प्यार हुआ चुपके से - भाग 4 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 4

मुखियाजी अपने कुछ लोगों के साथ जंगल से निकलकर पास ही के गांव की पुलिस चौकी पहुंचे। वहां पहुंचते ही वो थानेदार के पास आकर बोले- राम-राम दरोगा बाबू.......

"अरे मुखियाजी,आज आप अपने जंगल से बाहर कैसे आ गए? सब ठीक तो है ना? कहीं कोई बाघ किसी को फिर से उठाकर तो नहीं ले गया?"- थानेदार ने पूछा। मुखियाजी हाथ जोड़कर बोले- सब ठीक है दरोगा बाबू...बस आपसे कछु बात करना हति हमें,

"हां जरुर, बैठिए"- दरोगा ने कुर्सी की ओर इशारा करके कहा तो मुखियाजी बैठते हुए बोले- दरोगा बाबू मैं कल ही आपके पास आवे वालो हतो पर किसी काजे ना आ सको। बात जा है कि कछु दिना पहले, नर्मदा मैइया में एक मोड़ा बहेतो हुओ मिलो तो हमे। हमने वा मोड़ाए नदी से निकालो तो वो जिंदा हतो पर बहुत घाव थे बाके शरीर पर...बुरी तरह जख्मी हतो वो ..... इसलिए हम बाए अपनी बस्ती ले आए।

हमने सोच हतो कि जड़ी-बूटियन के इलाज से बाए जल्दी होश आ जायेगो और बा अपने बारन में हमें सब कछु बता देगो तो हम बाए बाके घरे भिजवा देंगे पर तीन मास होवे को आए है। अब तक बा मोड़ाये होश ना आओ है। जाके काजे हम जहां आए है....ना जाने बा मोड़ा कौन है... बाके घरवाले भी बाए ढूंढ रहे होंगे। वा मोड़ा जहां बेहोश पड़ो है और क्या पतो जाकी घरवाली जाके बिना मरी या जिई और अगर जा का ब्याह नहीं हुओ होगो तो जाकि माई जाके बिना रो-रो कर बेहाल हुई जात होगी। दरोगा बाबू बा मोड़ाये बाके घर पहुंचा दो। बड़ी मेहरबानी होगी आपकी,

"पर मुखियाजी तीन-चार महीने में हमारे पास किसी के गुम होने की कोई रपट नहीं आई है पर फिर भी हम पता लगाते है। मैं एक बार उस लड़के को देखकर उसकी फोटो खिचवा लेता हूं, ताकि हम उसके परिवार के बारे में पता कर सके। चलिए,"- दरोगा बाबू इतना कहकर उठकर खड़े हुए तो मुखियाजी भी उठकर उनके साथ चल दिए। दूसरी ओर रति सुबह के ठीक नौ बजते ही अपने ऑफिस पहुंची और अपनी डेस्क की ओर बढ़ने लगी। उसके पीछे-पीछे अजय भी चला आ रहा था। रति जैसे ही अपनी चेयर पर बैठने लगी तो उसकी नज़र अजय पर पड़ी।

"गुड मॉर्निंग सर"- वो अजय को देखते ही बोली।

"गुड मॉर्निंग मिस काजल....."- इतना कहकर अजय अपने केबिन की ओर बढ़ ही रहा था कि अचानक उसके कदम रुक गए। उसने पलटकर देखा तो रति अपनी चेयर पर बैठी फाइल देख रही थी। अजय उसके पास आकर बोला- मिस काजल,

उसकी आवाज़ सुनकर रति फिर से खड़ी हो गई। अजय उसकी ओर देखकर बोला- माना कि ये नौकरी आपको मेरी मां की शिफारिश पर मिली है पर हर कम्पनी के कुछ रूल्स होते है मिस काजल...जिसका पालन करना हर एम्प्लोई की ज़िम्मेदारी होती है और ये ज़िम्मेदारी आपको भी निभानी होगी।

"मैं समझी नहीं सर?"- काजल ने पूछा।

"अपने डॉक्यूमेंट्स आज ही जमा कीजिए ताकि हम आपको नौकरी देने की फोर्मिलिटिज पूरी कर सके"- अजय बोला। रति नजरे झुकाकर सोच में पड़ गई पर अजय अपने केबिन में चला गया। उसके जाते ही रति परेशान होकर अपनी चेयर पर बैठ गई।

उसने अपने दोनों हाथों से अपने माथे को पकड़ा और बोली- अब मैं अपने डॉक्यूमेंट्स कहां से लाऊंगी। वो तो इंदौर में है और वहां मैं जा नही सकती अगर मैं वहां गई और शक्ति को पता चल गया कि मैं जिंदा हूं। तो? नही-नही, मैं इंदौर नहीं जाऊंगी। वो सारी प्रॉपर्टी मेरे शिव की अमानत है और उस दौलत पर सिर्फ शिव और मेरे बच्चे का हक़ होगा इसलिए मैं शक्ति को अपने गंदे इरादों में कभी कामयाब नही होने दूंगी। चाहे जो हो जाए... मैं इंदौर नहीं जाऊंगी... कभी नहीं जाऊंगी,

रति उठकर अजय के केबिन के पास आई। उसने दरवाज़े पर नॉक किया तो अजय फाइल देखते हुए बोला- कम इन,

रति अंदर आकर बोली- आय एम सॉरी सर, पर मुझे अपने डॉक्यूमेंट्स सबमिट करने के लिए थोड़ा वक्त चाहिए। अजय ने नजरे उठाकर उसकी ओर देखा तो वो अपनी साड़ी के पल्ले को अपनी मुठ्ठी में भरकर बोली- मैं इस शहर की नही हूं सर। मेरे डॉक्यूमेंट मेरे गांव में ही रह गए है और उन्हें लेने मुझे गांव जाना होगा,

अजय उठकर खड़ा हुआ और बोला- ठीक है मिस काजल, मैं आपको एक महीने का वक्त देता हूं पर इस एक महीने में आपको अपने डॉक्यूमेंटस सबमिट करने होंगे वरना एक महीने बाद मुझे आपको नौकरी से निकालना पड़ जाएगा।

"मुझे वक्त देने के लिए शुक्रिया। मै कोशिश करूंगी कि जल्द से जल्द अपने डॉक्यूमेंट्स जमा कर दूं। थैंक्यू,"- रति इतना कहकर जाने लगी तो अजय ने फिर से उसे पुकारा- मिस काजल,

रति ने पलटकर उसे देखा तो अजय अपनी चेयर से उठकर उसके पास आया- मैनें जो काम आपको कल दिया था। वो सिर्फ इसलिए दिया था क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि आप यहां काम करे। मुझे लगा था कि आप ये सब नहीं कर पाऐगी पर बैलेंस सीट टेली करना, एक से सौ तक की गिनती जानने वाले लोगों के बस की बात नहीं होती है, तो जाहिर सी बात है कि आप पढ़ी-लिखी है। क्या मैं जान सकता हूं कि आप कहां तक पढ़ी है?

"बीए किया है मैंने"- रति के इतना कहते ही अजय की आंखें बड़ी-बड़ी हो गई। रति नज़रे झुकाकर फिर से बोली- और अकाउंट टेली करना मैंने अपने प...

रति इतना कहते-कहते रुक गई। अजय ने अपनी पलकें झपकाई और अपने चेहरे के भावों को बदलकर बोला- ओह देट्स ग्रेट,

और वापस आकर अपनी जगह पर बैठ गया। उसने फाइल्स देखते हुए कहा- वैसे ये तो आप समझ ही चुकी होगी कि मेरा बिज़नेस क्या है। ओंकारेश्वर जैसे छोटे से शहर में रहकर भी हमारे यहां बना कुमकुम पूरे देश में एक्सपोर्ट किया जाता है। आज से ये चेक करना आपका काम होगा मिस काजल कि दिन भर में कुमकुम के पैकेट्स से भरे कितने ट्रक हमारी फैक्ट्ररी से बाहर जा रहे है और कहां-कहां जा रहे है। आप फैक्ट्ररी जाइऐ....वहां आपको गुप्ताजी मिलेगे। उन्हें जाकर अपना नाम बताइए। वो आपको आपका पूरा काम समझा देंगे।

"जी सर"- रति के इतना कहते ही अजय उसे दरवाज़े की ओर हाथ दिखाकर बोला- तो जाइए जाकर अपना काम कीजिए।

रति ने सिर हिलाया और चुपचाप चली गई। अजय का ऑफिस फैक्ट्ररी में ही था इसलिए रति टेबल पर रखा नोटपैड उठाकर सीधे फैक्ट्ररी में चली गई। अजय अपने केबिन से ही उसे जाते देख रहा था। वो मन ही मन बोला- पंडितजी की भतीजी और बीए? ये बात कुछ हज़म नहीं हुई क्योंकि उनकी खुद की बेटी को उन्होंने पांचवीं पढ़ाकर घर में बैठा दिया था। वो भी ये कह कर कि लड़कियों को ज़्यादा पढ़ाना अच्छा नहीं होता और फिर उसकी शादी कर दी। उनके नजरिए में लड़कियों को घर का काम सीखना ज़्यादा ज़रूरी होता है तो फिर उनकी भतीजी इतना कैसे पढ़ सकती है और वो भी गांव में रहकर,

अजय सोच में पढ गया। इधर रति को गुप्ताजी ने उसका काम समझा दिया था। वो अपना काम करने में लगी हुई थी पर बार-बार वो यही सोच रही थी कि एक महीने में अपने डॉक्यूमेंट्स कैसे लाएगी। तभी अचानक उसके चेहरे पर चमक आ गई। वो दौड़ती हुई गुप्ताजी के पास आई और उसने पूछा- गुप्ताजी मुझे एक फोन करना है। कर सकती हूं?

"हां बेटा,वहां सामने टेबल पर जो फोन रखा है। उससे बात कर लो"- अधेड़ उम्र के गुप्ताजी बोले। रति के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और वो तेज़ी से टेलीफोन की ओर बढ़ने लगीं। उसने तुरंत रिसीवर उठाया और अपनी दोस्त गौरी का नंबर डायल करने लगी। दूसरी ओर रिंग जा रही थी। ट्रिंग-ट्रिंग की आवाज़ सुनकर रति मन ही मन बोली- हे महादेव, मदद कीजिए मेरी।

तभी दूसरी ओर से २१- २२ साल की एक लड़की ने आकर रिसीवर उठाया और बोली- हैलो... कौन?

उस लड़की की आवाज़ सुनकर रति के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने अपने कांपते होंठों से उसका नाम लिया- गौरी,

गौरी को वो आवाज़ जानी-पहचानी लगी इसलिए उसने तुरंत पूछा- कौन बात कर रहा है?

"गौरी, मै रति बोल रही हूं।"- रति के इतना कहते ही गौरी की आंखें बड़ी-बड़ी हो गई।

"रति,रति तू जिंदा है?"- उसने पूछा। रति आंखों में आंसू लिए बोली- हां गौरी मैं ज़िंदा हूं।

गौरी ने अपने आसपास देखा और बोली- पर रति तेरे ससुराल में तो सब यही कह रहे है कि शिव की मौत का सदमा तू बर्दाश्त नहीं कर पाई और तूने उसी जगह अपनी जान दे दी, जहां शिव की जान गई थी।

"अगर सच में मेरे शिव को कुछ हुआ होता ना गौरी तो मुझे आत्महत्या करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। मेरी सांसे खुद-ब-खुद रुक जाती"- रति की बातें सुनकर गौरी की आंखें भर आईं और उसने पूछा- तू ये कह रही है कि शिव ज़िंदा है?

"हां...शिव ज़िंदा है। उन्हें कुछ नहीं हुआ है और वो एक ना एक दिन लौटकर ज़रुर आयेंगे। मै अपनी आखिरी सांस तक उनके लौटने का इंतज़ार करूंगी।"- गौरी उसकी बातें सुनकर परेशान हो गई।

"पर रति, तूने और हम सबने अपनी आंखों से शिव की लाश देखी थी तो फिर तू इतने यकीन के साथ कैसे कह सकती है कि शिव ज़िंदा है।"- गौरी का ये सवाल रति की आंखों में आसूं ले आया और वो गौरी से बोली- क्योंकि मेरा दिल कहता है कि अगर मेरी सांसे चल रही है तो मेरे शिव को कैसे कुछ हो सकता है?

"अच्छा तू ये सब छोड़ और मुझे ये बता कि तू है कहां?"- गौरी ने पूछा। रति ने अपने आसपास देखा और बोली- उस दिन नदी में कूदने के बाद मैं पानी में बह कर ओंकारेशवर पहुंच गई थी। जिन लोगों ने मुझे बचाया था। उन्होंने ही मुझे आसरा दिया हुआ है और मुझे यहां नौकरी भी मिल गई है। मुझे बस तेरी थोड़ी मदद चाहिए इसलिए तुझे फोन किया मैंने पर प्लीज़ मेरे जिंदा होने वाली बात किसी को मत बताना। मेरे मां-पापा और मेरी बहन को भी नहीं....

"पर क्यों रति? तुझे कुछ पता भी है कि तेरे मां और पापा की क्या हालत है तेरे बिना? और शिव की मां... उन्हें तो तुम दोनों की मौत का इतना गहरा सदमा पहुंचा है कि उन्होंने अपनी सुद-बुद ही खो दी है अगर तू लौट आएगी तो उनकी टूटी हुई हिम्मत फिर से जुड़ सकती है रति इसलिए मै तुझे लेने आ रही हूं"- गौरी के इतना कहते ही रति तुरन्त बोली- नही गौरी, तू यहां नहीं आएगी और किसी को ये भी नहीं बताएगी कि मैं ज़िंदा हूं क्योंकि मैं इंदौर लौटकर नहीं आ सकती।

"पर क्यों रति?"

रति ने खुद को संभाला और बोली- क्योंकि वहां वापस लौटकर मैं अपने बच्चे की ज़िंदगी खतरे में नहीं डाल सकती गौरी। ये सुनकर गौरी की आंखें खुली की खुली रह गई। उसने हैरानी से पूछा- रति, तू मां बनने वाली है?

रति मुस्कुराते हुए बोली- हां गौरी....इसलिए मैं वहां नहीं आ सकती अगर मैं वहां आईं तो शक्ति शिव की दौलत हासिल करने के लिए उनके बच्चे को इस दुनिया में कभी नहीं आने देगा और मुझे इस बच्चे को सही-सलामत इस दुनिया में लाना है क्योंकि ये बच्चा, मेरा और शिव का सपना है।

मैं अपने पति की निशानी को यू खतरे में नहीं डाल सकती गौरी इसलिए मुझे यही रहकर शिव के लौटने का इंतज़ार करना होगा। शक्ति ने पहले शिव को मारने कि कोशिश की और फिर दौलत के लिए मुझे मजबूर किया नदी में कूदने के लिए....वो शिव की प्रॉपर्टी हासिल करने केे लिए कुछ भी कर सकता है गौरी....कुछ भी,

"शायद तू ठीक कह रही है रति। अपने बच्चे की खातिर तेरा इस शहर से दूर रहना ही ठीक है। तू मुझे बता, तुझे मेरी क्या मदद चाहिए?"- गौरी ने पूछा।

"मुझे मेरे डॉक्यूमेंट्स चाहिये गौरी। अपने पैरों पर खड़े होने के लिए मुझे उनकी ज़रूरत है।"

"डॉक्यूमेंट्स? कहां रखे है तूने?"- गौरी के इतना पूछते ही रति अपने आसपास देखकर बोली- मेरे और शिव के कमरे में हमारी अलमारी में ही रखे है, जैसे ही तुझे वो डॉक्यूमेंट्स मिले। मुझे इसी नंबर पर फोन कर लेना लेकिन सिर्फ सुबह नौ बजे से शाम ६ बजे के बीच ही मुझे फोन करना।

गौरी दो पल सोच कर बोली- ठीक हैं, तेरा काम हो जायेगा। तेरे कमरे में जाने से मुझे ना ही कोई रोकेगा और ना ही कोई सवाल करेगा...क्योंकि मैं शिव की बचपन की दोस्त हूं। डाक्यूमेंट्स मिलते ही मैं तुझे फोन करूंगी बस तू अपना और अपने बच्चे का ख्याल रखना रति,

गौरी ने इतना कहा ही था कि रति की नज़र सामने से आ रहे अजय पर पड़ी। वो घबराकर बोली- मेरे बॉस आ रहे है….. मैं फोन रखती हूं गौरी....

"अरे पर तेरा एड्रेस तो बता?"- गौरी ने तुरंत पूछा। रति ने घबराकर रिसीवर नीचे रख दिया और टेबल पर रखा अपना नोटपैड देखने लगी। अजय उसके पास आया और बोला- काम के लिए आपका डेडीकेशन देखकर मैं बहुत इंप्रेस हूं आपसे मिस काजल। आशा करता हूं कि आप आगे भी ऐसे ही काम करती रहेगी।

"जी सर"- रति आहिस्ता से बोली। अजय इतना कहकर वहां से जाने लगा। उसके जाते ही रति फिर से सामान की काउंटिंग करके उसे ट्रक में रखवा ने लगी। अजय भी गुप्ताजी से बात करने लगा तभी रति की नज़र ऊपर लगे पंखे पर पड़ी, जो टूटकर गिरने वाला था। वो पंखा अजय पर ना गिर जाए। ये सोच कर रति ज़ोर से चीखी- अजय सर हटिए वहां से, हटिए...

अजय ने पलटकर काजल की ओर देखा जो ऊपर देखते हुए उसकी ओर दौड़ी चली आ रही थी। फिर अजय ने ऊपर देखा तो उसकी आंखें खुली की खुली रह गई। उसे हटने का भी मौका नहीं मिला और वो पंखा तेज़ी से उसके ऊपर गिरने लगा पर तभी रति ने उसका हाथ पकड़कर उसे वहां से हटा लिया।
पंखा जाकर एक कुमकुम की बोरी से जा टकराया, जिसकी वजह से बोरी फट गई और कुमकुम चारो ओर फैल गया। अजय ने नज़रे उठाकर रति की ओर देखा। तो वो घबराई हुई आंखों से उसे ही देख रही थी। रति ने अजय से दूर होकर पूछा- आप ठीक है सर?

"हां,थैंक्यू"- अजय ने उसकी ओर देखकर कहा। रति ने मुस्कुराने की कोशिश की और वहां से जाने लगी। जाते वक्त उसके कदम ज़मीन पर पड़े कुमकुम पर पड़ गए। रति के पैर आगे बढ़ते हुए कुमकुम की छाप छोड़ रहे थे। अजय ये सब देखकर सोच में पड़ गया। दूसरी ओर दरोगा बाबू मुखियाजी के साथ उनकी बस्ती में आए तो मुखियाजी उन्हें शिव के पास लाकर बोले - जा रओ वो मोड़ा,

दरोगा बाबू उसके पास बैठे और फोटो खींचने वाले से बोले- फटाफट अपना तामजाम जमा और इसका फोटो खिंच,

सामने खड़े आदमी ने अपना बड़ा सा कैमरा वहां लगाना शुरू किया। उसके कैमरा सेट करते ही दरोगा ने अपने एक हवलदार को शिव को पकड़कर बैठाने का इशारा किया। दूसरी ओर रति अपना नोटपैड उठाने के लिऐ आगे बढ़ी ही थी कि तभी उसके पैर में टूटी हुई पंखड़ी का एक टुकड़ा आ घुसा। उसके मुंह से आह निकल गई। रति के मुंह से आह निकलते ही एक बार फिर शिव को होश आने लगा और उसके हाथ-पैर हिलने लगे। रति ने सहारे के लिए टेबल पर हाथ रखा और अपना पैर देखने लगी। वो टुकड़ा उसके पैर में बहुत अंदर तक घुस गया था। रति ने उसे आहिस्ता से निकालने की कोशिश की पर वो दर्द की वजह से उसे निकाल नहीं पाई।

लेखिका
कविता वर्मा