प्यार हुआ चुपके से - भाग 22 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 22

रति,लक्ष्मी के साथ मंदिर पहुंची,तो वहां आज रोज़ से कुछ ज़्यादा ही चहल-पहल थी। मंदिर में अजय अपनी मां के साथ खड़ा, पंडितजी से कुछ बातें कर रहा था।

"बिटिया तू मंदिर में जा, मैं ज़रा देख आऊं कि भंडारे का प्रसाद तैयार हुआ या नही"- लक्ष्मी बोली। रति ने मुस्कुराते हुए हां में सिर हिला दिया,तो वो वहां से चली गई। उनके जाते ही रति ने शिवजी के सामने हाथ जोड़े और मन्दिर की सीढ़ियों को छूकर मन्दिर के अंदर आई।

उसे देखते ही दीनानाथजी बोले - बिटिया तेरी अम्मा को बोल जाकर देखे, हलवाइयों ने प्रसाद तैयार किया या नही। आरती के पहले भगवान को भोग लगाना है।

"अम्मा वही देखने गई है बाबा,मैं आरती की तैयारी कर लेती हूं"- इतना कहकर रति वहीं बैठकर पूजा की थाल तैयार करने लगी। अजय और सुमित्रा दोनों ही उसे देख रहे थे। तभी दीनानाथजी, सुमित्रा से बोले - बहनजी, आप हर साल आज के दिन मन्दिर में पूजा रखवाती है। भंडारा भी करवाती है और हर साल में आपसे यही सवाल करता हूं कि आज का दिन आपके लिए इतना खास क्यों है, पर आप कभी जवाब नही देती। आज तो बता ही दीजिए कि आखिर आज का दिन आपके लिए इतना खास क्यों है?

उनके इस सवाल ने सुमित्रा से उसकी मुस्कुराहट छीन ली और वो उदास हो गई। तभी अजय भी बोला - मां प्लीज़ बताइए ना..... कि आज का दिन आपके लिए इतना खास क्यों है? क्या हुआ था आज?

सुमित्रा ने खुद को संभाला और फिर बोली - आज तेरे बड़े भाई का जन्मदिन है बेटा,

उनके इतना कहते ही अजय और दीनानाथजी के साथ-साथ रति ने भी उनकी ओर देखा। सुमित्रा ने अपनी आँखें बंद कर ली,तो उनकी आंखों से आंसू बहने लगे, पर फिर उन्होनें अपनी आंखें खोलकर आंसू पोंछे और बोली - तेरा वो भाई....जो इस दुनिया में आया तो सही, पर तेरी मां को उसका चेहरा तक देखना नसीब नही हुआ।

"मेरा भाई??"- अजय ने हैरानी से पूछा। सुमित्रा ने आहिस्ता से हां में अपनी गर्दन हिलाई और बोली - हां....तेरा बड़ा भाई, जो अब इस दुनिया में नही रहा।

उनकी बातें सुनकर अजय परेशान हो गया और सोच में पड़ गया, पर अपनी मां को रोता देख, उसने उनसे आगे कोई और सवाल नही किया।

वो अपनी मां को संभालते हुए बोला - मां आप रोती हुई बिल्कुल भी अच्छी नही लगती और आपको रोना भी नही चाहिए क्योंकि आपके उस बेटे का रिप्लेसमेंट आपके साथ खड़ा है और हमेशा खड़ा रहेगा।

सुमित्रा ने बहुत प्यार से उसके चेहरे को छुआ। रति अजय और उसकी मां को साथ में देखकर मुस्कुराते हुए भगवान के लिए फूलों की माला बनाने लगी। उन्हें साथ देखकर उसे शिव और उसकी मां किरण की याद आने लगी।

दूसरी ओर ओंकारेश्वर के बस स्टैंड पर एक बस आकर रूकी और शिव बस से बाहर आया। उसने चारों ओर देखा और ख़ुद से बोला - रति ज़िंदा है इसलिए उसे तो मैं ढूंढ ही लूंगा, पर उससे पहले मुझे अपनी कम्पनी को शक्ति के हाथों में जाने से रोकना है।

सिर्फ तीन दिन बचे है मेरे पास क्योंकि तीन दिन बाद, शिव का वजूद एक बार फिर शक्ति के सामने होगा। इस बार ये जंग आमने-सामने की होगी शक्ति क्योंकि अब मैं ये भूल चुका हूं कि तुम मेरे भाई हो। अब मेरे लिए तुम सिर्फ़ मेरे सबसे बड़े दुश्मन हो और अपने दुश्मन को अपने पैरों पर लाने के लिए मैं कुछ भी करूंगा। कुछ भी...

शिव ने इतना कहकर अपना वॉयलेट चेक किया, तो उसने कुछ रुपए थे। उसे याद आया कि उस रात हॉस्पिटल से बाहर निकलकर,उसने सबसे पहले अपनी अंगूठी बेची थी। वो वॉयलेट जेब में रखकर फिर से आगे बढ़ने लगा। वो कुछ कदम ही चला था कि अचानक उसके कदम रुक गए और उसे गौरी का ख्याल आया।

वो मन ही मन बोला - अगर रति ज़िंदा है,तो ये बात गौरी को ज़रूर पता होगी क्योंकि मेरे और मां के अलावा, रति सिर्फ उस पर आंख बंद करके भरोसा करती है। रति ने उसे तो ज़रूर बताया होगा कि वो ज़िंदा है और यहां है। उससे बात करता हूं, पर बात करूं कैसे?

मुझे तो उसके घर का नंबर भी याद नहीं है। फिलहाल इंदौर जाने का रिस्क भी तो नही ले सकता। मुझे वहां पूरी तैयारी से ही जाना होगा क्योंकि इस बार में शक्ति को जीतने का एक मौका भी नहीं दे सकता। फिलहाल मुझे सबसे पहले अजय साहब से मिलना होगा क्योंकि इस वक्त मुझे उसकी मदद की ज़रूरत है।

इतना कहकर उसने एक ऑटो रोकी और उसमें बैठ गया। दूसरी ओर मंदिर में आरती शुरु हो चुकी थी। अजय अपनी मां और बहन के साथ आरती कर रहा था और दीनानाथजी वही खड़े ऊंचे स्वरों में आरती गा रहे थे।

सुमित्रा ने महादेव के सामने अपने हाथ जोड़े और मन ही मन बोली - मुझे नही पता महादेव कि आपने मुझे मेरे कौन से गुनाह की सजा दी थी,जो मुझे मेरी पहली औलाद का चेहरा तक देखना नसीब नही हुआ। शायद एक बिन ब्याही मां बनने की सज़ा दी आपने मुझे।

पर दुनिया की नज़रों में मैं भले बिन ब्याही मां थी, पर आप तो सच जानते थे ना। आपको तो पता था ना कि मैनें और अधिराज ने दुनिया की नज़रों से छिपकर मन्दिर में शादी की थी, तो फिर क्यों आपने मेरे बच्चे को मुझसे छीन लिया।

बहुत कोशिश करती हूं मैं अपने बच्चे को भुलाने की, पर नही भुला पाती। ना जाने क्यों,पर मेरा दिल कहता है कि मेरा बच्चा ज़िंदा है और वो यही है मेरे आसपास,

तभी शिव ने मंदिर के बाहर अपने जूते उतारे। उसने मंदिर की सीढ़ियों को छूकर अपने माथे से लगाया और सीढ़ियां चढ़ने के लिए अपना पहला कदम रखा। तभी भक्तो को प्रसाद बांट रही रति के हाथ अचानक रुक गए और उसने मन्दिर की सीढ़ियों की ओर देखा, पर आज मन्दिर में भंडारा है,ये खबर सुनकर वहां लोगों की बहुत भीड़ थी इसलिए उसे शिव नज़र नही आया। उसने प्रसाद की थाल वही खड़ी एक लड़की को पकड़ाई"- ये प्रसाद सबको दे दो।

लड़की उससे थाल लेकर प्रसाद बांटने लगी। रति आहिस्ता-आहिस्ता मंदिर की सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगी। शिव भी मंदिर की सीढियां चढ़ रहा था। दोनों के बीच सीढ़ियों पर बहुत से लोग चढ़ और उतर रहे थे।

शिव जैसे ही मन्दिर के अंदर आया। तभी रति सीढ़ियों से उतरकर मंदिर से बाहर आ गई। उसकी नज़रें एक बार फिर शिव को ढूंढने लगी।

शिव ने मन्दिर में आकर वहां लगी घंटी बजाई। घंटी की आवाज़ सुनकर रति ने एक बार फिर पलटकर मंदिर की ओर देखा। तभी अजय ने पीछे से आकर उसके कन्धे को थपथपाया।

रति ने तुरंत पलटकर उसकी ओर देखा तो अजय ने पूछा - क्या हुआ? यहां क्यों खड़ी हो काजल?

"कुछ नही, बस भंडारे का इंतज़ाम देखने जा रही थी। भंडारा बस शुरु ही होने जा रहा है-"- रति ने जवाब दिया। अजय मुस्कुरा दिया- मैं भी वही देखने जा रहा था। तुम जाकर राघव से कहो कि टाट-पट्टियां बिछाना शुरू कर दे। मैं पत्तल-दोने लेकर आता हूं।

रति ने सिर हिलाया और वहां से चली गई। इधर शिव, भगवान के सामने हाथ जोड़े खड़ी सुमित्रा के पीछे खड़ा हुआ था। वो घंटी बजाकर आगे बढ़ा और सुमित्रा के पास आकर खड़ा हो गया। उसने भी अपने हाथ जोड़कर अपनी आँखें बंद कर ली।

तभी सुमित्रा ने अपनी आँखें खोली और अपने आंसूओ को पौछकर वहां से जाने लगी। उसकी नज़र अपने पास खड़े शिव पर पड़ी और उनके कदम रुक गए। शिव ने भी अपनी आँखें खोली और जमीन पर बैठकर भगवान के आगे ढोक देने लगा।

सुमित्रा एकटक उसे देख रही थी। शिव उठकर खड़ा हुआ और पलटा। वो अजय को ढूंढते हुए मन ही मन बोला - अजय साहब के घर के नौकर ने तो इसी मन्दिर के बारे में बताया था।

इतना कहकर वो मंदिर में अजय को तलाशने लगा पर उसे मन्दिर में अजय कहीं नज़र नही आया। वो मंदिर की सीढ़ियों से नीचे आ ही रहा था कि तभी सीढ़ियों पर दौड़ी चली आ रही प्रिया से टकरा गया।

"अंधे हो? दिखाई नही देता तुम्हें?"- प्रिया ने गुस्से में पूछा। उसे देखकर शिव को टीना की याद आ गईं। शिव ने मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ फेरा और बोला - थोड़ा कम नज़र आता है मुझे इसलिए तो सामने से आ रही इस छोटी सी परी को देख नही सका।

"अरे,आपने मुझे परी कहा? मेरे अजय भैय्या भी मुझे परी ही कहते है"- प्रिया फट से बोली। शिव के चेहरे की मुस्कुराहट और बढ़ गई। और उसने पूछा - तुम अजय बाबू की बहन हो?

प्रिया ने हां में सिर हिला दिया तो शिव ने इधर-उधर देखते हुए पूछा - कहां है तुम्हारे भैय्या?

"वो ....वो तो भंडारे में लगे हुए है। आज तो उनके पास सांस लेने की भी फुर्सत नही है पर आप कौन है? भंडारा खाने आए है?"- प्रिया ने पूछा। शिव दो पल के लिए सोच में पड़ गया और फिर बोला - हां.....

"तो जा इए वहां, देखिए सब खाना खा रहे है। हलवा-पुरी, चने आलू की सब्जी.... नुक्ति सब कुछ बना है। मैंने तो खा भी लिया। इतने लोग भंडारे में आते है,कभी ख़त्म हो जाता तो? इसलिए मैनें पहली पंगत में ही खा लिया। आप भी जल्दी से खा लीजिए"

प्रिया की बातें सुनकर शिव के चेहरे की मुस्कुराहट और बढ़ गई। वो प्रिया के सिर पर हाथ फेरकर बोला - खा लूंगा। थैंक्यू.....

प्रिया ने सर हिलाया और दौड़ती हुई अपनी मां के पास चली गई। शिव ने पलटकर उसे देखा,तो प्रिया सुमित्रा से कुछ बात कर रही थी, पर सुमित्रा की नज़रें शिव को ही देख रही थी।

शिव पलटकर वहां से चला गया। वो उस जगह पहुंचा, जहां लोग खाना खा रहे थे। उसकी नज़रें अजय को तलाशने लगी। उसके ठीक पास ही रति सबको पूडियां परोस रही थीं पर उसने रति को नही देखा और आगे बढ़कर अजय को ढूंढने लगा। तभी उसे अजय एक आदमी से बाते करते हुए नज़र आया।

वो उसकी ओर बढ़ा ही था कि तभी अजय किसी से बात करते हुए आगे निकल गया। शिव के कदम रुक गए और वो मन ही मन बोला - मुझे जो बात अजय बाबू से करनी है। उसके लिए ना ये जगह सही है और ना ही शायद वक्त .... कल सुबह ही बात करनी होगी अजय साहब से....

इतना कहकर शिव वहां से जाने लगा,पर तभी उसकी नज़र कुछ बच्चों पर पड़ी जो वहां पकड़म-पकड़ाई खेल रहे थे। दौड़ते हुए वो सीढ़ियों से नीचे आ रही सुमित्रा से टकरा गए और वो गिरने लगी, पर तभी शिव ने दौड़कर उन्हें पकड़ लिया। सुमित्रा ने नज़रें उठाकर उसकी ओर देखा और उसके चेहरे को छूकर बोली - शुक्रिया बेटा,

"आपको चोट तो नही लगी?"- शिव ने पूछा। उन्होंने ना मैं अपनी गर्दन हिला दी, तो शिव वहां से जाने लगा।

"सुनो बेटा"- तभी सुमित्रा ने उसे रोका। शिव ने पलटकर उनकी ओर देखा, तो वो उसके पास आकर बोली - भंडारे का प्रसाद खाकर जाओ बेटा। यू भगवान के दरवाज़े आकर खाली हाथ नहीं जाते। प्रसाद लेकर जाते है।

शिव ने मंदिर की ओर देखा और फिर मुस्कुराते हुए बोला - प्रसाद तो आज इन्होंने मुझे सुबह ही दे दिया आंटी,

सुमित्रा उसे एकटक देखने लगी। शिव को वो पल याद आया, जब उसने महाकाल मंदिर में रति को देखा था। उसने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाए और ऊंची आवाज़ में बोला - जय श्री महाकाल.....उसकी आवाज़ सुनते ही पास ही खाना परोस रही रति के हाथ रुक गए।

"शिव"- उसने शिव का नाम लिया और तेज़ी से उस ओर दौड़ी जहां से उसे शिव की आवाज़ आई थी। मंदिर की सीढ़ियों के पास आते ही उसकी नज़रें चारों ओर शिव को तलाशने लगी पर शिव उसे कहीं नज़र नही आया। तभी अजय ने पीछे से आकर उसका कंधा थपथपाया। रति के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

"शिव"- वो उसका नाम लेकर मुस्कुराते हुए पलटी, पर अपनी आंखों के सामने अजय को देखकर उसकी मुस्कुराहट उदासी में बदल गई। अजय ने अपनी ऊंगली से मंदिर की ओर इशारा किया और बोला - शिव यहां नही,वहां है.....

रति आंखों में आसूं लिए मुस्कुराते हुए बोली - मेरे लिए तो शिव मेरे रोम-रोम में बसते है अजय बाबू..... मेरी नसों में खून की तरह बहते है..... मेरे दिल की हर धड़कन में धड़कते है।

अजय उसे एकटक देखने लगा, पर रति इतना कहकर वहां से चली गई। अजय मुस्कुराते हुए बोला - सच में, सारे शिव भक्त पागल ही होते है। इसकी तरह,

दूसरी ओर शक्ति ने अपनी गाड़ी अपने घर के सामने रोकी और डेशबोर्ड पर रखी फाइल उठाकर बोला - मेरे पास सिर्फ चौबीस घंटे है। मुझे कुछ भी करके इन पेपर्स पर पापा, चाचू और दादी के सिग्नेचर लेने होंगे, पर सबके सिग्नेचर करवाने के बाद भी, मैं सिर्फ फिफ्टी परसेंट का मालिक बन सकूंगा, पर मैनेजिंग डायरेक्टर बनने के लिए मुझे फिफ्टी वन परसेंट शेयर्स की ज़रूरत पड़ेगी।

नेहा ने मुझे ये तो बता दिया कि फिफ्टी परसेंट शेयर कैसे हासिल करने है पर ये बताना भूल गई कि मुझे एमडी बनने के लिए अभी एक परसेंट शेयर और चाहिए। बट इट्स ओके.... मुझे पता है कि वो एक रुपया ....वो एक परसेंट शेयर कहां से आएंगे।

इतना कहकर वो मुस्कुराने लगा और फिर से फाइल की ओर देखकर बोला - आय एम सॉरी नेहा डार्लिंग.....क्या करूं? मजबूर हूं। कपूर ग्रुप ऑफ़ कम्पनी का मालिक बनना चाहता हूं मैं। सारी दुनिया को दिखाना चाहता हूं कि मैं शिव से ज़्यादा काबिल हूं और इसके लिए मुझे चाहे जो करना पड़े, मैं ज़रूर करूंगा। फिर चाहे मुझे मेरा मक़सद पूरा करने के लिए, गौरी से शादी क्यों ना करनी पड़े।

उसके चेहरे पर ज़हरीली सी मुस्कुराहट आ गई। दूसरी ओर शिव ओंकारेश्वर की सड़कों पर रति को ढूंढ रहा था। वो सड़क के किनारे बनी दुकानों पर,रति के बारे में पूछताछ भी कर रहा था।

"गौरा रंग है उसका... और बाल...बहुत लंबे है उसके। आंखों का रंग काला है और हाइट उस सामने खड़ी लड़की के जितनी होगी। होंठ के नीचे एक तिल भी है उसके....याद करने की कोशिश कीजिए, शायद आपने इस शहर में कहीं देखा हो उसे.... यहां के किसी मन्दिर में.....किसी दुकान पर.... ऑटो में.....तांगे में... कहीं देखा हो आपने इसे,"- शिव ने उस दुकानदार से पूछा।

दुकानदार ने चिढ़कर जवाब दिया- सिर्फ हुलिया से कैसे बता दूं भाई? अरे कोई तस्वीर हो तो दिखाओ, तब शायद कुछ बता सकूं...

"उसकी तस्वीर तो मेरे दिल पर छपी हुई है। काश तुम्हें अपना दिल चीर कर दिखा सकता"- शिव मन ही मन बोला। तभी वो दुकानदार फिर से बोला - देखो भाई, ऐसे तुम्हें तुम्हारी पत्नी नही मिलने वाली है। पुलिस स्टेशन में जाकर उसकी तस्वीर दो या अखबार में इस्तिहार छपवाओ, तब शायद मिल जाए।

शिव ने आँखें बंद करके खुद को संभाला और बोला - शुक्रिया......इतना कहकर वो वहां से चला गया। रात के करीब बारह बजे तक वो रति को तलाशता रहा और फिर नर्मदा नदी के एक घाट पर आ पहुंचा। वो नदी की ओर देखते हुऐ वहां घाट पर बनी सीढ़ियों पर बैठ गया।

आसमान में उसे हजारों तारे नज़र आ रहे थे। उन्हें देखकर उसे एक बार फिर रति की याद आने लगी। उसे याद आया कि वो लास्ट टाइम रति के साथ यहां आया था। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

लेखिका
कविता वर्मा