प्यार हुआ चुपके से - भाग 2 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

प्यार हुआ चुपके से - भाग 2

रति ने रिसीवर नीचे रखा और अपनी आंखें बन्द की तो उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। उसने खुद को संभाला और अपनी आँखें खोलकर बोली- नहीं रति, तू ऐसे हिम्मत नहीं हार सकती। तुझे तब तक खुद को संभालना होगा, जब तक तेरे शिव तुझे संभालने के लिए लौट नहीं आते। दुनिया चाहे जो भी कहे पर तेरा दिल जानता है कि शिव जहां भी है, बिल्कुल ठीक है और तेरे पास लौटकर ज़रुर आऐंगे। उन्हें आना होगा क्योकिं उनकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी तेरे साथ है। उस खुशी के लिए उन्हें लौट कर आना ही होगा।

रति ने तुरंत अपने आंसू पौछे और उस ओर बढ़ने लगी जहां पूजा की तैयारी चल रही थी। तभी वो सीढ़ियों से नीचे आ रही प्रिया से टकरा गई।

"अंधी हो? देख कर नहीं चल सकती क्या?"- प्रिया ने गुस्से में पूछा। रति को उसका इस तरह बात करना पसंद नहीं आया। उसने भी पलटकर जवाब दिया- मुझे तो सब कुछ नज़र आ रहा है इसलिए देखकर चल रही थी पर शायद तुम अंधी हो इसलिए तो अंधों की तरह चल रही थी।

"हाउ डेयर यू टॉक टू मी लाइक दिस?"- प्रिया ने गुस्से में पूछा तो रति मुस्कुराते हुए बोली- ठीक वैसे ही, जैसे तुम्हारी हिम्मत हुई मुझसे ऐसे बात करने की। रति इतना कहकर वहां से चली गई। उसके जाते ही प्रिया गुस्से में चीखी- बहादुर काका मेरी चाय लेकर आओ।

"अभी लाया बिटिया"- बहादुर ने इतना कहा और फूलों की थाली पूजा के स्थान पर रखकर दौड़ता हुआ रसोई घर की ओर चला गया तभी रति भी वहां आ गई। आते ही वो दीनानाथजी की पूजा की तैयारियों में मदद करने लगी। सावित्री उसे देखकर मुस्कुरा रही थी। कुछ देर में पूजा शुरू हो गई और पूरे घर में मंत्रो की आवाज़ गूंजने लगी।

रति भी हाथ जोड़े पूजा में बैठी हुई थी। उसने अपनी आंखें बन्द की तो उसे उज्जैन का महाकाल मंदिर नज़र आया। जहां एक तैईस-चौबीस साल का गौरा-चिट्टा लड़का बैठा, महादेव की पिंडी का रुद्राभिषेक करते हुए महामृत्युंजय मंत्र का जाप किए जा रहा था।

"शिव"- रति मुस्कुराते हुए बोली। उसकी आवाज़ सुनकर आदिवासियों के इलाके में,एक खाट पर लेटे शिव के शरीर में हलचल शुरू हो गई। उसे बहुत चोटें लगी हुई थी और उसके शरीर के कई हिस्सों में पट्टियां भी बंधी हुई थी। उसके हाथों को हिलते देख,वहां के मुखिया की बीस साल की बेटी कजरी ज़ोर से चीखी- बापू जा आदमिए होश आ गओ,

कजरी की आवाज़ सुनकर,गांव के कुछ लोगों से बात कर रहे मुखियाजी दौड़ते हुए वहां आ गए। वो शिव की बगल में बैठे और उन्होंने शिव की कलाई पकड़कर उसकी नब्ज़ देखते हुए कहा- होश नहीं आया है जाए पर बहुत जल्दी आवे वालों है। जा मोड़ी लेप लेकर आ और जा मोड़ा के हाथन में लगा और थोड़ा जाके पाओन में भी लगा दे।

मुखियाजी इतना कहकर वहां से उठकर चले गए और फिर से गांव के आदमियों से बात करने लगे। कजरी ने तुरन्त लेप का कटोरा उठाया और शिव के पैरों में लगाने लगी। तभी बेहोशी की हालत में शिव ने रति का नाम लिया।

शिव ने जैसे ही रति का नाम लिया तो पूजा में बैठी रति के कान में हलचल होने लगी जैसे उसे शिव की आवाज़ सुनाई दी हो। उसने तुरंत अपनी आंखें खोली और अपने चारों ओर देखा पर उसे शिव कहीं नज़र नहीं आया। उसने दरवाज़े की ओर देखा और उठकर दरवाज़े की ओर बढ़ने लगी। दरवाज़े के पास आते ही उसके कदम रुक गए और उसकी नज़रे शिव को तलाशने लगी, तभी खाट पर बेहोश पड़े शिव ने एक बार फिर बेहोशी की हालत में रति को पुकारा।

शिव ने जैसे ही रति का नाम दोबारा पुकारा तो तेज हवा के झौंके के साथ रति को फिर से शिव की आवाज़ सुनाई दी।

"शिव"- रति,शिव का नाम पुकारते हुए बंगले से बाहर भागी और सड़क पर उसे पुकारते हुए एक परछाई के पीछे दौड़ने लगी। सामने से एक ट्रक, बहुत तेज़ी से उसकी ओर बढ़ा चला आ रहा था। रति को सामने देखकर ट्रक ड्राइवर ज़ोर से चीखा- सामने से हटो, ट्रक के ब्रेक फेल हो गए है। हटो सामने से,

पर रति को जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। वो सिर्फ उस नज़र आ रही परछाई के पीछे शिव को पुकारती हुए दौड़े जा रही थी, तभी फूलों की एक दुकान से बुके खरीदकर,अपनी कार की ओर बढ़ रहे एक लड़के की नजर उस पर पड़ी। उसके हाथों से फूल छूटकर ज़मीन पर बिखर गए और वो चीखते हुए रति की ओर दौड़ा- हटिए, ट्रक आ रहा है सामने से,

पर रति को उसकी आवाज़ भी सुनाई नहीं दी। वो लड़का दौड़ता हुआ आया और उसने रति को पकड़कर ट्रक के सामने से हटा लिया। ट्रक वाले ने भी उसे बचाने के लिए ट्रक को बाएं मोड़ा तो उसका बैलेंस बिगड़ गया और वो ट्रक एक पेड़ से टकरा कर रुक गया पर ट्रक के पेड़ से टकराने से पहले ही ट्रक ड्राइवर कूद गया। जिसकी वज़ह से उसकी भी जान बच गई। रति को बचाने वाले लड़के ने उसकी बांह पकड़कर उसे अपनी तरफ किया और उसे घूरते हुए गुस्से में पूछा- पागल हो गई है आप? या आपको खुद़खुशी करने का बुखार चढ़ा है?

रति बिना कुछ कहे उस लड़के को एकटक देख रही थी जैसे उसके सामने शिव खड़ा हो। उस लड़के का गुस्सा और बढ़ गया। उसने रति को झटके से घुमाया और सामने पेड़ से टकराए ट्रक की ओर इशारा करते हुए बोला- अगर मैंने वक्त पर आपको नहीं बचाया होता तो आपको उस ट्रक ने अपने पहियों के नीचे कुचल दिया होता और ऑमलेट बन गया होता आपका,

उस लड़के के इतना कहते ही रति की आंखें बड़ी-बड़ी हो गई और उसने नज़रे घुमाकर उस लड़के को देखा। उसे देखते ही वो तुरन्त उससे दूर हो गई। उसने घबराकर अपने पेट पर हाथ रखा और झेंपकर बोली- शुक्रिया,

उसके इतना कहते ही उस लड़के ने उसकी बांहे बहुत ज़ोर से पकड़ी और बोला- अगर मरने का इतना शौक है तुम्हें तो किसी नदी में कूदकर मरो। दर्द थोड़ा कम होगा।

इतना कहकर उस लड़के ने गुस्से में उसकी बांहे छोड़ दी।और बिना कुछ कहे अपनी कार की ओर बढ़ने लगा। वो रति को घूरते हुए अपनी कार में बैठा और वहां से चला गया। रति ने अपनी आंखें बन्द की और सुकून की सांस लेकर मन ही मन बोली- आपका बहुत-बहुत शुक्रिया महादेव,बहुत-बहुत शुक्रिया,

उसने अपने आंसू पोछे और चारों ओर देखने लगी पर उसे शिव कहीं नज़र नहीं आया। उसने खुद को संभाला और फिर से सुमित्रा के घर पहुंची, जहां पूजा खत्म हो चुकी थी। दीनानाथजी ने उसे देखते ही पूछा- काजल बेटा कहां चली गई थी?

रति ने मुस्कुराने की कोशिश की और बोली- यहीं थी बाबा, बाहर बगीचा देख रही थी।

"झूठ बोल रही है ये"- तभी सीढ़ियों से नीचे आते हुए वहीं लड़का बोला जिसने रति की जान बचाई थी। उसके हाथ में एक फाइल थी। रति ने उसकी आवाज़ सुनते ही उसकी ओर देखा पर वो कुछ समझ पाती। उसके पहले ही सुमित्रा उस लड़के की ओर बढ़कर बोली- अजय तू तो ऑफिस के लिए निकल गया था ना तो फिर वापस कैसे आ गया और तुझे कैसे पता कि काजल झूठ बोल रही है?

"क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले,मैंने इन्हें सड़क पर एक ट्रक के नीचे आने से बचाया है"- अजय के इतना कहते ही दीनानाथजी ने तुरंत रति की ओर देखा तो वो उनसे नज़रे चुराने लगी। अजय उसकी ओर देखते हुए आगे आया और सुमित्रा से बोला- मां मैं अपनी एक फाइल घर भूल गया था, वहीं लेने वापस आ रहा था। फिर याद आया कि आज मेरे एक दोस्त का जन्मदिन भी है तो उसके लिए एक शॉप से फूलों का बुके खरीदने के लिए रुका था मैं। तभी सड़क पर मुझे ये लड़की ट्रक की ओर दौड़ती नज़र आईं। आज अगर मैनें इन्हें नहीं बचाया होता तो इस वक्त इनकी लाश वहीं सड़क पर पड़ी होती।

दीनानाथजी ये सुनकर परेशान हो गए। उन्होंने रति की ओर देखकर पूछा- बेटा क्या सच में वो तुम ही थी?

रति ने आहिस्ता से हां में अपना सिर हिला दिया। दीनानाथजी उससे कुछ कहने जा ही रहे थे कि तभी अजय ने अपनी मां से पूछा- मां ये लड़की है कौन? और हमारे घर में क्या कर रही है?

सुमित्रा ने मुस्कुराते हुए रति की ओर देखा और बोली- अजय ये काजल है। पंडितजी की भतीजी। कुछ दिनों पहले ही ओंकारेश्वर आई है और आज मैंने ही इसे यहां बुलाया है ताकि मैं इसे तुझसे मिला सकूं।

"मुझसे? क्यों??"- अजय ने रति की ओर देखकर हैरानी से पूछा।

"इसे नौकरी की ज़रूरत है बेटा, और मैं चाहती हूं कि तू इसे अपने ऑफिस में काम दे"- सुमित्रा के इतना कहते ही अजय बड़ी-बड़ी आंखों से रति की ओर देखने लगा पर रति ने एक बार भी उसकी ओर नज़रे उठा कर नहीं देखा।

"आय एम सॉरी मां पर मेरे ऑफिस में इस लड़की के लायक कोई पोस्ट नहीं है"- अजय के इतना कहते ही सुमित्रा ने रति की ओर देखा और फिर अजय की बांह छूकर बोली- मैं पंडितजी से वादा कर चुकी हूं अजय। कि अब काजल तेरे साथ तेरे ऑफिस में ही काम करेगी। तेरी सेक्रेटरी बनकर,

"पहली बात मां कि मुझे सेक्रेटरी की ज़रूरत नहीं है और दूसरी सबसे जरूरी बात, सेक्रेटरी ऑफिस में झाड़ू-पौछा लगाने का काम नहीं करती है। बॉस की फाइल्स मैनेज करना, मीटिंग अरेंज करना, उसके कॉल अटेंड करना,और बॉस की छोटी-छोटी ज़रूरतों का ख्याल रखना, बहुत से काम करने होते है उसे जो इस लड़की को देखकर नहीं लगता कि ये कर सकेगी। दिस गर्ल इज नोट फिट टू बी माय सेक्रेटरी"- अजय, रति को घूरते हुए बोला।

रति ने उसे पलटकर कोई जवाब नहीं दिया।और नम्रता से दीनानाथजी से बोली- बाबा अगर ये मुझे नौकरी नहीं देना चाहते तो हम इनसे ज़बरदस्ती तो नहीं कर सकते ना। हम घर चलते है मैं खुद अपने लिए नौकरी ढूंढ लूंगी। कहीं ना कहीं मुझे नौकरी मिल ही जाएगी। चलिए घर चलते है।

दीनानाथजी ने उदास होकर आहिस्ता से हां में अपना सिर हिलाया और फिर सुमित्रा के सामने हाथ जोड़कर बोले- चलता हूं बहनजी। राम राम,

सुमित्रा कुछ बोल नहीं पाई। उन्होंने अपने हाथ जोड़कर मुस्कुराने की कोशिश करते हुए अपना सिर हिला दिया। दीनानाथजी,रति के साथ वहां से चले गए। उनके जाते ही सुमित्रा गुस्से में अजय से कुछ कहने जा ही रही थी कि तभी प्रिया वहां आकर बोली- भईया आपने उस लड़की को नौकरी ना देकर बहुत अच्छा किया। बहुत बदतमीज़ है वो लड़की,

"अच्छा? तुम्हें कैसे पता?"-अजय के इतना पूछते ही प्रिया फट से बोली- अभी थोड़ी देर पहले वो मुझसे टकराई थी और अपनी ग़लती की माफी मांगने की जगह मुझसे बदतमीज़ी करने लगी, पर आपने उसे नौकरी ना देकर मेरी इंसल्ट का बदला ले लिया उससे। थैंक्यू,

"और अपनी मां का सर उसके और उसके बाबा के सामने हमेशा के लिए झुका दिया। है ना बेटा?"- सुमित्रा का ये सवाल सुनकर अजय और प्रिया मुंह बनाकर एक-दूसरे को देखने लगे।

"बहादुर,पूजा का प्रसाद सबको बांट दो। मुझे अपनी सहेली से मिलने जाना है, शायद वो मेरी बात का मान रख ले"- इतना कहकर सुमित्रा गुस्से में वहां से चली गई। उनके जाते ही अजय, प्रिया से बोला- मां नाराज़ हो गई है प्रियू, लगता है मुझे उस लड़की को नौकरी देनी पड़ेगी।

प्रिया ने बच्चों की तरह मुंह बना लिया। उसका चेहरा देखकर अजय ने मुस्कुराते हुए उसके बालों को खींचा और बोला- बाय,

"भईया मेरे सारे बाल खराब कर दिए आपने"- प्रिया चिढ़कर बोली पर तब तक अजय वहां से चला गया। प्रिया ने पहले तो मुंह बनाया और फिर बोली- मेरी इंसल्ट की थी ना तुमने? तो मैं भी देखती हूं कि तुम मेरे भईया के ऑफिस में काम कैसे करती हूं।

इतना कहकर प्रिया ने झटके से अपने बालों को पीछे किया और अपने कमरे में चली गई। सुमित्रा अपनी सहेली के घर जाने की तैयारी कर ही रही थी कि अजय ने उनके कमरे में आकर उन्हें पीछे से पकड़ कर कहा- सॉरी मां, मैं आपको नाराज़ नहीं करना चाहता था पर जिस लड़की को सड़क पर चलना भी ना आता हो। उसे मैं अपने ऑफिस में काम कैसे दे दूं और वो भी सेक्रेटरी का,

ऑफिस में कोई और पोस्ट खाली होती तो मैं उसे दे भी देता पर मैं उस लड़की को अपनी सेक्रेटरी नहीं बना सकता लेकिन अगर आपने उस लड़की को काम दिलवाने का वादा कर ही दिया है तो मैं उसे किसी और जगह काम दिलवाने की पूरी कोशिश करूंगा। प्रॉमिस,

"तुझे ऑफिस के लिए देर हो रही होगी ना? तो तू जा। हम इस बारे में बाद में बात करते है।"- सुमित्रा उसे खुद से दूर करके बोली। अजय ने फिर से कुछ कहना चाहा ही था कि वो वहां से चली गई।

दूसरी ओर रति परेशान अपने घर के बाहर एक पेड़ से टिककर खड़ी हुई थी। वो मन ही मन खुद से बोली- रति तुझे नौकरी तो तलाशनी ही होगी क्योंकि किसी पर बोझ बनकर ज़िंदगी नहीं जी जाती। तुझे अपने पैरों पर खड़ा होना होगा। कल से तुझे खुद ही अपने लिए नौकरी तलाशनी होगी।

इतना कहकर उसने अपनी आंखें बन्द की और फिर गहरी सांस लेकर अपनी आंखे खोली तो उसके सामने अजय खड़ा था। उसने अपने आसपास देखा और दीनानाथजी को आवाज़ लगाकर बोली- बाबा आपसे कोई मिलने आया है।

"मैं तुमसे मिलने आया हूं"- तभी अजय बोला। रति उसे हैरानी से देखने लगीं तभी पंडितजी बाहर आ गए। आते ही उनकी नजर भी अजय पर पड़ी।

"अजय बाबू आप? आइए ना बैठिए"- पंडितजी हाथ जोड़कर बोले तो अजय ने उनके पास आकर कहा- मैं यहां बैठने नहीं आया हूं पंडितजी बल्कि ये कहने आया हूं कि आपकी भतीजी को मेरे ऑफिस का पता बता दीजिएगा और इनसे कहिएगा कि कल सुबह ठीक नौ बजे मेरे ऑफिस पहुंच जाए। मुझे देर से आने वाले लोग पसंद नहीं है।

"इसका मतलब आप मेरी बेटी को अपने यहां काम दे रहे है अजय बाबू।"- पंडितजी ने उत्सुकता से पूछा। अजय ने रति की ओर देखा और फिर हां में अपना सिर हिला दिया। पंडितजी के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई और उन्होंने तुरंत रति की ओर देखा। जिसके चेहरे पर अभी भी कोई खुशी नहीं थी।

"आपका बहुत-बहुत शुक्रिया अजय बाबू, बहुत-बहुत शुक्रिया"- पंडितजी ने हाथ जोड़कर अजय से कहा तो वो तुरन्त बोला- आपको शुक्रिया करने की कोई ज़रूरत नहीं है पंडितजी। मैनें आपकी भतीजी को ये नौकरी, सिर्फ मां की खातिर दी है क्योंकि मैं उन्हें नाराज़ नहीं कर सकता। चलता हूं नमस्ते,

अजय इतना कहकर तेज़ी से अपनी गाड़ी की ओर बढ़ा और फिर गाड़ी लेकर वहां से चला गया। उसके जाते ही दीनानाथजी,रति के पास आये और उसके सिर पर हाथ फेरकर बोले- बेटा अब तू अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी और खुद अपनी ज़िम्मेदारी उठाने के लायक बन जाएगी। मैं तेरे लिए बहुत खुश हूं।

उनकी बातें सुनकर रति ने मुस्कुराने की कोशिश की। दीनानाथजी ने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और फ़िर अपने घर के अंदर चले गए पर रति अभी भी अपनी जगह पर ही खड़ी थी।

"इतने दिनों बाद ऐसा लग रहा है,जैसे अब मैं भी खुली हवा में सांसे ले सकती हूं। आपका इंतज़ार करने के लिए जीना ज़रूरी है शिव और जीने के लिए सांसे लेना पर सांसे लेने के लिए एक नौकरी की ज़रूरत थी मुझे। आज वो मिल गई। अब कल से मैं अपनी ज़िंदगी की एक नई शुरुआत करूंगी और आपके लौटने का इंतज़ार भी। प्लीज, जल्दी आ जाइए शिव"- रति ने जैसे ही शिव का नाम लिया तो खाट पर बेहोश पड़े शिव को उसकी आवाज सुनाई दी और एक बार फिर से उसके शरीर में हलचल होने लगी। उसने भी बेहोशी की हालत में फिर से रति का नाम लिया- रति,

शिव ने जैसे ही उसका नाम लिया... तो पेड़ के पास खड़ी रति के कानों में... हवा का तेज झौंका टकराया। और उसे फिर से शिव की मौजूदगी का एहसास हुआ।

लेखिका
कविता वर्मा