सर्कस - 16 Madhavi Marathe द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सर्कस - 16

 

                                                                                      सर्कस:१६

 

       स्टेशन पर गाडी पहुँच गई। सफर से अब शरीर उब चुका था। घर जाते वक्त सब से मिलने की उत्सुकता, आनंद था लेकिन आते वक्त तो मन थोडा उदास ही हो गया। सामान निकालने लगा तो इतने में ही धीरज अंदर आया ओैर बडे प्यार से मुझे गले लगाया। उसके आनंद में मेरी उदासी एकदम से दूर हो गई। बातों-बातों में ही हमने सामान उतार दिया। जॉनभाई ने हँसते हुए हाथ हिलाया ओैर सामान जीप की तरफ लेकर जाने लगे। मैने एकबार अंदर चक्कर लगाकर देखा कही कुछ रह तो नही गया।

        नोव्हेंबर का महिना था तो अच्छी-खासी ठंड, वातावरण में महसुस हो रही थी। दिवाली के जश्न के नजारे पुरे शहर में नजर आ रहे थे। धीरज ओैर मेरी बातों का सिलसिला तो रुका ही नही। जॉनभाई जीप चलाते हमारी बातों का मजा लेने लगे। अचानक धीरज ने कहा “ श्रव्या, तुझे दो बाते बतानी है, एक है अच्छी, एक है बुरी।”

    “ अरे, आते ही सब बताओगे क्या? कुछ बाद में भी बताना।” जॉनभाई बोले।

   “ जीप सर्कस पहुँच गई की मुझे काम के लिए दौडना पडेगा, वह भी थक गया है, कुछ देर आराम करेगा, फिर रात को ही हमारी मुलाकात हो पाएगी। उतनी बेसब्री मुझमें नही है। तो पहले बुरी खबर, पक्या को पुलिस पकडकर ले गई।”

    “ क्युँ ? क्या किया उसने ?”

    “ पक्या ड्रग बेचता था। अपनी सर्कस गाँव-गाँव फिरती थी तो वहाँ उसके आदमी फैले हुए थे, उनको ड्रग बेचता था। गनिमत सर्कस के किसी लोगों को उसने व्यसन नही लगाया, शायद उसे छोटे ग्राहक पसंद नही थे, ओैर यहाँ बेचता तो पकडे जाने का खतरा भी रहता, इसलिए सर्कस में छोटे बडे काम करते घुमता रहा। बहुत पैसा कमाया है इसके उपर, गाँव में भेजता रहा। गाँव में खेती-बाडी, बडा मकान, माँ-पिताजी, पत्नी-बच्चे के नाम पर सब करके रखा, पकडा भी गया तो कोई उसकी इस्टेट को हाथ नही लगा सकता। सब कायदे-कानून के साथ किया है। यहाँ भी वह राजा आदमी था, कोई उसे पैसे माँगने गए तो भर-भर के पैसे दे देता ओैर वापिस नही किए तो भी उसे कोई फर्क नही पडता था। पक्या के साथ उनकी जो टोली थी वह भी पकडी गई।”

     “ लेकिन पक्या का पता किसने बताया ? कैसे पकडा गया ?”

     “ पक्या से मिलने कुछ अलग लोग आते है यह बात अरुणसर जान गए थे तो उन्होने भी थोडा ध्यान पक्या पर केंद्रित किया ओैर पुलिस को भी कही से खबर मिली थी तो वह सर्कस में आ गए। अरुणसर ने पक्या के कुछ संशयास्पद हालचाल के बारे में बता दिया, हालाँकी अपने यहाँ का आदमी पकडा जाए यह बात उन्हे अच्छी नही लग रही थी लेकिन समाज विघातक कृती को छाटना ही बेहतर है ऐसा उनका मानना था। फिर पुलिस ने जाल बिछाया ओैर एक-एक करते लोग हाथ में आ गए। पक्या जाते वक्त अरुणसर से माफी माँगकर गया। उसे बडी सजा मिलेगी शायद।”

      यह बाते सुनकर मुझे अचानक वास्तवता का भान आ गया। परिवार के सुरक्षित वातावरण से दुर, दुनिया के अलग पहलू का झटका लगा। दुनिया में अच्छाई-बुराई सब कुछ है लेकिन तुम कौनसा रास्ता अपनाते हो वह तुमपर निर्भर है। कभी ना कभी पकडे जाने के डर से अपने परिवारवालों का भविष्य सुरक्षित कर गया, फिर भी उन्हे बदनामी तो झेलनी पडेगी। कुछ सालों बाद वह छूट गया तो परिवारवाले उसे अपनाऐंगे? समाज उसे माफ करेगा? मन विचलित हो गया।

     “ अब अच्छी खबर सुना दे। ऐसी घटनाओं को सुनकर अपना मन सुन्न होता है लेकिन जीन लोगों पर यह हालात बितते है उनका क्या हाल होता होगा? अभी तुम छोटे हो, दुनिया से अनजान हो, फिर भी एक बात याद रखना सभी बातों को दिल पर मत लेना।अच्छे काम करना अपने हाथ में है वह करते रहना। कायदे कानून के दायरे में रहना, फिर भी कोई बात हो गई तो उसका सामना करना। हार मानकर मत बैठ जाना।” मेरी हालत देखकर जॉनभाई ने मेरी पीठ पर सहारते हुए कहा।

     “ श्रव्या, अभी तुमने घर के बाहर कदम रखा है इसलिए हैरान हो रहे हो। दुनिया में न जाने कैसे-कैसे हालात में लोग जी रहे है। अब दुसरी खबर सुन, श्वेता है ना, उसकी शादी तय हो गई है। शरदचाचाजी ने अपने गाँव के पहचानवाले परिवार में रिश्ता जोडा है। उनका कपडे का कारोबार है, श्वेता को भी वह ब्युटी पार्लर का व्यवसाय शुरू कर के देनेवाले है। इस डिसेंबर में शादी है। सिलाई का सिझन अब खतम हो गया है, तो शरदचाचा-चाची के साथ श्वेता भी जाएगी। तुम्हारे आने तक ही वह लोग रुके हुए थे, कल चले जाएँगे।”

    “ यह तो बहुत ही अच्छी खबर है।” दुनिया में कही किसी का जहाँ बस रहा था तो किसी का उजड रहा था। अजीब दस्तुर है जीवन का।

     हम लोग सर्कस पहुँच गए। जीप आती हुई देखकर कोई लोग दौडते हुए आ गए। फिर हाँथ मिलाना, गले मिलना, किसी का दुरसे ही हाथ हिलाना, किसी का अनदेखा करना सब तरह की चीजे हो गई। धीरज के साथ वही पर सामान का विभाजन कर दिया, माँ ओैर चाची ने सर्कस के लोगों के लिए मिठाई, नमकिन दिया था वह एक लडके के हाथ से रसोईघर भिजवा दिया। बाकी सामान हम तीनों ने कमरे में रखवा दिया। हाँथ-पाँव धोकर रसोईघर की तरफ गए। माँ ने गोदाक्का के लिए एक अलग से बॅग भरकर सामान भेजा था वह साथ में थी। मुझे देखते ही गोदाक्का ने बडे प्यार से गले लगाया ओैर कहा “ आ गया मेरा बच्चा, तुम नही दिखते थे तो मेरा मन नही लग रहा था, कैसे है सब घर के लोग? पेपर्स कैसे गए?” फिर खाने के लिए देकर मेरे पास बैठ गई। हम कितनी देर तक बाते करते रहे। धीरज अपना खाना खतम कर के चला गया, शो का वक्त हो रहा था। बातचीत के बाद गोदाक्का ने कहा “ श्रवण, अब थोडा आराम कर ले। अरुणसर ने तुझे पाँच बजे ऑफिस में बुलाया है। अभी वह बाहर गए है।” मैं हाँ कहते हुए वहाँ से चल दिया, नींद के कारण कुछ सुझ नही रहा था। बाकी लोगों से बाद में मिलेंगे यह सोचकर कमरे की ओर चला आया, बिस्तर पर लेटते ही नींद ने घेर लिया। आधी-अधुरी निंद में सपनों की शृंखला के साथ कोई आवाज दे रहा है यह बात ध्यान में आ गई। मन्या आवाज दे रहा था।

    “ श्रव्या, उठ जा, साडेचार बज गए। तुम्हे पाँच बजे ऑफीस जाना है। गोदाक्का ने जगाने के लिए भेजा है।” हडबडी में उठकर बैठ गया। कितनी देर सोया अब याद नही लेकिन अच्छा महसुस कर रहा था। हाँथ-मुँह धोकर मन्या के साथ चाय पिली ओैर अरुणसर को देने के लिए दादाजी ने दिया हुआ खत, मिठाई, भेटवस्तू की बॅग लेकर ऑफिस में गया। वह मेरी राह ही देख रहे थे। एक-दुसरे को देखकर हमे बडा आनंद हो गया, जैसे परिवार का कोई सदस्य मिल गया हो, सब सामान उनके सुपूर्द कर दिया। पेपर्स, परिवारवालों के बारे में बातचीत होने के बाद सर ने मुख्य चर्चा आरंभ कर दी।

    “ श्रवण, अब आगे क्या करने का इरादा है? कौनसे विभाग में काम करना चाहोगे?”

    “ सर इस बार मैं जॉनभाई के साथ काम करना चाहूंगा।”

    “ अच्छा। श्रवण बडी दूर की सोचता है हा तू। अब अपनी सर्कस दुसरे गाँव में जाएगी तो जॉनभाई के साथ जीप में मजे करते हुए जाने की सोच रहा है ना।” सर ने बडी कुशलता से मेरे मन की बात जान ली इस बात पर मैं हँसने लगा, वह भी हँसने लगे।

    “ अच्छा है बहुत कुछ सीख पाओगे उससे, हरहुन्नरी आदमी है, दुनिया घुमी है। ठीक है तो कौनसा खेल अपनाना चाहोगे?”

    “ सच बात बताऊँ, स्टेज पर मेरा मन नही लगता, सब बारिकीयाँ जान जाऊँ बस इतना ही है। इस बार बॅन्ड में जाता हूँ, लेकिन मुझे कोई वाद्य बजाना आता नही है।” 

    “ अच्छा ठीक है, कल सुबह संथाळसर से मिल लेना ओैर बात कर लेना। मैं उनको बता दुँगा।” फिर हमने थोडी देर इधर-उधर की बाते की, सर को किसी का बुलावा आ गया तो वह निकल गए। वहाँ से मैं सीधा शरदचाचाजी से मिलने गया। कल वह निकलनेवाले थे। बॅग भरने का काम चालू था उन दोनों का। मुझे देखते ही उन्हे बहोत आनंद हुआ।

    “ आजा श्रवण, तुम्हारे लिए ही रुके थे हम, कैसा है? परिवार में सब ठीक है ना?”

    “ हाँ चाचाजी सब ठीक है। आप कल जा रहे है, जल्दी आना आपके बीना अच्छा नही लगेगा यहाँ। आपने जो गुम हुए बच्चों के संदर्भ में पता दिया था उनके बारे में माँ तहकिकात करनेवाली है। श्वेता की शादी तय हुई है इस के बारे में धीरज ने बताया, सुनकर मन बडा प्रसन्न हो गया। आपके वजह से उसकी जिंदगी सँवर गई।” मेरी बाते सुनकर चाचा-चाची खुश हो गए। चाची ने एक कटोरी में मिठाई रखकर मुझे देते हुए कहा “ अपने बहन के शादी में तुम्हे आना ही है, मैं अरुणसर से बात कर के रखूंगी। तुम जरूर आना।” इतने में श्वेता वहाँ आ गई, फिर क्या था गपशप, एक दुसरे को चिढाना, हल्लागुल्ला शुरू हो गया ओैर भी दो-चार लोग इस माहोल में शामिल हो गए। बॅन्ड का आवाज रुक गया, खेल खतम हो गया तो हम भी रुक गए। उन सबसे विदाई लेते हुए श्वेता को कहा कभी भी कोई काम हो, मुझे जरूर याद करना तुम्हारा भाई दौडकर आ जाएगा। श्वेता की आँखे भर आयी। वातावरण में गंभीरता छाई हुई देख चाचाजी बोले “ पहले शादी की तैयारी करने आठ दिन आजा फिर बाद का बाद में देखेंगे।” यह सुनकर सब हँसने लगे, मैं बाहर रसोईघर की तरफ बढा। खाना खाते वक्त हमारे ग्रुप के साथ जी भर के बाते हो गई। गोदाक्काने माँ ने भेजी मिठाई टेबल पर रख दी थी, सबको वह पसंद आयी। फिर थके-हारे हम सोने के लिए चल दिए।

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