प्यार हुआ चुपके से - भाग 23 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 23

शक्ति, अरूण के पास आकर बोला- अंकल मैं जानता हूं कि मैं गौरी की चाहत कभी नही रहा और शायद उसके दिल में वो जगह भी कभी ना बना सकूं, जो शिव की थी पर अंकल एक सच ये भी है कि शिव ने कभी उससे प्यार नही किया पर मैं प्यार करता हूं गौरी से,

उसके इतना कहते ही अरूण के साथ-साथ गौरी भी हैरान रह गई। उसे अपने कानों पर यकीन नही हो रहा था कि शक्ति उसके शेयर्स हासिल करने के लिए, ये सब भी कह सकता है। तभी शक्ति, अरूण के पास आकर बोला- अंकल मैं जानता हूं कि ये बात जानकर कि मैं गौरी से प्यार करता हूं, उसे पसन्द करता हूं। आपके मन में ढेरों सवाल उठ रहे होंगे और शायद आपको ये भी लग रहा होगा कि मैं आपसे ये सब आपके शेयर्स हासिल करने के लिए कह रहा हूं पर ये सच नहीं है अंकल,

सच तो ये है अंकल कि मैं बचपन से गौरी को पसन्द करता हूं पर ये बात मैं किसी के सामने ज़ाहिर नही कर सका क्योंकि गौरी हमेशा से शिव को चाहती थी, सिर्फ उसके ख़्वाब देखती थी पर फिर वो लड़की, रति हमारी ज़िंदगी में आ गई। उस लड़की ने पहले दोस्त बनकर गौरी से उसकी बचपन की मोहब्बत छीनी और फिर मेरे और मेरे भाई के बीच दरार डाल दी।

कपूर्स तक पहुंचने के लिए उसने सबसे पहले गौरी से दोस्ती की और उसके जरिए मुझ तक पहुंची। मुझे अपनी खूबसूरती के जाल में फांस कर, मेरे दिल में अपने लिए जगह बनाई उसने पर जब उसे पता चला कि शिव, कपूर ग्रुप ऑफ कम्पनी का एमडी बनने जा रहा है, तो उसने उससे शादी कर ली। यकीन मानिए अंकल, ये सारा खेल उसी लड़की का रचाया हुआ था।

पर मेरी बदकिस्मती देखिए.... मैंने अपने भाई को उस लड़की से बचाने की बहुत कोशिश की पर नही बचा सका उसे... उस लड़की ने तो मुझ पर ही मेरे भाई की मौत का इल्ज़ाम भी लगा दिया पर आप तो मुझे बचपन से जानते है।

मुझमें लाख बुराई सही पर किसी की जान नही ले सकता मैं, शिव मेरा सगा भाई था। यकीन कीजिए अंकल, उसकी मौत में मेरा कोई हाथ नहीं है। उस रात मैंने उसे बचाने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा दी थी और आज मैं उसकी कंपनी को बचाने के लिए, उसके सपनों को पूरा करने के लिए, कुछ भी कर सकता हूं। कुछ भी,

अरूण ने मुस्कुराते हुए उसके कन्धे पर हाथ रखा और बोले- मैं जानता हूं शक्ति,कि तुम बुरे नही हो और मैं ये भी जानता हूं कि शिव ने उस लड़की की खातिर, मेरी बच्ची को खून के आंसू रुलाया है इसलिए मेरे दिल से वो उसी दिन उतर चुका था, जिस दिन वो रति से शादी करके कपूर हाऊस पहुंचा था और मैं ये भी जानता हूं बेटा कि आज जो कुछ भी हो रहा है। उसकी जिम्मेदार भी वो लड़की ही है।

पर फिर भी मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता बेटा क्योंकि मैं गौरी की मर्ज़ी के खिलाफ कोई फैसला नहीं लेना चाहता। मैं जानता हूं कि गौरी तुमसे शादी करने के लिए कभी नहीं मानेगी।

शक्ति ने मुस्कुराने की कोशिश की- कोई बात नही अंकल.... अगर आप मेरी मदद नही करना चाहते, तो मैं कोई और रास्ता निकाल लूंगा पर अपने मरे हुए भाई की ख्वाहिश पूरी ज़रूर करूंगा। अब यहीं मेरी ज़िंदगी का मकसद है। इतना कहकर वो वहां से जाने लगा। तभी अरूण ने उसे रोका- एक मिनिट बेटा,

शक्ति के कदम रुक गए और वो मन ही मन मुस्कुराने लगा। अरूण उसके पास आकर बोले- बेटा, अधिराज़ से मेरा सिर्फ दोस्ती का रिश्ता नही है। बल्कि मेरे लिए वो मेरे भाई की तरह है इसलिए मैं उसकी कंपनी को डूबने नही दूंगा। मैं गौरी से बात करूंगा.....और अगर उसने इंकार कर दिया, तो हम हमारी कम्पनी को डूबने से बचाने का कोई और रास्ता ज़रूर तलाशेंगे।

शक्ति ने भावुक होने का नाटक किया और उनके गले लगकर बोला- थैंक्यू अंकल,थैंक्यू सो मच, मैं जानता था कि मेरे खुद के पापा मुझे समझे ना समझे पर आप मुझे ज़रूर समझेंगे, थैंक्यू। अब मैं चलता हूं और भी लोगों से मिलना है मुझे। बाय अंकल,

"चाय तो पीते जाओ बेटा"- अरूण बोले। शक्ति मुस्कुरा दिया- नही अंकल....इस वक्त चाय पीने से ज़्यादा ज़रूरी, मेरे लिए मेरे भाई और पापा की कंपनी को बचाना है। इतना कहकर वो वहां से जाने लगा पर तभी उसकी नज़र गौरी पर पड़ी, जो उसे ही देख रही थी। अरूण ने भी गौरी की ओर देखा पर शक्ति बिना कुछ कहे वहां से चला गया।

उसके जाते ही गौरी ने अपने पापा की ओर देखा और बोली- इससे पहले कि आप मुझसे शक्ति के बारे में बात करे पापा, मैं आपको साफ़-साफ़ बता देती हूं कि मेरा जवाब ना होगा। मैं शक्ति से शादी नहीं करूंगी, कभी नहीं करूंगी।

"क्यों नही करोगी?"- तभी अरूण ने पूछा। गौरी गुस्से में बोली- क्योंकि मैं शक्ति को ज़रा भी पसंद नहीं करती। उसका जवाब सुनकर अरूण उसके पास आकर बोले- जानता हूं तुम्हारी पसन्द शिव था बेटा पर क्या वो मिला तुम्हें???

गौरी कोई जवाब नही दे सकी और एकटक अपने पापा को देखने लगी। अरूण फिर से बोले- दिल की सुनकर देख ली बेटा तुमने, अब दिमाग की सुनकर देखो। शिव मर चुका है और अगर वो ज़िंदा होता भी, तो तुम्हें कभी नहीं मिलता क्योंकि तुम्हारी अपनी दोस्त ने उसे तुमसे हमेशा के लिए छीन लिया है इसलिए मेरी बात मानो और शक्ति से शादी कर लो।

बचपन से जानते है हम दोनों उसे....वो बुरा नही है, बल्कि उसके साथ बुरा हुआ था। अगर उसका बिज़नेस नही चला, तो उसमें उसकी क्या गलती थी। अगर उसने तुम्हारी तरह रति पर भरोसा किया, तो उसमें उसकी क्या गलती थी। दगाबाज़ तो वो लड़की निकली, जिसे बेचारी समझकर तुमने अपनी ज़िंदगी की सबसे कीमती चीज़ उसे दे दी।

"गलत है आप डैड, बिल्कुल गलत है। मैं शिव और रति के रास्ते से रति के लिए नही। बल्कि शिव की खुशी के लिए हटी थी। शिव मुझसे नही बल्कि उससे प्यार करता था और उसकी खुशी रति के साथ थी इसलिये मैंने अपने कदम पीछे हटा लिए थे।"- गौरी रोते हुए बोली। अरूण ने बहुत प्यार से उसके चेहरे को छुआ और बोले- बेटा.... वजह चाहे जो भी रही हो, पर सच यही है कि अब शिव इस दुनिया में नही है और वो तुम्हें कभी नही मिल सकता।

और एक बाप होने के नाते, मैं तुम्हें शिव के लिए अपनी ज़िंदगी बर्बाद करने की इजाज़त कभी नही दे सकता। शक्ति और उसके परिवार को मैं तब से जानता हूं, जब से मैंने ख़ुद को जाना है। उससे बेहतर परिवार नही मिलेगा तुम्हें..... पलकों पर बैठाकर रखेंगे वो लोग तुम्हें, इसलिए शक्ति से शादी करने के लिए हां कह दो।

गौरी ने अपने पापा के हाथों को अपने चेहरे से हटाया और बोली- कभी नही पापा, कभी नही क्योंकि शिव मुझे मिले ना मिले....पर गौरी उसके अलावा कभी किसी की नही होगी। अगर शिव नही, तो कोई और भी नही.....

इतना कहकर वो रोते हुए वहां से चली गई। अरूण परेशान होकर वही रखी एक चेयर पर बैठ गए और गौरी के बारे में सोचने लगे।

तभी अचानक उन्हें अजय का ख्याल आया। वो तुरंत उठकर खड़े हुए और अपनी गाड़ी की ओर बढ़ते हुए बोले- मुझे अजय साहब से मिलना होगा क्योंकि गौरी तो नही मानेगी। अब मुझे ही अपनी कम्पनी को डूबने से बचाने का कोई ना कोई रास्ता निकालना ही होगा।

दूसरी ओर रति को सारे स्टॉक की पैकिंग करवाने में शाम हो गई। वो बार-बार घड़ी की ओर देख रही थी। उसे घड़ी की ओर देखते देख गुप्ताजी उसके पास आकर बोले- बेटा तुम घर जाओ। बाकी का काम में देख लूंगा।

रति के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई। उसने वहीं रखा अपना बैग उठाया और बोली- थैंक्यू गुप्ताजी, थैंक्यू.....गुप्ताजी मुस्कुरा दिए। रति तेज़ी से वहां से जाने लगी। वो फैक्टरी से निकलकर सड़क पर आकर खड़ी हो गई। उसे टेंपो के आने का इंतज़ार था पर ज़्यादातर टेंपो भरी हुई ही आ रही थी। तभी अजय शिव के साथ उसकी गाड़ी में ऑफिस से बाहर निकला। अजय की कार रति के सामने से निकल गई पर दोनों में से किसी ने भी उसे नही देखा।

रति अभी भी सड़क पर खड़ी टेंपो के आने का इंतज़ार कर रही थी। तभी एक टेंपो रुकी,जिसमें बैठने के लिए जगह भी थी। रति तुरंत उसमें बैठ गई। इधर अजय ड्राइव करते हुए शिव से बोला- पहले होटल जाकर आपका सामान ले लेते है शिव साहब, फिर ऑफिस में अरूण साहब से मिलकर सीधे मेरे घर चलेंगे।

"शिव मुस्कुराते हुए बोला- सामान के नाम पर मेरे पास है ही क्या अजय साहब....सिर्फ एक जोड़ी कपड़े और मेरे अपनों की यादें,

"अगर आप मुझे सिर्फ अजय कहेंगे, तो मुझे ज़्यादा अच्छा लगेगा। प्लीज़"- अजय बोला। शिव के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई - अगर आप भी मुझे शिव कहेंगे, तो मुझे उससे भी ज़्यादा अच्छा लगेगा। अजय भी मुस्कुरा दिया।

"वैसे शिव, आपकी पत्नि दिखती कैसी है? अगर आप मुझे बता दे, तो मैं उन्हें ढूंढ़ने में आपकी मदद कर सकता हूं"- अजय बोला। शिव को फिर से उसकी याद आ गई और उसकी आंखों के सामने वो मंजर आने लगा। जब उसने गौरी की जन्मदिन की रात, रति को पहली बार साड़ी में देखा था। कुछ शरमाई हुई सी....कुछ घबराई हुई सी... वो आहिस्ता-आहिस्ता कुछ इस तरह चली आ रही थी। जैसे आसमान से कोई परी उतरकर ज़मीन पर चल रही हो।

"क्या हुआ शिव? रतिजी की यादों में खो गए क्या?"- तभी अजय ने पूछा, तो शिव ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखा और बोला- जब तक वो मुझे मिल नही जाती अजय। उसकी यादें ही मेरे दिल के धड़कने की वजह है।

"तो फिर बताइए ना कि वो दिखती कैसी है। हम एक आर्टिस्ट को बुलाकर उनका स्केच बनवा लेते है और अखबार में छपवा देते है। वो जहां भी होगी, खुद-ब-खुद आपके पास लौट आएगी"

"उसकी कोई ज़रूरत नही है अजय। उसकी पेंटिंग तो मैं खुद भी बिना उसे देखे बना सकता हूं पर हमारे ऐसा करने से उसकी ज़िंदगी खतरे में आ सकती है। अगर शक्ति को ये बात पता चल गई कि रति ज़िंदा है। तो वो मेरे सामने आते ही सबसे पहला वर रति पर ही करेगा इसलिए हम ऐसा नहीं कर सकते।"

शिव की बातें सुनकर अजय भी सोच में पड़ गया पर तभी शिव फिर से बोला- और वैसे भी मेरे सबके सामने आते ही, मेरे ज़िंदा होने की खबर अखबारों में अपने आप छप जायेगी और रति, वो मेरे ज़िंदा होने की खबर पढ़ते ही भागी-भागी मेरी बांहों में चली आएगी।

अजय के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। तभी उसकी नज़र मंदिर पर पड़ी और उसने तुरंत अपनी गाड़ी साइड में ली और शिव से बोला- शिव ये हमारा पुश्तैनी मंदिर है। इसे सालों पहले मेरे परदादा ने बनवाया था। मेरी मां शायद इस वक्त यहीं होगी। आरती का समय जो हो गया है। अगर आपको बुरा ना लगे, तो आरती में शामिल हो जाते है।

"महाकाल का भक्त हूं मैं अजय और आज उनकी ही कृपा से मैं और मेरी पत्नि दोनों ज़िंदा है इसलिए उनकी आरती में शामिल होना मेरी खुशनसीबी होगी। चलिए"- इतना कहकर शिव गाड़ी से बाहर आया और फिर से बोला- वैसे कल आपसे मिलने मैं यही आया था पर आप को भंडारे में बिज़ी देखकर लौट गया। वरना शायद कल ही आपसे मुलाकात हो जाती।

"ओह आप कल यहां आए थे? आय एम सॉरी शिव, मैं आपसे मिल नही सका"- अजय के इतना कहते ही शिव ने मंदिर की ओर देखा और बोला- वो जो वहां मन्दिर में बैठे है ना अजय। उनकी मर्ज़ी के बिना, एक पत्ता तक नहीं हिल सकता तो हम क्या है? उन्होंने हमारा मिलना आज लिखा था, सो हम मिल लिए। अब देखना ये है कि मेरी और रति की किस्मत में इन्होंने कितनी लंबी जुदाई लिखी है।

शिव की बातें सुनकर अजय बहुत इंप्रेस हुआ और बोला- आप तो सच में इनके बहुत बड़े भक्त है। आप फिक्र मत लीजिए शिव। ये अपनें भक्तो की परीक्षा ज़रूर लेते है पर उस परीक्षा में उन्हें पास भी ये खुद ही करवाते है। बहुत जल्द आपकी खोई हुई खुशियां आपके पास लौट आएगी। आइए आरती में चलते है।

शिव ने सिर हिलाया और दोनों अपने जूते उतारकर मन्दिर में आ गए। जहां आरती बस शुरू ही होने जा रही थी। तभी रति भी वहां आ गई।

"लगता है आरती शुरू ही होने वाली है"- इतना कहकर वो अपने घर की ओर दौड़ी। उसने अपना बैग वही खाट पर पटका और आरती में जाने लगी। तभी पास में रहने वाली काकी वहां आकर उससे बोली- काजल बिटिया, ये खत आया है बैंक से...ज़रा देख तो अंग्रेजी में क्या लिखा है।

रति ने मुंह बनाया और लेटर पढ़ने लगी पर उसे पढ़ते ही उसके चेहरे की चमक परेशानी में बदल गई। उसका चेहरा देखकर काकी ने पूछा- क्या हुआ बिटिया? क्या लिखा है इसमें??

रति परेशान होकर बोली- काकी ये तो आपके घर को खाली करने का नोटिस है। आपने ये घर बैंक के पास गिरवी रखा था क्या?

काकी की आंखों से आंसू बहने लगे और वो वहीं खाट पर बैठकर रोने लगी। रति तुरंत उनके पास बैठी और उन्हें संभालते हुए बोली- काकी क्या हुआ? आप रो क्यों रही हो?

"बिटिया अपने बेटे की पढ़ाई के लिए, मैंने घर गिरवी रखकर लोन लिया था पर मेरा बेटा तो दिल्ली में ऐसा रमा कि उसने पलटकर आज तक मुझे देखा भी नहीं"- काकी रोते हुए बोली। रति परेशान होकर सोच में पड़ गई। दूसरी ओर आरती खत्म होते ही अजय बोला- लगता है मां आपके आने का इंतज़ार कर रही है इसलिए आज आरती में नही आई। हमें भी चलना चाहिए। अरूण साहब भी आते ही होंगे। चलिए।

दोनों गाड़ी में बैठकर बस कुछ ही देर में होटल पहुंच गए। शिव ने होटल का बिल पे किया और अपना सामान लेकर अजय के साथ ऑफिस के लिए निकला। अजय ने ड्राइव करते हुए पूछा- आपसे एक बात पूंछू शिव?

शिव ने आहिस्ता से हां में अपनी गर्दन हिला दी, तो अजय ने ड्राइव करते हुए पूछा- आपके अंकल, अरूण मित्तल साहब क्या आपको सच में अपने शेयर्स दे देंगे?... मेरा मतलब है कि दौलत के लिए तो अपने ही दुश्मन बन जाते है, तो ये तो फिर भी आपके पापा के दोस्त है। क्या आप श्योर है कि आपके अंकल यू ही, सिर्फ आपके कहने पर आपको अपने हिस्से के शेयर्स दे देगें?

"हां मैं श्योर हूं पर अगर आप जो कह रहे है। वैसा हुआ, तो अंकल की जो भी शर्त होगी। मैं बिना उनसे सवाल किए मान लूंगा क्योंकि इस वक्त, मेरा कपूर ग्रुप ऑफ कंपनी के एमडी की कुर्सी पर बैठना बहुत ज़रूरी है वरना शक्ति सब कुछ बर्बाद कर देगा"- शिव उसकी ओर देखकर बोला। अजय एक बार फिर से मुस्कुरा दिया और कुछ ही देर में दोनों वापिस ऑफिस पहुंचे।

दोनों गाड़ी से बाहर आकर ऑफिस में जाने लगे पर तभी शिव की नज़र लॉबी में सोफे पर बैठे अरूण पर पड़ी और उसके कदम रुक गए।

"अंकल"- उसने अरूण को पुकारा। उसकी आवाज़ सुनकर अरुण ने तुरंत उसकी ओर देखा पर शिव को अपनी आंखों के सामने देखकर, वो हैरानी से उठ खड़े हुए।

लेखिका
कविता वर्मा