प्यार हुआ चुपके से - भाग 19 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 19

अपने आसपास लोगों को फिल्म देखते देख रति अपने बीते हुए कल से बाहर आ गई और वहां से उठकर चली गई। सब फिल्म देखने में मग्न थे इसलिए किसी ने इस बात पर ध्यान ही नही दिया कि रति वहां नही है। रति घर आकर वहां रखी खाट पर आकर लेट गई। शिव के बारे में सोचते हुए कब उसकी आंख लग गई। उसे पता भी नही चला।

दूसरी ओर शिव बेड पर लेटा हुआ था। रति के ना होने की खबर ने जैसे उसे मार ही दिया था। उसे हर वो लम्हा याद आ रहा था जब रति उसके साथ थी। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। वो गुस्से में बेड से उठकर वार्ड में लगे दूसरे पलंग का सहारा लेकर आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़ने लगा और लड़खड़ाते हुए हॉस्पिटल की छत पर पहुंचा। वो आहिस्ता-आहिस्ता मुंडेर की ओर बढ़ा और छत की किनारे पर आकर खड़ा हो गया। वो हॉस्पिटल के पांचवे माले की छत पर खड़ा हुआ था।

"तुम्हें मेरा इंतज़ार करना चाहिए था रति....ऐसे मुझे छोड़कर नही जाना चाहिए था तुम्हें.... कैसे सोच लिया तुमने कि तुम्हारा शिव तुम्हें छोड़कर जा सकता है। मैंने अपना किया वादा निभाया रति...और मैं तुम्हारी खातिर मौत के दरवाज़े से भी वापिस आ गया, तो तुम मुझे छोड़कर कैसे चली गई। मैं नही रह सकता तुम्हारे बिना, तुम्हारे लिए ही तो शायद मैं लौटकर आया था। पर अब अगर तुम नही, तो मैं वापस लौटकर क्या करूं? तुम्हारे बिना तो ये ज़िंदगी मौत से भी बत्तर होगी....नही चाहिए मुझे ऐसी ज़िंदगी....नही चाहिए।"

शिव यही सब सोचते हुए छत की मुंडेर पर खड़ा हो गया। उसने अपनी आँखें बंद की,तो उसे एक बार फिर रति के साथ बिताए सारे लम्हें याद आने लगे। दूसरी ओर रति खाट पर सो रही थी और उसे भी नींद में वही हादसा नज़र आ रहा था, जो उसके और शिव के साथ हुआ था।

वो शिव और शक्ति को तेज़ बारिश में लड़ते देख रही थी। दोनों की लड़ाई में शिव पहाड़ी पर जा लटका, जहां नीचे उफनती हुई नदी बह रही थी। शिव ने पलटकर देखा और ऊपर आने की कोशिश करने लगा। वही खड़ी रति शक्ति के गुंडों से खुद को छुड़ाते हुए शिव का नाम लेकर चीख रही थी।

शक्ति शिव को नीचे गिरते देख घबराकर उसे बचाने के लिए आगे आया, पर फिर अचानक उसने अपने कदम पीछे ले लिए और वही खड़ा होकर शिव को देखने लगा। तभी शिव का हाथ छूट गया और वो नदी में गिरने लगा। उसे नदी में गिरते देख रति जोर से चीखी - शिव,

और नींद से उठ बैठी ....दूसरी ओर शिव ने अपना पैर आगे बढ़ाया ही था कि तभी रति की चीख कानों में पड़ते ही उसने तुरंत अपने कदम रोक लिए। उसने नीचे देखा तो उसे एहसास हुआ कि वो कहां खड़ा था। रति को भी घबराहट की वजह से पसीना आने लगा। उसने घबराकर चारो ओर देखा, तो उसके पास ही एक खाट पर लक्ष्मी सोई हुई थी। उसने अपनी साड़ी के पल्ले से पसीना पौछा और उठकर कमरे से बाहर, आंगन में खुली हवा में आ गई। जहां तेज़ हवाएं चल रही थी। उसने बाहर आकर सुकुन की सांस ली ही थी कि तभी बारिश शुरु हो गई।

रति और शिव दोनों ही बारिश में खड़े एक-दूसरे की यादों में खोये भीग रहे थे। रति ने अपनी बाहें फैलाकर ऊपर आसमान की ओर देखा, तो बारिश की मोटी-मोटी बूंदे उसके चेहरे को छू रही थी। शिव ने भी ऊपर आसमान की ओर देखा और अपनी आँखें बंद कर ली। उसके चेहरे पर भी बारिश की बूंदे गिर रही थी।

वो कुछ देर वही खड़ा रहा,पर फिर मुंडेर से नीचे उतरकर आहिस्ता-आहिस्ता फिर से अपने बेड के पास आ गया। दूसरी ओर रति अभी भी बारिश में खड़ी रो रही थी। तभी बादलों की गड़गड़ाहट से लक्ष्मी की नींद खुल गई। उसने करवट बदली,तो उसे पास की खाट पर रति नज़र नहीं आई। वो तुरंत उठ बैठी और उसने चारों ओर नज़रे घुमाकर देखा। उसे रति कहीं नज़र नही आई, तो वो खाट से उठकर बाहर के कमरे में आई। जहां दीनानाथजी सो रहे थे पर घर का दरवाज़ा खुला हुआ था। वो तेज़ी से दरवाज़े के पास आई, तो उन्होंने देखा कि रति बाहर बारिश में खड़ी रो रही थी। उन्होंने तुरन्त दरवाज़े के पीछे रखा छाता उठाया और उसे लेकर घर से बाहर आई।

"काजल बेटा इतनी रात को बारिश में क्यों भीग रही है? चल अंदर,"- उन्होंने रति की बांह पकड़ी और उसे घर के अन्दर ले आई। छाता बंद करके उन्होंने फिर से दरवाज़े के पीछे रखा और तौलिया लेकर रति के पास आकर बोली - ये तौलिया ले बेटा और जाकर कपड़े बदल ले, वर्ना बीमार पड़ जायेगी।

रति की आंखो से अभी भी आंसू बह रहे थे। लक्ष्मी ने उसके कंधे पर हाथ रखा।l और बोली - बेटा, किस्मत के लिखे को कोई नही बदल सकता। भगवान ने जितने दिन तकलीफ़ सहना हमारे नसीब में लिखा होता है, उतने दिन हमें दर्द सहना ही पड़ता है, पर भगवान के घर देर होती है बेटा, पर अंधेर नही.... भरोसा रख ऊपर वाले पर...वो तेरी ज़रूर सुनेगा। एक ना एक दिन तुझे भी तेरे हिस्से की खुशी ज़रूर मिलेगी पर तब तक के लिए खुद को संभाल....अपने लिए ना सही,अपने होने वाले बच्चे के लिए.....

ये सुनकर रति ने तुरंत उनकी ओर देखा, तो लक्ष्मी ने उसके सिर पर हाथ फेरा - बेटा भगवान ना करें। अगर इस बच्चे को कुछ हो गया, तो जमाई बाबू के लौटने पर तू उन्हें क्या जवाब देगी? नज़रे मिला सकेगी उनसे? नही ना? तो ख्याल रख अपना, तभी तो ये बच्चा भी स्वस्थ रहेगा। जाकर कपड़े बदल, मैं तेरे लिए दूध गर्म करके लाती हूं।

इतना कहकर लक्ष्मी वहां से चली गई। उनके जाते ही रति उनकी कहीं बातों के बारे में सोचने लगी। उसने खुद को संभाला और अपने आंसूओ को पौछकर बोली - मैं हमारे बच्चे को कुछ नही होने दूंगी शिव... कुछ नही।

अगले दिन सुबह जब डॉक्टर, शिव का चेकअप करने वार्ड में पहुंचे, तो शिव अपने बेड पर नही था। उन्होंने तुरंत नर्स से पूछा - ये लड़का कहां गया?

"पता नही सर, मैं देखती हूं। यही कही होगा।"

"जल्दी लेकर आओ उसे फोटोग्राफर आने वाला है। उसकी तस्वीर निकालनी है"- डॉक्टर के इतना कहते ही नर्स ने सिर हिलाया और तेज़ी से वहां से चली गई। उसने सारा हॉस्पिटल देखा पर उसे शिव कहीं नही मिला। वो परेशान होकर भागी-भागी डॉक्टर के पास आकर बोली - डॉक्टर साहब वो लड़का तो कहीं नही है। मैंने सारा हॉस्पिटल छान मारा पर उसका कुछ पता नही चला, पता नही कहां चला गया?

"चला गया? पर वो तो ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। ऐसे कैसे कहीं चला गया? ढूंढो उसे ... यहीं कहीं होगा।"

"नही है सर, मैंने पूरा हॉस्पिटल देख लिया है। उसकी हालत पहले से बेहतर थी। कल तो वो बिना सहारे के चल भी पा रहा था। मुझे लगता है कि शायद वो अपने घर चला गया"- नर्स बोली। डॉक्टर साहब सोच में पड़ गए और फिर बोले - मुझे इंस्पेक्टर साहब को बताना होगा।

दूसरी ओर लक्ष्मी, रति को जगाने के लिए कमरे में आई, तो रति अभी तक सो रही थी।

"काजल बेटा उठ जा,दिन निकल आया है। आज ऑफिस नही जाना क्या?"- लक्ष्मी कमरे की खिड़की खोलते हुए बोली पर रति ने ना ही कोई जवाब दिया और ना ही कुछ बोली। लक्ष्मी उसके सिरहाने आकर बैठी और उसके माथे को छूकर बोली - काजल उठ जा बेटा...

पर रति को बहुत तेज़ बुखार था। लक्ष्मी ने तुरंत उसके गले पर हाथ रखकर देखा और बोली - ये भगवान इसे तो बहुत तेज़ बुखार है। वो तुरंत वहां से उठकर बाहर के कमरे में आई और दीनानाथज़ी से बोली - सुनिए जी, काजल बिटिया को बहुत तेज़ बुखार है।

"क्या???"- इतना कहकर वो तेज़ी से रति के पास आए। उन्होंने उसके माथे को छूकर देखा और बोले - बुखार तो सच में बहुत तेज़ है, बिटिया को डॉक्टर के पास ले चलते है।

तभी रति ने अपनी आँखें खोली और अपना सिर पकड़कर बोली - अम्मा, डॉक्टर के पास बाद में चलेंगे। पहले मेरे लिए एक कप चाय बना दीजिए, सिर में बहुत तेज़ दर्द हो रहा है।

"अभी बनाती हूं बिटिया"- लक्ष्मी तुरंत रसोईघर में जाकर चाय बनाने लगी और ऊंची आवाज़ में फिर से बोली - क्या ज़रूरत थी रात में बारिश में भीगने की? रात में भीगी है, बुखार तो आना ही था। चाय पीकर दवाखाने चलते है,फिर तू आज सारा दिन आराम करेगी। दफ्तर जाने की कोई ज़रूरत ना है आज,

"हां बेटा आज दफ्तर मत जाना, घर पर ही आराम कर"- दीनानाथजी भी बोले। रति अपना सिर पकड़कर फिर से बेड पर लेट गई। दूसरी ओर शिव ट्रेन के दरवाज़े पर खड़ा हुआ था और ट्रेन तेज़ी से दौड़ रही थी।

वो मन ही मन बोला - तुमने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया शक्ति... इसलिए इतनी आसानी से तुम्हें नही छोडूंगा। आज तक रिश्तों का लिहाज़ करके खामोश था मैं। मां की खातिर, मैनें तुम्हें कई मौके दिए सुधरने के। पर मेरी ये अच्छाई मेरी ही दुश्मन बन गई।

अपने रिश्तों को बचाने के चक्कर में, मैंने अपनी ज़िंदगी खो दी पर अब तुम्हें अपने एक-एक किए का हिसाब देना होगा। अभी तक तुमने सिर्फ शिव की अच्छाई देखी थी, पर अब तुम उसका रौद्र रूप देखोगे। अब मैं तुमसे तुम्हारी हर वो चीज छीनूंगा,जिस पर मेरा हक था।

दूसरी ओर लक्ष्मी रति को डॉक्टर के पास लेकर आईं। डॉक्टर ने उसका चेकअप करके कुछ दवाइयां लिखकर उन्हें दी और बोले - आराम की ज़रूरत है इन्हें.... दो-तीन दिन बेड रेस्ट करने दीजिए और ये दवाईयां वक्त पर देते रहिए। शाम तक अगर बुखार ना उतरे तो कल एक बार फिर से मुझे दिखाइएगा।

लक्ष्मी ने सिर हिलाया और रति को वहां से बाहर ले आई। उसने उसे वही एक बैंच पर बैठाया और बोली - बिटिया तू थोड़ी देर यहीं बैठ, मैं ये दवाईयां लेकर आती हूं।

रति ने आहिस्ता से अपना सिर हिला दिया। लक्ष्मी ने बहुत प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और वहां से चली गई। रति के सिर में अभी भी बहुत दर्द था। वो अपना सिर पकड़े बैठी हुई थी, पर तभी अचानक उसकी नज़र, पास ही टेबल पर रखे अखबार पर पड़ी। जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में, कपूर ग्रुप ऑफ़ कंपनीस का नाम लिखा हुआ था।

रति ने तुरंत अखबार उठाया और खबर पढ़ने लगी। खबर पढ़ते ही वो हैरान रह गई और मन ही मन बोली - सरकार ने हमारी कंपनी से डेम का प्रोजेक्ट वापस ले लिया, पर क्यों?

वो सोच में पड़ गई और बोली - ये डैम तो शिव का सपना था, तो ऐसे कैसे सरकार हमारी कम्पनी से ये कांट्रेक्ट वापस ले सकती है।

उसने फिर से खबर पढ़नी शुरू की। पूरी खबर पढ़कर उसने अपनी आँखें बंद कर ली और फिर सुकून की सांस लेकर बोली - समझ नही आता भगवान कि आपका शुक्रिया अदा करूं? या आपसे शिकायत करूं? ये प्रोजेक्ट मेरे शिव का सपना था, जो अब हमेशा के लिये टूट चुका है और दूसरी ओर ये ठिकाना, इस वक्त मेरी ज़रूरत थी। ये प्रोजेक्ट हमारी कम्पनी से वापस ले लिया गया है। इसका मतलब अब शक्ति यहां नही आयेगा और मैं सुकून से यहां रह सकती हूं।

रति ने सुकून की सांस ली और महादेव का शुक्रिया अदा करने लगी। तभी लक्ष्मी वहां आ गई। और बोली - बिटिया दवाईयां ले ली है। चल, घर चले,

रति ने सिर हिलाया और उनके साथ आगे बढ़ने लगी। तभी लक्ष्मी फिर से बोली - तेरे बाबा सुबह जब अजय बाबू के घर आरती के लिए गए थे, तो उन्हें बता आए है कि तू कुछ दिन दफ्तर नही आयेगी।

रति ने तुरंत उनकी ओर देखा और फिर कुछ पल सोचकर,वो अपने पेट पर हाथ रखकर मन ही मन बोली - कल शिव का जन्मदिन है और हर साल वो अपने जन्मदिन पर महाकाल बाबा के दर्शन के लिए जाते थे। मैं भी तुझे कल महाकाल के दर्शन के लिए लेकर जाऊंगी। वो महाकाल है और इस वक्त तुझे उनके आशीर्वाद की बहुत ज़रूरत है। उनका हाथ तेरे सिर पर रहेगा तो शक्ति जैसा राक्षस भी तेरा कुछ नही बिगाड़ सकेगा।

शिव भी ट्रेन में खड़ा खुद से बोला - दुनिया के लिए शिव कपूर मर चुका है महादेव.. पर कल उसके जन्मदिन पर एक नए शिव का जन्म होगा इसलिए मैं आ रहा हूं, आपके दर्शन करने और आपसे अपने सवालों के जवाब मांगने।

आप कालों के काल महाकाल है और मैं आपका भक्त हूं इसलिए आपने मुझे मौत के मुंह से भी बचा लिया। पर रति वो भी तो आपकी भक्त थी, तो फिर आपने उसे कैसे मुझसे दूर जाने दिया। मेरी गैर मौजूदगी में आपने उसकी रक्षा क्यों नही की? क्यों नही की महादेव? आपको मेरे सवालों के जवाब देने होंगे। देने होगें महादेव....

दूसरी ओर शाम के साढ़े सात बजते ही मन्दिर में आरती शुरु हो चुकी थी। दीनानाथजी आरती कर रहे थे और लक्ष्मी वही उनके पास हाथ जोड़े खड़ी थी। आरती खत्म होते ही उनकी नज़र अजय पर पड़ी। उन्होंने वही खड़े एक लड़के को आरती की थाल पकड़ाई और बोले - सबको आरती दे दो। वो लड़का थाल लेकर सबको आरती देने लगा। अजय ने भी आरती ली और दीनानाथजी के पास आया।

"अजय बाबू आप? आज संध्या आरती में?"- दीनानाथजी ने पूछा। तभी एक लड़के ने आकर अजय को प्रसाद दिया। वो प्रसाद लेकर बोला - मां ने भेजा है मुझे...आपसे कुछ बात करनी थी, तो सोचा कि काजल के बारे में भी जान लूं। कैसी तबीयत है अब उसकी?

"अब ठीक है,बुखार उतर गया है उसका, पर डॉक्टर ने एक दो-दिन आराम करने के लिए कहा है। आइए आप मिल लीजिए उससे"- दीनानाथजी बोले। अजय ने सिर हिलाया और उनके साथ चल दिया। मंदिर के पीछे ही उनका घर था और रति बाहर आंगन में ही खाट पर बैठी, सब्जियां काट रही थी।

घर आते ही लक्ष्मी तुरंत रसोईघर की ओर जाते हुए बोली - मैं चाय बनाती हूं। अजय को देखते ही रति तुरंत उठकर खड़ी हो गई और बोली - आप?? यहां?

"बिटिया अजय बाबू तेरा हालचाल जानने आए है"- दीनानाथजी ने इतना कहकर वही रखी खाट बिछाई। और बोले - अजय बाबू आप जल पान कीजिए। मैं ज़रा मन्दिर में देख लूं। सब भक्तों को प्रसाद मिला या नही,

"एक मिनट पंडितजी"- तभी अजय बोला। उसने अपनी पॉकेट से पांच हजार रुपए निकालकर उन्हें दिए और बोला - मां ने भिजवाए है। कल सुबह हवन की तैयारी और शाम को प्रसाद वितरण के लिए,

"कल कोई खास दिन है क्या बेटा"- दीनानाथजी ने रुपए लेते हुऐ पूछा, तो अजय ने फिर से जवाब दिया - नही ऐसा तो कुछ नही है। बस मां ने कहा तो मैंने आपको दे दिए।

"कोई बात नही बेटा, मैं बस इसलिए पूछ रहा हूं। क्योंकि आपकी मां हर साल कल के दिन मन्दिर में हवन करवाती है और प्रसाद बंटवाती है"

उनकी बातें सुनकर अजय सोच में पड़ गया और फिर बोला - जानता हूं पंडितजी पर उन्होंने मुझे उसकी वजह आज तक नही बताई। खैर,आप प्रसाद बंटवा दीजिएगा। मां कल आयेगी मन्दिर में हवन करवाने, बाकी बातें आप उनसे ही कर लीजिएगा।

दीनानाथजी ने सिर हिलाया और चले गए। उनके जाते ही अजय ने रति की ओर देखा और खाट पर बैठकर बोला - कैसी तबियत है तुम्हारी अब?

"ठीक हूं...पर कल ऑफिस नही आ सकूंगी"- रति ने जवाब दिया, तो अजय फट से बोला - मैं तुमसे ये कहने नही आया था कि कल तुम्हें ऑफिस आना है। मैं बस पंडितजी को पैसे देने आया था तो सोचा कि तुमसे भी मिलता चलूं? ठीक हो तुम?

रति ने आहिस्ता से अपनी गर्दन हिला दी। उसे उदास देखकर अजय ने पूछा - एक बात पूछूं तुमसे काजल?

रति ने आहिस्ता से हां में अपनी गर्दन हिला दी, तो अजय ने पूछा - मुझे ऐसा क्यों लगता है कि तुम्हारी आँखें हर वक्त किसी को तलाशती रहती है। क्या तुम्हारा कोई अपना खो गया है? रति उसे एकटक देखने लगी।

लेखिका
कविता वर्मा