लागा चुनरी में दाग़--भाग(५०) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५०)

दोनों घर पहुँचे तो दोनों का फूला हुआ चेहरा देखकर भागीरथ जी समझ गए कि ये दोनों फिर से लड़ गए हैं, लेकिन तब उन्होंने बात को तह तक जानने की कोशिश की और दोनों से मज़ाक में कहा...
"क्या हुआ,खाना नहीं मिला क्या दोनों को या फिर ये धनुष बटुआ ले जाना भूल गया था,कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि दोनों खाना खा चुके हो और रेस्तराँ का बिल चुकाने के लिए रुपए ना हो इसलिए रेस्तराँ के मालिक ने तुम दोनों से उसके एबज में जूठे बरतन धुलवा लिए हों"
"नहीं! दादाजी! ऐसा कुछ भी नहीं हुआ,बस यूँ ही ..." ,प्रत्यन्चा बोली...
"यूँ ही क्या....साफ साफ बताती क्यों नहीं हो दादाजी को कि तुम मुझसे झगड़कर आई हो",धनुष गुस्से से बोला...
"मैं ने झगड़ा किया या आपने",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"तुमने शुरु किया था झगड़ा",धनुष बोला....
"हाँ...हाँ...मुझे तो लोगों से लड़ने का बहुत शौक है,बहुत मज़ा आता है मुझे झगड़ने में और आप जैसा मासूम तो कोई होगा ही नहीं इस दुनिया में",प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ...तुम हो झगड़ालू बिल्ली.....मैं नहीं",धनुष बोला...
"आपने मुझे झगड़ालू बिल्ली कहा....और आप क्या हैं....ऊदबिलाव,जिसके इत्ते बड़े बड़े दाँत होते हैं और वो हमेशा दूसरों को काटने के लिए दौड़ता रहता है,वैसे ही हैं आप",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"तुमने मुझे ऊदबिलाव कहा",धनुष ने गुस्से से पूछा...
"हाँ!....कहा...बताओ क्या कर लेंगे...आप",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"मैं....मैं तुम्हारे दाँत तोड़ दूँगा",धनुष गुस्से से बोला...
"हाथ लगाकर तो दिखाइए,अभी आपको मैं दिन में तारे दिखा दूँगीं",प्रत्यन्चा भी आवेश में आकर बोली...
"तुम मुझे मारोगी",धनुष ने पूछा...
"आप मेरे दाँत तोड़ेगे तो क्या मैं चुपचाप खड़ी रहूँगी,ऐसी आशा मत कीजिएगा मुझसे",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"तुम मुझे दिन में तारे दिखाओगी तो मैं भी तुम्हें धूल चटा दूँगा",धनुष गुस्से से बोला...
दोनों एक दूसरे पर तोहमतें लगा ही रहे थे कि तभी तेजपाल जी शोर सुनकर अपने कमरे से निकलकर बाहर आएँ और बोले...
"इतनी रात गए ये क्या नाटक लगा रखा है तुम दोनों ने,तुम दोनों तो बाहर गए थे ना खाना खाने",
"हाँ! खाना खाने तो गए थे दोनों,शायद खाना हजम नहीं हुआ,इसलिए खाना हजम करने के लिए दोनों एकदूसरे को धूल नामक चूरन चटाने की बात कर रहे हैं", भागीरथ जी मज़े लेते हुए बोले...
"जाओ...चुपचाप जाकर सो जाओ ,अब मुझे शोर सुनाई दिया ना तो दोनों को घर से बाहर निकाल दूँगा, फिर घर के बाहर बैठकर लड़ते रहना रातभर",
इतना कहकर तेजपाल जी अपने कमरे में चले गए,फिर दोनों भी मुँह बनाकर अपने अपने कमरे की ओर चले गए....
इसके बाद सभी लोग अपने अपने कमरे में जाकर सो गए,फिर करीब आधी रात के वक्त घर के टेलीफोन की घण्टी बजी,भागीरथ जी आजकल धनुष के साथ नीचे वाले कमरे में ही सो रहे थे और उस समय वे जाग रहे थे इसलिए टेलीफोन उन्होंने ही उठाया,जैसे ही उन्होंने हैलो बोला तो उस तरफ से डाक्टर सतीश परेशान होकर बोले...
"दीवान साहब! माँ सिर के बल गिर पड़ी हैं,काफी खून निकल गया है,मैं उन्हें जल्दी से मोटर में डालकर अस्पताल ले आया हूँ,दूसरे डाक्टर उनका इलाज कर रहे हैं,लेकिन अभी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूँ,मेरा मन बहुत घबरा रहा है"
"आप चिन्ता ना करें,हम अभी वहाँ आ रहे हैं",भागीरथ जी बोले...
"हाँ! आप आ जाऐगें तो मुझे थोड़ी तसल्ली हो जाऐगी",डाक्टर सतीश बोले...
"बस,हम अभी पहुँचते हैं वहाँ",और ऐसा कहकर भागीरथ जी ने टेलीफोन रख दिया और कमरे में वापस आकर वे धनुष को जगाते हुए उससे बोले...
"धनुष! हम अस्पताल जा रहे हैं,डाक्टर सतीश की माँ को सिर में चोट लग गई और वो अस्पताल में भरती हैं,उनकी हालत शायद बहुत गम्भीर हैं",
"आप अकेले कैंसे जाऐगें,मैं भी चलता हूँ आपके साथ",धनुष ने कहा...
"नहीं! तुम यहीं रुको,हम अकेले ही चले जाते हैं",भागीरथ जी बोले...
"जिद़ मत कीजिए,मैं इतनी रात गए आपको अकेले नहीं जाने दूँगा",धनुष बोला...
"अच्छा! तो चल,लेकिन घर में किसी को तो बताना पड़ेगा ना कि हम दोनों अस्पताल जा रहे हैं",भागीरथ जी ने धनुष से कहा...
"मैं ये बात पापा को बताकर आता हूँ",धनुष बोला...
"ठीक है! तुम तेजपाल को बताकर आओ,हम तब तक रामानुज को जगाते हैं"
फिर ऐसा कहकर भागीरथ जी रामानुज को जगाने के लिए उसके सर्वेन्ट क्वार्टर की ओर चल पड़े और इधर धनुष तेजपाल जी को सूचित करने चला गया कि मैं और दादाजी अस्पताल जा रहे हैं,डाक्टर सतीश की माँ को बहुत चोट आई है....
इसके बाद दोनों अस्पताल पहुँचे तो डाक्टर सतीश भागीरथ जी को देखकर खुद को सम्भाल नहीं पाएँ और उनकी आँखें भर आईं,तब भागीरथ जी ने डाक्टर सतीश को तसल्ली देते हुए कहा....
"अरे! घबराइए नहीं डाक्टर साहब! आप तो हजारों लोगों को दिलासा देते हैं,ऐसे हिम्मत हारने से कैंसे काम चलेगा,कुछ नहीं होगा आपकी माँ को,वो ऊपरवाला सबकी रक्षा करता है"
"लेकिन उनके सिर के पीछे चोट आई,इतना खून बह गया है कि उनकी हालत देखकर मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा",डाक्टर सतीश बोले...
"कुछ नहीं होगा उन्हें,लेकिन वो गिरी कैंसे"?,भागीरथ जी ने पूछा....
तब डाक्टर सतीश बोले....
"रात में उन्हें दिखता कम है,बाथरुम जाने को उठीं थीं शायद,बाथरुम से वापस आ रहीं थीं,शायद कुछ पड़ा था फर्श पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया और उस पर पैर पड़ते ही वो पक्के फर्श पर सिर के बल गिर पड़ीं, उनकी चीख सुनकर मैं भागा,तब तक तो उनके सिर से खून बहना शुरू हो गया,फिर मैं उन्हें कार में डालकर जल्दी से अस्पताल ले आया"
"देखिएगा! उन्हें कुछ नहीं होगा,अभी डाक्टर साहब अच्छी खबर लेकर आ रहें होगें",धनुष ने डाक्टर सतीश से कहा....
"आशा तो यही है",डाक्टर सतीश बोले...
फिर डाक्टर सतीश ,भागीरथ जी और धनुष शीलवती जी का इलाज कर रहे डाक्टर के बाहर निकलने का इन्तज़ार करने लगे और कुछ ही देर में डाक्टर साहब बाहर आकर डाक्टर सतीश से बोले....
"बिल्कुल ठीक हैं आपकी माता जी,बस थोड़ा खून बह गया है,चलिए मैं आपका ब्लड टेस्ट करके उन्हें आपका खून चढ़ा देता हूँ,उसके बाद थोड़ी ही देर में उन्हें होश आ जाऐगा",
"जी! चलिए!",और ऐसा कहकर डाक्टर सतीश उन डाक्टर के साथ चले गए,फिर उनका ब्लड मैच हो गया,जिससे उनका खून उनकी माँ को चढ़ा दिया गया,खून देकर जब डाक्टर सतीश बाहर आएँ तो तब तक भोर होने को थी...
फिर सब वहीं शीलवती जी के होश में आने का इन्तज़ार करने लगे,सुबह होते होते शीलवती जी को होश आ गया,डाक्टर सतीश अपनी माँ को सही सलामत देखकर बहुत खुश थे,जब शीलवती जी को होश आ गया तो धनुष और भागीरथ जी घर वापस आ गए और घर आकर उन्होंने सबको बताया कि अब शीलवती जी बिलकुल ठीक हैं, तब प्रत्यन्चा बोली...
"तब तो मुझे भी मिलने चाहिए उनसे"
"हाँ...हाँ...क्यों नहीं,नाश्ता करने के बाद उनसे मिलने चली जाओ,उन्हें भी अच्छा लगेगा",भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले...
"अच्छा! सुनो बेटी,उनसे पूछ लेना कि किसी मदद की जरूरत हो तो निःसंकोच कह दें",तेजपाल जी बोले...
"जी! अच्छा! चाचाजी!",प्रत्यन्चा बोली...
"और वहाँ अकेले जाने की जरूरत नहीं है,मैं भी चलूँगा साथ में,बड़ी आई हमदर्द...बनने वाली",धनुष ने अकड़ते हुए कहा....
"मैं आप जैसे ऊदबिलाव के साथ कहीं नहीं जाऊँगीं ,क्या पता वहाँ भी आप मुझसे लड़ने लगें",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली....
"ज्यादा बकवास मत करो,कान खोलकर सुन लो,मैं चलूँगा तुम्हारे साथ",धनुष बोला...
"हाँ! बेटी! धनुष ठीक कहता है,उसे भी अपने साथ ले जाना",तेजपाल जी बोले...
"जी! ठीक है चाचाजी!" प्रत्यन्चा बोली...
फिर कुछ देर में नाश्ता करने के बाद दोनों अस्पताल के लिए रवाना हो गए...

क्रमशः...
सरोज वर्मा...