मैं धर्म सिंह को गिरफ्तार करके ले जा रहा हूं, लेकिन आज रात लॉकअप में इस से पूरी सच्चाई उगलवा लूंगा।”
फिर धर्म सिंह कहता है “आज रात तो मैं पुलिस वालों का टॉर्चर बर्दाश्त कर लूंगा, लेकिन कल सुबह-सुबह मेरी पत्नी ने मुझसे यह आकर कहा कि आपने उसे रुपए नहीं दिए हैं, तो मैं ड्राईवर की हत्या की पूरी सच्चाई पुलिस इंस्पेक्टर सिद्धार्थ के सामने उगल दूंगा।”
अपने नौकर धर्म सिंह की यह बात सुनकर सेठ होरीलाल घबरा जाता है और तुरंत आधी रात को ही धर्म सिंह के घर रुपए देने पहुंच जाता है, लेकिन उस समय धर्म सिंह की तीनों बेटियों और पत्नी घर पर नहीं थे, और धर्म सिंह के घर पर ताला लगा हुआ था।
सेठ होरीलाल उन्हें रुपए दिए बिना वापस भी नहीं आ सकता था, क्योंकि धर्म सिंह ने रुपए न मिलने पर ड्राईवर की हत्या की सारी सच्चाई पुलिस के सामने उगल ने की उसे धमकी जो दे रखी थी। इस वजह से वापस आने की जगह सेठ होरीलाल आस-पड़ोस में पूछताछ करता है कि धर्म सिंह की बीवी बच्चे कहां गए हैं, तो उसे पता चलता है कि वह अपने पिता से मिलने पुलिस स्टेशन गए हैं और कुछ देर में वापस आ जाएंगे।”
धर्म सिंह का पड़ोसी इतने अमीर आदमी को गंदी नाली के पास और तंग गली में खड़ा देखकर अपने घर सेठ होरीलाल को धर्म सिंह के परिवार का इंतजार करने के लिए लिए बुला लाता है।
धर्म सिंह के घर की और उस झोपड़ पट्टी में जितने भी घर थे, उनकी छत सीमेंट की चादरों या काली नीली आदि रंग की पॉलिथीन लकड़ी के फटो की बनी हुई थी।
झुलस्ती गर्मी में जब सेठ होरीलाल उस धर्म सिंह के पड़ोसी से पंखा चलाने की कहता है तो वह व्यक्ति छत की तरफ इशारा से दो छोटी सी पंखुड़ियों को दिखाकर कहता है “सेठ जी पंखा तो चल रहा है।” वह पंखा सिर्फ देखने में पंखे जैसा था उसकी हवा ना के बराबर थी और घर में जो पीले रंग का बल्ब रोशनी दे रहा था, उसकी रोशनी भी नाम मात्र की थी।
घर के आगे से बहती हुई गंदी नाली से बदबू आ रही थी कुर्सी की जगह धर्म सिंह के पड़ोसी ने सेठ होरीलाल को एक पेंट का खाली हुआ डिब्बा दिया था, बैठने के लिए।
उस व्यक्ति के घर में मखमल के बिस्तर आलीशान पलंग की जगह फटे पुराने चिथड़े उड़ा हुआ बिस्तर था और एक टूटी-फूटी चारपाई थी।
तेज गर्मी की वजह से जब सेठ होरीलाल को पानी की प्यास लगती है तो धर्म सिंह का पड़ोसी जो पानी सेठ होरीलाल को पीने के लिए देता है, उसे पीते ही सेठ होरीलाल उगल देता है, क्योंकि वह ट्यूबवेल का कच्चा (खारा) पानी था।
और अपनी प्यास बुझाने के लिए जब सेठ होरीलाल एक कप चाय पीने के लिए मांगता है, तो वह धर्म सिंह का पड़ोसी कहता है “साहब दो दिन से बुखार में तप रहा हूं, इसलिए रिक्शा चलाने भी नहीं जा पाया हूं, घर में एक धेला भी नहीं है इस वजह से दूध चीनी कहां से लता सिर्फ चाय पत्ती है, मैं खुद नमक डालकर काली चाय दो दिन से पी रहा हूं।”
गरीबी के करीब से दर्शन करके सेठ होरीलाल को एहसास हो जाता है कि हम अमीर बहुत भाग्यशाली हैं जो ईश्वर ने हमें धनी बनाया है, अगर हम अमीरों को जीवन में और अधिक सुख चाहिए तो हमें गरीबों की डटकर मदद करनी चाहिए ताकि ईश्वर की दया हम पर सदा बनी रहे और गरीब पैदा होना जुर्म नहीं है, लेकिन गरीब मरना जुर्म गुना जरूर है।
इसलिए सेठ होरीलाल सारे रुपए धर्म सिंह के परिवार को देकर अपने घर के नौकर और फैक्ट्री की कर्मचारियों की तनख्वाह बड़ा कर यशवंत ड्राईवर की हत्या का जुर्म कबूल कर लेता है।