प्यार हुआ चुपके से - भाग 20 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 20

अजय का सवाल सुनकर रति उसे एकटक देखने लगी पर उसने उसके सवाल का कोई जवाब नही दिया।उसका चेहरा देखकर अजय ने फिर से पूछा - क्या मैनें कोई ऐसा सवाल किया है,जो मुझे नही करना चाहिए था?

रति मुस्कुराने की कोशिश करते हुऐ बोली - नही, आपका सवाल गलत नही है, बस मैं जवाब नही देना चाहती। ये सुनकर अजय सोच में पड़ गया पर फिर मुस्कुराते हुए बोला - कोई बात नही। मैं दोबारा ये सवाल नही करूंगा, पर एक बात ज़रूर कहना चाहूंगा तुमसे। बहुत अच्छी लड़की हो तुम और मैं दिल से चाहता हूं कि तुम्हारी ज़िंदगी में सिर्फ खुशियां हो।

ये सुनकर रति ने मुस्कुराने की कोशिश की। अजय उठकर उसके पास आया और बोला - काजल ज़िंदगी में जब कभी तुम्हें मेरी मदद की ज़रूरत पड़े, तो मुझे अपना दोस्त समझकर बेझिझक मेरे पास चली आना। वादा करता हूं, तुम्हारा साथ ज़रूर दूंगा।

"थैंक्यू सर"- रति आहिस्ता से बोली। अजय मुस्कुरा दिया और अपना हाथ रति की ओर बढ़ाकर बोला - फ्रैंड्स,

रति ने पहले उसके हाथ की ओर देखा और फिर उसकी ओर देखकर बोली - सर मैं एक मामूली सी लड़की हूं और आप एक रईस इंसान और हमारी दोस्ती को लोग कभी अच्छी नज़र से नही देखेंगे इसलिए मुझे माफ कर दीजिए। मैं आपसे दोस्ती नही कर सकती।

"लोगों की छोड़ो काजल और मुझे बस ये बताओ कि तुम हमारी दोस्ती को किस नज़र से देखोगी?"- अजय ने उसकी ओर देखकर सवाल किया।

रति दो पल के लिए सोच में पड़ गई तभी अजय फिर से बोला - लोगों की परवाह नही करता मैं काजल। मैं सिर्फ अपने अपनों की परवाह करता हूं और मेरी नज़र में। दोस्ती दुनिया का सबसे पाक और साफ रिश्ता होता है जो खून के रिश्तों से कही ज़्यादा अहम होता है।

रति उठकर खड़ी हुईं और मुस्कुराते हुए बोली - सही कहा आपने... दोस्ती दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता होता है पर मैं उन लोगों में से हूं, जिसे दगा देने वाला उसका अपना दोस्त ही था और वो.... एक लड़का ही था। बस इसलिए अब मैं लड़कों से दोस्ती करने से थोड़ा घबराती हूं।

"पर हर वो दोस्त दगाबाज नही होता काजल, जो लड़का हो"

"नही होता सर.....और ये बात मैं जानती हूं पर मैं ये भी जानती हूं कि कुछ लड़के, एक लड़की की दोस्ती को कुछ और ही रंग में देखने लगते है और फिर वहीं रंग,उस लड़की की ज़िंदगी को काले रंग में रंग देता है।"

रति की बातें सुनकर अजय सोच में पड़ गया पर फिर मुस्कुराते हुए बोला - अगर ये डर मुझसे दोस्ती ना करने की वजह है, तो मैं तुम्हें फोर्स नही करूंगा,पर ज़िंदगी में जब कभी तुम्हें मेरी मदद की ज़रूरत हो,तो मुझे बस एक आवाज़ लगा देना।

रति ने फिर नज़रें उठाकर उसकी ओर देखा,तो अजय मुस्कुरा दिया। रति भी मुस्कुरा दी- मैं चाय लाती हूं आपके लिए,

"मैं ले आई हूं बिटिया"- तभी लक्ष्मी वहां आकर बोली। उन्होंने आते ही चाय का एक प्याला अजय की ओर और दूसरा रति की ओर बढ़ा दिया। दोनों ने चाय ली,तो रति ने अजय को बैठने का इशारा किया। अजय चुपचाप बैठकर चाय पीने लगा।

रति उसे देखकर मन ही मन बोली - मुझे माफ कीजिएगा अजय बाबू,पर शक्ति ने जो मेरे साथ किया है। उसके बाद अब मैं किसी से दोस्ती नही करना चाहती।

दूसरी ओर शक्ति, नेहा के घर में बैठा शराब पी रहा था और नेहा वहीं उसके सामने एक कुर्सी पर बैठी कुछ सोच रही थी। शक्ति शराब के ग्लास की ओर देखकर नशे की हालत में बोला - कपूर ग्रुप ऑफ़ कम्पनीस का मैनेजिंग डायरेक्टर बनने के लिए मैंने क्या कुछ नही किया। अपने ही भाई की जान तक ले ली, पर फिर भी मेरे हाथ खाली रह गए। अब बोर्ड मुझे कभी एमडी नही बनने देगा। कभी नही,

इतना कहकर उसने शराब का ग्लास बहुत ज़ोर से फर्श पर फेंक दिया। नेहा चौंककर उठ खड़ी हुई और उसने फर्श पर बिखरे कांच के टुकड़ों की ओर देखा। तभी शक्ति ने टेबल पर रखी दूसरी बॉटल उठाई और एक घूंट पीकर बोला - ये सब उस शिव की वजह से हुआ है। उसकी वजह से शक्ति एक अच्छे इंसान से विलेन बन गया और लोग नफरत करने लगे उससे सिर्फ उसकी वजह से....

उसकी बातें सुनकर नेहा मन ही मन बोली - नही शिव....एक बार फिर कपूर खानदान की बहू बनने और कपूर ग्रुप ऑफ़ कंपनीस की मालकिन बनने का सपना। मैं तुम्हारी वजह से टूटने नही दूंगी। शक्ति को उस कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर बनना ही होगा।

वो तुरंत शक्ति के पास आई और उसे संभालते हुए बोली - बेबी अगर तुम्हारे अपने तुमसे नफ़रत करते है तो उनकी नफरत को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाकर अपने रास्ते की सारी रूकावटे दूर कर लो और उन्हें जरिया बना लो। उस कुर्सी तक पहुंचने का,जो तुम्हारा सपना बन चुकी है।

उसके इतना कहते ही शक्ति ने उसे नज़रे उठाकर देखा। नेहा ने बहुत प्यार से उसके चेहरे को छुआ और बोली - एक बहुत आसान रास्ता है उस कुर्सी तक पहुंचने का पर शायद उस पर चलना, तुम्हारे लिए थोड़ा मुश्किल हो।

"कपूर ग्रुप ऑफ़ कम्पनीस का मैनेंजिंग डायरेक्टर बनने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं, कुछ भी"- शक्ति उसकी ओर देखकर बोला, तो नेहा ने उसकी आंखों में देखकर पूछा - अपने अपनो को दगा दे सकते हो?

शक्ति हैरानी से उसे देखने लगा, तो नेहा उठकर खड़ी हुई और कुछ कदम चलकर बोली - उस कुर्सी पर वहीं बैठेगा। जो कम्पनी का मेजर स्टेक होल्डर होगा शक्ति, जिसके भी पास उस कम्पनी के 51% शेयर होंगे, फैसला भी उसका ही होगा और अगर तुम्हारे पास उस कंपनी के 51% शेयर्स हो, तो तुम्हें दुनिया की कोई ताकत एमडी बनने से नही रोक सकती।

शक्ति के चेहरे पर तीखी सी मुस्कुराहट आ गई। उसने फिर से शराब का एक घूंट पिया और बोला - इंपोसिबल है ये,

उसके इतना कहते ही नेहा मुस्कुराई और वहां से चली गई। शक्ति फिर से शराब पीने लगा पर कुछ देर बाद नेहा एक कॉपी पेन लेकर फिर से लौटी और उस पर कुछ लिखने लगी। कुछ लिखने के बाद उसने वही कॉपी, शक्ति के सामने टेबल पर रखी और बोली - इसे ध्यान से देखो शक्ति....

शक्ति ने कॉपी की ओर देखा और फिर गुस्से भरी नज़रों से उसकी ओर देखकर पूछा - ये शब्द कॉपी पर लिखने का क्या मतलब हुआ? नेहा उसके पास बैठी और बोली - इसे पढ़ो शक्ति.....शक्ति उसे घूरते हुए बोला - इंपोसिबल लिखा है और क्या.....अंग्रेज़ी आती है मुझे,

नेहा ने पेन उठाया और इंपोसिबल की स्पेलिंग के आगे लिखा ईएम पेन से काट दिया और फिर शक्ति से बोली- अब पढ़ो इसे...शक्ति ने फिर से कॉपी की ओर देखा और फिर नेहा की ओर देखने लगा।

"नथिंग इज़ इंपोसिबल शक्ति.... क्योंकि इंपोसिबल में ही पॉसिबल शब्द छिपा हुआ होता है,बस हमारे समझने की देर है"

उसकी बातें सुनकर शक्ति चिढ़कर बोला - पहेलियां मत बुझाओ नेहा, साफ-साफ बताओ कि कहना क्या चाहती हो? नेहा ने उसके हाथों से शराब की बॉटल लेकर टेबल पर रखी और बोली - बस ये कहना चाहती हूं तुमसे कि 51% शेयर हासिल करना,बहुत आसान है तुम्हारे लिए....

शक्ति ने फिर से शराब की बॉटल उठा ली और बोला - तुम अगर भूल गई हो नेहा,तो मैं तुम्हें याद दिला दूं कि मैंने अपना बिज़नेस सेटअप करने के लिए अपना हिस्सा अपने बाप से बहुत पहले ले लिया था इसलिए अब मेरे पास कपूर ग्रुप ऑफ़ कंपनीज के सिर्फ 5% शेयर्स ही बचे है क्योंकि अपने बीस परसेंट शेयर्स मैंने अपने बाप को बेच दिए थे और उनसे रूपए लेकर ही मैंने अपना बिज़नेस स्टार्ट किया था और मेरे उसी बिज़नेस ने मुझे बर्बाद भी कर दिया था।

"मुझे अच्छे से याद है बेबी पर तुम शायद ये भूल गए हो कि एक बाप की प्रॉपर्टी पर सबसे ज़्यादा हक उसकी औलाद का होता है"- नेहा के इतना कहते ही शक्ति ने तुरंत उसकी ओर देखा। नेहा के चेहरे पर तीखी सी मुस्कुराहट आ गई।

वो उठकर खड़ी हुई और बोली - कपूर ग्रुप ऑफ़ कंपनीज की बुनियाद तुम्हारे पापा ने रखी थी शक्ति इसलिए उस कंपनी के असल मालिक वही है। 75% के हकदार थे वो कपूर ग्रुप ऑफ़ कम्पनी में.... सिर्फ 25% की हिस्सेदारी किसी बाहर वाले, यानि की अरूण मित्तल साहब की है। जो तुम्हारे पापा के दोस्त है और वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने तुम्हारे पापा को फाइनेंस करने के बदले, उस कंपनी में हिस्सेदारी की पेशकश रखी थी।

अपने 75% के हिस्से में से तुम्हारे पापा ने अपने छोटे भाई यानी कि तुम्हारे चाचू को 15% और तुम्हारी दादी को 9% का हिस्सेदार बनाया था पर 51% के मालिक वही थे इसलिए कंपनी में हर फैसला उनका होता है पर अपना खुद का बिज़नेस स्टेब्लिश करने के लिए, तुमने अपने पापा से रुपए मांगे थे पर रकम बहुत ज़्यादा थी इसलिए उन्होंने तुम्हे इंकार कर दिया था।

"ये सब मुझे क्यों बता रही हो? ये सब मैं बहुत अच्छे से जानता हूं क्योंकि वो मेरी फैमिली है।"- शक्ति चिढ़कर बोला पर उसकी इस बात पर नेहा को हंसी आ गई। उसे इस तरह हंसते देख शक्ति को बहुत गुस्सा आया।

नेहा ने अपनी हंसी रोकी और बोली - फैमिली वो होती है शक्ति जो वक्त आने पर हमारा साथ दे,हमारी मदद करें पर तुम्हारे परिवार को तुम पर भरोसा कभी था ही नही इसलिए तो जब तुम्हारा बिज़नेस बर्बाद हो रहा था, तो तुम्हारे अपनों ने तुम्हारी मदद करने से इंकार कर दिया था। उस वक्त अगर वो तुम्हारा साथ दे देते, तो आज जिस तरह कंस्ट्रक्शन की फील्ड में शिव कपूर का नाम गूंजता है, ठीक वैसे ही आईटी में तुम्हारा नाम होता।

शक्ति उसे एकटक देखने लगा तो नेहा फिर से बोली - खैर ये सब बातें रहने देते है और मुद्दे पर आते है। तुम्हारे पापा के पास कपूर ग्रुप ऑफ़ कंपनीस के 21% शेयर्स अभी भी है। और 25% शेयर्स उन्होंने शिव को भी दे दिए थे पर क्योंकि शिव तुमसे ज़्यादा शातिर निकला। उसने अपना हिस्सा अपनी पत्नी के नाम कर दिया और हमें ये बाद उसके मरने के बाद पता चली थी।

रति की लाश अभी तक पुलिस को नही मिली है इसलिए पुलिस उसे अगले सात सालों तक मरा हुआ नही मानेगी,तो वो शेयर्स तुम्हें मिलना नामुमकिन है। बाकी के शेयर्स तुम्हें मिल सकते है क्योंकि अब तुम मिस्टर अधिराज कपूर के एकलौते बेटे हो पर वो तुम्हें अब कुछ देने से रहे।

शक्ति फिर से उसे हैरानी से देखने लगा,तो नेहा मुस्कुराते हुए बोली - बस हमें किसी तरह तुम्हारे परिवार वालों के शेयर्स,तुम्हारे नाम ट्रांसफर करने होंगे।

ये सुनकर शक्ति उठ खड़ा हुआ और सोच में पड़ गया। नेहा ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और बोली - जान तुम समझ रहे हो ना,कि मैं क्या कह रही हूं?

शक्ति ने तिरछी नज़रों से उसे देखा तो उसके चेहरे पर ज़हरीली सी मुस्कान आ गई। उसने नेहा की कमर पर हाथ रखा और उसे झटके से अपने करीब ले आया। नेहा मुस्कुरा दी और उसने उसकी कॉलर पकड़कर, उसे वही बेड पर खींच लिया।

अगले दिन शिव उज्जैन के महाकाल मन्दिर में पहुंचा। उसने दूर से मन्दिर की ओर देखा और अपने दोनों हाथ उठाकर जोड़े।

"जय श्री महाकाल"- वो बहुत ऊंची आवाज में आंख बन्द करके बोला। उसकी आवाज सुनकर वहां मौजूद लोगों ने उसकी ओर देखा। तभी शिव ऊंची आवाज़ में फिर से बोला -

अकाल मृत्यु वो मरे, जो काम करे चांडाल का।
और काल उसका क्या बिगाड़ सके, जो भक्त हो महाकाल का,
जय श्री महाकाल.... हर हर महादेव,

वो महाकाल का जयकारा लगाते हुए मन्दिर की ओर बढ़ने लगा। उसके चेहरे पर अभी भी दाढ़ी बढ़ी हुई थी और आंखों में भी तेज था उसकी.....उसे देखकर एक और दूसरी औरत से आहिस्ता से बोली - लगता है महाकाल का कोई बहुत बड़ा भक्त है। इसके चेहरे के तेज़ से तो ये खुद ही महाकाल का रूप लग रहा है।

"सही कह रही है तू"- तभी दूसरी औरत बोली। दोनों औरते उसे देखते हुए आगे बढ़ने लगी। तभी एक ऑटो मन्दिर परिसर के बाहर आकर रूकी और ऑटो से उतरते ही रति ने अपने पैर जमीन पर रखे। उसके ज़मीन पर पैर रखते ही शिव के कदम अचानक से रुक गए और उसे रति के अपने आसपास होने का एहसास हुआ। रति ने ऑटो वाले को पैसे दिए और फिर लक्ष्मी के साथ आगे बढ़ने लगी।

शिव ने तुरंत पलटकर देखा और चारों ओर अपनी नज़रे घुमाई पर उसे रति कहीं नज़र नही आई। उसकी बेचैनी और बढ़ गई। वो मन ही मन बोला - क्यों मुझे ऐसा लगा रति? जैसे तुम यहीं मेरे आसपास हो?

वो बेचैनी से रति को मंदिर में तलाशने लगा पर रति मंदिर परिसर के बाहर एक दुकान से पूजा का सामान खरीद रही थी। शिव को जब रति कहीं नही मिली, तो उसने अपनी आँखें बंद कर ली और फिर से पलटकर मंदिर की ओर देखने लगा। उसने खुद को संभाला और मंदिर की ओर बढ़ने लगा।

इधर लक्ष्मी प्रसाद लेकर रति के साथ आगे बढ़ते हुए बोली - तेरे बाबा का भी बहुत मन था बिटिया यहां आने का, पर आज अजय बाबू की माताजी ने मन्दिर में पूजा पाठ रखवाई है। उसकी वजह से वो आ नही पाए, पर अगली बार हम उन्हें साथ लेकर ही यहां आएंगे और क्या पता? जब अगली बार हम यहां आए, तो तेरी गोद में एक नन्हा मुन्ना या एक नन्ही सी बिटिया भी हो।

ये सुनकर रति मुस्कुरा दी और आगे बढ़ने लगी, पर जैसे ही उसने मंदिर परिसर में अपने पैर रखे, तो उसे एक अजीब सा एहसास हुआ।

उसके कदम अचानक से वही रुक गए और उसे भी ऐसा लगा, जैसे शिव उसके आसपास ही हो। उसने बड़ी ही बेचैनी से अपनी नज़रें चारों ओर दौड़ाई पर उसे शिव कहीं नज़र नही आया।

"क्या हुआ बिटिया"- तभी लक्ष्मी ने उसके कन्धे पर हाथ रखकर पूछा। रति जैसे चौंक गई। उसे ऐसे देखकर लक्ष्मी ने परेशान होकर पूछा- क्या हुआ बिटिया? तू ठीक तो है ना?

रति ने आहिस्ता से हां में अपनी गर्दन हिला दी, तो लक्ष्मी परेशान होकर बोली - कल रात भी बुखार था तुझे, फिर भी तू यहां चली आई। किसी की नही सुनती है।

"अम्मा आज उनका जन्मदिन है। वो तो साथ नही है, पर उनके बच्चे का तो हक़ बनता है ना कि वो अपने पिता के वजूद को मेहसूस करें? इस मंदिर से जुडी कई यादें है हमारी और मैं अपने होने वाले बच्चे को उन यादों का हिस्सा बनाना चाहती। इसे महाकाल के दर्शन करवाकर इसके पिता से मिलवाना चाहती हूं, इसलिए आज कैसे रुक जाती?

रति की बातें सुनकर लक्ष्मी ने उसके सिर पर हाथ फेरा और बोली - चल.....

दोनों फिर से मंदिर की ओर बढ़ने लगी। शिव मंदिर में आया और महाकाल बाबा के सामने हाथ जोड़कर मन ही मन बोला - मुझे नही पता महादेव कि जो कुछ मेरे साथ हुआ। वो क्यों हुआ? पर इतना ज़रूर जानता हूं कि ये जो कुछ भी हुआ है, आपकी मर्जी से हुआ है।

पर मुझसे ऐसी कौन सी गलती हो गई, जिसकी आपने मुझे ये सज़ा दी है। अगर रति नही रही इस दुनिया में तो आपने मुझे उस तूफान से क्यों बचाया? मर जाने दिया होता मुझे भी.... क्यों बचाया आपने मुझे? और अगर मुझे बचाया है आपने, तो रति को क्यों जाने दिया मुझसे दूर? मुझे मेरे सवालों के जवाब दीजिए महादेव? अगर रति नही रही तो आपने मुझे क्यों बचाया? अपने सवाल का जवाब लिए बिना आज मैं यहां से कहीं नही जाऊंगा। कहीं नही,

शिव ने इतना कहा ही था कि तभी रति लक्ष्मी के साथ वहां आकर खड़ी हो गई। शिव को फिर से उसके होने का एहसास हुआ और उसने तुरंत अपनी आँखें खोल ली।

रति को भी ऐसा लगा जैसे शिव उसके पास ही खड़ा है। उसने गर्वगृह में देखने की कोशिश की, पर तभी कुछ पंडित अंदर जाते हुए बोले - आप लोग एक तरफ हो जाइए। महाकाल की आरती का समय हो गया है।

वहां खड़े लोग आहिस्ता-आहिस्ता थोड़ा पीछे हटने लगे। रति ने पलटकर देखा और वो भी पीछे हटने लगी। तभी शिव भी गर्वगृह से बाहर आकर खड़ा हो गया। वो रति के पास ही खड़ा था। उसके और रति के बीच।बस दो लोग ही खड़े हुऐ थे।

तभी जयकारे के साथ आरती शुरु हो गई और सब लोग आरती में मग्न हो गए। चारों ओर घंटियों की आवाज़ के बीच महाकाल की आरती सुनाई दे रही थी।

शिव और रति दोनों ही आरती में मग्न थे। कुछ देर बाद आरती ख़त्म हुई और चारों ओर महाकाल का जयकारा गूंज उठा। तभी शिव आँखें बंद करके मन ही मन बोला - मेरे सवाल के जवाब दीजिए महादेव.... आज मैं बिना जवाब लिए यहां से नही जाऊंगा।

तभी पंडितजी ने सबको आरती देनी शुरु कर दी और इसी वजह से लोग आगे बढ़ने लगे। तभी पीछे से शिव को धक्का लगा और वो अपनी आँखें खोलकर पलटा पर तभी उसकी नज़र, अपने से कुछ दूरी पर खड़ी रति पर पड़ी जो अपनी आँखें बंद किए हाथ जोड़े खड़ी थी।

लेखिका
कविता वर्मा