प्यार हुआ चुपके से - भाग 5 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 5

रति ने एक बार फिर अपने पैर में लगे टुकड़े को निकालने की कोशिश की पर जैसे ही उसने उस टुकड़े को निकालना चाहा तो लड़खड़ाकर गिरने लगी पर तभी शिव ने आकर उसे अपनी बांहों में थाम लिया। रति ने नज़रे उठाकर उसकी ओर देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने आहिस्ता से अपनी हथेली को शिव के चेहरे की ओर बढ़ाया और बहुत प्यार से उसके गाल को छुआ तो शिव गुस्से में बोला- मै तुमसे बहुत नाराज़ हूं रति...अगर मै दो पल के लिए भी तुम्हें अकेला छोड़ दूं तो तुम खुद को किसी ना किसी मुश्किल में डाल ही लेती हो। लगा ली ना अपने पैर में चोट....

"तो आप मुझसे दूर जाते ही क्यों हो? ऐसे ही हमेशा मेरे पास रहा कीजिए। मेरे करीब...."- रति बहुत प्यार से बोली तो शिव का गुस्सा और बढ़ गया और वो गुस्से में बोला- शटअप रति, एक तो अपने पैर में चोट लगा ली तुमने और अब मुझे अपनी बातों में उलझाने की कोशिश कर रही हो ताकि मेरा गुस्सा कम हो जाए। तुम अच्छे से जानती हो ना कि अगर तुम्हें इतनी सी भी चोट लगे तो मै बर्दाश्त नहीं कर पाता हूं। चलो अब चुपचाप इस टेबल को पकड़कर खड़ी हो जाओ। मैं निकाल देता हूं इसे...

शिव ने इतना कहकर रति को आहिस्ता से छोड़ा और फिर ज़मीन पर अपने एक पैरों के बल बैठा। उसने रति के उस पैर को पकड़ा जिसमें पंखे की टूटी हुई पंखुड़ी टूट कर लग गई थी। फिर उसने रति के चेहरे की ओर देखा तो उसके चेहरे पर दर्द साफ नजर आ रहा था।

"बहुत दर्द हो रहा है?"- शिव ने आहिस्ता से पूछा तो रति ने हां में अपना सिर हिला दिया।

"अपनी आंखें बन्द करो रति"- शिव, रति की ओर देखकर बोला। रति ने उसे देखते हुए आहिस्ता से अपनी आंखे बन्द कर ली तो शिव के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने आहिस्ता से रति के पैर से उस टुकड़े को निकाल दिया और बोला- रति अपनी आंखे खोल लो।

"पहले उसे निकालिए तो सही"- रति बच्चो की तरह बोली। शिव की मुस्कुराहट और बढ़ गई। उसने अपनी पॉकेट से रुमाल निकाला और रति के पैर में बांधते हुए बोला- रति मैनें वो टुकड़ा निकाल दिया है।

शिव के इतना कहते ही रति ने तुरंत अपनी आंखे खोली। उसने मुस्कुराते हुए शिव की ओर देखा तो उसके सामने शिव नहीं बल्कि अजय बैठा था। उसे देखते ही रति ने तुरन्त अपना पैर पीछे हटा लिया।

"अब आपको दर्द तो नही हो रहा?"- तभी अजय ने खड़े होकर पूछा। रति ने खुद को संभाला और बोली- नहीं।

अजय आगे कुछ कह पाता। उसके पहले ही रति पलटकर वहां से जाने लगी। उसने अपने आंसूओ को रोकने की कोशिश की पर फिर भी उसके आंसू झलक ही आए। वो अपनी आंखें बन्द करके बोली- लौट आइए शिव....प्लीज़ लौट आइए।

अजय उसे जाते देख रहा था। वो मन ही मन बोला- इस लड़की की आंखो में एक अजीब सी उदासी नज़र आती है और इसकी आंखे देखकर लगता है कि जैसे इसकी नज़रे किसी को ढूंढ रही हो... पर किसे?

अजय वहीं खड़ा सोच में पड़ गया। इधर इंस्पेक्टर साहब अपनी गाड़ी में बैठाकर शिव को हॉस्पिटल लेकर आए। शिव अभी भी बेहोश था। उन्होंने वहां पहुंचते ही वार्ड बॉय को स्टेचर लाने को कहा। इंस्पेक्टर को देखते ही एक डॉक्टर तेज़ी से उनके पास आए और बोले- नमस्ते इंस्पेक्टर साहब, किसी मुजरिम को लाए है क्या?

इंस्पेक्टर के कदम रुक गए और उन्होंने डॉक्टर की ओर देखकर कहा- अगर पुलिस किसी इंसान के साथ हो तो ये जरूरी नहीं है डॉक्टर साहब कि वो इंसान मुजरिम ही हो।

"आय एम सॉरी"- डॉक्टर सिर झुकाकर बोले। इंस्पेक्टर ने उसे घूरते हुए कहा- ये लड़का आदिवासियों के मुखिया को नदी में बेहोशी की हालत में मिला था। उन्होंने जड़ी-बूटियों से इसका इलाज करके इसे काफी हद तक ठीक तो कर दिया है, लेकिन अब इसे होश में लाने की ज़िम्मेदारी आपकी है। पता नहीं कौन है? कहां से बहकर आया है? कुछ पता नही है। होश में आने के बाद शायद ये अपने बारे में कुछ बता सके।

डॉक्टर ने आगे बढ़कर शिव की नब्ज़ चेक की और फिर उसकी आंखे खोलकर देखी।

"वार्ड बॉय इसे सामने वाले रूम में लेकर चलो।"- तभी डॉक्टर साहब बोले। उसने सिर हिलाया और शिव को रूम में ले गया। उसके जाते ही डॉक्टर साहब इंस्पेक्टर साहब से बोले- आपने ठीक कहा। जड़ी-बूटियों के इलाज से अब ये खतरे से बाहर है और बहुत जल्द ठीक भी हो जाएगा।

"थैंक्यू डॉक्टर साहब, इसकी हालत के बारे में फोन करके बताते रहिएगा। मैं इसके बारे में पेपर में इस्तिहार छपवा देता हूं। शायद इसके परिवार के बारे में कुछ पता चल सके।"- इंस्पेक्टर साहब बोले।

"ठीक है, मै भी इनके सारे टेस्ट करवा लेता हूं। पता चल जाएगा कि ठीक होने के बाद भी इन्हें होश क्यों नहीं आ रहा है?"- डॉक्टर के इतना कहते ही इंस्पेक्टर साहब ने उनकी ओर हाथ बढ़ाकर कहा- मैं चलता हूं... इनकी हालत जानने के लिए आता रहूंगा।

"जी ज़रूर"- डॉक्टर साहब बोले तो इंस्पेक्टर साहब वहां से चले गए। उनके जाते ही डॉक्टर साहब रूम में आए और उन्होंने शिव का चेकअप करने के बाद उसकी बांह पर एक इंजेक्शन लगाया। दूसरी ओर गौरी ने अपनी कार,एक बड़ी सी आलीशान हवेली के बाहर बने... बड़े से लोन में रोकी और गाड़ी से बाहर आई। आते ही उसने अपने आंखो पर लगे ग्लासेस उतारे। और हवेली के अंदर आई। हवेली किसी महल से कम नहीं थी। पूरी हवेली एंटीक चीज़ों से सजी हुई थी। लंबे-लंबे खूबसूरत पर्दे, महंगी पेंटिंग हवेली की दीवारों की शोभा बड़ा रही थी। लिविंग रूम के बीचों-बीच लगा बड़ा सा झूमर चारों ओर रोशनी बिखेर रहा था। बहुत से नौकर भी जहां-तहां काम में लगे हुए थे। हवेली की एक दीवार पर सूट-बूट पहनकर किसी राजकुमार की तरह खड़े शिव की बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी, जिस पर हार टंगा हुआ था। तस्वीर के नीचे एक बूढ़ी औरत खड़ी दिया जला रही थी। वो शिव की दादी तुलसी थी...गौरी उनके पास आई और आते ही उसने उनके पैर छूकर कहा- प्रणाम दादी मां,

तुलसी ने नज़रे घुमाकर गौरी की ओर देखा और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली- जीती रहिए बेटा। भगवान आपको लंबी उम्र दे।

"गौरी- तभी किसी ने उसे पुकारा। गौरी ने पलटकर देखा और उनके पास आई। उसने उनके भी पैर छूये और बोली- प्रणाम पायल चाची,

पायल ने उसके सिर पर हाथ फेरा और बोली- आओ बैठो गौरी,

गौरी वहीं रखे सोफे पर बैठ गई। तभी पायल की नज़र शिव की तस्वीर के सामने खड़ी तुलसी पर पड़ी और वो तुरंत बोली- मां, शिव को गए तीन महीने हो गए है। अब तो उसके बिना जीने की आदत डाल लीजिए। आज गौरी इतने दिनों बाद इस घर में आई है। आपके पोते शिव की बचपन की दोस्त है ये और आप इसे इस घर की बहू बनाना चाहती थी पर ऐसा हो ना सका। कम से कम इसके पास आकर बैठिए तो सही.... बात करिए इससे....अच्छा लगेगा इसे,

"हां दादी मां आइए ना प्लीज़"- गौरी उनकी ओर देखकर बोली। तुलसी ने अपनी उदासी भरी नज़रों से शिव की तस्वीर की ओर देखा और फिर चुपचाप आकर गौरी के पास बैठ गई। तभी पायल ने नौकर को आवाज़ लगाई- चंदू,

"जी मेम साहब"- चंदू दौड़ता हुआ वहां आया और हाथ बांध कर खड़ा हो गया। पायल उसकी ओर देखकर बोली- सबके लिए चाय लेकर आओ।

चंदू ने सिर हिलाया और किचन में चला गया। उसके जाते ही शिव की दादी ने गौरी के सिर पर हाथ फेरकर पूछा- कैसी है बेटा? आप आज इतने दिनों बाद? यहां कैसे आना हुआ?

"दादी मां, शिव और रति के इस दुनिया से जाने के बाद पता नही क्यों, पर इस घर में आने का दिल ही नहीं करता। रति के पास मेरी एक कॉलेज फाइल रह गई थी...काफी दिनों से वहीं लेने यहां आना चाह रही थी पर दिल यहां आने की इजाज़त नही दे रहा था। लेकिन आज यहां से गुज़र रही थी तो सोचा, लेती चलूं"- गौरी बोली। तुलसी ने मुस्कुराने की कोशिश की तो पायल ने पहले अपनी सास की ओर देखा और फिर गौरी से बोली- ज़रूर बेटा, आपको यहां आने के लिए किसी बहाने की ज़रूरत नहीं हैं। शिव नहीं है तो क्या हुआ, शक्ति तो है और रही बात रति की तो आप उस मनहूस लड़की का नाम इस घर में ना ही ले तो ज़्यादा अच्छा होगा। पता नहीं किस मनहूस घड़ी में शिव उस लड़की को ब्याह के इस घर में ले आया। इस घर का जवान बेटा ही निगल गई मनहूस...

"अपनी ज़ुबान को लगाम दीजिए पायल। हम यही आपके सामने बैठे है...हमारा तो लिहाज़ कीजिए। रति इस घर की बहू थी और अब इस दुनिया में नहीं रही तो उनके बारे में इस तरह की बातें करना आपको शोभा नहीं देता और एक बात बता दे हम आपको। हमें हमारे शिव की पसंद पर नाज़ था। रति से बेहतर जीवन साथी ना उनके लिए कोई और हो सकता था और ना हमारे खानदान के लिए उनसे बेहतर कोई बहू हो सकती थी।

ये तो हमारी बदकिस्मती है कि हमने हमारे पोते के साथ-साथ अपनी बहू को भी खो दिया। काश कि वो आज यहां होती तो इस बिखरते परिवार को सम्भाल लेती। आज अगर रति होती तो अब तक शायद ये घर शिव की मौत के गम से उबर चुका होता। किरन भी अपने बेटे की मौत के सदमे से बाहर आ चुकी होती पर शायद किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था"- इतना कहते हुए उनकी आंखों से आंसू बहने लगे।

पास बैठी गौरी उन्हें संभालते हुए बोली- दादीमां जो कुछ भी हुआ है। उसे हम बदल तो नहीं सकते पर शिव और रति को उदास होकर याद करने की जगह मुस्कुरा कर याद करेंगे तो वो जहां कहीं भी होंगे। आपको देखकर खुश होंगे दादी मां। सुकून मिलेगा उनकी रूहों को और रही बात बड़ी मां की तो वक्त के साथ उनके ज़ख्म भी भर जाऐंगे।

"ज़रूर भर जाऐंगे गौरी- तभी सीढ़ियों पर खड़ा शक्ति बोला। उसकी आवाज़ सुनकर गौरी और बाकी सबने उसकी ओर देखा। पायल उसे देखते ही मुस्कुरा दी।

"क्योकिं उनका सिर्फ एक बेटा मरा है जो सौतेला था, पर सगा बेटा अभी भी ज़िंदा है गौरी"- शक्ति सीढ़ियों से नीचे आते हुए बोला। शिव की दादी ने जब ये सुना तो उसे घूरते हुए वहां से उठकर चली गई। शक्ति उन्हें जाते देख तीखी सी मुस्कुराहट लिए गौरी के पास आया और सोफे पर बैठकर बोला- माना कि रति भाभी तुम्हारी सहेली थी पर हम भी तो बचपन के दोस्त है गौरी। शिव और रति नहीं रहे तो क्या हुआ। तुम मुझसे और ओमी से मिलने तो आ ही सकती हो। आखिर एक वक्त पर तुम ही तो मेरी भाभी बनने वाली थी पर अफसोस तुम्हारी अपनी ही दोस्त ने तुम्हें दगा दे दी और वो खुद इस हवेली की बहुरानी बनकर इस घर में चली आई।

गौरी मुस्कुराते हुए बोली- शक्ति हम बचपन के दोस्त है और इसलिए तुम्हें ये पता ही होगा। गौरी ना अपनी चीज़ किसी को देती है और ना ही किसी और की चीज़ पर अपना हक़ जताती है और ज़रूरी नहीं है कि शिव हर बार गौरी को ही मिले। इस जन्म में शिव, रति का था और उनका प्यार भी सच्चा था इसलिए तो शिव के जाते ही रति भी उसके साथ उसी नदी में समा गई, जहां शिव की मौत हुई थी।

उसकी बातें सुनकर शक्ति के चेहरे पर तीखी सी मुस्कुराहट आ गई। तभी गौरी उसे घूरते हुए पायल से बोली- चाची मुझे रति और शिव के कमरे से अपनी फाइल लेनी है। आप चल रही है मेरे साथ या फ़िर शक्ति जाएगा।

"सॉरी स्वीटहार्ट, आज ये बन्दा तुम्हारी सेवा में हाज़िर नहीं हो सकता क्योंकि आज मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सपना सच होने जा रहा है। बहुत जल्द मैं कपूर ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज़ का मैनेजिंग डायरेक्टर बनने जा रहा हूं इसलिए मुझे सारे बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स से इसकी परमिशन लेनी है तो तुम्हें खुद ही अपना काम करना होगा"- शक्ति तीखे स्वरों में बोला।

"शक्ति?? और कपूर ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज़ का मैनेजिंग डायरेक्टर?? ये बात मुझे डैडी ने क्यों नहीं बताई? वो भी तो इस कम्पनी में 20% के पार्टनर है।"- गौरी मन ही मन बोली तभी शक्ति ने उसकी आंखों के सामने चुटकी बजा दी।

गौरी चौक गई और शक्ति की ओर देखने लगी। शक्ति मुस्कुराते हुए बोला- अच्छा तो हम चलते है, फ़िर मुलाकात होगी। मेरे एमडी बनते ही मैं एक बहुत बड़ी पार्टी जो थ्रो करने वाला हूं। प्लीज़ आना ज़रूर..... मुझे अच्छा लगेगा। आओगी ना,

गौरी ने मुस्कुरानेे की कोशिश करते हुए कहा- ज़रूर आऊंगी शक्ति पर फिलहाल अगर तुम्हारी इजाज़त हो तो क्या मैं अपनी फाइल ले लूं??

शक्ति ने तीखी सी मुस्कुराहट के साथ रास्ते से हटकर उसे जाने का इशारा किया। गौरी तेज़ी से शिव और रति के कमरे की ओर बढ़ने लगी। उसके जाते ही शक्ति पायल के पास आकर बोला- चाची जरा जाकर पता कीजिए कि ये अपनी कौन सी फाइल लेने यहां आई हैं। मुझे इस लड़की पर इतना सा भी भरोसा नहीं है। ये हमारे सारे किये-कराए पर पानी फेर सकती है।

"डोंट वरी शक्ति, गौरी कोई भी पेपर्स तब तक यहां से नहीं ले जा सकेगी जब तक मेरी नज़रे उन पेपर्स को ना देख ले।"- पायल ऊपर शिव के कमरे की ओर देखकर बोली तो शक्ति ने अपनी आंखों पर चश्मा लगाया और बोला- चाची पर याद रखियेगा। गौरी को शक ना होने पाए क्योंकि गौरी ट्वेंटी परसेंट शेयर पाने का जरिया है हमारे लिए। वो शेयर जो कपूर ग्रुप ऑफ कम्पनीज़ में आपके इकलौते बेटे की हिस्सेदारी और बढ़ा देंगे।

"अच्छे से जानती हूं शक्ति, तुम फिक्र मत करो। गौरी को मुझ पर कोई शक नही होगा"- पायल पूरे कॉन्फिडेंस के साथ बोली। शक्ति अपने चेहरे पर तीखी सी मुस्कान लिए वहां से चला गया। उसके जाते ही पायल ने शिव की तस्वीर की ओर देखा और बोली- ट्वेंटी परसेंट शेयर?? बस ....

इतना कहकर पायल जोर-ज़ोर से हंसने लगी पर कुछ देर बाद उसने अपनी हंसी रोकी और फिर शिव की तस्वीर को छूकर बोली- तुम मेरे बेटे के रास्ते का सबसे बड़ा कांटा थे शिव इसलिए बड़ी चालाकी से मैनें तुम्हारे और शक्ति के बीच रति को लाकर खड़ा कर दिया। और कभी ना गिरने वाली दुश्मनी की दीवार खड़ी कर दी। जिसकी वज़ह से एक भाई ने अपने ही भाई की जान ले ली तो तुम्हें क्या लगता है कि मैं इसे कपूर ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज़ पर कब्ज़ा करने दूंगी। नहीं शिव,कभी नही... तुम तो चले गए। अब इसकी बारी है क्योंकि इस हवेली और सारे बिज़नेस का सिर्फ एक ही वारिस है और वो है मेरा बेटा ओमी....

इतना कहकर पायल ने शिव की तस्वीर के आगे जल रहा दिया बुझा दिया और उसके कमरे की ओर बढ़ने लगी जहां गौरी अलमारी में रति के डॉक्युमेंट्स तलाश रही थी। दूसरी ओर रति अपना काम खत्म करके घर जा रही थी पर आगे बढ़ते हुए वो सिर्फ शिव के बारे में ही सोच रही थी। कुछ कदम चलने के बाद चोट की वजह से उसके पैर में दर्द होने लगा तो वो सड़क के किनारे एक बेंच पर बैठ गई।

उसने अपनी कलाई में पहनी चूड़ियों को हटाया और उसमें बन्धे मंगलसूत्र को देखने लगी। उसकी आंख से झलका एक आंसू उसके मंगल सूत्र पर आ टपका तो उसे अपनी और शिव की शादी याद आने लगी। फूलों से सजे मंडप में रति दुल्हन बनी बैठी थी और उसके पास ही शिव भी बैठा था। जिसके माथे और होंठो से खून बह रहा था। बहुत चोटे लगी थी उसे..... पर उसने फिर भी रति का हाथ बहुत कसकर थामा हुआ था इसलिए शायद उसे दर्द का एहसास ही नहीं हो रहा था और उसके चेहरे पर सिर्फ मुस्कुराहट थी। पंडितजी शादी के मंत्र पढ़ रहे थे और शिव और रति आंखो में आंसू लिए बहुत प्यार से एक-दूसरे को देख रहे थे।

लेखिका
कविता वर्मा