शिव की नज़र जैसे ही रति पर पड़ी, तो उसकी आँखें खुली की खुली रह गई क्योंकि उसे अपनी आंखों पर यकीन नही हो रहा था कि रति उसके इतने करीब थी। उसने तुरंत महादेव की पिंडी की ओर देखा,पर तभी रति आरती लेने के लिए आगे बढ़ गई।
शिव ने फिर से उसकी ओर देखा,पर उसे रति नज़र नही आई। वो तुरंत उस ओर बढ़ने लगा जहां उसने रति को देखा था,पर तभी पीछे खड़ी भीड़ आरती लेने के लिए आगे बढ़ी। शिव को धक्का लगा और उसने संभालने के लिए वही खड़े एक आदमी का सहारा लिया।
रति आरती लेकर मंदिर के गर्व गृह में आ गई। उसने अपने सिर को अपनी साड़ी के पल्ले से ढांका और हाथ जोड़कर भगवान के सामने बैठी। वो मन ही मन बोली - आप कालों के काल है महाकाल और मेरे शिव आपके भक्त.... इसलिए मुझे पूरा यकीन है कि मेरी मांग का सिंदूर अभी तक सलामत है, पर फिर भी मैं सूनी मांग लेकर जी रही हूं। सिर्फ इसलिए, क्योंकि अब मेरी मांग में सिंदूर आपको मेरे शिव के हाथों ही भरवाना होगा।
और मैं जानती हूं कि आप मेरे शिव को बहुत जल्द मुझसे मिलवा देंगे और इसी आस में मेरी सांसे चल रही है। आज उनका जन्मदिन है महादेव.... इसलिए आज मैं उनके लिए सिर्फ यहीं मांगूगी कि वो जहां भी हो बिल्कुल ठीक हो। उनके सिर पर अपना हाथ हमेशा बनाए रखियेगा महादेव...
और मेरे होने वाले बच्चे को अपने पिता से जल्द मिलवा दीजिए। जब मेरा बच्चा इस दुनिया में अपनी आँखें खोले,तो उसके पापा उसके पास हो। वो अपनी सारी ज़िंदगी उनके साए तले ही बिताए। बस इतनी विनती सुन लीजिए मेरी महादेव और कुछ नही चाहती मैं.....
इतना कहकर उसने अपनी आँखें खोली। दूसरी ओर शिव उसे मन्दिर में हो रही भीड़ में पागलों की तरह खोज रहा था। वो चारो ओर उसे देखते हुए मन ही मन बोला - मेरी रति ज़िंदा है महादेव....और यहीं है इसी मंदिर में..... प्लीज़ इतने करीब होकर उसे मुझसे दूर मत जाने दीजिए। मुझे मेरी रति लौटा दीजिए। लौटा दीजिए महाकाल,
इतना कहते-कहते अचानक उसे मंदिर के गर्व गृह का ख्याल आया और उसने तुरंत उस ओर देखा। वो तेज़ी से भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ने लगा। उसने जैसे मन्दिर के गर्व गृह में पैर रखा। रति उसके करीब से निकलकर मंदिर से बाहर आ गई। उसका सिर अपनी साड़ी से ढंका हुआ होने की वजह से उसे रति नज़र नही आई।
उसने मन्दिर में देखा पर रति वहां नही थी। वो वापस पलटने लगा पर कुछ लोगों की भीड़ दर्शन के लिए दरवाज़े पर आ गई। जिसकी वजह से वो मंदिर से बाहर नही निकल पाया पर रति लक्ष्मी के साथ आगे बढ़ने लगी। वो वहां बने मंदिरों के एक-एक करके दर्शन करने लगी। शिव भीड़ के बीच से निकलकर बाहर आया और फिर रति को तलाशने लगा।
सारे मंदिरो के दर्शन के बाद लक्ष्मी,रति से बोली - बेटा अब हमे चलना चाहिए। तेरे बाबा अकेले परेशान हो रहे होंगे। आज मंदिर में अजय बाबू की माताजी ने पूजा रखवाई है इसलिए प्रसाद बनाने में तेरे बाबा की मदद भी करनी है।
"जी अम्मा,मैं ये प्रसाद की टोकरी देकर आती हूं। आप बाहर जाकर ऑटो देखिए"- रति उनकी बांह को छूकर बोली। लक्ष्मी ने सिर हिलाया और वहां से चली गईं। रति फिर से प्रसाद की दुकान पर आ गई। उसने टोकरी दुकानदार को वापिस दी तो दुकानदार ने टोकरी से सारा प्रसाद निकालकर एक थैली में रखा और वो थैली रति को थमा दी।
शिव वही कुछ कदम की दूरी पर उसे तलाश रहा था। तभी लक्ष्मी ने ऑटो रोकी और रति को आवाज लगाई- बिटिया जल्दी आ वर्ना हमारी बस निकल जाएगी।
"आ रही हूं अम्मा"- रति अपनी चप्पल पहनते हुए ऊंची आवाज में चीखी और तेज़ी से ऑटो की ओर बढ़ने लगी। उसकी आवाज़ सुनते ही शिव के चेहरे पर मुस्कुराहट और चमक आ गई। उसने तुरंत पलटकर देखा,तो उसे रति ऑटो में बैठती नज़र आईं। वो जोर से चीखा- रति.....
पर तभी वहां ढोल बजने लगा। जिसकी वजह से रति को उसकी आवाज़ सुनाई नही दी। ऑटो आगे बढ़ने लगी। शिव ज़ोर से चीखते हुए ऑटो की ओर दौड़ पड़ा पर अभी-अभी कोमा से उठने की वजह से,वो तेज़ी से दौड़ नही पा रहा था। ढोल का शोर कम होते ही रति को शिव की धीमी सी आवाज़ सुनाई दी।
उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी। उसने ऑटो में से पलटकर देखा,पर तभी ऑटो वाले ने ऑटो दाई ओर मोड़ ली। तभी लक्ष्मी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछा - क्या हुआ बिटिया?
रति ने तुरन्त उनकी ओर देखा और ना मैं अपनी गर्दन हिला दी। लक्ष्मी ने मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ फेरा और सामने की ओर देखने लगी। रति मन ही मन बोली - मुझे ऐसा क्यों लगा,जैसे वो आवाज़.... वो आवाज़ मेरे शिव की थी।
उसे घबराहट होने लगी। वो तुरंत ऑटो वाले से बोली - भईया ऑटो रोकिए...
"क्या हुआ बहनजी?"- ऑटो वाले ने इतना पूछते हुए ऑटो रोक दी। रति ऑटो से उतरी और बोली - अम्मा मैं बस अभी आई।
लक्ष्मी कुछ पूछ पाती। उसके पहले ही रति फिर से मंदिर की ओर दौड़ पड़ी। शिव भी लड़खड़ाते हुए रति की ओर ही दौड़ा चला आ रहा था। तभी उसे एक खाली ऑटो नज़र आ गई। वो तुरंत ऑटो में बैठा और बोला - वहां से दाई ओर चलो।
ऑटो वाले ने ऑटो आगे बढ़ा दी। शिव अपनी दाईं ओर से ऑटो से बाहर देख रहा था। तभी उसके बाईं ओर से रति दौड़ती हुई वहां आ गई और उसकी नज़रें भी चारों ओर शिव को तलाशने लगी, पर उसे शिव कहीं नज़र नही आया।
उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। उसने पलटकर मंदिर की ओर देखा और हाथ जोड़कर अपनी आँखें बन्द कर ली। तभी लक्ष्मी ने पीछे से आकर उसके कंधे पर हाथ रखा, तो रति ने पलटकर उनकी ओर देखा। लक्ष्मी को देखते ही वो खुद को संभाल नही सकीं और उनसे लिपट कर रोने लगी।
इधर शिव की नज़र उस ऑटो पर पड़ी, जिसमें उसने रति को बैठे देखा था। वो तुरंत ऑटो वाले से बोला - भाई ऑटो रोको...
ऑटो वाले ने तुरंत ऑटो रोक दी। शिव ने उसके हाथ में दस का नोट थमाया और दौड़ता हुआ दूसरे ऑटो वाले के पास पहुंचा, जो अपनी ऑटो स्टार्ट कर रहा था। शिव ने ऑटो में देखा तो हैरान रह गया क्योंकि ऑटो खाली थी और उसमें कोई नही था। उसने तुरंत ऑटो वाले की कॉलर पकड़ी और पूछा - वो लड़की, जो अभी थोड़ी देर पहले तुम्हारी ऑटो में बैठी थी। वो कहां है?
"आराम से भाई, कॉलर तो छोड़"- ऑटो वाला बोला। शिव ने तुरंत उसकी कॉलर छोड़ दी और उसे ठीक करते हुए बोला - माफ करना, कहां है वो लड़की?
ऑटो वाले ने जवाब दिया- उस लड़की ने अचानक मेरी ऑटो रुकवाई और ऑटो से उतरकर फिर से मन्दिर की ओर भाग गई। शायद वहां कुछ खो गया उसका.....उसके उतरते ही उसके साथ वाली अम्मा भी उसके पीछे चली गई।
"इसका मतलब रति ने मेरी आवाज़ सुन ली थी और वो मुझसे मिलने के लिऐ मन्दिर गई है"- शिव मन ही मन बोला। ये सोचकर कि रति ने उसकी आवाज़ सुन ली थी। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई थी।
उसने तुरंत ऑटो वाले से पूछा - कहां जाने के लिए बैठी थी वो?
"बस स्टैंड जा रही थी"- ऑटो वाले ने जवाब दिया। शिव के चेहरे पर चमक आ गई। उसने आगे बढ़कर ऑटो वाले को गले लगाया और बोला - थैंक्यू, थैंक्यू सो मच,
इतना कहकर वो फिर से मन्दिर की ओर दौड़ पड़ा।
दौड़ते हुए उसकी नज़रें सिर्फ रति को ही तलाश रही थी। इधर रति लक्ष्मी के साथ ऑटो मैं बैठी शिव के बारे में सोच रही थी। उसे इस तरह उदास देखकर लक्ष्मी ने मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ फेरा और बोली - महादेव पर भरोसा रख बिटिया, वो सब अच्छा करेंगे। तू ऐसे रोएगी और उदास रहेगी, तो तेरे बच्चे की सेहत पर असर पड़ेगा बेटा।
रति ने खुद को संभाला और अपने आंसू पौंछकर बोली - आप ठीक कह रही है अम्मा। अब मैं नही रोऊंगी और अपना ख्याल रखूंगी। अब मुझे यकीन हो गया है कि शिव जल्द ही मेरे साथ होंगे। उनका इंतज़ार करना है मुझे... मेरे शिव का इंतज़ार,
लक्ष्मी ने बहुत प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। इधर शिव को रति कहीं नही मिली, तो उसने पलटकर मंदिर की ओर देखा। उसने अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर जोड़ा और ऊंची आवाज़ में बोला - जय श्री महाकाल....
कर्ता करें ना कर सके,शिव करें सो होय,
तीन लोक नौ खंड में, महाकाल से बड़ा ना कोय,
इतना कहकर उसने फिर से अपनी आँखें बंद की और बोला - रति ज़िंदा है महादेव ...मेरी रति ज़िंदा है। आपने उसकी रक्षा की। मुझे और उसे दोनों को कुछ नही होने दिया। इससे बड़ा और क्या सबूत होगा महादेव कि आप हमारे साथ है।
पर रति इंदौर में नही है और वो ज़िंदा है। ये बात भी कोई नही जानता शायद इसलिए काका ने उस दिन मुझे फोन पर बताया था कि रति नही रही और मैं अच्छे से जानता हूं कि ज़िंदा बचने के बाद भी रति घर क्यों नही गई? उसे यही लग रहा होगा कि मैं मर चुका हूं। मुझे उसे ढूंढना होगा। उसे बताना होगा मुझे कि मैं ज़िंदा हूं।
उसने एक ऑटो रोकी और उसमें बैठकर ऑटो वाले से बोला - बस स्टेंड चलो जल्दी। ऑटो वाले ने ऑटो आगे बढ़ा दी। शिव मन ही मन बोला - रति के साथ जो औरत थी। उसने भी बस स्टैंड जाने की बात कहीं थी। इसका मतलब रति इस शहर में नही है। वो किसी और शहर से यहां आई थी।
आज मेरा जन्मदिन है और आज के दिन मैं यहां ज़रूर आता हूं। शायद मुझसे मिलने की आस उसे यहां खींच लाई थी। पर वो औरत,जो उसके साथ थी और जिसके बारे में ऑटो वाले ने बताया था। वो कौन थी? मुझे जल्द से जल्द बस स्टैंड जाना होगा।
मन ही मन इतना कहकर वो ऑटो वाले से बोला - भईया थोड़ा तेज़ चलाओ। ऑटो वाले ने ऑटो की स्पीड बढ़ा दी। कुछ ही देर में वो बस स्टैंड पहुंच गया। इधर रति और लक्ष्मी ओंकारेश्वर जाने वाली बस मैं बैठ गई।
शिव ऑटो वाले को किराया देने लगा और रति की बस उसके करीब से निकल गई। ऑटो वाले के जाते ही उसकी नज़र ओंकारेश्वर जा रही बस पर पड़ी। जिसमें उसे एक हाथ नज़र आया। जिसके हाथों में सोने की चूड़ियां थी।
उसे देखते ही शिव को समझते देर नहीं लगी कि वो रति ही है क्योंकि ऐसी ही चूड़ियां, उसने भी रति के हाथों में पहनाई थी। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और वो रति का नाम लेकर चीखते हुए बस के पीछे दौड़ पड़ा पर तभी वो एक मोटर साईकिल वाले से टकराकर गिर गया।
ज़मीन पर गिरते ही उसके पैर में लगे ज़ख्म से खून बहने लगा। उसके गिरते ही खामोश बैठी रति जैसे चौंक गई। उसने बस की खिड़की से पलटकर पीछे देखा, पर वहां बहुत से लोग शिव को संभालने के लिए जमा हो गए थे। वो सब उसे घेरे खड़े थे इसलिए उसे शिव नज़र नही आया और वो फिर से पलटकर सामने देखने लगी।
शिव लड़खड़ाते हुए उठकर खड़ा हुआ पर बस जा चुकी थी। उसने अपनी आँखें बंद कर ली, तो उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, तभी एक आदमी बोला - चलिए हम आपको अस्पताल ले चलते है।
"नही मैं ठीक हूं"- शिव उस रास्ते की ओर देखकर बोला जहां बस गई थी। तभी वो आदमी फिर से बोला - बहुत चोट लगी है आपको...खून बह रहा है। आइए, आपकी पट्टी करना बहुत ज़रूरी है।
शिव मन ही मन बोला - रति ओंकारेश्वर गई है पर किसके साथ? हमारा तो वहां कोई नही है और जहां तक मुझे पता है। रति का भी कोई रिश्तेदार ओमकारेश्वर में नही है, तो क्या रति वहां अकेली है।
मुझे उसके पास जाना होगा और उसके लिए पहले मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना होगा।
"चलिए अस्पताल यही पास ही है। मैं ले चलता हूं आपको वहां"- तभी वो आदमी फिर से बोला। शिव ने तुरंत उसकी ओर देखा और फिर सिर हिलाकर लगड़ाते हुए उसके साथ चल दिया।
दूसरी ओर दोपहर के दो बजे के आसपास। रति और लक्ष्मी घर पहुंची तो लक्ष्मी घर का ताला खोलते हुए बोली - बिटिया तू आराम कर, मैं ज़रा मंदिर होकर आती हूं। जाकर ज़रा देखूं कि प्रसाद तैयार हुआ या नही।
"अम्मा चाय तो पी लीजिए। मैं अभी बनाती हूं। फिर हम साथ ही मन्दिर चलेंगे। मुझे भी बाबा की मदद करनी है।"- इतना कहकर रति वही नल चलाकर अपने हाथ मुंह धोने लगी। लक्ष्मी भी आकर खाट पर बैठ गई।
दूसरी ओर शक्ति अपने कैबिन में बैठा। कुछ पेपर्स चैक कर रहा था, तभी नेहा वहां आ गई। उसने कैबिन का दरवाज़ा अंदर से बंद किया और शक्ति के पास आई। वो एक फाइल शक्ति की ओर बढ़ाकर बोली - सारे पेपर्स रेडी हो गए है शक्ति....अब तुम्हें कुछ भी करके, अपने परिवार वालों के साइन इन पर लेने होंगे। तभी तुम कपूर ग्रुप ऑफ़ कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर बन सकोगे।
शक्ति ने पेपर्स लिए और उन्हें देखकर मुस्कुराने लगा। नेहा उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठकर बोली - शक्ति बोर्ड की मीटिंग में सिर्फ चार दिन रह गए है। तुम्हें ये काम जल्द से जल्द करना होगा। अगर बोर्ड मीटिंग के पहले, सारे शेयर्स तुम्हारे नाम पर ट्रांसफर नही हुऐ,तो तुम्हारे डैड किसी और को शिव की कुर्सी पर बैठा देंगे।
शक्ति फाइल हाथ में लिए कुछ सोचने लगा। तभी नेहा फिर से बोली - वैसे एक बात और बतानी थी तुम्हें....
शक्ति ने नज़रे उठाकर उसकी ओर देखा तो नेहा बोली - तुम्हारे पापा....अपने मरे हुए बेटे के नाम पर लाखों रुपए डोनेट कर रहे है। आज शिव का जन्मदिन है इसलिए अभी-अभी उन्होंने पांच लाख का चैक साइन करके अनाथालय भिजवाया है।
कम्पनी इस वक्त बर्बाद होने की कगार पर खड़ी है और तुम्हारे पापा, दोनों हाथों से दौलत लुटा रहे है। इंदौर के सभी बड़े मन्दिरों में शिव के नाम से पूजा करवाई जा रही है। जिसके लिए मंदिरों में लाखों रुपये का सामान भिजवाया गया है। जिनके बिल मेरे हाथों में थमाए गए है। देखना चाहोंगे?
शक्ति ने फाइल टेबल पर पटकी और उठकर बोला - नो थैंक्स, तुम इन्हें संभालकर रखो क्योंकि सब कुछ मेरे नाम पर होने के बाद मेरे बाप को इन सबका हिसाब देना होगा मुझे...बताना होगा उन्हें कि शिव के मरने के बाद भी हमारा रुपया,वो अपनी नाजायज औलाद पर क्यों खर्च कर रहे है?
ये सुनकर नेहा के चेहरे पर तीखी सी मुस्कुराहट आ गई। शक्ति ने पेपर्स उठाए और बोला - पर उसके पहले शिव के नाम पर उन्हें ये पेपर्स साइन करने होगें। एक बार फिर शिव ही मुझे मेरे मक़सद में कामयाब करने का जरिया बनेगा। पहले भी उसकी सिफारिश पर ही मुझे मेरा बिज़नेस स्टार्ट करने के लिए, मेरा हिस्सा दिया गया था तो एक बार फिर वही मुझे मेरा हक दिलवाएगा।
ये सुनकर नेहा मुस्कुराते हुऐ उठकर उसके पास आई और उसके गले में अपनी बांहे डालकर बोली - तो फिर देर किस बात की है। आज से बेहतर मौका नही मिलेगा तुम्हें। इन पेपर्स पर अपने घरवालों से साइन करवाने का ..... तुम्हारे चाचू भी आज शाम को इंदौर आ जाएंगे। आज का ये खूबसूरत मौका अपने हाथों से मत जाने दो स्वीटहार्ट.... कर लो अपने सपनों को पूरा ....और बन जाओ कपूर ग्रुप ऑफ़ कंपनी के मालिक।
शक्ति के चेहरे पर तीखी सी मुस्कुराहट आ गई और वो झटके से नेहा को अपने करीब ले आया। नेहा भी उसे देखकर मुस्कुरा दी।
लेखिका
कविता वर्मा